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Home » Blog » जनवरी महीने के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

जनवरी महीने के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

January 4, 2024 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

जनवरी महीने के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

जनवरी का महीना रबी मौसम में अधिक पैदावार लेने के लिए आवश्यक कृषि कार्यों की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होता है| समय पर बोई गयी रबी फसलें अब अपने प्रजननीय अवस्था में आने वाली होती हैं| जनवरी महीने में अधिकतर फसलें अपनी क्रांतिक बढ़वार की अवस्था में होती हैं| इस समय तापमान में तीव्र गिरावट होने के कारण पाला, कोहरा और ओले की आशंका बनी रहती है| रबी फसलों का उत्पादन मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित पोषण, उचित जल और खरपतवार प्रबंधन पर ही निर्भर करता है|

देर से बोई गयी गेहूं की फसल में क्रांतिक चंदेरी जड़ अवस्था में होती है जिसके कारण सिंचाई आवश्यक हो जाती है| जनवरी महीने में कम तापमान और धूप न होने के कारण कई प्रकार की व्याधियों से भी फसलों को बचाना आवश्यक होता है| इस डीजे लेख में कृषकों की जानकारी के लिए जनवरी महीने के कृषि कार्यों और फसल देखभाल का उल्लेख किया गया है|

जनवरी महीने के कृषि कार्य अच्छी फसलोत्पादन के लिए

गेहूं और जौ

1. समय से बोये गये गेहूं में दूसरी सिंचाई बुआई के 40-45 दिन बाद कल्ले निकलते समय और तीसरी सिंचाई बुआई के 60-65 दिन बाद गांठ बनने की अवस्था पर करें| सिंचाई के बाद जब खेत में पैर न चिपके तब नाइट्रोजन की शेष एक तिहाई मात्रा का छिड़काव करें| भारी मृदा में प्रति हैक्टर 132 किग्रा यूरिया (60 किग्रा नाइट्रोजन) की टॉप ड्रेसिंग पहली सिंचाई के 4-6 दिन बाद करें| बलुई दोमट मृदा में 88 किग्रा यूरिया (40 किग्रा नाइट्रोजन) की टॉप ड्रेसिंग पहली सिंचाई पर और प्रति हैक्टर 40 किग्रा नाइट्रोजन की दूसरी टॉप ड्रेसिंग सिंचाई के बाद प्रयोग करें|

2. देर से बोये गये गेहूं में पहली सिंचाई बुआई के 18-20 दिनों बाद और बाद की सिंचाई 15-20 दिनों के अंतराल पर करते रहें| वहां भी सिंचाई के बाद एक तिहाई नाइट्रोजन का छिड़काव करना आवश्यक होगा|

3. गेहूं की फसल में संकरी पत्ती वाले खरपतवारों में जंगली जई और गेंहुसा (गेहूं का मामा) एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे खरतुआ, हिरनखुरी, कन्तेली, बथुआ, कृष्णनील, चटरी – मटरी, सेंजी आदि प्रमुख हैं| बुआई के तुरंत बाद खरपतवारों के नियंत्रण के लिये सल्फोसल्फ्यूरॉन 75 प्रतिशत + मैटसल्यूरॉन मिथाइल 5 प्रतिशत (टोटल) की 40 ग्राम या क्लोडिनाफॉप 15 प्रतिशत + मैटसल्यूरॉन मिथाइल एक प्रतिशत वेस्टा 15 डब्ल्यूपी की मात्रा 500-600 लीटर पानी में घोलकर पहली सिंचाई के बाद, परन्तु 30 दिन की अवस्था से पूर्व प्रति हैक्टर छिड़काव करने से इन खरपतवारों से छुटकारा मिल सकता है|

खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार की रोकथाम के लिए 2,4-डी सोडियम साल्ट (80 प्रतिशत) की 625 ग्राम या 1.5 लीटर 2,4-डी एस्टर प्रति हैक्टर की दर से 600 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 30-35 दिन बाद छिड़काव करें|

