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धान में पोषक तत्व प्रबंधन | धान में खाद उर्वरक का उपयोग कब करें?

January 5, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

धान में पोषक तत्व प्रबन्धन धान में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग मिटटी परीक्षण के आधार पर ही करना उपयुक्त है| यदि किसी कारणवश मिटटी का परीक्षण न हुआ तो धान में पोषक तत्व (उर्वरकों) का प्रयोग निम्नानुसार करना चाहिए| धान की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- धान (चावल) की खेती कैसे करें

यह भी पढ़ें- धान के कीटों का समेकित प्रबंधन कैसे करें

सिंचित दशा में धान में पोषक प्रबन्धन

अधिक उपज देने वाली प्रजातियों में उर्वरक प्रबन्धन- धान में पोषक तत्व के लिए शीघ्र पकने वाली किस्मों में नत्रजन 120 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम, पोटाश 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए| जिसमें नत्रजन की आधी मात्रा और फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के पूर्व एवं नत्रजन की शेष मात्रा को बराबर-बराबर दो बार में कल्ले फूटते समय तथा बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था पर प्रयोग करना चाहिए|

मध्यम देर से पकने वाली किस्मों में नत्रजन- 150 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम, पोटाश 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए| जिसमें नत्रजन की आधी मात्रा और फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के पूर्व तथा नत्रजन की शेष मात्रा को बराबर-बराबर दो बार में कल्ले फूटते समय और बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था पर प्रयोग करना चाहिए|

सुगन्धित धान की बौनी किस्मों में पोषक तत्व प्रबन्ध- धान में पोषक तत्व हेतु नत्रजन 120 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम, पोटाश 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए और शीघ्र, मध्यम समय से पकने वाली किस्में तथा सुगन्धित धान में नत्रजन 60 किलोग्राम, फास्फोरस 30 किलोग्राम, पोटाश 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए|

शीघ्र, मध्यम समय में पकने वाली जिसमें नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के पूर्व तथा नत्रजन की शेष मात्रा को बराबर-बराबर दो बार में कल्ले फूटते समय तथा बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था पर प्रयोग करना चाहिए| दाना बनने के बाद उर्वरक का प्रयोग न करें|

यह भी पढ़ें- धान में एकीकृत रोग प्रबंधन कैसे करें

सीधी बुवाई हेतु धान में पोषक तत्वों का प्रबन्धन

धान में पोषक तत्वों के लिए अधिक उपज देने वाली किस्मों की सीधी बुआई में प्रति हेक्टेयर नत्रजन 100 से 120 किलोग्राम, फास्फोरस 50 से 60 किलोग्राम और पोटाश 50 से 60 किलोग्राम का प्रयोग करना चाहिए| जिसमें नत्रजन की एक चौथाई भाग और फास्फोरस तथा पोटाश की पूर्ण मात्रा कुंड में बीज के नीचे डालें, शीष नत्रजन का दो चौथाई भाग कल्ले फूटते समय और शेष एक चौथाई भाग बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था पर प्रयोग करें|

विशेष- धान में पोषक तत्वों हेतु किसान भाई ध्यान दें की लगातार धान एवं गेहूं वाले क्षेत्रों में गेहूं धान की फसल के बीच हरी खाद का प्रयोग करें अथवा धान की फसल में 10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद का प्रयोग करें|

ऊसरीली क्षेत्र में हरी खाद के लिये ऊँचे की बुवाई करना विशेष रूप से लाभ प्रद होता है| दो क्विंटल प्रति हेक्टर जिप्सम का प्रयोग बेसल के रूप में किया जा सकता है| इससे धान की फसल को गन्धक की आवश्यकता पूरी हो जायेगी| सिंगल सुपर फास्फेट के प्रयोग से भी गन्धक की कमी दूर की जा सकती है| पोटाश का प्रयोग बेसल ड्रेसिंग में किया जाय किन्तु हल्की दोमट भूमि में पोटाश उर्वरक को यूरिया के साथ टापड्रेसिंग में प्रयोग किया जाना उचित रहता है|

अतः धान में पोषक तत्व के लिए ऐसे क्षेत्रों में यूरिया के 2 से 3 प्रतिशत घोल का छिड़काव दो बार कल्ला निकलते समय और बाली निकलने की प्रारम्भिक अवस्था पर करना लाभदायक होगा| यूरिया की टाप-ड्रेसिंग के पूर्व खेत से पानी निकाल देना चाहिए एवं यदि किसी क्षेत्र में ये सम्भव न हो तो यूरिया को उसकी दुगुनी मिट्टी में एक चौथाई गोबर की खाद मिलाकर 24 घन्टे तक रख देना चाहिए| ऐसा करने से यूरिया अमोनियम कार्बोनेट के रूप में बदल जाती है, और रिसाव द्वारा नष्ट नहीं होता है|

यह भी पढ़ें- असिंचित क्षेत्रों में धान की फसल के कीट एवं उनका प्रबंधन

धान में पोषक तत्व प्रबंधन हेतु सुझाव

1. धान में पोषक का मिटटी परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर ही उर्वरकों का प्रयोग करें|

2. पिछली फसल में दिये गये पोषक तत्वों की मात्रा के आधार पर वर्तमान फसल की उर्वरक मात्रा का निर्धारण करना चाहिए|

3. दलहनी फसलों में सम्बन्धित राइजोबियम कल्चर का उपयोग भूमि शोधन और बीज शोधन में करना चाहिए|

4. तिलहनी और धान्य फसलों में पी एस बी तथा ऐजोटोबैक्टर कल्चर का प्रयोग बीज शोधन एवं भूमि शोधन में करना चाहिए|

5. धान, गेहूं जैसे फसल चक्र में ढेंचा या सनई जैसी हरी खाद का प्रयोग अवश्य करना चाहिए|

6. फसल चक्र के सिद्धान्त के अनुसार फसल चक्र में आवश्यकतानुसार परिवर्तन करते रहना चाहिए|

7. उपलब्धता के आधार पर गोबर, फसल अवशेषों और अन्य कम्पोस्ट खादों का अधिकाधिक प्रयोग करना आवश्यक होता है|

8. धान में पोषक हेतु खेत में फसल अवशिष्ट जैविक पदार्थों को मिट्टी में निरंतर मिलाते रहना चाहिए|

9. मिटटी स्वास्थ्य बढ़ाने के लिए टिकाऊ खेती हेतु जैविक खेती अपनाने पर प्रयासरत रहना चाहिए|

10. धान में पोषक तत्व हेतु आवश्यकतानुसार सल्फर, जिंक, कैल्शियम के अतिरिक्त अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- धान में खरपतवार एवं निराई प्रबंधन कैसे करें

प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो अपनी प्रतिक्रिया के लिए “दैनिक जाग्रति” को Comment कर सकते है, आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार रहेगा, ये आपका अपना मंच है, लेख पसंद आने पर Share और Like जरुर करें|

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