अमरूद के पुराने और अनुत्पादक बागों का जीर्णोद्धार आवश्यक है| क्योंकि अमरूद भारत में पाया जाने वाला उच्च गुणवत्ता वाला फल है| अपनी अनेक प्रकार के मौसम और मृदाओं में सफलतापूर्वक उगने की क्षमता तथा उच्च विटामिन सी उपलब्धता के कारण इसे अन्यान्य फलों से श्रेष्ठ माना गया है| लेकिन वर्तमान समय में अमरूद के अधिकतर बाग पुराने हो गये हैं| इनके अधिक घने होने के कारण इनकी उत्पादकता में निरंतर कमी हो रही है| ऐसे में इन बागों में कुछ वैज्ञानिक उपायों के समायोजन की अन्यन्त आवश्यकता है|
जिससे उत्पादन के उच्चतम स्तर को कम-से-कम खर्च में प्राप्त किया जा सकता है और इन बागों से व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है| बागवानी संस्थानों द्वारा विकसित जीर्णोद्धार तकनीक एक ऐसी ही पद्धति है| जिसके द्वारा पुराने एवं अनुत्पादक बागों को उत्पादक बागों में परिवर्तित किया जा सकता है| इस लेख में बागवानों के लिए अमरूद के पुराने एवं अनुत्पादक बागों का जीर्णोद्धार कैसे करें की जानकारी का पूरा उल्लेख किया गया है| अमरूद की वैज्ञानिक खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अमरूद की खेती कैसे करें
जीर्णोद्धार तकनीक
जीर्णोद्धार तकनीक को मुख्यतः उन बागों में अपनाना चाहिये, जिनमें उत्पादन न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया है| इन बागों के वृक्षों की अत्यधिक बढ़वार के फलस्वरूप पूर्ण आच्छादन हो जाता है| इस कारण निचली शाखाओं पर सूर्य का प्रकाश प्रविष्ट न होने के कारण प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया अच्छे ढंग से नहीं हो पाती है| इससे पेड़ के निचले स्तर पर कल्ले विकसित नहीं होते और कीट एवं रोगों का अत्यधिक प्रकोप हो जाता है, जिसके फलस्वरूप उत्पादन में हास हो जाता है|
इन बागों में व्यावसायिक गुणवत्तायुक्त उत्पादन के मानकों को स्थापित करने के उद्देश्य से पेड़ों को जमीन से 1.0 से 1.5 मीटर की ऊँचाई पर चिन्हित कर के धारदार आरी की सहायता से काटा जाता है| इसे करने का अनुकूल समय मई से जून या दिसम्बर से फरवरी का महीना होता है| काटने के समय यह सावधानी रखनी चाहिये कि डालें न फट जायें| इसलिए डालों को पहले नीचे की तरफ से काटना चाहिये|
इसके पश्चात कटे भाग पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का लेप लगाना चाहिये| कटाई के उपरान्त पौधों में थाले बनाकर उसमें 50 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद डाल कर सिंचाई की जाती है| कटाई के 4 से 5 माह बाद नये कल्ले प्रस्फुटित होने लगते हैं| इन कल्लों का विरलीकरण करना चाहिये, जिससे प्रत्येक शाखा पर 4 से 5 स्वस्थ कल्ले हों| जब इन कल्लों की लम्बाई 40 से 50 सेंटीमीटर हो जाये तब इनकी लम्बाई का 50 प्रतिशत भाग काटा जाता है|
जिससे काटे गये स्थान के नीचे नये कल्लों का सृजन हो सके| द्वितीय कटाई के फलस्वरूप विकसित कल्ले फलत कलिकाओं के विकास में सहायक होते हैं| वर्षा ऋतु की फसल सामान्यतः अधिक होती है, परन्तु कीट व्याधियों के अधिक प्रकोप, शीघ्र पकने तथा कम स्वादिष्ट होने के कारण इनकी गुणवत्ता कम हो जाती है|
अतः व्यापारिक एवं मूल्य की दृष्टि से इनका महत्व कम हो जाता है| अधिक से अधिक शुद्ध लाभ कमाने हेतु शरद ऋतु में फलत लेनी चाहिए| इसके लिये मई माह में 50 प्रतिशत कल्लों की पुनः कटाई-छंटाई कर देनी चाहिये| इस तरह से नये कल्लों का सृजन होने से शरद ऋतु में भरपूर फसल प्राप्त करने की आपार सम्भावनाएं होती हैं|
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सिंचाई प्रबंधन
