
गुग्गल (Guggul) या गुगल का पौधा भारत में राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, आसाम, सिलहट, बंगाल, मैसूर आदि स्थानों पर जंगलो में प्राकतिक रूप में पाया जाता है| गुग्गल का पौधा जंगल में झाडियों के रूप में पाया जाता है| इसकी शाखाएं छोटी व टेढ़ी-मेढी होती है| ये शाखाएं कांटेदार व विभिन्न रंगो वाली होती है| इसकी शाखाओं से हमेशा भूरे रंग का पतला छिलका उतरता दिखाई देता है|
सर्दियों में इसके सभी पत्ते झड जाते है| इसके फल मांसल, लबें गोल, छोटे बेर के समान होते हैं, इसके तने व शाखाओं से जो गोंद निकलता है, वही गुग्गुल (गुगल) कहलाता है| असली गुग्गल का रंग नवीन हालत में पीला और पुराना पड़ने पर काला हो जाता है| पानी में गलने पर हरे रंग की झाई सी देता है| असली गुग्गल अग्नि पर रखने पर एकदम से नहीं जलता हैं|
औषधीय उपयोग- गुग्गुल एक दिव्य औषधि है| यह कृमिनाशक, गण्डमाला हार, कफ निस्सारक, मूत्रल, रसायन, वल्य, शीत प्रशमन, वर्ण्य, नाडीबल्य, वग्रशोधक व जन्तुघ्न होता है| इसका उपयोग वातरक्त, आमवत, वग्रशोध, नाडीवग्र, भगन्दर, कुवठ, प्रमेह, मूत्रकृच्छ, श्लीपद, गण्डमाला, उपदेश, नेत्ररोग, शिरारोग, हृदय रोग, अम्लपित्त, स्त्रीरोग, पाण्डुरोग, उदररोग आदि में प्रभावी रूप से किया जा सकता है|
गुग्गल के धूम को अथर्ववेद में यक्ष्मा के कीटाणुओं को नष्ट करने वाला कहा गया है| नाडी संस्थान पर गुग्गुल का प्रभाव लाभकारी रहता है| गुग्गल त्रिदोष हर, शोथहन, कृमिघ्न, व वेदना स्थापन होने के कारण केन्सर में भी लाभप्रद है| यह वसा व पित्त के चपापन्वय के कारण उत्पन्न होने वाला व हृदय रोगों को दूर करने में सहायक है| इसें औषधि प्रयोग में सदैव शुद्ध करके काम में लेना चाहिए|
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गुग्गल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
गुग्गल एक उष्ण कटिबंधीय पौधा है| गर्म तथा शुष्क जलवायु इसके लिए उत्तम पायी गयी है| सर्दियों के मौसम में जब तापमान कम हो जाता है, तो पौधा सुषुप्तावस्था में पहुंच जाता है और वानस्पतिक वृद्धि कम हो जाती है| प्राकृतिक रूप में यह पहाड़ी एवं ढालू भूमि में उगता है| उन क्षेत्रों में जहां वार्षिक वर्षा 10 से 90 सेंटीमीटर तक होती है तथा पानी का जमाव नहीं होता है, इसकी बढ़वार अच्छी पायी गयी है| इसमें 40 से 45 डिग्री सेल्सियस की गर्मी से 3 डिग्री सेल्सियस तक की ठंड सहन करने की क्षमता होती है|
गुग्गल की खेती के लिए भूमि का चयन
यह समस्याग्रस्त भूमि जैसे लवणीय एवं सूखी रहने वाली भूमि में सुगमता से उगाया जा सकता है| दोमट व बलूई दोमट भूमि जिसका पी एच मान- 7.5 से 9.0 के बीच हो, इसकी खेती के लिए उपयुक्त पायी गयी है| इसे समुचित जल निकास वाली काली मिट्टियों में भी सुगमतापूर्वक उगाया जा सकता है| भूमि में पानी का निकास काफी अच्छा होना चाहिए| वैसे पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती के लिए अधिक धूप वाली ढलान भूमि का चुना करना चाहिए| क्षारीय जल, जिसका पी एच मान- 8.5 तक होता है, के प्रयोग से भी पौधे की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता|
गुग्गल की खेती के लिए किस्में
इसमे प्रजातियों के विकास पर ज्यादा कार्य नहीं हुआ है, लेकिन हाल ही में “मरूसुधा’ नामक किस्म को केन्द्रीय औषधीय एवं सगंधीय संस्थान, लखनउ ने विकसित किया है, जो गुग्गल गोंद की अधिक पैदावार देती है|