मृदा जांच के आधार पर यदि बुआई के समय जिंक और लोहा नहीं डाला गया हो तो पत्ती पर इनकी कमी के लक्षण दिखाई देते ही जिंक सल्फेट आयरन सल्फेट का 0.5 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें|

जनवरी महीने में कम तापमान के कारण बीमारियों का खतरा कम रहता है, परन्तु फफूंदजनित रोग के लक्षण दिखाई देने पर प्रोपिकोनाजोल 0.1 प्रतिशत अथवा मैंकोजेब 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव किया जा सकता है|

4. गेहूं की फसल को चूहों से बचाने के लिए जिंक फॉस्फाइड या एल्यूमिनियम फॉस्फाइड की टिकिया से बने चारे का प्रयोग कर सकते हैं| फसलों को चूहों से बचाने के उपाय यहाँ पढ़ें- चूहों से खेती को कैसे बचाएं?

5. जौ की फसल में दूसरी सिंचाई बुआई के 55-60 दिन बाद गांठ बनने की अवस्था में करनी चाहिए|

6. पत्ती व तनाभेदक की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोरोप्रिड 200 ग्राम प्रति हैक्टर या क्यूनालफॉस 25 ईसी दवा 250 ग्राम प्रति हैक्टर का प्रयोग करें या प्रोपीकोनाजोल 0.1 प्रतिशत के घोल का छिड़काव करें|

मोल्या: रोगग्रस्त पौधे पीले व बौने रह जाते हैं| इनमें फुटाव कम होता है और जड़े छोटी व झाड़ीनुमा हो जाती हैं| जनवरी-फरवरी में छोटे-छोटे, गोलाकार सफेद चमकते हुए मादा सूत्रकृमि जड़ों पर साफ दिखाई देते हैं, जो इस रोग की खास पहचान है| यह रोग समय पर बोये गए गेहूं पर नहीं आता है| संभावित रोगग्रस्त खेतों में 6 किग्रा एल्डीकार्व या 13 किग्रा कार्बोफ्यूरॉन बुआई के समय खाद में मिलाकर डालें|

पाला: जनवरी महीने में पाले से बचाव के लिए खेतों के आस-पास धुंआ करें| इससे तापमान बढ़ जाता है तथा पाला पड़ने का असर कम हो जाता है| अधिक सर्दी वाले दिनों में शाम के समय सिंचाई करने से भी पाले से बचाव होता है|

गेहूं की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गेहूं की खेती

जौ की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- जौ की खेती

चना, मटर और मसूर

1. चने की फसल में दूसरी सिंचाई फलियों में दाना बनते समय की जानी चाहिए| यदि जाड़े में वर्षा हो जाये तो दूसरी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है| लम्बे समय तक वर्षा न हो तो अच्छी पैदावार लेने के लिये हल्की सिंचाई करें| अनावश्यक रूप से सिंचाई करने पर पौधों की वानस्पतिक वृद्धि ज्यादा हो जाती है, जिसका उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| चने की फसल से भरपूर पैदावार हेतु जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए अन्यथा फसल हानि का अंदेशा रहता है|

2. नवीनतम प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ कि 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का दो पर्णीय छिड़काव 10 दिनों के अंतराल पर फली में दाना बनते समय करने से उपज में निश्चित रूप से 15-20 प्रतिशत तक की वृद्धि होती है|

3. शुष्क जड़ गलन रोग ( राइजोक्टोनिया बटाटीकोला): यह रोग बड़े पौधों में फूल और फलियां बनते समय दृष्टिगोचर होता है| इसकी रोकथाम के लिये शुष्क जड़ गलन सहिष्णु प्रजातियां जैसे एच 355 तथा आईसीसीवी 10 अपनाएं| इस रोग से बचाव के लिये बुआई के समय कार्बेन्डाजिम + थीरम ( 1:2 ग्राम प्रति किग्रा बीज) या वीटावैक्स तथा ट्राइकोडरमा विरडी 4 ग्राम प्रति किग्रा बीज में मिलाकर या बेनोमिल (2 ग्राम प्रति किग्रा बीज ) द्वारा उपचार करना चाहिये|

