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एमेरीलिस की उन्नत खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल, उत्पादन

November 29, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

एमेरीलिस की उन्नत खेती, जानिए उपयुक्त भूमि, किस्में एवं प्रबंधन

एमेरीलिस एक अति सुंदर और आकर्षक कंदीय पुष्प है, तथा एमेरीलिडेसी कुल का सदस्य है| इसका वानस्पतिक नाम एमेरीलिस बैलेडोना या इसे हिपिस्ट्रम भी कहते हैं| इसको कुछ अन्य नामों से भी पुकारा जाता है, जैसे-ट्रमपेट लिली, नाइट स्टार लिली एवं बारडोज लिली आदि| एमेरीलिस का जन्म स्थान साउथ अफ्रीका माना जाता है|

एमेरीलिस बहुरंगीय पुष्पों में पाया जाने वाला एक ऐसा कंदीय पुष्प है, जिसको मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों में आसानी पूर्वक उगाया जा सकता है| इसको सुदंरता के लिए गमलों, क्यारियों, हरित गृहों एवं चट्टानी जमीन पर सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है| पूष्प ‘घंटे’ के आकार के होते हैं, जो लम्बी डंडियों पर छतरी के रूप में 2 से 4 तक लगते हैं|

फूलों में विभिन्न रंग जैसे- ओरेंज, हल्का लाल, गहरा लाल, ब्राइट ओरेंज, लाल, सफेद, जामुनी या मल्टीकलर के पुष्प पाये जाते हैं| एमेरीलिस एक अच्छा व्यवसायिक पुष्प भी है, एमेरीलिस के फूल काटने पर काफी समय तक पानी में ताजे व सुंदर रहते हैं| एमेरीलिस के कंदों की एशिया तथा यूरोप के देशों में काफी मांग है एवं कुछ किसान भाई केलिम्पोंग में इसको निर्यात भी कर रहे हैं|

एमेरीलिस के पौधों 30 से 80 सेंटीमीटर ऊचे तना रहित होते हैं| पत्तियां तलवार की तरह लम्बी 30 से 50 सेंटीमीटर होती हैं और 5 से 10 सेंटीमीटर चौड़ी होती हैं| फूलों का आकार घंटेनुमा होता है, जिसका साइज 7 से 25 सेंटीमीटर तक होता है एवं ये लम्बी 30 से 60 सेंटीमीटर डंडियों पर 2 से 4 की संख्या में उगते हैं| डच हाइब्रिडा के पुष्प बड़े आकार के होते हैं|

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उपयुक्त जलवायु

एमेरीलिस की खेती पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों में आसानी से की जाती है|

भूमि एवं तैयारी

भूमि- एमेरीलिस के लिए दोमट रेतीली मिट्टी की आवश्यकता होती है, जिसमें कम्पोस्ट की अधिकता हो| जमीन का पी एच 6.0 से 7.5 के बीच में होना अच्छा रहता है| चिकनी भारी मिट्टी में कंद तथा जड़ों का विकास अच्छा नहीं होता| खेती की जाने वाली जमीन से वर्षा ऋतु के पानी का अच्छा जल विकास होना चाहिए|

तैयारी- कंद लगाने से पूर्व जमीन को अच्छी प्रकार से तैयार कर लें| खेत की गहरी जुताई 30 से 40 सेंटीमीटर करके धूप में खुला छोड़ दें| जिससे खरपतवार सूख जाएं तथा कीड़े इत्यादि मर जाएं| अंतिम जुताई से पूर्व खेत में पानी देकर अच्छी नमी बना लें|

आखिरी जुताई से पूर्व खेत में 5 से 6 किलो ग्राम अच्छी सड़ी गोबर की खाद, 50 ग्राम नीम की खली व नाइट्रोजन तथा फास्फोरस, पोटाश खाद 60:30:30 ग्राम की दर से प्रति वर्ग मीटर की दर से डाल कर खेत की जुताई करके खेत को अंतिम रूप से कंद लगाने के योग्य मुलायम बना लें|

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उन्नत किस्में

उत्तरी भारत में पायी जाने वाली अधिकतर जातियां हाइब्रिड किस्म की हैं, जिनमें डच हाइब्रिड मुख्य है| कुछ सुंदर किस्में हैं, जैसे- अलंकार, एपल ब्लोसम, ग्रसीलिस, क्रिस्टियन, जोच, स्टार आफ इण्डिया, ब्राइट रेड, ब्राइट आरेंज, पाइव स्टार जनरल, ब्लीडिंग हर्ट और रोयल कबी इत्यादि प्रमुख है|

