पीकन नट फल अखरोट से अधिक उत्तम गुणवता वाला है| पीकन नट की खेती या बागवानी की काफी सम्भावनाएं हैं| अपनी लम्बी बड़ी जड़ों के कारण सूखे की स्थिति को भी यह पेड़ झेल लेता है, इसलिए इस पेड़ को सूखा पड़ने वाले क्षेत्रों में लगाया जा सकता है| उत्तरी अमेरिका को जन्म स्थान माना जाता है| पीकन नट को उत्तरी अमेरिका द्वारा विश्व को औद्योगिक भेंट के रुप में देखा जाता है| गिरी वाले फलों में इसका पाँचवा स्थान है|
अमेरिका में इसे गिरीदार फलों की रानी कहा जाता है| अमेरिका के अलावा इसकी बागवानी आस्टेलिया, कनाडा, भारत, इजराइल, मैक्सिको, पेरु, टर्की और दक्षिण अफ्रीका में की जाती है| इस लेख में किसान भाइयों को पीकन नट की खेती कैसे करें, इसके लिए उपयुक्त जलवायु, किस्में, रोग रोकथाम, पैदावार आदि पर विस्तार से जानकारी देंगे, जिसके द्वारा कृषक इससे उत्तम पैदावर प्राप्त कर सकते है|
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उपयुक्त जलवायु
समुद्रतल से 500 से 1500 मीटर तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पीकन नट लगाना चाहिए| अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए भी यह अच्छा है| इसे उन कम ऊँचाई तथा अधिक गर्म क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है| जोकि अखरोट की बागवानी के लिए उपयुक्त नहीं माने जाते| यानि की पीकन नट लिए गर्म शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त है| अति शीतोष्ण व समशीतोष्ण दोनों ही जलवायु इसकी बागवानी के लिए अच्छी नहीं है|
बसंत ऋतु से पतझड़ तक दीर्घ अवधि तक पाले रहित जलवायु पीकन के अच्छे उत्पादन मे सहायक होती है और आदर्श जलवायु के लिए 190 से 240 दिन का वृद्धि समय, 26.7 डिग्री सेण्टीग्रेड से अधिक औसत तापमान, तीन सबसे ठण्डे माह तक 7.2 से 12.8 डिग्री सेण्टीग्रेड तापमान व 400 घण्टे की द्रुत शीतन अवधि की आवश्यकता होती है| अधिक नमी के कारण परागण कम होने के साथ-साथ गिरी व पत्तियों पर बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है, जिसके कारण पौधे की वृद्धि, फलत व लगातार फल उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता हैं|
भूमि का चयन
पीकन नट को जैविक पदार्थ से भरपूर गहरी, उपजाऊ और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में लगाना चाहिए| इसके विकास और फल उत्पादन के लिए कम उपजाऊ, कम गहरी तथा भू- कटाव प्रभावित भूमि उपयुक्त नहीं है| पेड़ बागीचों और खेतों की मेढ़ों और सड़क और नदियों के किनारे भी लगाए जा सकते हैं|
इसके लिए बालू मे अधिक मात्रा में उर्वरकों का उपयोग करना होता है| इसकी अच्छी बढ़वार हेतु मृदा का पी एच मान 5 से 8 तक होना चाहिए| परन्तु अधिक क्षारीय भूमि में जस्ता की अधिक कमी हो जाती हैं अतः सबसे उपयुक्त पी एच मान 6.5 माना जाता हैं|
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उन्नत किस्में
पीकन नट की बागवानी के लिए अनेक किस्मे उपलब्ध है, लेकिन यहां कुछ व्यवसायिक तौर पर उगाई जाने वाली किस्मों का वर्णन इस प्रकार है, जैसे-
महान- पौधें काफी बड़ें, नट (गुठली) लम्बूतरा, निचला भाग चपटा व शीर्ष थोड़ा नुकीला, खोल भूरे रंग का, शीर्ष पर गहरी धारियां, गिरी पूरी भरी नहीं, छिलके से आसानी से अलग होने वाली, अक्तूबर के आखिरी सप्ताह में फल तैयार होने वाली किस्म है|
