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Home » Blog » गोभी वर्गीय फसलों के रोग और उनका प्रबंधन कैसे करें

गोभी वर्गीय फसलों के रोग और उनका प्रबंधन कैसे करें

November 22, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

गोभी वर्गीय फसलों के रोग और उनका प्रबंधन कैसे करें

गोभी वर्गीय या कोल फसलें यानि की बंदगोभी, फूलगोभी, ब्रोकली, गाँठगोभी तथा ब्रुसेल्स स्प्राउट भारत में सर्दियों की सबसे प्रमुख सब्जियां हैं| गोभी वर्गीय सब्जियों के गुणवत्तापूर्वक उत्पादन में नर्सरी से कटाई उपरांत तक विभिन्न बीमारियों जैसे मृदुरोमिल आसिता, आर्द्र पतन, काले सड़न या ब्लैक रूट, विगलन, स्क्लेरोटिनिया तना सड़न रोग एवं अल्टरनेरिया काला धब्बा रोग जैसी कई बीमारियों का प्रकोप होता है, जिससे कुल उपज में 30 से 40 प्रतिशत से अधिक की हानि होने का खतरा रहता है|

उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण गोभी वर्गीय फसलों में लगने वाली विभिन्न बीमारियों के लक्षण, पहचान और उनके विभिन्न चरणों की जानकारी तथा प्रबंधन के महत्व की चर्चा इस लेख में कर रहे हैं| यदि आप पत्ता या फूलगोभी की खेती की जानकारी चाहते है, तो यहां पढ़ें- पत्ता व फूलगोभी की खेती

यह भी पढ़ें- सब्जियों की नर्सरी (पौधशाला) तैयार कैसे करें

मृदुरोमिल आसिता

मृदुरोमिल आसिता एक कवक रोग है, जो पैरोनोस्पोरा पैरासिटिका की वजह से उत्पन्न होता है| इस रोग के लक्षण पत्तियों की निचली सतह पर बैंगनी ख़भूरे धब्बों का पड़ना है| इन धब्बों पर ऊपरी सतह में भूरे या पीले धब्बे दिखाई देते हैं|

किसान नर्सरी बेड में अंकुरों पर इस रोग की उपस्थिति को देख सकते हैं| यह नर्सरी में विनाशकारी है तथा शायद ही कभी मुख्य क्षेत्र में गंभीर रूप में प्रकट होता है|

प्रबंधन-

1. मृदुरोमिल आसिता बीज जनित रोग है, इसलिए बीज को बोने से पहले एप्रन 35 एसडी 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें|

2. गोभी वर्गीय फसलों में नर्सरी क्षेत्र को खरपतवारों से मुक्त रखें क्योंकि खरपतवार ही कोमल फफूदी को नर्सरी के पौधों में फैलाने में मुख्य सहायक होते हैं|

3. गोभी वर्गीय फसलों में सुबह-सुबह नर्सरी में पानी देने से बचें क्योंकि उस समय ओस पत्तों पर मौजूद रहती है| इससे फफूद के बीजाणु रोग रहित अंकुरों पर फैल जाते है|

4. जब रोग के लक्षण दिखाई देने लगें तब नर्सरी क्षेत्र में मैंकोजेब + मेटालेक्सिल 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी का 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- अगेती खेती के लिए सब्जियों की पौध तैयार कैसे करें

आर्द्र पतन

गोभी वर्गीय फसलों में यह बीमारी राइजोक्टोनिया सोलानी नामक कवक से फैलती है और पौधशाला में अधिक गंभीर रूप से आती है| प्रभावित नए अंकुर जमीनी स्तर के पास तना लाल भूरे रंग का दिखाई देता है| प्रभावित अंकुर अंत में सूख जाता है, जब पौध घनी और अत्यधिक मात्रा में उगती है, तब यह बीमारी अधिक तीव्रता से फैलती है|

प्रबंधन-

1. बीज बोने से पहले कैप्टान 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीज को उपचारित करना चाहिए|