मात्रा, समय और विधि

कंदों की मात्रा- एक एकड़ क्षेत्रफल के लिए 40 से 50 हजार कंदों की आवश्यकता होती है|

समय- मैदानी इलाकों में कंदों के लगाने का समय सितम्बर से अक्टूबर या दिसम्बर से जनवरी (अगर कंद सुषुप्तावस्था में हो), जबकि पहाड़ी इलाकों में इनका अक्टूबर से नवम्बर या मार्च से अप्रैल है|

लगाने की विधि- कंद से कंद की दूरी 20-25 सेंटीमीटर तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर रखते हैं| कंद लगाते समय खेत में पर्याप्त नमी की मात्रा रहनी चाहिए| कंदों को सजावट के लिए 25 से 30 सेंटीमीटर के गमलों में उगाया जा सकता है| इसके लिए गमलों का मिश्रण बनाने के लिए एक भाग रेत + एक भाग पत्ती की खाद + एक भाग गोबर की खाद + एक भाग मिट्टी को लेते हैं| एक गमले में एक चम्मच हड्डी की खाद भी मिला दें|

जमीन या गमले में एमेरीलिस के कंद लगाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए, कि एमेरीलिस कंद की गर्दन या ऊपरी भाग जमीन से 4 से 5 सेंटीमीटर ऊपर रहे| कंद को पूर्ण रूप से जमीन या गमले की मिट्टी में न ढ़कें| कंदों को मैदानी इलाकों में फूल देने का समय- मध्य मार्च से मध्य जून, जिस समय उद्यानों के अधिकतर पुष्प खत्म हो चुके होते हैं| नियमित देखभाल जैसे सिंचाई, गुड़ाई और खरपतवार निकालते रहने से इसकी फसल अच्छी होती है|

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नये कंदों की उत्पत्ति

एमेरीलिस के नए कंदों की उत्पत्ति (प्रवर्धन) तीन विधियों द्वारा की जा सकती है, जो निम्न प्रकार से हैं, जैसे-

बीज द्वारा- एमेरीलिस के पुष्प आने के बाद फूलों की सेचन क्रिया द्वारा बीज बना लें, इसमें बीज बहुत हल्के होते हैं, पक जाने पर उनको इकट्ठा करके तुरंत गमलों या उथली पौधशाला की क्यारियों में बुवाई कर देना चाहिए| प्रत्येक बीज से एक छोटा अंकुरित पौधा निकलता है, 5 से 6 महीने तक इन नन्हें पौधों को उसी गमले या क्यारी में रखें एवं जब वे 2 से 3 पत्तियों वाले हो जाएं तो उनको फरवरी से मार्च या जुलाई से अगस्त में अलग-अलग करके क्यारियों में 5 से 6 किलो ग्राम गोबर की खाद प्रति वर्ग मीटर में मिलाकर लगा दें| इस तरह प्राप्त एमेरीलिस कंद 3 से 4 वर्ष में फूल देने लगते हैं|

कंदों से निकलने वाले नव-कंदों द्वारा- एमेरीलिस के कंद स्वत: बहुत कम नवीन कंदों की उत्पत्ति करते हैं| साल में एक-दो नवजात कंद की ही उत्पत्ति होती है| पूसा की एक किस्म ‘सूर्य किरण’ नवजात कंद उत्पत्ति के लिए सबसे अच्छी है तथा इसके एक विकसित कंद से 3 से 4 या अधिक नवजात कंद मिल जाते हैं, जिनको अलग-अलग करके लगाने से दो वर्ष में कंद पुष्प देने योग्य बन जाते हैं|

स्केलिंग विधि द्वारा- इस विधि द्वारा एमेरीलिस के कंदों की उत्पत्ति तेजी से की जा सकती है तथा एक पूर्ण विकसित बड़े कंद से लगभग 50 से 60 नवजात कंद प्राप्त हो सकते हैं| इस विधि के लिए पूर्ण विकसित बड़ा कंद लेते हैं एवं रूट प्लेट से जड़ों को सावधानी पूर्वक साफ कर लिया जाता है| गर्दन से पत्तियों को भी साफ कर दिया जाता है, फिर तेज चाकू द्वारा लम्बाई में कंद पहले दो भाग में काट दिया जाता है|

