• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Blog
  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post
Home » Blog » कद्दू की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

कद्दू की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

December 29, 2017 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

कद्दू की खेती

कद्दू वर्गीय सब्जियों में पेठा एक महत्वपूर्ण फसल है| कद्दू (Pumpkin) की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरला और उत्तरांचल में की जाती है| कद्दू (पेठा) कच्चा और पका फल सब्जी के लिए तथा पके फलों का मिठाई (पेठा) बनाने में प्रयोग होता है| इससे च्यवनप्राश भी बनाया जाता है| जिसके खाने से दिमाग के साथ साथ स्मरण क्षमता में भी बढ़ोत्तरी होती है|

इसके पके फलों के गूदों में मसाला मिलाकर बरी एवं तिलौंरी बनायी जाती है| जिसका भण्डारण आसानी से करके सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है| यदि किसान भाई इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो इसकी फसल से भरपूर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है| इस लेख में कद्दू (पेठा) की उन्नत खेती कैसे करें की विस्तृत जानकारी का उल्लेख किया गया है|

कद्दू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

गर्म एवं अधिक आर्द्रता वाले क्षेत्र कद्दू (पेठा) खेती के लिए सर्वोत्तम है| बीज के अंकुरण व पौधों के बढ़वार के लिए 25 से 27 डिग्री सेल्शियस तापमान अच्छा होता है| बुआई के समय तापमान 18 से 20 डिग्री सेल्शियस होने से अंकुरण एक सप्ताह में हो जाता है| फूल आने के समय अधिक वर्षा होने से फलत कम हो जाती है|

यह भी पढ़ें- कद्दू वर्गीय सब्जियों की उन्नत खेती कैसे करें

कद्दू की खेती के लिए भूमि का चयन

अच्छी जल निकास व जीवांशयुक्त बलुई दोमट मिट्टी कद्दू (पेठा) की खेती के लिए सर्वोत्तम पायी गयी है| बुआई से पूर्व चार से पाँच बार हल चलाकर खेत को अच्छी तरह तैयार कर लिया जाता है|

कद्दू की खेती के लिए खेत की तैयारी

कद्दू (पेठा) फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए| इसके बाद 3 से 4 जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करनी चाहिए| ताकि मिट्टी भुरभुरी और हवा युक्त हो जाए, इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल बना लेना चाहिए|

कद्दू की खेती के लिए उन्नत किस्में

काशी धवल- इस कद्दू (पेठा) किस्म की बुआई अप्रैल से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है| इसका फल बेलनाकार, गूदा सफेद, गूदे की मोटाई औसतन 8.5 सेंटीमीटर एवं फल का औसत वजन 12 किलोग्राम होता हैं| फल का लम्बवत आकार 90 सेंटीमीटर एवं गोलाई 80 सेंटीमीटर तक हो जाती है| एक पौधे में 2 से 3 फल लगते हैं, जिनकी तुड़ाई 100 से 105 दिनों में की जा सकती है| इस प्रजाति के लता की लम्बाई 7 से 8 मीटर तक होती है और मादा फूल शुरूआत से 22 से 24 गांठों के अन्तर पर प्रारम्भ होते हैं|

फल को तुड़ाई उपरान्त सामान्य तापक्रम एवं सूखे स्थान पर लगभग 4 से 5 महीनों तक भण्डारित कर सकते हैं| फल में गूदा अधिक होने के कारण यह पेठा बनाने हेतु सर्वोत्तम हैं| इस किस्म से औसत उत्पादन 60 टन प्रति हेक्टेयर तक आसानी से प्राप्त किया जा सकता है| यह किस्म उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा बिहार के किसानों के बीच अधिक प्रचलित है|

यह भी पढ़ें- कद्दू वर्गीय सब्जियों में जड़ गांठ सूत्रकृमि की रोकथाम

काशी उज्जवल- इस कद्दू (पेठा) किस्म की बुआई अप्रैल के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कर सकते हैं| फल गोल, गूदे की औसत मोटाई 7 सेंटीमीटर एवं फल का वजन 10 से 12 किलोग्राम होता है| एक पौधे में 3 से 4 फल लगते हैं| यह किस्म पेठा एवं बरी बनाने हेतु उत्तम है| इसकी उत्पादन क्षमता 55 से 60 टन प्रति हेक्टेयर है| इसका फल बीज बुआई के 110 से 120 दिनों के बाद तुड़ाई करने लायक हो जाता है|