2. गोभी वर्गीय फसलों के बीज को अधिक घना नहीं बोना चाहिए|

काला सड़न या ब्लैक रूट

गोभी वर्गीय फसलों में काला सड़न रोग जैथोमोनास कम्पेस्टिस पी वी कम्पेस्ट्रिस नामक जीवाणु के कारण होता है| यह बंदगोभी तथा फूलगोभी में सबसे विनाशकारी रोग के रूप में व्याप्त है|

इस रोग के कारण गोभी वर्गीय फसलों में रोग ग्रस्त होने पर पत्तियों पर सबसे पहले बाहरी किनारों पर अंग्रेजी के ‘V’ अक्षर के आकार के नमी युक्त नारंगी से पीले रंग के धब्बे बनते हैं, बाद में व्याधित पत्तियों की शिरायें काली हो जाती हैं और रोग की उग्र अवस्था में और रोग की बढवार अधिक हो जाने पर पूरी पत्ती पीली सी होकर मुरझा कर गिर जाती है

गोभी वर्गीय फसलों में यह बीज के द्वारा फैलने वाला रोग है एवं सर्वप्रथम इसे नर्सरी में पौधे पर देखा जा सकता है, किसी भी क्षेत्र में यह रोग फसल के आरम्भ से पकने के समय कभी भी हो सकता है|

प्रबंधन-

1. गोभी वर्गीय फसलों में बंदगोभी की पूसा मुक्ता तथा पूसा कैबेज हाइब्रिड-1 प्रतिरोधी किस्में हैं एवं गंभीर काला सड़न महामारी के क्षेत्रों में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है|

2. नर्सरी समर्थक ट्रे में उगाएं, रोग बीज जनित है इसलिए बीज को बुवाई से पहले उपचारित करें| बीज उपचार के लिए बीज को 52 डिग्री सेंटीग्रेट तक गर्म पानी में 30 मिनट के लिए रखें या स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के 1 ग्राम प्रति 10 लीटर घोल में 30 मिनट के लिए रखें| अनुचित गर्म पानी के उपचार के कारण बीजों का अंकुरण कम हो सकता है|

3. पौधों के अधिक पास-पास होने के कारण बारिश के समय, काले सड़न फैलने का अधिक खतरा रहता है| इसलिए पौधे से पौधे और पंक्ति से पंक्ति में 45 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए| पौधों की अधिक वृद्धि ना हो इसके लिये अतिरिक्त नाइट्रोजन के प्रयोग करने से बचना चाहिये|

4. रस चूसने वाले कीटों के द्वारा बने घावों में काले सड़न के रोगज़नक अति शीघ्रता से फैलते हैं| इसलिए रोपाई के 30 दिनों बाद हर 7 से 10 दिनों के अंतराल से नीम बीज पाउडर का 40 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें| अगर कीटों की संख्या बढ़ जाती है, तो इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल को 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से छिडकाव करें तथा यदि आवश्यक हो तो 10 दिनों के बाद छिड़काव दोहराएं|

5. गोभी वर्गीय फसलों में रोग के नियन्त्रण के लिए शुरुवात में ही स्ट्रेप्टोसाएक्लिन 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्ल्यू पी 3 ग्राम प्रति लीटर पानी का 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- शिमला मिर्च की उन्नत खेती कैसे करें

विगलन

गोभी वर्गीय फसलों में यह एक जीवाणु रोग है, जो अर्विनिया केरोटोवोरा के कारण होता है| बंदगोभी की पत्तियों पर लथपथ घावों में पानी तथा बूंदें, सड़ाध और ऊतकों के गिरने के रूप में रोग आरंभ होता है| पौधे के संक्रमित भाग जो बदबू उत्पन्न करते हैं, रोग के लक्षणों का संकेत देते हैं|
दिसम्बर से जनवरी के महीने में बंद पूर्ण रूप से तैयार होने और परिपक्व बंद की अवस्था में हो और जब अधिक पाला एवं बर्फवारी हो तब किसानों इस रोग के लक्षण देख सकते है|

प्रबंधन-

1. निराई-गुडाई के दौरान तथा कीट के द्वारा हुए नुकसान से गोभी के बंद की चोट नरम सड़ाध को फसल में बढ़ावा देती है| रोपाइ के 20 दिन . बाद दिनों के 10 अंतराल पर स्पाइनोसेड 45 प्रतिशत एस सी को 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से छिड़काव करने से रोग की रोकथाम की जा सकती है|