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गुग्गल की खेती के लिए प्रवर्धक तकनीक
गुग्गल का प्रवर्धन बीजों द्वारा अथवा कलम लगाकर किया जा सकता है, जैसे-
बीजों द्वारा- प्रकति में गुग्गल का मुख्य प्रवर्धन बीजों के द्वारा होता है| शुष्क क्षेत्रों में सर्दियो को छोडकर बीज लगातार बनते रहते है| अप्रैल से मई में प्राप्त होने वाले बीजों की तुलना में जुलाई से सितंबर में प्राप्त होने वाले बीजो की अंकुरण क्षमता ज्यादा होती है| मानसून में इसके बीजों के अंकुरण के लिए उपयुक्त वातावरण रहता है| परिपक्व बीजों को पहले मिट्टी के साथ रगडकर धोते है|
कलम द्वारा- गुग्गुल के पौधे कलम द्वारा सफलतापूर्वक तैयार किये जा सकते है| इसकी 25 से 30 सेंटीमीटर लम्बी एवं 3 से 4 सेंटीमीटर व्यास वाली कलमों को 15 जनवरी से 15 फरवरी तक रेत वाली क्यारियों में 15 सेंटीमीटर की गहराई पर रोपना चाहिए| पॉलीथीन की थैलियों का उपयोग भी किया जा सकता है|
कलम की मोटाई तर्जनी अंगुली से पतली तथा हाथ के अंगुठे से मोटी नहीं होनी चाहिए| सुदृढ जड विकसित होने के लिए पादप हार्मोन इन्डौल ब्यूटायरिक अम्ल (आई बी ए) के 250 पी पी एम के घोल से उपचारित करना चाहिए| इस प्रकार पौधों को लगभग 6 माह तक नर्सरी में रखने के बाद बरसात के मौसम में खेत में रोपित कर देना चाहिए|
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गुग्गल के पौधों का खेत में रोपण
जुलाई से सितम्बर तक का समय इन पौधों (कलमों) को खेत में लगाने का होता है| इस कार्य हेतु सर्वप्रथम 60 x 60 x 60 सेंटीमीटर के गड्ढे पौधे लगाने के लिए खोदे जाते है| जिस थैली में पौध लगाई गई हो, उस पॉलीथीन की थैली को चाकू से काटकर अलग कर ले व उस पौधे को मिट्टी की पिण्ड सहित तैयार किये गये गडढे में रोप दें|
पौधों को खेत में लगाते समय कतार से कतार व पौधे से पौधे के मध्य 2 मीटर की दुरी रखी जाती है| इस प्रकार प्रति हैक्टेयर 2500 पौधे लगाये जाते है| पौधा लगाने के बाद उसके चारों तरफ की मिट्टी को अच्छी तरह दबा देना चाहिए एवं हल्की सिंचाई कर देंनी चाहिए|
गुग्गल की खेती में सिंचाई प्रबंधन
गुग्गल के पौधे को एक बार खेत में अच्छी प्रकार से स्थापित होने के बाद बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है| वर्षा नही होने पर पांच वर्ष की उम्र तक इसके पौधों को शरद ऋतु में एक सिंचाई की आवश्यकता होती है| आठ वर्ष की उम्र के बाद जब पौधे पूर्ण विकसित हो जाये तब गर्मियों में 2 से 3 सिंचाई करनी चाहिए|
गुग्गल की फसल में निराई-गुडाई
वर्षा के मौसम में, खेत में खरपतवार काफी मात्रा में हो जाते है| खरपतवारों की अधिक मात्रा होने पर पौधों को पोषक तत्वों एवं पानी की उपलब्धता कम हो जाती है, इसलिए सितबंर एवं दिसबंर में निराई-गुडाई करना उपयोगी होता है|
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गुग्गल के पौधे से निकालने की विधि
गुग्गल का पौधा लगभग 8 वर्ष में पूर्ण परिपक्व होकर गोंद सग्रंह योग्य हो जाता है| इन परिपक्व पौधों से दिसबंर से फरवरी में गोंद सग्रंह किया जाता है| जब पौधे का व्यास 7.5 सेंटीमीटर का हो जायें, तब गोंद प्राप्त करने हेतु मुख्य तने एवं शाखाओं पर 1.5 सेंटीमीटर गहरा वृत्ताकार चीरा 30 सेंटीमीटर एवं 60 डिग्री कोण पर सामान अन्तराल पर लगाया जाता है| चीरा वाले स्थानों से सफेद पीला सुगंधित गोंद स्त्रावित होता है जो कि धीरे-धीरे ठोस होने लगता है|