4. चने के खेत में चिड़िया बैठ रही हो तो यह समझ लें कि चने में फली छेदक का प्रकोप होने वाला है| चने की फसल में फली छेदक कीड़े की गिडारें हल्के हरे रंग की होती हैं, जो बाद में भूरे रंग की हो जाती हैं| ये फलियों को छेदकर अपने सिर को फलियों के अन्दर डालकर दानों को खा जाती हैं|

इसकी रोकथाम के लिये फली बनना प्रारंभ होते ही मोनोक्रोटोफॉस 36 ईसी की 750 मिली या फेनवेलरेट 20 ईसी की 500 मिली मात्रा 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर खेत में छिड़काव करें| फसल में पहला छिड़काव 50 प्रतिशत फूल आने के बाद करें| यदि छिड़काव के लिये रसायन उपलब्ध नहीं हो तो मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत धूल की 25 किग्रा मात्रा का बुरकाव करें|

5. चने की फली छेदक के लिए न्यूक्लियर पॉलीहेड्रोसिस वाइरस (एनपीवी) 250 से 350 शिशु समतुल्य 600 लीटर प्रति पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें| चने में 5 प्रतिशत एनएसकेई या 3 प्रतिशत नीम ऑयल तथा आवश्यकतानुसार कीटनाशी का प्रयोग करें|

6. हल्की दोमट मिट्टी में फूल आने से पहले ही दूसरी सिंचाई कर दें, क्योंकि भारी भूमि में फूल आने के पहले एक सिंचाई करना लाभप्रद होता है| सिंचाई के लगभग एक सप्ताह बाद ओट आने पर हल्की गुड़ाई करना लाभदायक होता है|

7. झुलसा रोग की रोकथाम के लिए प्रति हैक्टर 2 किग्रा जिंक मैग्नीज कार्बामेंट को 600 लीटर पानी में घोलकर फूल आने से पूर्व व 10 दिन के अंतराल पर दूसरा छिड़काव करें|

8. मटर की फसल में बुकनी रोग (पाउडरी मिल्ड्यू), जिसमें पत्तियों, तनों तथा फलियों पर सफेद चूर्ण सा फैल जाता है, की रोकथाम के लिए 3 किग्रा घुलनशील गंधक 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से 10-12 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें| मटर में 10-15 दिन के अंतर पर फलियां तोड़ी जाती हैं|

9. जनवरी महीने में मसूर की फसल में व्हील हैंड – हो की सहायता से खरपतवार निकाल दें| इससे फसल में वृद्धि होगी| मसूर की फसल में बुआई के 45-50 दिनों के बाद हल्की सिंचाई करें, लेकिन ध्यान रहे कि खेत में पानी न भर पाए|

चना की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- चना की खेती

मटर की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मटर की खेती

मसूर की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मसूर की खेती

राई – सरसों, अलसी और सूरजमुखी

1. सरसों – राई की फसल में सिंचाई, जल की उपलब्धता के आधार पर कर सकते हैं| यदि एक सिंचाई उपलब्ध है, तो 50-60 दिनों की अवस्था पर करें| दो सिंचाई उपलब्ध होने की अवस्था में पहली सिंचाई बुआई के 40-50 दिनों के बाद और दूसरी सिंचाई 90-100 दिनों के बाद करें| यदि तीन सिंचाई उपलब्ध हैं, तो पहली सिंचाई 30-35 दिनों बाद व अन्य दो 30-35 दिनों के अंतराल पर करें|