2. बंद गोभी की बाहरी संक्रमित पत्तियों को हटा दें तथा स्ट्रेप्टोसाएक्लिन 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यू पी 3 ग्राम प्रति लीटर पानी का 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें और जरूरी हो तो दुबारा स्ट्रेप्टोसाएक्लिन 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी का छिड़काव किया जा सकता है|

3. पूरी तरह संक्रमित गोभी के बंदों को गहरी मिट्टी डालकर उसे ब्लाइटोक्स के घोल से गीला कर के मिट्टी में दबा कर नष्ट कर दें| संक्रमित फसल को कभी भी खाद के गड्ढों में न डालें, नहीं तो यह दोबारा खाद के साथ पूरे खेत में फैल जाएगा|

यह भी पढ़ें- टमाटर की उन्नत खेती कैसे करें

स्क्लेरोटिनिया तना सड़न रोग

तना सड़न रोग स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोशिओरम नामक कवक के कारण होता है| रोग पहली बार तने और पत्तों पर घावों, कॉलर क्षेत्र, पुष्पक्रम के डंठल तथा तने के डंठल पर पानी से लथपथ सफेद कपास जो फुई द्वारा कवर किया है, के जैसा प्रकट होता है, बाद में यह प्रभावित भागों को विरंजित एवं कतरित करता है| बीज की तरह काली निष्क्रिय संरचना जिसे स्क्लेरोशिया बुलाया जाता है, जो स्टंप के अंदर या संयंत्र पर उपस्थिति रहता है, इस रोग के सबसे विशिष्ट लक्षण है|

प्रबंधन-

1. डाइथेन एम- 45, 2 2 ग्राम प्रति लीटर पानी और कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी को बारी-बारी से 15 दिनों के अंतराल पर तना एवं पत्तियों के निचले भाग पर छिड़काव करना चाहिए|

2. गोभी वर्गीय फसलों के बीज बोने से पहले कैप्टान 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीज को उपचारित करना चाहिए|

3. स्क्लेरोटिनिया बीमारी का प्रबंधन करने के लिए खेत में डालने से पूर्व गोबर की खाद में 10 किलोग्राम प्रति टन की दर से ट्राइकोडर्मा नामक जैविक खाद मिला लेनी चाहिए|

4. यह बीमारी अधिकतर नजदीक रोपाई तथा फसल के पत्तों के आपस में मिलने के कारण फैलती है, अत: बीमारी को रोकने के लिए फसल को 45 x 45 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपित करें और अधिक मात्रा में नत्रजन का प्रयोग ना करें|

यह भी पढ़ें- आलू की उन्नत खेती कैसे करें

अल्टरनेरिया काला धब्बा रोग

यह रोग अल्टरनेरिया बैंसिक तथा अल्टरनेरिया ब्रेसीकोला नामक कवक से फैलता है| छल्लेदार गोल-गोल धब्बे इस रोग की पहचान है| गहरे रंग के धब्बे पत्तों पर बनते हैं, जो आपस में मिलकर पत्तों को रोगग्रस्त कर देते हैं| जिससे पत्ते मर जाते हैं एवं अधपके ही गिर जाते हैं|
कृषकों को बंद के गठन और फूल आने के समय काला धब्बा रोग के लक्षणों को पुरानी पत्तियों पर देखना चाहिए|

प्रबंधन-

1. गोभी वर्गीय फसलों में सुबह-सुबह संक्रमित पुरानी पत्तियों को तोड़कर जला देना चाहिए|

2. गोभी वर्गीय फसलों में जब इस बीमारी के लक्षण दिखाई दें, तब क्लोरोथलोनिल या डाइथेन एम- 45, 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए|

सभी छिड़काव में सैंडोविट या इंडट्रोन एई (स्टीकर या गीला एजेंट) को 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से पहले से तैयार स्प्रे में मिलाकर पत्तियों की सतह पर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- भिन्डी की खेती- किस्में, रोकथाम व पैदावार

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