जिसे चाकू की सहायता से एकत्रित कर लिया जाता है| 10 से 15 दिन के अंतराल पर यह प्रक्रिया दोहराते रहते है| केम्बियम परत पर चीरे नजदीक एवं गहरे लगााने पर गोंद की उपज अधिक प्राप्त की जा सकती है| गोद सग्रंह में रसायनों का उपयोग भी लाभकारी सिद्ध हुआ है| तीन साल में एक बार इथेफान (2 क्लोरो-इथॉयल फास्फोरिक एसिड) 400 मिलीलीटर प्रति पौधा छिडकनें से गोंद का स्त्राव काफी बढ जाता है| इस विधि से प्रत्येक पौधे से 500 ग्राम से 1500 ग्राम तक गुग्गुल प्राप्त हो जाता है|
गुग्गल निकालने की एक नई विधि सेन्ट्रल एरिड जोन रिसर्च इन्स्टीट्यूट (काजरी), जोधपुर द्वारा ईजाद की गई है| इस विधि के अनुसार गुग्गुल के पौधे 2 वर्ष के हो जाने पर इनकें मुख्य तने तथा शाखाओं को छोंडकर हाथ के अंगुठे से कम पतली वाली शाखाएं कटर के द्वारा काट ली जाती है| इसे छंटाई कहते है|
इस प्रकार छंटाई की शाखाओं को इकट्ठा करके कुट्टी करने वाली मशीन से आधा इंच से एक इंच तक काट लेते है, जिसे कुट्टी या कुतर करना कहते है| तदुपरान्त इसे धूप में सुखाते है| छंटाई करने का सर्वाधिक उपयुक्त समय 14 जनवरी से 15 फरवरी के मध्य का है, इस समय पौधे में रेजिन की मात्रा सर्वाधिक होती है|
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गुग्गुल पौधों का श्रेणीकरण
अच्छी श्रेणी का गुग्गुल पौधों की मोटी शाखाओं से प्राप्त होता है| ये गोंद के ढेले अर्द्धपारदर्शक होते है| दूसरी श्रेणी के गुग्गुल में छाल, मिट्टी मिली होती है एवं हल्के रंग का होता है| तीसरी श्रेणी का गुग्गुल प्रायः भूमि की सतह से इकट्ठा किया जाता है| जिसमें मिट्टी, पत्थर के टुकडे एवं अन्य पदार्थ मिले होते है| हल्की श्रेणी के गुगल के ढेर पर अरण्डी के तेल का छिडकाव करके सुधारा जा सकता है, जिससे इसमें चमक आ जाती है|
गुग्गल के पौधों का सरंक्षण
दीमक- गर्मियों के मौसम में प्रायः गुग्गल के पौधों पर दीमक का प्रकोप होता है| दीमक पौधों को भारी क्षति पंहुचाती है| संक्रमित पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती है, जिसके परिणामस्वरूप बाद में पौधा मर भी सकता है| दीमक के नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपाय भी सुझाये गये है|
जैसे- पौधारोपण करते समय प्रत्येक गड्ढे में दो किलोग्राम नीम की खली का चूर्ण डालें अथवा दो किलो नीम के पत्ते, दो किलो धतूरे के पत्ते तथा दो किलो आक के पत्ते बारीक पीसकर 100 लीटर पानी में घोलकर तैयार कर लें| यह तैयार किया गया घोल प्रत्येक पौधे में दो-दो लीटर डालें| हर 15 दिन में यह प्रकिया दो वर्ष तक दोहरानें से पौधों में दीमक नहीं लगती है|
जड़ गलन- बरसात के मौसम में गुग्गल में जड गलन की बीमारी हो जाती है जिसके कारण पौधों की पत्तियां पीली हो जाती है एवं पौधा सूख जाता है| इस बीमारी की रोकथाम के लिए पौधारोपण के समय कलम के नीचे वाले सिरे का टेफसॉन नामक कवकनाशी से उपचारित करना चाहिए|
अन्य- इसके अलावा बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट एवं सफेद मक्खी भी गुग्गल के पौधों को नुकसान पॅहुचाते है| इन सब के नियंत्रण के लिए अनुमोदित कीटनाशी का उपयोग करें|
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