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Home » Blog » सरसों की जैविक खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल और उत्पादन

सरसों की जैविक खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल और उत्पादन

November 6, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

सरसों की जैविक खेती

सरसों की जैविक खेती, देश क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से सरसों का तिलहनी फसलों में प्रमुख स्थान है| सरसों रबी की एक प्रमुख तिलहनी फसल है, जिसका भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विशेष स्थान है| इसकी खेती मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ और अन्य राज्यों में की जाती है| इस लेख में आप सरसों की जैविक खेती कैसे करें, उसके लिए उपयुक्त जलवायु, भूमि, खादों का प्रयोग, सिंचाई और अन्य प्रक्रियाओं के बारें में विस्तार से जानेगे|

यह भी पढ़ें- गेहूं की जैविक खेती कैसे करें

सरसों की जैविक खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

सरसों की जैविक खेती रबी मौसम की फसल है, जिसे ठन्डे शुष्क मौसम एवं चटक धुप वाले दिन कि आवश्यकता होती है| अधिक वर्षा वाले स्थान इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है, अधिक तेल उत्पादन के लिए तोरिया या सरसों को ठंडा तापक्रम साफ खुला मौसम और पर्याप्त मृदा नमी की आवश्यकता पड़ती है|

फूल आने और बीज पड़ने के समय बादल और कोहरे भरे मौसम से सरसों की फसल पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है| इस मौसम में कीटों एवं बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है, तोरिया की फसल पाले के प्रति अधिक संवेदी होती है, अतः इसे जल्दी बोया जाता है और पाला आने के संभावित समय से पहले काट लिया जाता है|

सरसों की जैविक खेती के लिए भूमि का चयन

तोरिया और सरसों की जैविक खेती के लिए मध्यम उपजाऊ उदासीन या हलकी क्षारीय भूमि उपयुक्त होती है| हलकी दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम रहती है| फसल की अच्छी वृद्धि और विकास के लिए उदासीन पी. एच. वाली मृदा अच्छी होती है|

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सरसों की जैविक खेती के लिए किस्मों का चयन

प्रमुख रूप से सरसों की निम्न किस्मों को समस्त भारत के लिए अनुमोदित किया गया है, जैसे- अगेती, सामान्य समय और देर से बुआई वाले सिंचित, बरानी और लवणीय एवं क्षारीय क्षेत्रों में उपयुक्त पाया गया हैं|

समय पर बुआई- बरानी क्षेत्र के लिए- अरावली, आर एच 819, गीता, आर वी 50

समय पर बुआई- सिंचित क्षेत्र के लिए- पूसा (जय किसान), रोहिणी, आर एच 30, बसंती, पूसा बोल्ड

अगेती बुआई वाली- पूसा अग्रणी, क्रान्ति, पूसा महक, नरेन्द्र अगेती राई- 4

देर से बुआई वाली- नव गोल्ड, शताब्दी, स्वर्ण जयंती

लवणीय मृदा की किस्में- सी.ए. 54, सी ए 52. नरेन्द्र राई 1 आदि किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सरसों की उन्नत किस्में

सरसों की जैविक खेती के लिए भूमि की तैयारी

असिंचित क्षेत्रों में जहाँ सरसों की जैविक खेती खरीफ के खाली खेतों में की जाती है| वहां प्रत्येक अच्छी वर्षा के बाद डिस्क हेरोइंग किया जाता है, ताकि नमी एकत्रित की जा सके| जब वर्षा समाप्ति की ओर हो तब प्रत्येक हैरोइंग के बाद पाटा लगाया जाये जिससे खेत भुरभुरा और महीन तैयार हो|

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सरसों की जैविक खेती के लिए बीज और बुवाई

किसी भी फसल में अगर समय से बुवाई कर दी जाये तो समझना चाहिए कि 50 प्रतिशत सफलता मिल गयी| सरसों की जैविक खेती हेतु अच्छी उपज लेने के लिए साफ एवं प्रमाणित बीज होना अनिवार्य है, देर से बोई गई फसल की उपज कम मिलती है| लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए बुवाई के समय तापक्रम 26 से 30 डिग्री सेल्सियस हो| यदि बुवाई के समय तापक्रम अधिक है, तो बुवाई में देरी कर देनी चाहिए|

सरसों की जैविक खेती हेतु बोने का अनुकुल समय सितम्बर के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक हैं| बीज की मात्रा 4 से 5 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होती है|

