चना भारत की प्रमुख दलहनी फसल है, लेकिन इसकी गुणवत्ता चना के प्रमुख रोगों के प्रकोप से बहुत प्रभावित होती है| यह प्रोटीन का एक बहुत अच्छा स्रोत होने के कारण चना के रोगों के प्रति बहुत संवेदनशील होती है| भारत में चना के प्रमुख कीट बहुत है, लेकिन इस लेख में हम उन कुछ चना के प्रमुख कीट के बारें में उनकी पहचान और रोकथाम की जानकारी देंगे जो इसकी फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुचाते है| जिसको संज्ञान में लाकर किसान भाई अपने चने की खेती को इन कीटों से बचा सकते है| यदि आप चने की खेती की अधिक जानकारी चाहते है, तो यहां पढ़ें- चने की खेती की जानकारी
चना फसल में कीट नियंत्रण
फली भेदक
यह हेलिकोवर्पा आर्मिजेरा (हुबनर) एक बहुभक्षी और चना के प्रमुख कीट है, जो आमतौर पर चना फली भेदक नाम से जाना जाता है| सम्पूर्ण भारत में चना की फसल पर लगने वाला यह प्रमुख कीट है| यह कीट 181 प्रकार की फसलों और 48 प्रकार के खरपतवार को खा सकता है| जिसमें चना की 20 से 50 प्रतिशत तक फसल को यह नष्ट कर सकता है|
इसका प्रकोप पत्तियों व पुष्पों की अपेक्षा फलियों पर सर्वाधिक होता है| इस कीट की छोटी सुंडी फसल की कोमल पत्तियों को खुरच-खुरच कर खाती है और द्वितीयक सुंडी सम्पूर्ण पत्तियों, कलियों और पुष्पों को खाती हैं| तृतीयक अवस्था की सँड़ी चना की फली में गोलाकार छिद्र बनाकर मुंह अन्दर घुसाकर दाने को खा जाती है| एक वयस्क सुंडी 7 से 16 फलियों को क्षतिग्रस्त कर सकती है|
रोकथाम-
1. यौन आकर्षण जाल (सेक्स फिरोमोन ट्रेप) द्वारा कीट संख्या के फैलाव या व्यापकता की निगरानी की जा सकती है| फिरोमोन ट्रेप विपरीत लिंग के कीटों को आकर्षित करता है| यदि एक रात में मादा कीट की संख्या 4 से 5 तक प्रति ट्रेप में चिपक जाती है, तो रोकथाम के उपयुक्त उपचार अपनाने चाहिए|
2. चना के प्रमुख कीट के लिए गर्मियों में गहरी जुताई करने से कीट के कोषक (प्यूपा) मर जाते हैं|
3. समय पर बुवाई करने और जल्दी पकने वाली किस्में उगाने से कीट के प्रकोप से बचा जा सकता है|
4. एच ए एन पी वी 250, एल ई (डिम्ब समतुल्य) + टीनॉपोल 1 प्रतिशत का छिड़काव करें, इसके घोल में 0. 5 प्रतिशत गुड़ और 0.01 प्रतिशत तरल साबुन का घोल डालने से क्रमशः कीटों के आकर्षण और एन पी वी के पत्तियों पर फैलने में मदद मिलती है|
5. निबौली (नीम बीज गुठली) के सत् का 5 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करें|
6. मोनोक्रोटोफॉस 0.04 प्रतिशत, इण्डोक्साकार्ब 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी, फेनवल्रेट 0.01 प्रतिशत और क्लोरपाइरीफॉस का छिड़काव करें| यदि तरल निरूपण उपलब्ध नहीं हो तो फेनवलरेट 0.5 प्रतिशत, मिथाइल पेराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण का 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें|
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कटुआ कीट (कटवर्म)
इस कीट का प्रकोप उन क्षेत्रों में अधिक होता है, जहाँ पर बुवाई से पूर्व बरसात का पानी भरा रहता है और मृदा भारी या चिकनी हो| इस कीट की गिड़ारें चिकनी, लिजलिजी और देखने में हल्के स्याही या गहरे भूरे रंग की तैलीय होती है| कटवर्म की लटें गहरे भूरे रंग की एक से डेढ़ इंच लम्बी व एक चौथाई इंच से एक तिहाई इंच मोटी होती है|
जो ढेलों के नीचे छिपी रहती हैं एवं रात को बाहर निकलकर पौधों को भूमि की सतह के पास से काट देती हैं| छूने पर ये लटें गोल घुण्डी बनाकर पड़ जाती है| यदि एक सुंडी प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में पौधे की वानस्पतिक अवस्था में दिखाई दे तो आर्थिक नुकसान हो सकता है|
रोकथाम-
1. क्यूनालफॉस 1.5% चूर्ण 25 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से आखिरी जुताई से पूर्व भुरक कर भूमि में मिलाएं|
2. यदि भूमि उपचार नही कर पाएँ तो कटवर्म कटुआ का प्रभाव दिखाई देते ही शाम के समय क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का भुरकाव करके प्रकोप से बचा जा सकता है|
3. खेत में जगह-जगह सूखी घास के छोट-छोटे ढेर को रख देने से दिन में कटुआ कीट की सुंडिया छिप जाती है| जिसे प्रातःकाल इकट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए|
4. एक हेक्टेयर क्षेत्र में 50 से 60 बर्ड पर्चर (पक्षी मचान) लगाना चाहिए, ताकि चिड़ियाँ उन पर बैठकर चूँड़ियों को खा सकें|
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दीमक
चना के प्रमुख कीटों में से एक यह जड़ों को काटकर उसके अन्दर रहती है| ग्रसित पौधों के ऊपर दीमक मिट्टी की सुरंगें बनाकर उसके भीतर रहती है|
रोकथाम-
1. क्लोरपाइरिफॉस 20 ई सी की 1.0 लिटर मात्रा प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम बीज की दर से बीज शोधन करें|
2. खड़ी फसल में दीमक लगने पर 4 लीटर क्लोरपाइरिफॉस 20 ई सी की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ देवें|
3. खड़ी फसल में 0.05 प्रतिशत क्लोरपाइरिफॉस के घोल को पौधों की जड़ों के पास छिड़काव भी कर सकते हैं|
4. क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी की 4 लीटर मात्रा को मिट्टी में मिलाकर भूरकाव (इंचिग) करें|
अर्द्धकुण्डलीकार कीट (सेमीलूपर)
चना के प्रमुख कीटों में से एक इस कीट की सूड़ियाँ हरे रंग की होती हैं, जो लूप बनाकर चलती है| सूड़ियाँ पत्तियों, कोमल टहनियों, फूलों और कलियों को खाकर क्षति पहुँचाती हैं|
रोकथाम-
1. बेसिलस थूरिजिएन्सिस (बी टी) की कटैकी प्रजाति 1.0 किलोग्राम 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें|
2. एमामेक्टिन बेंजोएट 0.2 ग्राम प्रति लीटर पानी या स्पीनोसाड 0.25 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें, एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 500 से 600 लीटर पानी पर्याप्त है|
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