2. फसल को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए 20-25 दिनों में एक बार निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है| यह देखा गया है, कि इस निराई के बाद सरसों फसल की अच्छी और जल्दी बढ़वार होती है|

3. सरसों की फसल में सफेद रतुआ की रोकथाम के लिए एप्रान 35 एडडी 6 ग्राम या बैविस्टिन 2 ग्राम / किग्रा बीज की दर से बीज उपचार करें| बीज उपचार के अलावा बुआई के 50-60 दिनों के बाद रोग के लक्षण दिखाई देते ही फफूंदनाशक दवा रिडोमिल एमजेड- 72 डब्ल्यूपी 2 ग्राम / लीटर पानी के हिसाब से 600-800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें| आवश्यकता पड़ने पर 15 दिन बाद इंडोफिल का छिड़काव करें|

4. झुलसा रोग का प्रकोप हो तो जिंक मैग्नीज कार्बामेंट 75 प्रतिशत की 2.0 किग्रा या जीनेब 75 प्रतिशत की 2.5 किग्रा मात्रा को 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|

5. सरसों के पत्ते के धब्बा रोग की रोकथाम के लिए बोने से पूर्व बीज का उपचार बैविस्टिन या थीरम दवा की 2.5 ग्राम मात्रा/किग्रा बीज दर से करें| बीमारी दिखाई देने पर ही फफूंदीनाशक ब्लाइटाक्स- 50 या डायथेन एम-45 की 500-600 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में घोलकर /एकड़ फसल पर 10-15 दिनों के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करें|

6. तोरिया की फसल पक जाने पर समय पर कटाई करें, क्योंकि देर करने पर फलियों से दाने गिरने का डर रहता है|

7. अलसी की फसल में पाउडरी मिल्ड्यू रोग नियंत्रण के लिए 3 ग्राम सल्फेक्स प्रति लीटर पानी में घोल कर 15 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करें|

8. अलसी की फसल में फली मक्खी कीट के नियंत्रण के लिए एमिडाक्लोरोप्रीड 17.8 का 500 मिली प्रति हैक्टर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर फली बनने से पहले 15 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें|

9. सूरजमुखी की बीजाई जनवरी में भी हो सकती है| दिसंबर में बोई फसल में नाइट्रोजन की दूसरी और अंतिम किस्त तथा एक बोरा यूरिया बीजाई के 30 दिनों के बाद दें इसके साथ ही पहली सिंचाई भी करें एवं फसल उगने के 17 से 20 दिनों के बाद गुड़ाई करके खरपतवार निकाल दें|

सरसों – राई की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सरसों की खेती

अलसी की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अलसी की खेती

सूरजमुखी की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सूरजमुखी की खेती

जीरा, ईसबगोल और मैथी 

1. जीरा में बुवाई के 60 दिन बाद तीसरी सिंचाई करें|

2. ईसबगोल में तीसरी सिंचाई 65-70 दिन पर करें|

3. मैथी में फलीया व दाना बनते समय नमी होना आवश्यक हैं अतः इस समय 80-90 दिन पर सिंचाई करें|

4. ईसबगोल में फसल की 50-60 दिन की अवस्था पर तुलासिता रोग के लक्षण दिखाई देते ही मैन्कोजेब 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें| आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद दोहरावें|

5. मैथी में छाछ्या इस रोग के प्रकोप से पौधों की पत्तियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है तथा पूरे पौधे पर फैल जाता हैं जिससे काफी नुकसान होता हैं| नियंत्रण हेतु फसल पर गंधक का चूर्ण 20-25 किलो ग्राम प्रति हैक्टेयर का भुरकाव करें या डाइनोकेप ईसी 0.1 प्रतिशत के घोल का छिड़काव करें| आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद दोहरावें|