सरसों की जैविक खेती के लिए बीज उपचार

सरसों की जैविक खेती हेतु बीज जनित रोग तथा भूमि जनित रोग से बीज उपचारित करने से छुटकारा मिलता है और पैदवार अच्छी मिलती है| वातावरण व नाइट्रोजन के प्रभावशाली स्थिरीकरण के लिए सरसों के बीजों को एजोस्पाइरिलम कल्चर से तथा फास्फोरस विलयकारी जीवाणु कल्चर से बीज को 5-5 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करना चाहिए| बीजों की बुआई से पहले गुड़ के घोल से नम करके जीवाणु कल्चरों के साथ अच्छी तरह मिलाकर छाया में सुखा लेना चाहिए|

फसल को स्क्लेरोशिया गलन रोग के प्रकोप से बचाने के लिए लहसुन का 2 प्रतिशत सत बीजोपचार के लिए उपयुक्त पाया गया है| लहसुन का प्रतिशत सत तैयार करने के लिए 20 ग्राम लहसुन को बारीक पीसकर कपड़े से छाने एवं एक लीटर पानी में मिलाकर घोल तैयार करें| एक लीटर लहसुन और 2 प्रतिशत सत 5 से 7 किलोग्राम बीजों के लिए पर्याप्त है| इसके लिए बीज को में 10 से 15 मिनट तक भिगोया जाता है|

इसके उपरान्त उपचारित बीज को छायादार जगह पर सुखाया जाता है| इसके बाद बुआई की जाती है| साथ ही 50 दिन पर जब 35 से 40 प्रतिशत फूल आ जाए, उस समय एक छिड़काव इसी मात्रा का कर दें| (एक लीटर लहसुन का 2 प्रतिशत सत प्रति हेक्टेयर आवश्यकतानुसार दूसराछिडकाव 70 दिन की फसल पर करें) ध्यान रखें- छिड़काव रोग पनपने से पहले ही किया जाए और पौधों के सभी भागों को तर करें| अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें- बीज उपचार क्या है, जानिए उपचार की आधुनिक विधियाँ

यह भी पढ़ें- चने की जैविक खेती कैसे करें

सरसों की जैविक खेती के लिए बुआई की विधि

शुष्क दशाओं में अच्छी खेती लेने के लिए पौधों की उचित और वांछित पौध संख्या बनाये रखना वास्तव में बाधा है| इस समस्या के निवारण के लिए जहाँ तक संभव हो बीज को रिजर सीडर द्वारा पंक्तियों में बोया जाये| बुवाई के समय यह ध्यान रखना चाहिए कि बीज उर्वरक के संपर्क में न आये नही तो अंकुरण प्रभावित होगा| इसके लिए बीज को 4 से 5 सेंटीमीटर गहरा और उर्वरक को 7 से 10 सेंटीमीटर गहरा डाला जाय|

अच्छे अंकुरण और उचित पौध संख्या को सुनिश्चित करने के लिए बुवाई से पूर्व बीजों को पानी में भिगोकर बोया जाये| इसके लिए सही तरीका यह होगा कि भीगे बोरे में बीजों को रखकर रात भर ढक दिया जाय या गीली मिटटी में रख सकते हैं| बुवाई के तुरंत बाद यदि वर्षा हो जाये तो ऐसी स्थिति में पुनः बुवाई कर देनी चाहिए| अच्छे अंकुरण के लिए भूमि में 10 से 12 प्रतिशत नमी होनी चाहिए|

सरसों की जैविक फसल में सिंचाई प्रबंधन

सरसों वर्ग की फसलों के लिए पानी की आवश्यकता पड़ती है| तोरिया, पीली सरसों, सरसों लाहा में दो सिंचाई लाभदायक होती है, जिन्हें बुवाई के बाद 15, 35, 50, 65 और 80 दिनों पर दिया जाए, इसकी जल मांग 40 सेंटीमीटर है पहली दो सिंचाई हल्की होनी चाहिए और बाद की सिंचाई में 75 मिलीमीटर पानी प्रत्येक सिंचाई में हो यह प्रयोग द्वारा देखा गया है, कि पहली सिंचाई देर से कि जाये|

जिससे शाखाएं फूल एवं फलियाँ अधिक बनती है| पहली सिंचाई का सबसे अच्छा समय फूल लगने पर बुवाई के 25 से 30 दिन बाद होता है एवं दूसरी सिंचाई फली कि अवस्था में की जाये, प्रयोगों से स्पष्ट हुआ है कि सरसों में 2 सिंचाई पर्याप्त रहती है, यदि सर्दी में एक वर्षा हो जाय तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है|

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सरसों की जैविक फसल में खरपतवार नियंत्रण

