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Home » Blog » सरसों की खेती में कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें: बचाव के उपाय

सरसों की खेती में कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें: बचाव के उपाय

November 2, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

सरसों की खेती में कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें

सरसों की खेती और तोरिया कुल की फसलें अपनी विभिन्न पौध अवस्थाओं में अनेक कीटों के प्रभाव में आती है, कुल मिलाकर करीब करीब 35 से 40 प्रकार के कीट सरसों की खेती के दुश्मन होते है एवं 10 से 90 प्रतिशत तक पैदावार पर असर डालते है| सरसों की खेती के कुछ कीटों का वर्णन और रोकथाम इस प्रकार है, जैसे-

सरसों की फसल में कीट नियंत्रण 

लाल बालों वाली सूण्डियां

लक्षण- सरसों की खेती में इन सुण्डियों का आक्रमण अक्तूबर से नवम्बर में अधिक होता है, ये बहुभक्षी कीट है| यह सूण्डियां पत्तों को खा जाती हैं| आरम्भ में ये बालों वाली सूण्डियां सामूहिक रूप में रहकर सरसों की खेती को हानि पहुँचाती हैं एवं बड़े होने पर अलग-अलग होकर सारे खेत में फैल जाती हैं| |

रोकथाम- पत्तियां जिन पर सूण्डियां समूह में हों, तोड़ कर नष्ट कर दें, बड़ी सूण्डियों की रोकथाम के लिए 500 मिलीलीटर क्यूनालफास 25 ई सी 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें, 250 मिलीलीटर मोनोक्रोटोफेस 36 एस एल या 200 मिलीलीटर डाईक्लोरवास 76 एस एल 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- सरसों की खेती कैसे करें

चितकबरा कीड़ा

लक्षण- इस कीट के शिशु और प्रौढ़ पौधों के विभिन्न भागों से रस चूसकर नुकसान पहुंचाते हैं| अधिक आक्रमण की स्थिति में पूरा पौधा सूख जाता है| इसका प्रकोप, सरसों की खेती की उगती हुई अवस्था और कटाई के समय होता है|

रोकथाम- 200 मिलीलीटर, मैलाथियान 50 ई सी को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें| यदि आवश्यकता हो तो 400 मिलीलीटर, मैलाथियान 50 ई सी को 400 लीटर पानी में मिलाकर मार्च में भी छिड़काव करें|

आरा मक्खी

लक्षण- इस कीट की काले रंग की सुण्डियां पत्तियों को काटकर खा जाती हैं, इसका आक्रमण अक्तूबर से नवम्बर में होता है|

रोकथाम- 250 मिलीलीटर मोनोक्रोटोफेस 36 एस एल या 200 मि ली डाईक्लोरवास 76 एस एल 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- फसलों का फफूंदनाशक, कीटनाशक, जैव रसायन एवं जीवाणु कल्चर से बीज उपचार

चेपा

लक्षण- हल्के पीले-हरे रंग का यह कीट छोटे-छोटे समूहों में रहकर पौधे के विभिन्न भागों पर रहकर रस चूसता है| इसका अधिक आक्रमण दिसम्बर के अन्तिम और जनवरी के प्रथम पखवाड़े में होता है| रस चूसे जाने से पौधे की बढ़वार रुक जाती है, फलियाँ कम लगती हैं तथा उनमें दाने की संख्या कम होती है|

रोकथाम- आक्रमण शुरू होने पर कीटग्रस्त टहनियों को तोड़कर नष्ट कर दें, 250 से 400 मिलीलीटर मिथाईल डेमेटान 25 ई सी या ईमेथोएट (रोगोर) 30 ई सी को 250 से 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें, यदि आवश्यकता हो तो दुसरा छिड़काव 15 दिन बाद करें| साग के लिए उगाई गई फसल पर 250 से 400 मिलीलीटर मैलाथियान 50 ई सी को 250 से 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें, यदि आवश्यकता हो तो दूसरा छिड़काव 7 से 10 दिन बाद करें|

सुरंग बनाने वाली सुण्डी

लक्षण- सरसों की खेती में सूण्डियां पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे पदार्थ को खाती हैं| अधिक आक्रमण फरवरी मास में नीचे वाली पत्तियों पर होता है|

रोकथाम- 250 से 400 मिलीलीटर मिथाईल डेमेटान (मैटासिस्टोक्स) 25 ई सी या डाईमेथोएट (रोगोर) 30 ई सी को 250 से 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें| यदि आवश्यकता हो तो दुसरा छिड़काव 15 दिन बाद करें| साग के लिए उगाई गई फसल पर 250 से 400 मिलीलीटर मैलाथियान 50 ई सी को 250 से 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें| यदि आवश्यकता हो तो दूसरा छिड़काव 7 से 10 दिन बाद करें|

यह भी पढ़ें- बीज उपचार क्या है, जानिए उपचार की आधुनिक विधियाँ

मोयला

लक्षण- इस कीट का प्रकोप सरसों की खेती में अधिकतर फूल आने के पश्चात मौसम में नमी तथा बादल होने पर होता है| यह कीट हरे, काले और पीले रंग का होता है एवं पौधे के विभिन्न भागों पत्तियों, शाखाओं, फूलों और फलियों का रस चूसकर नुकसान पहुँचाता है|