फल को सामान्य तापक्रम 4 से 5 महीने तक सूखे एवं छायादार स्थान पर भण्डारित करते हैं| इस किस्म को पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड , कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल के लिए अनुमोदित किया गया| यह पेठा कद्दू की प्रथम किस्म है, जिसका अनुमोदन अखिल भारतीय स्तर पर किया गया है|

काशी सुरभि- इस कद्दू (पेठा) किस्म की बुआई अप्रैल से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कर सकते है| इस किस्म का फल लम्बवत, गूदे को औसतन मोटाई 6 से 7 सेंटीमीटर एवं फल का वजन 9.50 से 10 किलोग्राम होता है| एक पौधे में औसतन 3 से 4 फल लगते हैं| यह किस्म पेठा एवं बरी बनाने हेतु उत्तम है| इसकी उत्पादन क्षमता 60 से 70 टन प्रति हेक्टेयर है|

अन्य किस्में- पूसा विश्वास, पूसा विकास, कल्यानपुर पंपकिन- 1, नरेन्द्र अमृत, अर्का सूर्यमुखी, अर्का चन्दन, अम्ब्ली, सीएस- 14, सीओ- 1 व 2, काशी हरित और पूसा हाइब्रिड- 1 इत्यादि प्रमुख है| विदेशी किस्में बतरनट, ग्रीन हब्बर्ड, गोल्डन हब्बर्ड, गोल्डन कस्टर्ड, यलो स्टेट और पैटिपान प्रमुख है| इन कद्दू (पेठा) किस्म की भी पैदावार अच्छी है|

कद्दू की खेती के लिए बुआई का समय

मुख्य फसल के रूप में पेठा कद्दू की बुआई जून के दुसरे पखवाड़े में करते हैं| उत्तर के मैदानी भागों में जहाँ सिंचाई की उचित व्यवस्था हो वहाँ पर इसकी बुआई अप्रैल के प्रथम सप्ताह में की जा सकती है| दक्षिण भारत में इसकी बुवाई जून से लेकर अगस्त तक करते हैं, जबकि उत्तर भारत के पर्वतीय भागों में इसकी बुवाई अप्रैल से मई में की जाती है|

यह भी पढ़ें- कद्दू वर्गीय सब्जियों के कीट और रोगों का नियंत्रण

कद्दू की खेती के लिए बीज की मात्रा

यदि एक स्थान पर कद्दू के 2 से 3 बीज बोए जाते है, तो प्रति हेक्टेयर 3.0 से 3.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है| 150 ग्राम वजन में लगभग 2000 बीज होते हैं|

कद्दू की खेती के लिए बुवाई की विधि

अच्छी तरह से तैयार खेत में 4 मीटर की दूरी पर मेढ़ बना लेते हैं| मेढ़ों पर 80 सेंटीमीटर की दूरी पर कद्दू बीज बोने के लिए निशान लगा लेते हैं और एक गड्डे में 2 से 3 बीजों की बुवाई करते हैं|

कद्दू की खेती के लिए खाद और उर्वरक

पेठा कद्दू की फसल में 100 किलोग्राम नत्रजन (220 किलोग्राम यूरिया), 60 किलोग्राम फास्फोरस (350 किलोग्राम एस एस पी) तथा 60 किलोग्राम पोटाश (100 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए| रासायनिक उर्वरकों में नत्रजन की आधी मात्रा और फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत में नालियाँ या थाले बनाते समय देते हैं| नत्रजन की शेष मात्रा दो बराबर भागों में बाँट कर खड़ी फसल में जड़ों के पास बुआई के 20 तथा 40 दिनों बाद देते हैं| खेत तैयार करते समय 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर गली सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट अवश्य मिटटी में मिलाएं|

कद्दू की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन

कद्दू (पेठा) बीज की बुआई खेत में नमी की पर्याप्त मात्रा रहने पर ही करनी चाहिए, जिससे बीजों का अंकुरण तथा वृद्धि अच्छी प्रकार हो, बरसात वाली फसल के लिए सिंचाई की विशेष आवश्यकता नहीं पड़ती है| गर्मी की फसल की पाँचवें दिन सिंचाई करते हैं| तने की वृद्धि, फूल आने के समय और फल की बढ़वार के वक्त पानी की कमी नहीं होनी चाहिए|

