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Home » Blog » मधुमक्खियों के दुश्मन कीट और रोगों की रोकथाम

मधुमक्खियों के दुश्मन कीट और रोगों की रोकथाम

October 31, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

मधुमक्खियों के दुश्मन कीट एवं रोग और इनकी रोकथाम

मधुमक्खियों का मानव जाति से घनिष्ठ सम्बन्ध है| यह कीट मानव जाति के कल्याण में हमेशा तत्पर रहता है| यह कीट किसानों का सच्चा मित्र है, अन्य जीवों की तरह मधुमक्खियों को भी दुश्मनों से जुझना पड़ता है| इन दुश्मनों के बारे में जानकारी हासिल करना आवश्यक है|

ताकि हम अपने मित्र कीट को संकट से बचाने का प्रयास कर सके| तो आइए जाने, मधुमक्खी पालन के प्रमुख समस्याएँ और समाधान दुश्मन कीट, बीमारियाँ तथा विषैली दवाओं से बचाव| यदि आप मधुमक्खी पालन की अधिक जानकारी चाहते है, तो यहां पढ़ें- मधुमक्खी पालन, जानिए लाभ, प्रजातियां, जीवन चक्र एवं अन्य प्रबंधन

कीट और रोकथाम 

मधुमक्खियों के प्रमुख दुश्मन- मोम पतंगा (बैक्समोथ), बरें (वास्य), पंक्षी, जानवर, चूहा, चींटी, मकड़ा, सूडोस्कोर्पियन आदि मधुमक्खियों के दुश्मन होते हैं|

दुश्मनों से मधुमक्खियों को नुकसान- मोम पतंगा अवसर पाते ही बक्सा के अन्दर घुस जाता है एवं छत्ते में या मौन गृह की दीवारों और छत व आधार भाग पर अण्डे देती है| मोम पतंगे के शिशु प्रारम्भ में मधुमक्खी गृह के अन्दर शहद, पुष्परस और संचित पराग को खाकर क्षति पहुँचाते हैं| इसके बाद शिशु छत्तों में छिद्र करके मोम को खाते हुए सुरंग बनाते है एवं मधुमक्खियों के शिशुओं को भी खा जाते हैं|

पन्द्रह दिनों में इस शत्रुओं की संख्या बहुत अधिक हो जाती है| परिणाम स्वरूप सम्पूर्ण छत्ता शत्रु कीट के शिशुओं और मल पदार्थों से भर जाता है तथा मधुमक्खियों को बाध्य होकर अपना घर छोड़ना पड़ता है| इस शत्रु कीट का आक्रमण सालों भर होता है, किन्तु बरसात के मौसम में सबसे अधिक होता है|

रोकथाम के उपाय-

1. बक्सा की दीवारों में सभी अनावश्यक छिद्र और दरारों को बन्द कर देना चाहिए|

2. बक्सा में कभी भी खाली पुराना छत्ता नहीं छोड़ना चाहिए|

3. छत्ते के टुकड़े या बुरादा को आधार भाग पर जमा नहीं होने देना चाहिए, बक्सा के निचे के भाग को को समय-समय पर धूप में सुखाना चाहिए|

4. मोम पतंगा से बचाव के लिए गंधक के धूएँ से मधुपेटी को धूमित करना चाहिए और समय-समय पर भुरकाव भी करना चाहिए|

5. प्रभावित छत्तों से मोम पतंगों के शिशुओं को समय-समय पर धूप दिखाकर नष्ट कर देना चाहिए| 6. अतिरिक्त छत्तों और मोम पदार्थों को हमेशा बन्द करके रखना चाहिए नही तो मोमी पतंगा के आक्रमण की सम्भावना बनी रहती है, इन छत्तों को 10 से 15 दिनों के अन्तर पर गंधक के धुएँ से धुमित करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- चूहों से खेती को कैसे बचाएं

7. मौन गृहों का बराबर निरीक्षण करना चाहिए, यदि मोमी पतंगा का अण्डा दिखलायी पड़े तो उसे नष्ट कर देना चाहिए, यदि मोमी पतंगा का शिशु दिखलायी पड़े तो छत्तों को सूर्य की गर्मी में रखें ताकि पिल्लू नष्ट हो जाये|

8. मधुमक्खी परिवार को हमेशा शक्तिशाली बनाकर रखना चाहिए, शक्तिशाली परिवार मोम पतंगा या कीटों को मारने में सक्षम होते हैं|

