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Home » ब्लॉग » गुलाब में रोग प्रबंधन कैसे करें: आधुनिक तकनीक

गुलाब में रोग प्रबंधन कैसे करें: आधुनिक तकनीक

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

गुलाब में रोग प्रबंधन कैसे करें, जानिए उपयोगी एवं आधुनिक तकनीक

गुलाब में रोग प्रबंधन, गुलाब का फुल पुष्प जगत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, यह एक कर्तिक पुष्प है, जिसका व्यापार संसार में होता है, इन फूलों की मांग हमारे देश के साथ साथ पुरे विश्व में है| इसकी वार्षिक बढ़ोतरी भी इसके उज्ज्वल भविष्य की तरफ इशारा करती है, भारत में इसकी खेती महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, तमिलनाडु, राजस्थान तथा पश्चिम बंगाल राज्यों में प्रमुख रूप से की जाती है|

गुलाब का उपयोग मुख्यतः धर्मिक कार्यों, त्योहारों, शादियों और गुलदस्ते बनाने के आलावा इसका उपयोग सौन्द्रियकरण के उत्पादों के साथ साथ औषधियों में भी किया जाता है| यदि आप गुलाब की उन्नत बागवानी की जानकारी चाहते है, तो यहां पढ़ें- गुलाब की खेती (Rose farming) की जानकारी

लेकिन इस व्यापारिक वृद्धि के साथ साथ इसको नुकसान पहुचने वाले कीट और रोगों में भी हुई है| गुलाब में सर्वाधिक नुकसान गुलाब में रोगों या बिमारियों के लगने से होता है, इसलिए इनका उचित प्रबंधन गुलाब की सफल खेती के लिए आवश्यक है| इस लेख में गुलाब में लगने वाले रोगों और उनके प्रबंधन का विस्तार से विवरण प्रस्तुत है| यदि आप गुलाब के कीट एवं नियंत्रण की जानकारी चाहते है, तो यहां पढ़ें- गुलाब में कीट प्रबंधन कैसे करें

प्रमुख रोग

चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू)- यह रोग गुलाब में ‘स्फेरोथेका पन्नोसा किस्म रोजे’ नामक फफूद से होता है| गर्म तथा शुष्क मौसम और ठण्डी रातें इस रोग के लिए अनुकूल होती हैं| खेतों में 15.5 डिग्री सेल्सियस का रात्रि तापमान और 90 से 99 प्रतिशत की सापेक्षिक आर्द्रता, कॉनिडिया के उत्पादन एवं उसके अंकुरण को बढ़ाती है, जिससे रोग का प्रकोप बढ़ जाता है|

इसका प्रकोप पौधों के सभी बाहरी भागों पर होता है| नयी कोमल पत्तियां ऐंठ जाती हैं और उनकी उपरी सतह पर फफोले पड़ जाते हैं, जो सफेद चूर्ण से ढके होते हैं| पत्तियों, पुष्प वृंत व पुष्प कलिकाओं पर भूरे-सफेद चूर्णित धब्बे दिखाई पड़ते हैं तथा यह फफूद धीरे-धीरे पूरे पौधे पर सफेद चूर्ण के रूप में फैल जाती है|

संक्रमित पत्तियां कुरूप हो जाती हैं, रोगग्रस्त कलियां नहीं खिल पाती हैं, पौधा झुलसा हुआ दिखाई देता है| रोग का प्रकोप अधिक होने पर पत्तियों की वृद्धि और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया-विधि में कमी आने लगती है, गुलाब में इस रोग से इसके पुष्पों का बाजारी भाव कम हो जाता है|

नियंत्रण-

1. गुलाब की रोग-रोधी किस्मों का उपयोग करें|

2. रोग ग्रसित शाखाओं एवं टहनियों को काटकर जला देना चाहिए|

3. खेत में गिरी हुई पत्तियों को एकत्रित कर नष्ट कर दें|

4. खेत में नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों को कम मात्रा में दें और स्प्रिंकलर मिस्ट से सिंचाई करें|

5. जैविक नियंत्रण में जैसे एम्पिलोमाइसीज क्विसकबालिस और स्युडोजाइमा फ्लोकुलोजा जैव कारक के व्यापारिक सूत्रण का छिड़काव करें|