सरसों की जैविक खेती हेतु जब फसल 20 से 25 दिन की हो जाय तब एक निराई गुड़ाई खुरपी द्वारा कि जाये, जरुरत पड़ने पर खरपतवार निकालते रहना चाहिए, जिससे फसल अच्छी और तंदुरुस्त होगी|

सरसों की जैविक फसल में कीट नियंत्रण 

आरा मक्खी- इसकी गिडारे सरसों कुल की सभी फसलों को हानि पहुंचाती है| गिडारें काले रंग की होती है, जो पत्तियों को बहुत तेजी से किनारों से यानि विभिन्न आकार के छेद बनाती हुई खाती है| जिससे पत्तियां बिलकुल छलनी हो जाती है|

बालदार गिडार- इस गिडार के शरीर का रंग पीला या नारंगी होता है| परन्तु सर और पीछे का भाग काला होता है और शरीर पर घने काले बाल होते हैं|

माहू- यह छोटा कोमल शरीर वाला, हरे मटमैले भूरे रंग का कीट है, जिसके झुण्ड पत्तियों फूलों डंठलों फलियों इत्यादि पर चिपके रहते है और रस चूस कर पौधों को कमजोर कर देते हैं|

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सरसों की जैविक फसल में रोग नियंत्रण

मोजेक- यह रोग वायरस द्वारा लगता है, यह बहुत ही हानिकारक रोग है| इसके कारण फसल की पैदावार में बहुत ज्यादा कमी आ जाती है| रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए, इसके अलावा सरसों की फसल पर कई अन्य रोग भी अपना प्रकोप दिखाते हैं जैसे – सफेद गेरुई, चूर्णी फफूद एन्थ्रो कनोज आदि|

अंगमारी या झुलसा- यह फफूद से लगता है| इसके कारण पौधे पीले पड़ जाते है एवं तेल की मात्रा घट जाती है| इसकी कोई व्यवहारिक रोकथाम नहीं है, फसल समय पर बोये और प्रमाणित बीज का प्रयोग करे|

मृदु रोमिल फंफूद- यह रोग भी फंफूद द्वारा ही लगता है, सरसों की पत्तियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है| इससे फसल में तेल की मात्रा घट जाती है इस रोग से ग्रसित पौधों को नष्ट करें तथा प्रमाणित बीज बोये|

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सरसों की जैविक फसल की देखभाल 

उपचार 25 ग्राम नीम की हरी ताजा पत्ती तोड़ कर अच्छी तरह से कुचल कर 50 लीटर पानी में पकाना चाहिए| जब पानी 20 से 25 लीटर रह जाये तो उतार कर ठंडा कर लेना चाहिए एवं किसी सुरक्षित बर्तन में रख लेना चाहिए| जब किसी भी तरह का रोग या किसी भी तरह के कीट का आक्रमण हो तो 200 लीटर पानी में 5 लीटर नीम का पानी मिलाकर पम्प से अच्छी तरह से तर बतर कर छिड़काव करना चाहिए| इस तरह से रोग मुक्त एवं कीट मुक्त फसल तैयार करना चाहिए|

इल्ली व रसचुसक- इन कीड़ों को नियंत्रित करने के लिए आर्गनिक दवा बनाने और प्रयोग करने का तरीका देसी गाय का 5 लीटर मूत्र, उसमे 5 किलोग्राम नीम कि पत्ती या मट्ठा 2 किलोग्राम नीम की खली या 2 किलोग्राम नीम आर्गनिक खाद एक बड़े मटके में भरकर 45 से 50 दिन तक सडायें|

सड़ने के बाद उस मिश्रण में से 5 लीटर मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ प्रत्येक सप्ताह तर बतर कर छिड़काव करते रहे| जब तक इल्ली, मच्छर, कीट पतंगे नष्ट न हो जाये, 500 ग्राम लहसुन और 500 ग्राम तीखी चटपटी हरी मिर्च लेकर बारीक पीसकर 200 लीटर पानी में घोलकर पम्प से अच्छी तरह से तर बतर कर हर सप्ताह छिड़काव करें, जब तक कीट पतंगे इल्ली चूसक कीड़े नष्ट न हो जाये|

10 लीटर देसी गौ-मूत्र में 2 किलोग्राम अकऊआ के पत्ते डालकर 10 से 15 दिन सड़ाकर इस मूत्र को आधा शेष बचने तक उबालें| फिर इसके एक लीटर मिश्रण को 200 लीटर पानी में अच्छी तरह मिलाकर पम्प द्वारा अच्छी तरह से तर बतर कर हर सप्ताह छिड़काव करें, जब तक कीट पतंगे, इल्ली, मच्छर नष्ट न हो जाये|

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