9. इसके अलावा इथलिन डाइब्रोमाइड कीटनाशी दवा का एक चम्मच मोम पतंगों के शिशुओं के नियंत्रण के लिए सक्षम होता है, पैराडाईक्लोरोबोन्जन का 5 ग्राम एक छोटी शीशी में रखकर उसके मुंह पर रूई डालकर बक्से के अन्दर आधार भाग पर रख देते है| जिसकी गंध से या तो वे मर जाते हैं, या भाग जाते हैं| इसकी जगह पर फिनाइल की एक गोली को चूर्ण बनाकर पतले कपड़े में बांधकर बक्से के अन्दर रखा जा सकता है|

बिढ़ना या बरें- यह मधुमक्खियों का अत्याधिक हानिकारक शत्रु है| इसकी अनेक प्रजातियां पायी जाती है| पीले रंग का बरें अधिक क्षति पहुँचाती है, यह मधुमक्खियों को पकड़कर खा जाती है| इसका अधिक प्रक्रोप होने पर मधुमक्खियाँ बक्सा छोड़कर भाग जाती है|

रोकथाम- आस-पास में बने बरें की छत्तों को समूल नष्ट कर देना चाहिए, मौन गृहों के प्रवेश द्वार छोटा रखना चाहिए ताकि बरे अन्दर प्रवेश नहीं कर सकें|

मकड़ी माइट- मधुमक्खियों में माइट के आक्रमण का भय बराबर बना रहता है एवं वह भय आमतौर पर बरसात के महीनों में सबसे अधिक होता है, माईट से प्रभावित मधुमक्खियों के बच्चों के पंख नहीं होते और वे ठीक प्रकार से काम नहीं कर पाते हैं|

रोकथाम- इससे बचाव के लिए गंधक धूल 200 मिलीग्राम प्रति फ्रेम का भूरकाव करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- सब्जियों की नर्सरी (पौधशाला) तैयार कैसे करें

पंक्षी या चिड़ियाँ- भक्षी चिड़ियाँ (काला कौवा, कोबा, कांबा, कठफोडवा) मौनगृहों के आसपास रहकर मधुमक्खियों को पकड़कर खा जाते है| जब आकाश में बादल छाये हुए रहते है, उस समय भक्षी चिड़ियों का प्रकोप अधिक हो जाता है|

रोकथाम- तेज आवाज पैदा करके या पत्थर मार कर चिड़ियों को भगाया जा सकता है, इसके लिए मौन के देखभाल बराबर करते रहना चाहिए|

चिटियाँ और दीमक- आधार स्तम्भ के सहारे चीटियाँ (लाल और काली चीटियाँ) बक्सा की दरारें और अन्य छिद्रों के द्वारा प्रवेश कर मधु को खाती हैं, वह शिशुओं को भी क्षति करती है| दीमक मधुमक्खी गृहों, लकड़ी के स्तम्भों, मिट्टी के घर आदि को नुकसान करता है| कभी-कभी ये दीमक मौनगृह के अन्दर प्रवेश कर शिशुओं और वयस्कों को हानि पहुँचाते हैं, जिसके कारण मधुमक्खियों को घर छोड़ना पड़ता है|

रोकथाम- मौन गृहों का देखभाल बराबर करनी चाहिए, मधुमक्खी के बक्सों को लोहे के स्टैंड पर रखकर पैरों के नीचे चींटी निरोधक प्यालियों में पानी भरकर रखना चाहिए, रात के समय चींटी और दीमक के प्रवेश द्वार को कीटनाशी (क्लोरपारीफास तरल) से उपचारित करना चाहिए

जानवर- मौनगृहों की जानवरों से भी रक्षा करना आवश्यक है, जैसे- भालू, बन्दर, लोमड़ी और चूहा आदि|

उपाय- मधुमक्खी पालन गृह में चौकीदार का प्रबन्ध होना चाहिए, पालनगृह के चारों ओर घेरा लगाना चाहिए|

यह भी पढ़ें- मशरूम की खेती क्या है, जानिए विभिन्न प्रजातियों के उत्पादन की तकनीकी

प्रमुख रोग और समाधान

पेचिस- मधुमक्खियों में प्रौढ़ावस्था की बीमारियों में लकवा और पेचिस की बीमारी प्रमुख है, पेचिस की बीमारी में मधुमक्खियाँ पीले या भूरे रंग का मल बक्सा के बाहर या भीतर या जहाँ-तहाँ कर देती है| यह अशुद्ध भोजन खाने के कारण होती है|