प्रत्येक टुकड़े की लम्बाई में दो-दो बार काटते हैं तथा अंत में लगभग 15 टुकड़े मिल जाते हैं| प्रत्येक टुकड़े का एक जोड़ा स्केल एवं कट प्लेट के साथ अन्य 3 से 4 भागों में काट लें| ध्यान रहे कि स्केल सूखने न पाएं, फिर इनको 0.2 प्रतिशत बेनोमिल या 0.3 प्रतिशत कैप्टान से कुछ मिनट उपचार करने के बाद रेत से भरे गमलों में लगा दें, एवं हल्का पानी देते रहें, जिससे नमी बनी रहे|

गमलों के रेत का तापमान 25 से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच दो से तीने महीने तक रखना आवश्यक है| प्रत्येक टुकड़े की रूट प्लेट पर कुछ समय बाद एक नन्हा नवजात कंद अंकुरित हो जाएगा| दो पत्तियां आने तक उसे वहीं बढ़ने दें, फिर फरवरी या वर्षा ऋतु में निकालकर लगा दें| इस प्रकार एक कंद से 50 से 60 तक कंद प्राप्त हो सकते है|

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पुष्प काटने की विधि

जब एमेरीलिस के फूलों को व्यवसाय या सजाने के लिए काटना हो, उस समय कुछ ध्यान रखने योग्य बातें होती हैं, जैसे फूलों को उस समय काटें जब पुष्प कलियों में पूर्ण रंग आ गया हो और पंखुड़ी कुछ-कुछ खिलने लगे| पुष्प डंडी को तेज चाकू द्वारा पूर्ण नीचे से काटना चाहिए, जहां पर डंडी मजबूत हो और उसका पानी बाहर न आए| फूलों को काटने के तुरंत बाद पानी में रखकर छाया या शीत घर में रख दें| एक-दो घंटे इस तरह रखने के बाद आवश्यकतानुसार उन का प्रयोग कर लें|

कंदों का संग्रह

आमतौर से एमेरीलिस ऐसे स्थान पर लगाएं, जहां वह दो-तीन वर्ष तक उगता रहे| अगर कंदों की खुदाई करनी हो, उस हालत में यह क्रिया वर्षा ऋतु खत्म होने के बाद नवम्बर से दिसम्बर में कंदों की खुदाई कर लें| इस समय कंद सुषुप्तावस्था में आ जाते हैं|

अगर शीतगृह उपलब्ध न हो, तो इन्हें खोदने के बाद ठंडी जगह में रखें| शीतगृह में रखना हो तो एमेरीलिस के कंदों को 14 से 17 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखें| मैदानी इलाकों में 30 डिग्री सेल्सियस पर भी छाया और ठंडी जगह पर कंदों का संग्रह कर सकते हैं|

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कीट एवं रोग

एमेरीलिस कंदों को नुकसान पहुंचाने वाले मुख्य कीट निम्न प्रकार के हैं जैसे-

माइट- यह कंद को नुकसान पहुंचाता है, जिसकी वजह से पुष्प इंडियां छोटी हो जाती हैं| इसको थायोडान-5 के द्वारा उपचार किया जा सकता है|

रेड स्पाइडर माइट- ये पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं, इसके लिए पेनटाक- 30 ग्राम प्रति प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना लाभदायक होता है| अन्य हानिकारक कीड़ों जैसे- एफिड, मिली बग एवं स्केल कीट आदि का 0.2 प्रतिशत मैलाथियान या रोगोर आदि से छिड़काव करके उपचार किया जा सकता है|

कंदों के हानिकारक रोग-

फ्युजेरियम- यह बीमारी एमेरीलिस की जड़ों को नुकसान पंहुचाती है, इसको सिस्टेमिक कवकनाशी जैसे बाविस्टीन 0.2 प्रतिशत द्वारा उपचार करते हैं|

रेड लीफ स्पोट- यह पत्तियों को नुकसान पहुंचाती है, जिसको 0.2 प्रतिशत बेनलेट का छिड़काव द्वारा उपचारित किया जा सकता है

वाइरस- यह भी पौधों पर प्रकोप करता है, रोग ग्रस्त पौधों को निकालकर जला दें या खेत से दूर जमीन में दबा दें|

यह भी पढ़ें- प्रमुख सब्जियों में कीट नियंत्रण की आधुनिक जानकारी

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