कालमेघ (Kalmegh) एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है| इसका तना, पत्ती, बीज एवं जड सभी उपयोग में आते है| यह खरपतवार के रूप में खरीफ में पड़त जगहों पर खेतों की मेढों पर उगता है| यह सीधा बढने वाला शाकीय पौधा है| इसकी लम्बाई 1 से 3 फुट तक होती है| यह अनेक छोटी शाखाओं में विभाजित होकर चारों ओर फैल जाता है और आसपास की झाडियों पर चढ जाता है|
कालमेघ के पत्ते 6 से 8 सेंटीमीटर, लंबे होते है| फल, गुलाबी रंग के लगभग 1 सेंटीमीटर लंबे होते हैं तथा खुली, लंबी, फैली हुई शाखाओं पर लगते है| यदि कृषकों द्वारा इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक से की जाये| तो इसकी खेती से अच्छा लाभ अर्जित किया जा सकता है| इस लेख में कालमेघ की खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की जानकारी उल्लेख किया गया है|
उपयोग- कालमेघ की जड को छोडकर समूचा पौधा औषधि में काम आता है| यह बलवर्धक एवं पौष्टिक होता है| यह ज्वर कृमि, पेचिश, दुर्बलता एवं पेट के आफरे में उपयोगी है| बच्चो के जिगर तथा अपच के रोग में यह लाभपद्र है| परीक्षणों से देखा गया है, कि इस में एंटीबायोटिक तथा टाइफाइड ज्वर के तथा कुछ अन्य जावाणुओ को रोकने वाले तत्व है| मुख्य रूप से इसके चूर्ण, स्वरस व क्वांथ का प्रयोग करते हैं, होम्योपैथिक में कालमेघ ड्रोप प्रयुक्त की जाती है|
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कालमेघ की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
कालमेघ समशीतोष्ण जलवायुवीय व खरीफ की फसल है| इसके लिए औसत वर्षा 75 से 90 सेंटीमीटर होनी चाहिए| परन्तु यह 125 से 160 सेंटीमीटर वर्षा वाले स्थानों पर भी सफलतापूर्वक उगता है|
कालमेघ की खेती के लिए भूमि का चयन
यह सभी प्रकार की भूमि में अनुकूलन की क्षमता रखता है| यह फसल अच्छे जल निकास वाली किसी भी प्रकार की भूमि में हो सकती है, लेकिन अधिक पैदावार के लिए बलुई दोमट भूमि अधिक उपयुक्त रहती है|
कालमेघ की खेती के लिए भूमि की तैयारी
कालमेघ की खेती के लिए मई से जून में खेत को जोतना चाहिये| जुताई करने से पहले 15 से 20 टन गोबर की खाद खेत में डाल दे| जुताई के बाद पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए|
कालमेघ की खेती के लिए बीज की मात्रा
कालमेघ की खेती के लिए 5 से 6 किलोग्राम एक हैक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है|
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कालमेघ की खेती के लिए नर्सरी तैयार करना
इस की नर्सरी तैयार करने के लिए 15 जून के लगभग 1 एकड क्षेत्र की रोपाई हेतु 1 किलोग्राम बीज को 200 वर्गमीटर क्षेत्र में 1 मीटर चौडाई की क्यारीयों में छिड़काव विधि से बुवाई कर मिट्टी की हल्की परत से बीज को ढककर सिंचाई करें| जब पौधे लगभग 30 से 35 दिन के हो जावें तो खेत की क्यारीयों में रोपाई करते है| इसकी सीधे भी बुवाई की जा सकती है| इसके लिए अधिक बीज की आवश्यकता होगी|
कालमेघ की खेती के लिए रोपाई करना
जुलाई माह में 30 x 30 सेंटीमीटर की दूरी पर पौधा रोपण करें और रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें| प्रति एकड 44,400 पौधों की आवश्यकता होती है|
कालमेघ की फसल में खाद और उर्वरक
कालमेघ की उत्तम उपज लेने के लिए सिंचित फसल में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस एवं 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर बुआई के समय देना चाहियें| 15 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रथम सिंचाई के समय देना चाहिये|
कालमेघ की फसल में निराई-गुडाई
इस फसल में खरपतवार अधिक होते हैं, जिससे पौधे की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| अतः निंयत्रण हेतु रोपाई के 30 दिन बाद से आवश्यकतानुसार निराई-गुडाई करते रहना चाहिए|
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कालमेघ की खेती में सिंचाई प्रबंधन
सिंतबर माह में वर्षा न होने पर एक सिंचाई अवश्य करनी चाहिए, जिससे पौधों की वानस्पतिक वृद्धि अधिक होती है|
कालमेघ की खेती में रोग और कीट नियंत्रण
सामान्यतः इसमें रोग का प्रभाव नही होता है| कीटों के निंयत्रण हेतु मेलथियान दवा 2 मिलीलीटर एक लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हैक्टेयर छिडकाव करें|
कालमेघ की फसल की कटाई
इसकी फसल 3 से 4.5 माह में पक जाती है जब अधिकांश बीज पूर्ण रूप से पक जाये तब काटना चाहिये| पौंधो को काटकर छाया में सुखाना चाहिये| 8 दिन के अंतराल पर पलटाई करे| पलटते समय ध्यान रखे की पत्तियां कम से कम झडें पूर्ण रूप से सूखे पौधों को जूट की बोरियों में जिनमें पर्याप्त वायु संचार हो में भरकर सग्रहण करे|
कालमेघ की फसल से पैदावार
कालमेघ का पूर्ण रूप से सूखा हुआ पौधा ही विक्रय होता है| इस की फसल से प्रति हेक्टेयर 4 से 5 क्विंटल बीज तथा 30 से 35 क्विंटल शुष्क शाक मिलती है| इसकी खेती पर 10000 रू. प्रति हेक्टयर के लगभग खर्च होता है| इसका बाजार भाव करीब 100 रूपये से अधिक प्रति किलोग्राम बीज, पत्तियां 30 से 60 रू. प्रति किलोग्राम है|
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