रोकथाम- टेट्रासायक्लीन का एक कैप्सुल एक लीटर चीनी की चासनी में मिलाकर भोजन के रूप में देना चाहिए|

सैक ब्रुड- यह रोग एक विषाणु के कारण होता है, जिसका प्रकोप शिशु के चतुर्थ अवस्था और प्यूपा के प्रथम अवस्था में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है| इस रोग का संक्रमण शिशु को प्रारम्भिक अवस्था में होता है, सेवक मौनों के द्वारा शिशु को भोजन खिलाने की प्रक्रिया में इसका संक्रमण होता है, जिसके कारण शिशु की मृत्यु हो जाती है| रोग ग्रसित शिशु का सिर पहले भूरा और बाद में हल्का काला होता है| मृत शिशु कोष्ठों में पीठ के बल लम्बाई में चिपक जाते हैं|

रोकथाम के उपाय-

1. चूँकि यह एक बिषाणु रोग है, इसलिए इस रोग के प्रसार को रोकना ही रोकथाम का सरल उपाय है|

2. बीमार मौन वंश का निरीक्षण करना आवश्यक हो तो हाथों और उपकरणों को पोटाशियम परमैगनेट के घोल में धो लेना चाहिए या उपकरणों को उबलते हुए पानी में धो लेना चाहिए|

3. बीमारी से समाप्त मौन वंश के मौन गृह और दूषित एवं अन्य उपकरणों मे डुबोकर पुनः पोटाशियम परमैगनेट के घोल में डुबोकर साफ कर लेना चाहिए|

4. फार्मलीन 150 मिलीलीटर प्रति 25 घन सेंटीमीटर का धुआँ बक्से के अन्दर करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- बाजरे की खेती: जलवायु, किस्में, देखभाल और पैदावार

कीटनाशी दवाओं का मधुमक्खियों पर प्रभाव- कीटनाशक दवाओं का प्रभाव मधुमक्खियों पर तब होता है, जब वे फूलों पर बैठकर पराग या पुष्परस इकट्ठा करते हैं| जब मधुमक्खियाँ कीटनाशक दवा का प्रयोग की हुई फसलों के फूलों से पराग या पुष्परस इकट्ठा करके अपने छत्ते में वापस जाती है, तो ये मर जाती है|

कुछ मधुमक्खियाँ पराग इकट्ठा करते समय भी मर जाती है| इसके अलावे प्रदूषित पानी पीने से भी कुछ मधुमक्खियाँ मर जाती है| कीटनाशक दवाएँ परागणों के साथ ही मधुमक्खियों के द्वारा छत्ते में लायी जाती है, जिससे छत्ते में रहने वाली प्रौढ़ और शिशु मधुमक्खियाँ विष के प्रभाव से मर जाती हैं|

रोकथाम के उपाय-

1. कुछ कीटनाशक खतरनाक होते हैं, इनका प्रयोग फसलों में फूल आने पर नहीं करना चाहिए, जैसे- कारबारिल, लिण्डेन, मालाथियोन, डायमैथएट, फासफामिडोन (बैनेड), मोनोक्रोटोफास, फेनीट्रोथियोन, डायजिनोन आदि|

2. कुछ कीटनाशक वैसे होते है, जिनका प्रयोग फूल आने के बाद भी किया जा सकता है, जैसे- मिथाइल डिमेटोन, एण्जोसल्फान, निकोटिन सल्फेट आदि|

3. वानस्पतिक कीटनाशक जैसे – नीम बीज, हरा मिर्च और गोमूत्र, ऐसे कीटनाशी का फसलों में प्रयोग किया जा सकता है|

4. दवा का प्रयोग आमतौर पर दोपहर के बाद और शाम में करना चाहिए|

5. कीटनाशक के छिड़काव करने के बजाय दानेदार दवा का प्रयोग लाभदायक होता है|

6. धूल का भूरकाव छिड़काव की अपेक्षा अधिक हानिकारक होता है|

मधुमक्खियों का दुश्मनों से बचाव- दुश्मनों से बचाव के लिए प्रतिदिन मौन गृहों की देखभाल करते रहना चाहिए, मधुमक्खियों को बिषैली दवाओं से बचाव के लिए दवाओं के छिड़काव के पहले मधुपेटियों के द्वार को बन्द कर देना चाहिए और दवाओं का छिड़काव संध्या समय करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- अरंडी की खेती: किस्में, बुवाई, देखभाल और पैदावार

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