अमरूद के पुराने बागों के जीर्णोद्धार वृक्षों में नियमित सिंचाई का विशेष महत्व है अन्यथा नये कल्ले सूख सकते हैं| गर्मियों में 10 से 15 दिनों तथा सर्दियों में 25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिये| सिंचाई के विभिन्न तरीकों में टपक सिंचाई द्वारा उत्साहजनक परिणाम मिले हैं|
इस विधि द्वारा सिंचाई करने से फलों की संख्या, उत्पादन, गुणवत्ता पर गुणात्मक वृद्धि पायी गयी है| पारम्परिक सिंचाई की अपेक्षा टपक सिंचाई प्रणाली द्वारा सिंचाई करने पर पौधे की ऊँचाई एवं कैनोपी का फैलाव, तने की मोटाई तथा सक्रिय जड़ों का विकास आदि में धनात्मक वृद्धि होती है और खरपतवार नियंत्रण में सहायता मिलती है|
पोषक तत्व प्रबंधन
जीर्णोद्धारित बागों में कटाई के उपरान्त प्रत्येक पौधे को 50 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद, 5 किलोग्राम नीम की खली देना चाहिये| कटाई के 6 माह उपरान्त 50 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद, 3 किलोग्राम नीम की खली, 910 ग्राम यूरिया तथा 500 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश जून माह में देना चाहिये| इसके उपरान्त 390 ग्राम यूरिया एवं 1875 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट सितम्बर माह में दी जाती है|
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जीर्णोद्धारित बागों में मल्चिंग
अमरूद के पुराने बागों की कटाई के उपरान्त बागों में वृक्षों के चारों तरफ प्लास्टिक मल्चिंग (पलवार) के प्रयोग से गुणवत्तायुक्त अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है| इसके अतिरिक्त यह उत्पादन लागत को भी कम करता है, जिससे शुद्ध लाभ में वृद्धि की जा सकती है|
अन्त:फसल
जीर्णोद्धार के तीन वर्ष पश्चात तक सब्जी और दलहनी फसलें आसानी से पैदा की जा सकती हैं| मटर, सेम, फूलगोभी, पत्तागोभी, ब्रोकली, मिर्च, बैगन तथा आंशिक छाया चाहने वाली फसलें जैसे अदरक, सूरन तथा हल्दी आदि बाग में अन्तःफसल के रूप में लेने से कैनोपी विकास की प्रारम्भिक अवस्था में अच्छा लाभ प्राप्त होता है|
जीर्णोद्धार उपरान्त उपज
अमरूद के पुराने बागों के जीणोद्धार उपरान्त पौधों से 30 से 45 किलोग्राम प्रति पौध उपज मिलने लगती है| जिससे आगे चलकर कैनोपी के फैलाव के अनुसार उपज में निरंतर वृद्धि होती है|
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जीर्णोद्धार उपरान्त सावधानियां
अमरूद के पुराने बागों के जीर्णोद्धार हेतु कटाई-छंटाई उपरान्त कृषकों द्वारा सावधानीपूर्वक की जाने वाली प्रबंधन प्रक्रियाएँ| जो इस प्रकार है, जैसे-
1. कटे भाग पर गोबर अथवा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का लेप लगायें|
2. नियमित रूप से सिंचाई करने तथा रासायनिक एवं गोबर की खाद डालने हेतु थाले बनायें|
3. रासायनिक खाद की संस्तुत मात्रा और 50 किलोग्राम प्रति पौधा सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करें|
4. तेज़ धूप के कारण नुकसान से बचाने के लिए तने और शाखाओं पर कॉपर तथा चूने का लेप लगायें, इसके लिए बोडेक्स मिश्रण अधिक उपयुक्त पाया गया है|
5. अमरूद के पुराने बागों के जीर्णोद्धार के पश्चात् कल्लों के सृजन और समुचित वानस्पतिक वृद्धि के लिए सिंचाई सुनिश्चित करें|
6. पतले तार की तीली की सहायता से छिद्रों से तनाभेदी कीट यदि आते हैं तो लार्वे को निकालें और नष्ट करें|
7. रूई के फाये को नुवान में भिंगोकर छिद्रों में रखें तथा उन्हें गीली मिट्टी से बंद कर दें|
8. अमरूद के पुराने बागों के जीर्णोद्धार के पश्चात् मल्चिंग के लिए (100 माईक्रान = 400 गेज) यू वी स्टेविलाइज काली पॉलीथीन फिल्म का उपयोग करें|
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