6. रोग से बचाव के लिए घुलनशील गंधक 2 ग्राम प्रति लीटर या कैराथेन 1 मिलीलीटर प्रति लीटर या बैनलेट 1 मिलीलीटर प्रति लीटर या बाविस्टिन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव प्रत्येक 10 से 15 दिन अंतराल पर 2 से 3 छिड़काव करें या आवश्यकतानुसार करें|

यह भी पढ़ें- गेंदा की खेती (Marigold farming) की जानकारी

काला धब्बा ( ब्लैक स्पॉट)- यह रोग गुलाब में ‘ डिप्लोकार्पन रोजैड़’ नामक फफूद से होता है, यह गुलाब में विश्वव्यापी रोग है| यह रोग बरसात या अधिक आर्द्रता तथा ठण्ड के मौसम में अधिक फैलता है| पत्तियों के उपरी सतह पर 2 से 15 मिलीमीटर व्यास के वृताकार काले धब्बे पड़ जाते हैं|

ये धब्बे गोल या बेडौल होकर एक साथ जुड़ते जाते हैं, जिससे पत्तियों के किनारे मुड़ जाते हैं| एक गहरे वृताकार या अनियमित आकार में छोटे-छोटे काले रंग के बिजाणुओं में कॉनिडिया सतह पर दिखाई देते हैं| इसके बाद पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं, तना और शाखायें सूख जाती हैं|

नियंत्रण-

1. पौधों पर अधिक समय तक लगातार सिंचाई न करें|

2. भूमि की सतह के पास की पत्तियों की कटाई-छंटाई नियमित तौर से करें|

3. पौधों को अधिक सघनता पर न लगाएं तथा पौधों में अच्छा वायु संचार होने दें|

4. गुलाब की रोग-रोधी किस्मों का उपयोग करें|

5. रोग ग्रसित पत्तियों एवं टहनियों को एकत्रित करके जला दें और खेत की सफाई पर ध्यान दें|

6. रोग से बचाव के लिए क्लोरोथैलोनिल 2 ग्राम प्रति लीटर या फर्बाम 2 ग्राम प्रति लीटर या बैनलेट 1 मिलीलीटर प्रति लीटर के घोल का छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- चमेली की खेती (Jasmine farming) की जानकारी

उक्ठा (डाई बैक)- यह रोग गुलाब में ‘डिप्लोडिया रोजेरम, कॉलेटोट्रिकम ग्लिओस्पोराइडिस’ नामक कवक से होता है| इस रोग के आक्रमण से पौधे ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगते हैं| रोग मुख्य रूप से काटी-छांटी गयी शाखाओं की उपरी सतह से शुरू होता है| शाखाएं भूरे-काले रंग की हो जाती हैं, बाद में रोग शाखा से मुख्य तना और तने से जड़ में फैलता है|

गंभीर प्रकोप होने पर पौधा मर जाता है| रोग नए पौधों की अपेक्षा पुराने पौधों पर जल्दी तथा अधिक होता है| फफूद के बीजाणु साल भर पौधों की शाखाओं के कांटों में मौजूद रहते हैं| ये प्रभावित भागों पर गोल, गहरे रंग के धब्बे बनाते हैं| इनके आक्रमण से छाल पर गहरे भूरे रंग के बाहरी क्षतचिन्ह बन जाते हैं| प्रायः तने की छाल पर पाये जाने वाले क्षतचिन्ह उक्ठा या डाईबैक में बदल जाते हैं| इस रोग से फूलों के उत्पादन पर भारी गिरावट होती है|

नियंत्रण-

1. रोग ग्रस्त शाखाएँ, सूखी टहनियों एवं मुरझाए हुए फूलों के डंठलों को काटकर जला दें|

2. काट-छांट के बाद शाखाओं पर 4 भाग कॉपर कार्बोनेट, 4 भाग रेड लैड तथा 5 भाग अलसी के तेल का अच्छी तरह से मिश्रण बनाकर उसका लेप करें|