यह भी पढ़ें- कद्दू वर्गीय फसलों का संकर बीज उत्पादन कैसे करें

कद्दू की फसल में खरपतवार नियंत्रण

वर्षाकालीन कद्दू फसल में खरपतवार की समस्या अधिक होती है| बीज अंकुरण से लेकर प्रथम 25 दिनों तक खरपतवार फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं| इससे फसल की वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ता है और पौधे की बढ़वार रूक जाती है| अतः खेत से समय-समय पर खरपतवार निकालते रहना चाहिए|

रासायनिक खरपतवार नाशी के रूप में स्टाम्प रसायन 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव बुआई के तुरन्त बाद करते हैं| खेत से पहली बार खरपतवार बुआई से 20 से 25 दिनों के अन्दर निकाल देते हैं| खरपतवार निकालने के बाद खेत की गुड़ाई करके जड़ों के पास मिट्टी चढ़ाना चाहिए, जिससे पौधों का विकास तेजी से होता है|

कद्दू फसल में कीट नियंत्रण

कददू का लाल कीट (रेड पम्पकिन बिटिल)- इस कीट की सूण्ड़ी जमीन के अन्दर पायी जाती है| इसकी सूण्डी व वयस्क दोनों क्षति पहुँचाते हैं| प्रौढ़ पौधों की छोटी पत्तियों पर ज्यादा क्षति पहुँचाते हैं| ग्रब (इल्ली) जमीन में रहती है, जो पौधों की जड़ पर आक्रमण कर हानि पहुँचाती है| ये कीट जनवरी से मार्च के महीनों में सबसे अधिक सक्रिय होते है|

अक्टूबर तक खेत में इनका प्रकोप रहता है| फसलों के बीज पत्र एवं 4 से 5 पत्ती अवस्था इन कीटों के आक्रमण के लिए सबसे अनुकूल है| प्रौढ़ कीट विशेषकर मुलायम पत्तियां अधिक पसन्द करते है| अधिक आक्रमण होने से पौधे पत्ती रहित हो जाते है|

नियंत्रण-

1. सुबह ओस पड़ने के समय राख का बुरकाव करने से भी प्रौढ़ पौधा पर नहीं बैठता जिससे नुकसान कम होता है|

2. जैविक विधि से नियंत्रण के लिए अजादीरैक्टिन 300 पी पी एम 5 से 10 मिलीलीटर प्रति लीटर या अजादीरैक्टिन 5 प्रतिशत 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से दो या तीन छिड़काव करने से लाभ होता है|

3. इस कीट का अधिक प्रकोप होने पर कीटनाशी जैसे डाईक्लोरोवास 76 ईसी, 1.25 मिलीलीटर प्रति लीटर या ट्राइक्लोफेरान 50 ईसी, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से जमाव के तुरन्त बाद एवं दुबारा 10 वें दिन पर पर्णीय छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- खीरा की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

फल मक्खी- इस कीट की सूण्डी हानिकारक होती है| प्रौढ़ मादा छोटे, मुलायम फलों के छिलके के अन्दर अण्डा देना पसन्द करती है, और अण्डे से ग्रब्स (सूड़ी) निकलकर फलों के अन्दर का भाग खाकर नष्ट कर देते हैं| कीट फल के जिस भाग पर अण्डा देती है, वह भाग वहाँ से टेढ़ा होकर सड़ जाता है| ग्रसित फल भी सड़ जाता है तथा नीचे गिर जाता है|

नियंत्रण-

1. गर्मी की गहरी जुताई करें, ताकि मिट्टी की निचली परत खुल जाए जिससे फल मक्खी का प्यूपा धूप द्वारा नष्ट हो जाये या शिकारी पक्षियों द्वारा खा लीये जाते हैं|

2. ग्रसित फलों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए|

3. नर फल मक्खी को नष्ट करने के लिए प्लास्टिक की बोतलों को इथेनाल, कीटनाशक (डाईक्लोरोवासया मैलाथियान), क्यूल्यूर को 6:1:2 के अनुपात के घोल में लकड़ी के टूकड़े को डुबाकर, 25 से 30 फंदा खेत में स्थापित कर देना चाहिए|

4. कार्बारिल 50 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर या मैलाथियान 50 ईसी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी को लेकर 10 प्रतिशत शीरा या गुड़ में मिलाकर जहरीले चारे को 250 जगहों पर प्रति हेक्टेयर खेत में उपयोग करना चाहिए| प्रतिकृषि 4 प्रतिशत नीम की खली का प्रयोग करें, जिससे जहरीले चारे की ट्रैपिंग की क्षमता बढ़ जाये|

