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Home » ब्लॉग » बासमती धान में बकानी रोग की रोकथाम | बकानी रोग क्या है?

बासमती धान में बकानी रोग की रोकथाम | बकानी रोग क्या है?

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

बासमती धान में बकानी रोग, जानिए लक्षण और नियंत्रण की जानकारी

धान भारतवर्ष की प्रमुख खाद्यान्न फसल है| देश के कृषि योग्य भूमि के 30 प्रतिशत हिस्से में धान की खेती होती है| बासमती धान की खेती से अधिक लाभ के कारण, बासमती धान के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिला है| अपने अद्भुत गुणों एवं दानों की पकने की गुणवत्ता के कारण अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बासमती धान की मांग परंपरागत बासमती की अपेक्षा अधिक है| पिछले कुछ वर्षों से बकानी रोग के कारण इसकी उत्पादकता में कमी देखी गई है| यह रोग धान की पैदावार को 15 से 40 प्रतिशत तक हानि पहुँचाता है|

यह भी पढ़ें- धान की खेती में जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन

बासमती धान में बकानी रोग के लक्षण

यह रोग बासमती धान की खेती में फ्युजेरियम मोनिलिफोरमी नामक कवक से उत्पन्न होता है| पौधशाला में रोग ग्रस्त पौधा. स्वस्थ पौधे की अपेक्षा असामान्य लम्बा होता है| उच्च भूमि में धान के पौधों का बिना लम्बा हुए ही तल गलन या पद गलन के लक्षण मिलते हैं| ऐसे पौधे ज्यादा दिन तक बचे नहीं रहते तथा जल्दी ही सूख जाते हैं|

रोपाई के पश्चात ये पौधे पीले, पतले और लम्बे हो जाते हैं| रोगी पौधे में दौजियां (कल्ले) कम निकलती हैं एवं पौधा जल्दी ही सूख जाता है| बचे हुए पौधों की बालियों में दाने नहीं बनते और बालियां खाली होती हैं| ध्यान से देखने पर दौजियां निकलने या बालिया आने के बाद नमीयुक्त वातावरण में तने के निचले भागों पर सफेद से गुलाबी रंग का कवक दिखाई देता है, जो क्रमशः ऊपर बढ़ता है|

रोगग्रस्त पौधे की जड़ें सड़कर काली हो जाती हैं तथा उसमें दुर्गंध आने लगती है| कभी-कभी रोगी पौधा, अपस्थानिक जड़ें (एडवेंटियस रूट) भी बनाता है| बकानी रोगग्रस्त पौधा सामान्य से छोटा भी होता है| ऐसे पौधे की जडे सडकर काली हो जाती हैं तथा उसमें दुर्गंध आने लगती है| ऐसे पौधे ज्यादा दिन तक जीवित नहीं रहते एवं बालियों के बनने से पहले ही सूख जाते हैं|

यह भी पढ़ें- धान व गेहूं फसल चक्र में जड़-गांठ सूत्रकृमि रोग प्रबंधन

बासमती धान में बकानी रोग का विकास

बासमती धान में बकानी मुख्यतः बीज जनित रोग है| धान के पौधों में फूल निकलने का समय बीज संक्रमण के लिए उपयुक्त पाया गया हैं| कवक पराग कोष और वर्तिकाग्र में अंतराकोशिका से होकर बढ़ता है एवं अंडाशय में पहुँच जाता है| जब रोगी बीज पौधशाला में बोये जाते हैं, तब कवक सर्वांगी हो जाता है एवं बकानी के लक्षण प्रदर्शित करता है| यह कवक सर्दियों में बीज तथा पौधों के अवशेष में चार से दस महिने तक जीवित रह सकते हैं|

बासमती धान में बकानी रोग निम्न तापमान में कम दिखाई देता है और उच्च तापमान 35 डिग्री सेंटीग्रेट रोग के विकास के लिए सबसे अनुकूल हैं| नाइट्रोजन का अधिक प्रयोग रोग के विकास में सहायक होता है| रोग का प्रकोप बलुई दोमट मिट्टी में अधिक होता है| अत्यधिक पानी, पीले, पतले और लम्बे पौधों के लिए सहायक हैं तथा सूखी मिट्टी में बौने पौधे और तलगलन अधिक पाया जाता है| प्रायः सूखे बीजों की बुआई में अंकुरित बीजों के अपेक्षा रोग अधिक होता है|

बासमती धान में बकानी रोग का नियंत्रण

बासमती धान में बकानी मुख्यतः बीज जनित रोग है, इसलिए स्वस्थ एवं साफ बीजों का प्रयोग करें| ग्रीष्म ऋतु में खेत की जुताई करें तथा कुछ दिनों के लिए खाली छोड़ दें, जिससे हानिकारक कवक व खरपतवार नष्ट हो जायें| गरम पानी 50 से 57 डिग्री सेल्सियस से 15 मिनट तक बीजोपचार उपयोगी हैं|

बाविस्टीन के 0.1 प्रतिशत 1 ग्राम प्रति लीटर पानी घोल में बीजों को 24 घंटे भिगोयें और अंकुरित करके नर्सरी में बिजाई करें| रोपाई के समय रोगग्रस्त पौधों को न रोपें और गीली पौधशाला में बुआई करें| पौधों में रोग के लक्षण दिखाई देने पर उन्हें उखाड़ कर नष्ट कर दें| अत्यधिक नाइट्रोजन का प्रयोग न करें|

यह भी पढ़ें- स्वस्थ नर्सरी द्वारा बासमती धान की पैदावार बढ़ाये

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