6. मैथी में तुलासिता रोग से पत्तियों की उपरी सतह पर पीले धब्बे दिखाई देते हैं व नीचे की सतह पर सफेद फफूंद की वृद्धि दिखाई देती हैं| उग्र अवस्था में रोग ग्रसित पत्तिया झड़ जाती हैं| नियंत्रण हेतु मैन्कोजेब 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें| आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद दोहरावें|

7. जीरा की फसल में फूल आने के दिनों में अगर आकाश में बादल हो तथा वर्षा हो जाती हैं तो जीरे की फसल पर झुलसा रोग का प्रकोप हो सकता हैं| इस रोग में पौधों की पत्तियां एवं तनों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं तथा पौधों के सिरे झुके हुए नजर आते हैं| जीरे की फसल में झुलसा रोग की रोकथाम के लिए फूल आना शुरू होते ही मैन्कोजेब 0.2 प्रतिशत या थायोफनेट मिथाईल-एम या जाइनेब 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें| आवश्यकतानुसार 10-15 दिन बाद इसे दोहरावें|

8. जीरे में छाछ्या रोग का प्रकोप होने पर पौधों की पत्तियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देने लगता हैं और पौधा गंदला व कमजोर हो जाता हैं| प्रकोप जल्दी होने पर बीज ही नहीं बन पाता और देर से होने पर बीज बहुत छोटा और अधपका रह जाता हैं| इसकी रोकथाम हेतु रोग के लक्षण दिखाई देते ही 25 किलो ग्राम प्रति हैक्टेयर गन्धक चूर्ण का भुरकाव करें या घुलनशील गंधक 0.25 प्रतिशत अथवा डाइनोकेप ईसी 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करें| आवश्यक होने पर 10-15 दिन बाद भुरकाव अथवा छिड़काव पुनः दोहरावें|

9. जीरे में छाछ्या एंव झुलसा दोनो रोगों का एक साथ नियंत्रण हेतु जाइनेब 68 प्रतिशत + हेक्जाकोनाजोल 4 प्रतिशत के बने हुए मिश्रण का 2 ग्राम प्रति लीटर या मेटिराम 55 प्रतिशत + पाइराक्लोस्ट्रोबिन 5 प्रतिशत के बने हुए मिश्रण का 3.5 ग्राम प्रति लीटर या पाइराक्लोस्ट्रोबिन 13. 3 प्रतिशत + इपोक्सीकोनाजोल 5 प्रतिशत के बने हुए मिश्रण का 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल कर छिडकाव करें| आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव दोहरावें|

10. जनवरी महीने में जीरा व ईसबगोल की फसलों में लगातार निगरानी रखें और विशेषकर बादल होने व मौसम में नमी होने पर ऐफिड कीट अधिक पनपता हैं| अतः कीट की संख्या बठती नजर आने पर कीटनाशी का छिडकाव करें| इसके पहले मित्र कीटों परभक्षी का सर्वेक्षण करें और उनका संरक्षण करें|

11. जीरे की जैविक फसल में मोयला और झुलसा रोग नियन्त्रण के लिये गौमूत्र 10 प्रतिशत + लहसुन अर्क 2 प्रतिशत + निम्बोली अर्क 2.5 प्रतिशत का मिश्रित छिडकाव भी कर देवें|

12. जीरे में मोयला नियन्त्रण के लिये थायोमिथोक्सॉम 25 घुलनशील चूर्ण 0.3 ग्राम/लीटर या एसीफेट 75 एस.पी. (1.5 ग्राम / लीटर) या मिथाईल डेमेटोन या डाइमिथोएट एक लीटर प्रति हेक्टेयर दर से छिडके| आवश्यकतानुसार उपचार दोहरावें|

13. ईसबगोल में मोयला की रोकथाम के लिये इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल का 1 मिली लीटर प्रति 3 लीटर पानी या क्लोथियानिडिन 50 डब्ल्यूडीजी कीटनाशी का 1 ग्राम प्रति 5 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें| आवश्यकता पड़ने पर उसका दूसरा छिडका 15 दिनों के अन्तराल पर करें|

