बाजरे की फसल में कीट और रोग नियंत्रण आवश्यक है| क्योंकि कृषकों को बाजरे की उत्तम पैदावार के लिए खेत की अच्छी तैयारी, उन्नत किस्मों का चुनाव, समय पर बुआई और संतुलित मात्रा में खाद व उर्वरक के उपयोग के साथ साथ बाजरे की फसल में कीट और रोग नियंत्रण करना भी आवश्यक है|
जिससे वे बाजरे की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते है| इस लेख में बाजरे की फसल में कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें तथा इसकी आधुनिक तकनीक का उल्लेख किया गया है| बाजरे की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- बाजरे की खेती कैसे करे
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बाजरे की फसल में कीट नियंत्रण
सफेद लट- इसके प्रौढ़ भूरे तथा हल्के-भूरे रंग के होते हैं, जो मानसून की पहली वर्षा के बाद भूमि से शाम को अंधेरा होने पर निकलते हैं और आसपास के पौधों पर इकट्ठे होकर पत्तों को खाते हैं एवं सुबह होने से पहले वापिस जमीन में चले जाते हैं| इसकी लट अंग्रेजी के अक्षर ‘सी’ के आकार की होती है| यह सफेद रंग की लट जिसका मुंह भूरे रंग का होता है, बाजरे की जड़ों को काटकर अगस्त से अक्तूबर तक भारी नुकसान करती है| ग्रसित पौधे पीले होकर सूख जाते हैं| कभी-कभी इस कीड़े का प्रकोप बाजरे की अगेती फसल (यदि मानसून पूर्व की बारिश हुई हो) में भी हो जाता है|
नियंत्रण-
1. पौधों पर इकट्टे हुए प्रौढ़ भूण्डों को वर्षा के बाद पहली तथा दूसरी रात्रि को पौधे हिलाकर नीचे गिरा कर एकत्र करें व उन्हें मिट्टी के तेल के घोल में डालकर नष्ट कर दें| यदि यह कार्य अभियान चलाकर किया जाये तो सर्वोत्तम है|
2. प्रौढ़ भूण्डों को मारने के लिए पहली, दूसरी तथा तीसरी वर्षा होने के बाद (उसी दिन या एक दिन बाद) खेतों में खड़े पौधों पर 0.04 प्रतिशत मोनोक्रोटोफास 36 एस एल या 0.05 प्रतिशत क्विनलफास 25 ई सी या 0.05 प्रतिशत कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी का छिड़काव करें|
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बालों वाली सूण्डियां- इस कीट की सूण्डियां छोटी अवस्था में होती हैं, तो ये इकट्ठी रहकर बाजरे की फसल के पत्तों की निचली सतह पर नुकसान करती हैं और पत्तों को छलनी कर देती हैं| ये इधर-उधर अकेली घूमती रहती हैं एवं पत्तों को खाती हैं| इनकी दो प्रजातियां हैं, जैसे- बिहार हेयरी केटरपिलर एवं रैड हेयरी केटरपिलर| लाल बालों वाली सूण्डियां जुलाई के दूसरे पखवाड़े से अगस्त माह के अन्त तक सक्रिय रहकर नुकसान करती हैं| दूसरी प्रजाति की बालों वाली सूण्डी अगस्त से अक्तूबर तक भारी नुकसान करती है|
नियंत्रण-
1. खरीफ फसलों की कटाई के बाद खेतों में गहरी जुताई करें, जिससे बालों वाली सूण्डियों के प्यूपे बाहर आ जाते हैं तथा पक्षियों द्वारा व अन्य कारणों से नष्ट हो जाते हैं|
2. बाजरे की लाल बालों वाली सूण्डियों के प्रौढ़ (पतंगे) रोशनी की तरफ आकर्षित होते हैं, पहली बारिश के उपरान्त एक माह तक लाइट-ट्रैप का उपयोग करें|
3. बाजरे की फसल के खेतों के आसपास खरपतवारों को न रहने दें क्योंकि ये कीड़े उन पर अण्डे देते हैं|
4. बाजरे की फसल से कीटों के अण्ड-समूह को नष्ट करें|
5. पत्तों को छोटी सूण्डियों सहित तोड़ लें और ऐसे पत्तों को जमीन में गहरा दबा दें या मिट्टी के तेल के घोल में डालकर इन्हें मार दें|
6. बड़ी सूण्डियों को कुचलकर नष्ट कर दें या फिर मिट्टी के तेल के घोल में डालकर नष्ट करें|
7. बड़ी सूण्डियों की रोकथाम के लिये 250 मिलीलीटर मोनोक्रोटोफास 36 एस एल या 200 मिलीलीटर डाईक्लोरवास 76 ई सी या 500 मिलीलीटर क्विनलफास 25 ई सी को 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़कें|
भूण्डी- यह सलेटी रंग की होती है, जो बाजरे की फसल की पत्तियों के किनारों से खाकर अगस्त से अक्तूबर तक नुकसान करती है|
नियंत्रण- नियंत्रण के लिए 400 मिलीलीटर मैलाथियान 50 ई सी को 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़कें|
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बाजरे की फसल में रोग नियंत्रण
डाऊनी मिल्ड्यू (जोगिया या हरी बालों वाला रोग)- इस रोग से बाजरे की फसल के प्रभावित पौधे बौने रह जाते हैं, पत्ते पीले पड़ जाते हैं तथा पत्तियों की निचली सतह पर सफेद पाऊडर सा जमा हो जाता है| इस रोग से प्रभावित फसल दूर से ही पीली दिखाई देती है| पत्ते सूखने शुरू हो जाते हैं और पौधा नष्ट हो जाता है| हरी बालों की स्थिति में प्रभावित बालें घास जैसा रूप धारण कर लेती हैं, जो काफी समय तक हरी रहती हैं| उग्र संक्रमण से फसल पूर्णतया नष्ट हो सकती है|
अरगट (चेपा)- रोगग्रस्त बाजरे की फसल की बालों से हल्के गुलाबी रंग का चिपचिपा गाढ़ा रस टपकने लगता है, जो कि बाद में गहरा भूरा हो जाता है| कुछ दिनों बाद दानों के स्थान पर गहरे भूरे रंग के पिंड बन जाते हैं| चिपचिपा पदार्थ एवं पिंड दोनों ही पशुओं तथा मनुष्य के लिए हानिकारक(जहरीले) होते हैं|
स्मट (कांगियारी)- बाजरे की बालों की शुरू की अवस्था में जगह जगह रोगग्रस्त दाने बनते हैं, जो आकार में बड़े, चमकदार और गहरे हरे रंग के होते हैं| बाद में ये भूरे रंग के हो जाते हैं| अन्त में इनमें काले रंग का पाऊडर सा भर जाता है. जो कि रोगजनक फफूद के बीजाणु होते हैं|
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बाजरे की फसल में रोग नियंत्रण के सामूहिक उपाय
बीजोपचार- बीज का भली भांति निरीक्षण करें तथा देखें कि उनमें अरगट (चेपा) के पिंड न हों| यदि बीज किसी प्रमाणित संस्था से न लिया गया हो तो अरगट के पिंड हाथ से चुनकर बाहर निकाल दें| यदि किसान अपना ही बीज प्रयोग में ला रहे हैं तो पिण्डों को हाथ से चुनकर निकाल दें या नमक के घोल में बीज को डुबोकर निकाल दें| इस विधि में 10 प्रतिशत नमक के घोल में बीज को डालकर 10 मिनट तक हिलाएं एवं ऊपर तैरते हुए पिण्डों को निकाल दें तथा बाद में जलाकर नष्ट कर दें|
घोल में नीचे बैठे भारी स्वस्थ बीज को बाहर निकाल लें और साफ पानी से अच्छी तरह धो लें, जिससे कि बीज की सतह पर नमक का कोई अंश न रहने पाये| यदि नमक का कोई अंश बीज की सतह पर किसी कारणवश रह जाता है, तो उससे बीज के अंकुरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है| अन्त में धुले हुए सारे बीज को छाया में सुखा लें|
ऐसे बीज को बोने से पहले 2 ग्राम एमीसान और 4 ग्राम थाइरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से सूखा उपचार करें|
यदि बीज पहले से उपचारित न हो तो डाऊनी मिल्ड्यू (जोगिया या हरी बालों वाला रोग) की शुरुआती रोकथाम के लिए बीज को मैटालेक्सिल 35 प्रतिशत से 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से भी उपचारित कर देना चाहिए|
रोगग्रस्त पौधों को निकालना- बाजरे की फसल के पत्तों पर ज्यों ही डाऊनी मिल्ड्यू रोग के लक्षण दिखाई पड़े, इन्हें उखाड़कर नष्ट कर दें, उखाड़े हुए रोगग्रस्त पौधों का सम्पर्क स्वस्थ पौधों से न हो| यह काम बुवाई के 20 दिन के अन्दर अवश्य ही करना चाहिए| मध्यम से अधिक पौधे निकाल देने की सूरत में वहां स्वस्थ पौधे रोप दें|
बाजरे की रोगग्राही किस्मों में, रोगग्रस्त पौधों को निकालने के बाद, फसल पर 0.2 प्रतिशत जाइनेब या मैन्कोजेब के घोल (500 ग्राम दवा और 250 लीटर पानी प्रति एकड़) का छिड़काव करें|
छिड़काव कार्यक्रम- फसल में पत्तों से बालें बाहर आने वाली अवस्था में बालों पर 400 मिलीलीटर क्यूमान एल का 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें|
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अन्य उपाय भी अपनाएं
1. अरगट (चेपा) से प्रभावित बालियों को जलाकर नष्ट कर दें और ऐसे पौधे या दाने न तो पशुओं को खिलायें तथा न ही अपने प्रयोग में लायें|
2. बीमारी की अधिकता वाले क्षेत्रों में 3 से 4 साल का फसल-चक्र अपनायें|
3. अगेती व समय पर (जून के अन्तिम सप्ताह या जुलाई के पहले सप्ताह) बोई गई फसल को अरगट का रोग कम लगता है|
4. फसल काट लेने के बाद खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर दें, ताकि अरगट के स्क्लोरेशिया, डाऊनी मिल्ड्यू के बीजाणु आदि मिट्टी की तह में नष्ट हो जायें|
5. अरगट से प्रभावित फसल के दानों को खाने के प्रयोग में लाने से पूर्व अनाज से अरगट के पिण्ड निकाल दें|
6. धूमर और लिपटना घास खेत की मेढ़ों तथा बाजरा के खेत के आसपास न उगने दें|
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