नैलिस- पौधें काफी बड़े, नट लम्बूतरा, निचला आधार नोकदार, भूरे रंग के छिलके के आधार पर काली धारियां, गिरी 49.4 प्रतिशत, अंबर रंग की, मध्यम रूप से भरी हुई, छिलके से जल्दी निकलने वाली, नियमित फलन, अक्तूबर के दूसरे से तीसरे सप्ताह में पककर तैयार होती है|
बरकट- पेड़ लम्बा फैला हुआ, नट (गुठली) लगभग गोल, आधार चौड़ा और थोड़ा नोक वाला, शीर्ष थोड़ा नुकीला, छिलका बिन्दुओं सहित सफेद, शीर्ष पर काली धारियां, गिरी 58.5 प्रतिशत अच्छी भरी हुई, छिलके से सुगमता से न निकलने वाली, नियमित फलन, फल झड़ने की समस्या, अक्तूबर के दूसरे सप्ताह में पककर तैयार होने वाली किस्म है|
वैस्टर्न शैले- नट (गुठली) गहरे भूरे रंग का लम्बूतरा, शीर्ष तथा निचला आधार नोकदार, छिलका गहरा भूरा, अन्य किस्मों की अपेक्षा फल पर गहरे रंग की धारियां शीर्ष पर प्रमुख तथा स्पष्ट, गिरी 62 प्रतिशत, हल्के भूरे रंग की, छिलके से कम आसानी से अलग होने वाली, नियमित फलन, अक्तूबर के दूसरे से तीसरे सप्ताह में पक कर तैयार होने वाली प्रजाति है|
सक्सेस- पौधा लम्बा फैला हुआ तथा स्वयं आफलन गुण वाला, नट का आकार अण्डाकार, गिरी का आकार अण्डाकार तथा औसत भार 3.00 ग्राम, छिलका मुलायम और बादामी रंग, छिलका-गिरी का अनुपात 1:1.22, उत्पादकता क्षमता अच्छी होती हैं|
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पौधे तैयार करना और रोपण
पीकन नट के बीज गर्मियों में पॉलीथीन की थैलियों में बोये जाते हैं| बीजू पौधे को पॉलीथीन की मिट्टी समेत लगा देते हैं| पौधे तैयार करने के लिए मई में पैच बडिंग, जून के आखिर में चालू मौसम में लगी टहनियों से कलम लेकर 2 साल के बीजू पौधों पर कलम करके और मार्च के शुरू में टंग ग्राफ्टिंग करें| पीकन नट का जहां पौधा लगाना हो वहीं बीज बोकर ग्राफ्टिंग की जाए तो पौधे अच्छे चलते हैं| पौध रोपण का सही समय दिसम्बर से जनवरी है| पौधे 8 से 10 मीटर की दूरी पर लगाएं|
प्रवर्धन/मूलवृन्त
पीकन नट का व्यवसायिक प्रवर्धन बीजू मूलवृन्त पर कलिकायन अथवा ग्राफ्टिंग के द्वारा किया जाता है| परन्तु इसका वानस्पतिक प्रवर्धन दूसरे फलों की तुलना में कम होता है| पीक नट का प्रवर्धन मूलवृन्त द्वारा किया जाता है| कड़वे पीकन नट को भी प्रवर्धन हेतु मूलवृन्त की तरह प्रयोग किया जाता है| पेड़ का मूलवृन्त, हालांकि, आनुवंशिकीय भिन्न है, चूंकि बीज जिससे हेरिरोजाइग्स मादा और अन्जान हेरिटोजाइगस परागकर्ता की पीढ़ी उगायी जाती है| केलिफोर्निया मे पीकन नट के लिए हिकोरी उत्तम मूलवृन्त है| कड़वे पीकन नट का बीजू पौधा कम पी एच मान, बेकार जल निकास और दलदली भूमि जैसी अवस्थाओ को सहने मे सक्षम है|
खाद और उर्वरक
पांच वर्ष तक पीकन नट के पौधे को मिट्टी और पौधे की आवश्यकतानुसार हर साल खाद और उर्वरक दें, पांचवे साल में और उसके बाद हर साल दिसम्बर के महीने में 100 किलोग्राम गोबर की अच्छी, गली सड़ी खाद डालें| बसन्त ऋतु के शुरू में एक वर्ष के पौधे में नाईट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का आधा किलोग्राम मिश्रण (15:15:15) एवं 16 वर्ष और अधिक आयु के पौधे को 8 किलोग्राम का मिश्रण डालें और फिर उम्र के गुणांक में डालें| पीकन नट में जिंक तथा मैगनीज तत्त्वों की कमी को पूरा करने के लिए जिंक सल्फेट एक किलोग्राम या मैगनीज सल्फेट किलोग्राम का घोल बनाकर पत्तों पर छिड़काव करें|
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सिंचाई प्रबन्धन
पीकन नट के पौधों की अच्छी वृद्धि व सतत् फलन के लिए पौधों को निरन्तर जल की उपलब्धता सुनिश्चित होना जरूरी है। सूखी पत्तियों की पलवार जल को मृदा में रोकने में मदद करती है| विशेषतः छोटे पौधों के लिए ग्रीष्म ऋतु में प्रत्येक पखवाड़े में एक सिंचाई दी जानी चाहिए| पीकन नट को ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है| बूँद-बँद अथवा टपक सिंचाई पद्धति बहुत ज्यादा उपयोगी है, क्योंकि इस सिंचाई पद्धति द्वारा सिंचाई हेतु जल की आवश्यकता काफी कम हो जाती है और सस्य क्रियाएं भी प्रभावित नहीं होती है|
काट-छांट
तने पर सबसे निचली शाखा भूमि से एक मीटर की ऊँचाई पर रखें और फिर 30 से 35 सेंटीमीटर की दूरी पर शाखाओं को पेड़ के चारों ओर रखें| जब पेड़ की आकृति पूरी बन जाये तो अधिक काट-छांट नहीं करनी चाहिए| दुर्बल, रोगग्रस्त या सूखी टहनियों को ही काटें| अधिक उम्र की अवस्था में पीकन में पीकन नट के पेड़ विशाल और घने होकर कटाई-छँटाई, छिड़काव और तुड़ाई की क्रिया को मुश्किल बना देते है| इसलिए पीकन मे कटाई-छँटाई आवश्यक है, काट-छांट की समस्त प्रक्रियायें दिसम्बर माह में पूर्ण कर लेते है, जब पौधे सुषुप्तावस्था में होते हैं| कांट-छांट के उपरान्त कटे भागों पर बोर्डो पेन्ट या चौबटिया पेस्ट का प्रयोग करते है|
परागण
टिरोडाइकोगेमी के कारण पीकन नट में अधिकतर परपरागण एवं बहुत कम स्वपरागण होता है| पराग हल्का, शुष्क और पीले रंग का होता है, परागण हवा के द्वारा सम्पन्न होता है| हवा परागों को लगभग 900 मीटर की दूरी तक ले जाती है| उचित परागण हेतु 5 प्रतिशत परागकर्ता किस्म की आवश्यकता होती है| बाग की प्रत्येक दसवी पंक्ति में परागकर्ता किस्म लगाने से 10 प्रतिशत उपज वृद्धि होती है|
पराग प्रस्फुटन तथा मादाजननांग की ग्राही क्षमता 8 से 16 दिन तक रहती है, जो मौसम व किस्मों पर भी निर्भर करती है| अधिक सापेक्ष आर्द्रता 85 प्रतिशत से ज्यादा व बहुत कम तापमान पराग प्रस्फुटन पर विपरीत प्रभाव डालता है| पीकन नट मादाजननांग सूखे प्रकार का होता है, परागनलिका परागण के तीन घण्टे के बाद निकलती है| सामान्य अवस्थाओ में पीकन नट में परागण की कोई आवश्यकता नही होती है| बागवानी की दृष्टि से परागण के अतिरिक्त, प्रोटोगाइन्स व प्रोटेन्ड्रस किस्मों को साथ मे उगाना लाभप्रद है|
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कीट और रोग रोकथाम
इसके लिए पीकन नट की खेती को खरपतवार मुक्त रखें और इसको सेब की बागवानी वाले ही कीट व रोग अधिक प्रभावित करते है, इनकी रोकथाम के लिए किसान भाई या बागवान हमारा सेब की खेती कैसे करें लेख यहां पढ़ें- सेब की खेती कैसे करें
तुड़ाई और पैदावार
फलों की तुड़ाई- पीकन नट की खेती में अक्तूबर के पहले सप्ताह में जब फल का खोल फटने लगता है और फल से अलग हो जाता है, तब नटो को बाँस के डण्डे से झड़ाकर अथवा प्राकृतिक रूप से जमीन पर गिरने के उपरान्त इकट्ठा कर लेते है| फल निकालना आरम्भ करें| बाहरी छिलके को अलग करने के लिए इन्हें इथेफोन 5 मिलीलीटर प्रति लिटर पानी में एक मिनट तक डुबोएं| फलों को धूप में सुखाएं और नमी रहित स्थानों पर भण्डारण करें|
पैदावार- पीकन नट का व्यावसायिक उत्पादन सातवें से दसवें वर्ष में पेड़ की किस्म एवं वृद्धि के आधार पर होता है, आगे उपज किस्म, पेड़ की उम्र न फलत वाले तथा रोपण घनत्व पर निर्भर करता है| एक बड़े कलमी और विकसित पेड़ की पैदावार 25 से 100 किलोग्राम तक होती है|
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