जीरा की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- जीरा की खेती

ईसबगोल की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- ईसबगोल की खेती

मैथी की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मैथी की खेती

सौफ, धनिया और अरंडी

1. सौफ की फसल में सर्दी के मौसम में 18-20 दिन के अन्तर से सिंचाई करते रहें| ध्यान रहें फूल आने के समय भूमि में नमी की कमी नहीं रहनी चाहिये| फूल आते समय 30 किलो नत्रजन प्रति हैक्टर कतारों के पास – पास सिंचाई के साथ देवें|

2. धनिया में स्थानीय मौसम के अनुसार चौथी सिंचाई 90-100 दिन पर तथा पाँचवी सिंचाई 105 से 110 दिन पर करें| ध्यान रहें शाखाऐ फूटने व फूल आते समय तथा दाना बनते समय भूमि में प्रर्याप्त नमी बनी रहें|

3. अरंडी में 30 दिन के अंतराल से कटाई करें तथा आवश्यतानुसार सिंचाई करते रहें| जब सिकरों का रंग हरे से हल्का पीला या भूरा हो जाये तथा उन पर लगे 2-3 फल पूरी तरह सूख जाये तब कटाई कर लें| सिकरों के पूरे सूखने का इन्तजार नहीं करना चाहिये अन्यथा फल चटकने से या कटाई करते समय झड़ जाने से उपज में हानि होती है|

सौफ की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सौफ की खेती

धनिया की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- धनिया की खेती

अरंडी की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अरंडी की खेती

शीतकालीन मक्का

1. मक्का में दूसरी निराई-गुड़ाई 40-45 दिनों के बाद करें| यदि मक्का को हरे भुट्टों के रूप में प्रयोग करना हो तो रसायनों का प्रयाग नहीं करना चाहिए|

2. मक्का में दूसरी सिंचाई बुआई के 50-55 दिनों के बाद व तीसरी सिंचाई बुआई के 75-80 दिनों के बाद करनी चाहिए| मक्का और चारे हेतु एमपी चरी, सुडान घास की बुआई आरंभ कर दें|

3. नाइट्रोजन की 40 किग्रा मात्रा की टॉप ड्रेसिंग मंजरी निकलने के पूर्व करें| उर्वरक प्रयोग के समय खेत में पर्याप्त नमी का ख्याल रखें|

मक्का की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मक्का की खेती

शरदकालीन गन्ने की फसल

1. जनवरी महीने में बसंतकालीन बुआई की तैयारी शुरू कर दें| इसके लिए मृदा परीक्षण कराकर ही उर्वरकों का प्रयोग करें| पाले से बचाव के लिए खड़ी फसल में जरूरत के अनुसार सिंचाई करें|

2. बसंतकालीन बुआई हेतु कुल का 1/3 भाग शीघ्र पकने वाली प्रजातियों के अंतर्गत रखें साथ ही बुआई हेतु स्वस्थ बीजों का चयन कर उसका विशेष प्रबंध करें| अगेती खेत की फसल कटाई तापमान ज्यादा कम हो तो न करें| इससे पेड़ी गन्ने में फुटाव उत्तम नहीं होगा|

3. शरदकालीन गन्ने के साथ ली गई विभिन्न अंतर फसलों जैसे मसूर, सरसों, तोरिया, आलू, लहसुन, गेंदा, प्याज धनिया, मेथी तथा गेहूं आदि में जरूरत के अनुसार निराई, गुड़ाई, कीट प्रबंधन एवं संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें| अच्छी पेड़ी की फसल लेने के लिए गन्ने की मुख्य फसल की कटाई 15 जनवरी से 25 फरवरी तक करें|