3. काट-छांट के 10 दिन तक खाद एवं उर्वरक नहीं देना चाहिए|

4. रोग-रोधी किस्मों का चयन करें|

5. भिंड कीट की रोकथाम के लिए लेप में कीटनाशी मिलाकर लेप लगायें|

6. कार्बेन्डाजिम या क्लोरोथैलोनिल का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल से मिट्टी का उपचार करें|

यह भी पढ़ें- गुलदाउदी की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

ग्रे-मोल्ड (बोटाईटिस झुलसा)- यह रोग गुलाब में ‘बोट्राईटिस सिनेरा” नामक कवक से होता है| पत्तियों पर जल सोक्त धब्बे बन जाते हैं तथा तेजी से फैलते हैं| यह रोग कलियों की पंखुड़ियों के भीतरी भाग पर पाया जाता है| अनुकूल वातावरण में यह रोग बड़ी तेजी से फैलता है, जिसके परिणामस्वरूप पुष्प पूरी तरह से मुरझा जाता है|

नियंत्रण-

1. रोग ग्रसित पौधे के भागों जैसे पत्तियां, शाखाएं एवं कलियों को एकत्रित कर जला दें|

2. खेत में वृद्धि-नियामकों जैसे जिब्रेलिक एसिड, पैक्लोबुट्राजॉल और मिथाइल जैस्मोनेट का उपयोग करें|

3. जैवकारक जैसे ग्लाइओक्लेडियम रोजियम, माइरोथीसियम वेरूकेरिया, ट्राइकोडर्मा हर्जियेनम, इत्यादि का व्यावसायिक सूत्रण का प्रयोग करें|

4. रोग से बचाव के लिए बाविस्टिन 2 ग्राम प्रति लीटर या बैनलेट 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर घोल का छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- पपीता में पोषक तत्व प्रबंधन कैसे करें

रतुआ (रस्ट)- यह रोग गुलाब में ‘‘फ्रेग्मीडियम मुक्रोनाट्म’ नामक फफूद से फैलता है| गर्म और नमीयुक्त वातावरण रोग के लिये अनुकूल होता है| इस रोग के कारण पत्तियों एवं तने पर लाल, पीले और काले रंग के फफोलेनुमा धब्बे उभर आते हैं| इस रोग के प्रकोप से पत्तियां झड़ जाती हैं एवं फूलों के उत्पादन में कमी आती है|

नियंत्रण-

इस रोग से बचाव के लिए 2 ग्राम प्रति लीटर फर्बाम या डाइथेन जेड-78 के घोल का छिड़काव 10 से 15 दिन अंतराल पर करें|

क्राउन-गाल- यह रोग गुलाब में ‘एग्रोबैक्टीरियम टयूमिफेसियन’ नामक जीवाणु से होता है| यह गुलाब की पौधशाला (नर्सरी) का प्रमुख रोग है| भूमि की सतह के पास तने के क्राउन वाले स्थान पर फूलगोभी जैसी संरचनाएं बन जाती है| ये गाल जड़ों पर एवं तनों पर कटाई के समय बने घाव पर बनते हैं| प्रत्येक वर्ष इस रोग से 20 से 25 प्रतिशत पौधशाला समाप्त हो जाती है| इस रोग से फूलों का उत्पादन घट जाता है|

नियंत्रण-

1. गुलाब के रोग रहित पौधों का चुनाव करें|

2. प्रमाणित पौधशाला (नर्सरी) से रोग रहित रोपण सामग्री का प्रयोग करें|

3. खेत को साफ-सुथरा रखें|

4. एग्रोबैक्टीरियम एग्रोबैक्टर के-84, का व्यापारिक सूत्रण के घोल का छिड़काव करें|

रोग मोजैक रोग- यह रोग गुलाब में विषाणु से होता है, इस विषाणुजनित रोग से पौधे मरी हुई वृद्धि का विकृत आकृति जैसे एवं बौने हो जाते हैं, कलियां खराब गुणवत्ता की होती हैं|

नियंत्रण-

1. रोग से ग्रसित गुलाब के पौधों को नष्ट कर देना चाहिए|

2. प्रवर्धन के लिए रोग रहित पौधों की कलमों का इस्तेमाल करें|

3. विश्वसनीय एवं प्रमाणित नर्सरी से ही पौधे खरीद कर लगायें|

यह भी पढ़ें- अंगूर की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

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