रोकथाम- इस कीट को नियंत्रित करने के लिए फास्फोमीडोन 85 डब्लू सी की 250 मिलीलीटर या इपीडाक्लोराप्रिड की 500 मिलीलीटर या मैलाथियोन 50 ई सी की 1.25 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर एक सप्ताह के अतंराल पर दो छिड़काव करने चाहिए|

दीमक

सरसों की खेती में दीमक की रोकथाम के लिए अंतिम जुताई के समय क्लोरोपाइरीफोस 4 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण की 25 किलोग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिला देनी चाहिये| इसके पश्चात खेत में खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप हो तो क्लोरोपाइरीफोस की एक लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से सिचांई के पानी के साथ देनी चाहिये|

यह भी पढ़े- गेहूं की खेती: किस्में, बुवाई, देखभाल और पैदावार

सरसों की फसल में रोग नियंत्रण 

मृदुरोमिल आसिता

लक्षण- जब सरसों के पौधे 15 से 20 दिन के होते हैं तब पत्तों की निचली सतह पर हल्के बैंगनी से भूरे रंग के धब्बे नजर आते हैं बहुत अधिक नमी में इस रोग का कवक तने तथा स्टेग हैड’ पर भी दिखाई देता है| यह रोग फूलों वाली शाखाओं पर अधिकतर सफेद रतुआ के साथ ही आता हैं|

सफेद रतुआ

लक्षण- सरसों की पत्तियों के निचली सतह पर चमकीले सफेद उभरे हुए धब्बे बनते हैं, पत्तियों को ऊपरी सतह पीली पड़ जाती हैं, जिससे पत्तियों झुलसकर गिर जाती हैं एवं पौधे कमजोर हो जाते हैं| रोग की अधिकता में ये सफेद धब्वे तने और कलियों पर भी दिखाई देते नमी रहने पर रतुआ एवं रोमिल रोगो के मिले जुले धन्ये ‘स्टेग हैड” (विकृत फ्लों) पर साफ दिखाई देते हैं|

यह भी पढ़ें- चने की खेती: किस्में, बुवाई, देखभाल और पैदावार

काले धब्बों का रोग

लक्षण- सरसों की पत्तियों पर छोटे-छोटे गहरे भूरे गोल धब्बे बनते हैं, जो बाद में तेजी से बढ़ कर काले और बड़े आकार के हो जाते हैं, एवं इन धब्बों में गोल छल्ले साफ नजर आते हैं| रोग की अधिकता में बहुत से धवे आपस में मिलकर बड़ा रूप ले लेते हैं तथा फलस्वरूप पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं, तने और फलों पर भी गोल गहरे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं|

तना गलन

लक्षण- सरसों के तनों पर लम्बे व भूरे जलसिक्त धब्बे बनते हैं, जिन पर बाद में सफेद फफूंद की तह बन जाती है, यह सफेद फंफूद पत्तियों, टहनियों और फलियों पर भी नजर आ सकते हैं| उग्र आक्रमण यदि फुल निकलने या फलियाँ बनने के समय पर हो तो तने टूट जाते हैं एवं पौधे मुरझा कर सूख जाते हैं| फसल की कटाई के उपरान्त ये फफूंद के पिण्ड भूमि में गिर जाते हैं या बचे हुए दूठों (अवशेषों) में प्रर्याप्त मात्रा में रहते हैं, जो खेत की तैयारी के समय भूमि में मिल जाते हैं|

उपरोक्त रोगों का सामूहिक उपचार- सरसों की खेती को तना गलन रोग से बचाने के लिये 2 ग्राम बाविस्टिन प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें|

छिड़काव कार्यक्रम- सरसों की खेती में आल्टनेरिया ब्लाईट, सफेद रतुआ या ऊनी मिल्ड्यू के लक्षण दिखते ही डाइथेन एम- 45 का 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव सरसों की खेती पर दो बार 15 दिन के अन्तर पर करें| जिन क्षेत्रों में तना गलन रोग का प्रकोप हर वर्ष अधिक होता है, वहां बाविस्टिन से 2 ग्राम प्रति किलो को दर से बीज का उपचार करे और इसी दवा का बिजाई के 45 से 50 और 65 से 70 दिन बाद 0.1 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली क्या है, जानिए लाभ, देखभाल, प्रबंधन

अन्य उपाय

1. फसल कटने के उपरान्त गर्मी के मौसम में गहरी जुताई करें, ताकि जमीन में जो फफूंद हैं नष्ट हो जाए|

2. स्वस्थ, साफ और प्रमाणित बीज ही बोएं|

3. तना गलन रोगग्रस्त खेतों में गेहूं या जौं का फसल चक्र अपनाएं|

4. राया की बिजाई समय पर 10 से 25 अक्तूबर तक करने से आल्टनेरिया लाईट, रतुआ एवं डाऊनी मिल्ड्रयु रोगों का प्रकोप कम हो जाता है|

5. खेत में पानी खड़ा न रहने दें, अन्यथा नमी रहने से विशेषकर तना गलन रोग का प्रकोप अधिक हो जाता है|

6. फसल में खरपतवार न होने दें|

यह भी पढ़ें- मधुमक्खियों के दुश्मन कीट एवं रोग और रोकथाम

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