4. तापमान कम होने के कारण दिसंबर – जनवरी में काटे गये गन्ने के जड़ से फुटाव कम होता है| अतः दिसंबर – जनवरी में गन्ने की कटाई जमीन की सतह से सटा कर करें| गन्ना काटने के तुरंत बाद ठूंठों पर 2-4 डी खरपतवारनाशक की मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें तथा गन्ने की सूखी पत्तियों की 15-20 सेंमी मोटी तह सतह के ऊपर बिछा दें| इससे फुटाव अधिक होगा|

5. गन्ने की तैयार फसल की कटाई की जाती है और कटाई के बाद गुड़ बनाया जाता है| गन्ने को विभिन्न प्रकार के तनाछेदक कीटों से बचाने के लिए प्रति हैक्टर 30 किग्रा फ्यूराडान का प्रयोग करें|

गन्ने की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गन्ने की खेती

चारे वाली फसलें (जई और बरसीम)

1. जनवरी महीने में बरसीम, रिजका व जई की हर कटाई के बाद सिंचाई करते रहें| इससे बढ़वार तुरंत होगी तथा अच्छी गुणवत्ता का चारा मिलता रहेगा|

2. बरसीम की फसल की कटाई व सिंचाई 20-25 दिनों के अंतराल पर करें| प्रत्येक कटाई के बाद भी सिंचाई करें|

3. जनवरी महीने में जई की फसल में 20-25 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें| पहली कटाई बुआई के 55 दिनों के बाद करें और प्रति हैक्टर 44 किग्रा यूरिया (20 किग्रा नाइट्रोजन) की टॉप ड्रेसिंग करें|

जई की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- जई की खेती

बरसीम की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- बरसीम की खेती

मेंथा

जनवरी महीने में मेंथा रोपाई के लिए खेत की तैयारी करते समय अन्तिम जुताई पर प्रति हैक्टर 10 टन सड़ी गोबर के खाद, 50 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फॉस्फोरस और 45 किग्रा पोटाश खेत में अच्छी तरह मिला दें| मेंथा के एक हैक्टर में रोपाई के लिए 2.5-5.0 क्विंटल बीज पर्याप्त होता है| मेंथा की उन्नतशील प्रजातियां कोसी, एचवा- 77 और गोमती प्रमुख हैं| मेंथा की रोपाई 45-60 सेंमी की दूरी पर पंक्तियों में 2-3 सेंमी की गहराई में करें|

मेंथा की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मेंथा की खेती

पाले से बचाव

1. जनवरी महीने में पाले से आंशिक प्रभावित फसल में सिंचाई करें और उसमें 10 किलोग्राम नत्रजन / हैक्टेयर यूरिया के रूप में टोप ड्रेसिंग से दें। ऐसा करने से फसल में पुनः फुटान आ जाती है|

2. शीत लहर एवं पाला पडने की सम्भावना का अनुमान लगाकर बचाव के तरीके अपनाकर सरसों, जीरा, चना, धनियाँ, सौंफ फसलों को इनसे होने वाले विपरीत प्रभाव से बचाया जा सकता हैं| इस हेतु पाला पड़ने की सम्भावना हो तब खेत में सतही सिंचाई कर देनी चाहियें| सिंचाई करने से भूमि के तापमान के साथ फसल के तापक्रम में भी वृद्धि होती हैं जो कि पाले के प्रभाव को रोकने में सहायक होती हैं| परन्तु ध्यान रहे पाला पडने की सम्भावना में रात को फसल में फँव्वारा सिंचाई कभी नही करनी चाहियें|

3. फसलों पर गन्धक के तेजाब के 0.1 प्रतिशत घोल का छिडकाव करना चाहियें| यदि जनवरी महीने में शीत लहर व पाले की सम्भावना इस अवधि के बाद भी बनी रहे तो इसके छिड़काव को 15 दिन के अन्तर से दोहराते रहें|

पाले से फसलों के बचाव के उपाय यहाँ पढ़ें- पाले एवं सर्दी से फसलों का बचाव

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