5. आवश्यकतानुसार कीटनाशी जैसे क्लोरनेट्रानिलीप्रोल 18.5 एससी 0.25 मिलीलीटर प्रति लीटर या डाईक्लारोवास 76 ईसी 1.25 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से भी छिड़काव कर सकते हैं|

यह भी पढ़ें- कद्दूवर्गीय सब्जी की फसलों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन

कद्दू फसल में रोग नियंत्रण

एन्छेक्नोज- इस रोग का प्रकोप वर्षाकालीन कद्दू फसल में अधिक होता है| इस बीमारी में छोटे-छोटे भूरे धब्बे पत्तियों और टहनियों पर दिखाई देते हैं| टहनी पर भी नारंगी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं तथा पत्तियाँ बड़ी तेजी से सूखने लगती है|

नियंत्रण- इसकी रोकथाम के लिए हेक्साकोनाजोल 1 ग्राम प्रति लीटर या प्रोपीकोनाजोल 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी को घोल बनाकर छिड़काव करने से रोग का अच्छी तरह से नियंत्रण हो जाता है|

फल सडन- फल सडन के लिए कई फफूंद जिम्मेदार है, जैसे- पीथियम, राइजोक्टानिया, स्केलोरोटियम, मोक्रोफोमिना और फाइटोप्थोरा| मुख्य रूप से ये सारे फफूंद मिट्टी से आते हैं| यह रोग उन फलों पर ज्यादा होता है, जो मिट्टी में सटे होते हैं| इसलिए पेठा कद्दू के फलों को समय-समय पर एक तरफ से दूसरे तरफ पलटते रहना चाहिए और खेत में जल निकास का उचित प्रबन्ध करना चाहिए|

नियंत्रण- वैलिडामाईसीन का 2 मिलीलीटर प्रति लीटर या टेबुकोनाजोल 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ, 10 से 12 दिन के अन्तराल पर दो बार मृदा का सिंचन करें|

कद्दू फसल की तुड़ाई और उपज

सब्जी के रूप में प्रयोग करने के लिए तुड़ाई फूल खिलने के 10 दिनों के अन्दर करते हैं| मिठाई (पेठा) बनाने के लिए पके फल को तोड़ना चाहिए| पके हुए फल के ऊपर सफेद पाउडर जम जाता है तथा फल चिकना दिखता है| उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से कद्दू (पेठा) फसल की अच्छी देखभाल करने पर औसत उपज लगभग 55 से 70 टन प्रति हेक्टेयर होती है|

यह भी पढ़ें- लौकी की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

अगर आपको यह लेख पसंद आया है, तो कृपया वीडियो ट्यूटोरियल के लिए हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें| आप हमारे साथ Twitter और Facebook के द्वारा भी जुड़ सकते हैं|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

“दैनिक जाग्रति” से जुड़े

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

करियर से संबंधित पोस्ट

आईआईआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कट ऑफ, प्लेसमेंट

एनआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कटऑफ, प्लेसमेंट

एनआईडी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, फीस, कट ऑफ, प्लेसमेंट

निफ्ट: योग्यता, प्रवेश प्रक्रिया, कोर्स, अवधि, फीस और करियर

निफ्ट प्रवेश: पात्रता, आवेदन, सिलेबस, कट-ऑफ और परिणाम

खेती-बाड़ी से संबंधित पोस्ट

June Mahine के कृषि कार्य: जानिए देखभाल और बेहतर पैदावार

मई माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

अप्रैल माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

मार्च माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

फरवरी माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

स्वास्थ्य से संबंधित पोस्ट

हकलाना: लक्षण, कारण, प्रकार, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

एलर्जी अस्थमा: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

स्टैसिस डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान, इलाज

न्यूमुलर डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, डाइट, निदान और इलाज

पेरिओरल डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, निदान और इलाज

सरकारी योजनाओं से संबंधित पोस्ट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार: प्रशिक्षण, लक्षित समूह, कार्यक्रम, विशेषताएं

राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम: लाभार्थी, योजना घटक, युवा वाहिनी

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार: उद्देश्य, प्रशिक्षण, विशेषताएं, परियोजनाएं

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना | प्रधानमंत्री सौभाग्य स्कीम

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, पेंशन, देय और ऋण

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap