
धान में हरित शैवाल और अजोला का प्रयोग इसलिए आवश्यक है| क्योंकि नील हरित शैवाल जलीय पौधों का एक ऐसा समूह होता है, जिसे साइनो बैक्टीरिया भी कहा जाता हैं, यह एक कोशिकीय जीवाणु है, जो काई के आकार का होता है| जबकि एजोला ठण्डे पानी में उगने वाली एक घास है, जो प्रायः तालाबों और पानी भरे स्थानों पर तैरती हुई उगती है|
इसकी वृद्धि इतनी तीव्र गति से होती है| इस लेख में धान में हरित शैवाल एवं अजोला का प्रयोग कैसे करें की जानकारी का उल्लेख किया गया है| धान की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- धान (चावल) की खेती कैसे करें पूरी जानकारी
धान में नील हरित शैवाल का उपयोग
नील हरित शैवाल जलीय पौधों का एक ऐसा समूह होता है, जिसे साइनो बैक्टीरिया भी कहा जाता हैं| यह एक कोशिकीय जीवाणु है, जो काई के आकार का होता है| इस जीवाणु को धान की फसल के लिए वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को भूमि में संस्थापित कराने के उद्देश्य से उपयोग में लाया जाता है| नील हरित शैवाल प्रकाश संश्लेषण से ऊर्जा ग्रहण करके वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का भूमि में स्थिरीकरण करता है|
नील हरित शैवाल एक स्वतंत्र रूप से जीवन यापन करने वाला जीवाणु होता है, जिसे दलहनी फसलों की भाँति ऊर्जा के लिए धान के पौधे पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है| धान के खेत में चूँकि सदैव पानी भरा रहता है, इसलिए नील हरित शैवाल की वृद्धि एवं विकास के लिए अनुकूल स्थिति विद्यमान रहती है|
धान में नील हरित शैवाल द्वारा नाइट्रोजन का स्थिरीकरण एक विशिष्ट कोशिका द्वारा किया जाता है| नील हरित शैवाल के उपयोग से 20 से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन का प्रति हेक्टेयर स्थिरीकरण होता है| मृदा में कार्बनिक पदार्थों तथा अन्य पौध विकासवर्द्धक रसायनों जैसे- आक्सीन, जिब्रेलीन, फाइरीडोक्सीन, इण्डोल एसिटिक एसिड इत्यादि की मात्रा में वृद्धि हो जाती है| फसल के उत्पादन में वृद्धि होती है| अम्लीय और क्षारीय-भूमियों का भी सुधार होता है|
प्रयोग विधि
नील हरित शैवाल के प्राथमिक कल्चर को उपलब्धता के अनुसार 5 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा लेकर पहले एक छोटी क्यारी में डालकर काई बना लेते हैं| इसके बाद इसी काई रूपी एलगी को धान के पानी भरे खेत में रोपाई के 20 से 25 दिन बाद प्रयोग करते हैं|
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धान में एजोला फर्न का उपयोग
एजोला ठण्डे पानी में उगने वाली एक घास है, जो प्रायः तालाबों और पानी भरे स्थानों पर तैरती हुई उगती है| इसकी वृद्धि इतनी तीव्र गति से होती है, कि यह 20 ये 30 दिनों के भीतर दुगुनी हो जाती है| इसका धान की फसल में जैव-उर्वरक के रूप में प्रयोग किया जाता है| अपनी तीव्र वृद्धि के कारण यह धान की फसल में नील हरित शैवाल की अपेक्षा अधिक प्रभावकारी सिद्ध हुई है| अजोला की नाइट्रोजन स्थिरीकरण क्षमता अधिक होती है| यह शीघ्र ही कार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित हो जाती है तथा मृदा के भौतिक गुणों में सुधार करती है|
प्रयोग विधि-
एजोला का प्रयोग धान की मुख्य फसल में दोहरे कार्य के लिए किया जाता है अर्थात हरी खाद एवं नाइट्रोजन की सहजीविता द्वारा धान की फस्ल को लाभ पहुंचाने के लिए| इसका प्रयोग करने के लिए धान के खेत में रोपाई से 2 से 3 सप्ताह पूर्व जल भर दिया जाता है, जिसमें एजोला कल्चर को डाल दिया जाता है|
इसके 2 से 3 सप्ताह बाद जब एजोला पूरे खेत में अच्छी तरह फैल जाता है तो पानी को निकाल कर मिट्टी में मिलाकर जुताई कर दिया जाता है| साथ ही 25 से 30 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट डालने से इसका विकास अच्छा होता है| ध्यान रहे इसका प्रयोग करने पर खेत में 5 से 10 सेंटीमीटर पानी भरा रहना आवश्यक होता है|
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नील हरित शैवाल एवं एजोला के प्रयोग से लाभ-
1. मिट्टी के लाभदायक सूक्ष्म जीवों की संख्या में वृद्धि होती है|
2. वायुमण्डल के नाइट्रोजन का मिट्टी में स्थिरीकरण होने में सहायता मिलती है|
3. पौधों की दैहिक क्रिया में वृद्धि नियामकों, ऑक्जिन और विटामिन की वृद्धि होती है|
4. मृदा में उपस्थित न उपलब्ध होने वाले पोषक तत्त्वों को उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है|
5. मृदा संरचना में सुधार होता है तथा रोग-रोधक क्षमता में वृद्धि होती है|
6. सिंचाई जल संरक्षण में सहयोग मिलता है|
7. धान की जड़ों का अच्छा विकास होता है|
8. धान में हरित शैवाल एवं अजोला का प्रयोग खरपतवारों से होने वाले नुकसान को कम करता है|
9. हरित शैवाल एवं अजोला का प्रयोग धान के उत्पादन वृद्धि में सहायक है|
10. कल्लों की संख्या स्वस्थ एवं अधिक होती है|
11. एजोला के प्रयोग से खेत में नाइट्रोजन ही नहीं बल्कि बायोमास के रूप में कार्बनिक पदार्थों की भी वृद्धि होती है, जिससे मृदा उर्वरता बढ़ती है|
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