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Home » Blog » गुलदाउदी की खेती: किस्में, रोपण, पोषक तत्व, देखभाल, पैदावार

गुलदाउदी की खेती: किस्में, रोपण, पोषक तत्व, देखभाल, पैदावार

October 26, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

गुलदाउदी की खेती

पुष्पीय पौधों में गुलदाउदी का विशिष्ठ स्थान है| गुलदाउदी की खेती की एक खास महत्वपूर्ण बात यह है, कि इसे कृत्रिम वातावरण में पॉलीहाउस के अन्दर बेमौसम उगाया जा सकता है| इसके फूल उस समय प्राप्त होते है, जब अन्य फूल बहुत कम मात्रा में मिलते हैं| गुलदाउदी शीत ऋतु का एक अत्यंत आकर्षक एवं लोकप्रिय पुष्प है| यह शरद ऋतु की रानी भी कहलाता है| इसे ‘ग्लोरी आफ ईस्ट’ या मम से भी जाना जाता है|

यह बहुवर्षीय और शाकीय पौधा है, जो एस्टीरेसी कुल का सदस्य है| इसकी उत्पत्ति स्थल चीन माना जाता हैं, इसके फूल सफेद, लाल, गुलाबी, पीला, क्रीम, हल्का हरा आदि रंगों के होते हैं| गुलदाउदी को कट और लूज फ्लावर, अलंकृत बगीचों की क्यारियों और गमलों में सजावट के लिए उगाया जाता है|

कट फ्लावर का इस्तेमाल कमरों की सजावट और गुलदस्ता में विशेष तौर पर किया जाता है, लुज फ्लावर का उपयोग माला बनाने और पुष्प पंखुड़ियों को पूजा अर्चना में किया जाता है| गुलदाउदी का कट फ्लावर कमरे के तापमान पर लगभग 15 दिनों तक तरोताजा बना रहता है, विश्व पुष्य बाजार में यह सर्वश्रेष्ठ दस कर्तित पुष्पों की श्रेणी में गुलाब के बाद दूसरे स्थान पर है|

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गुलदाउदी की खेती भारत, जापान, चीन, इंग्लैंड, अमेरिका, इजरायल, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, नीदरलैंड और अन्य देशों में व्यावसायिक तौर पर की जाती हैं|

भारत में गुलदाउदी की खेती हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, कर्नाटक आदि प्रान्तों में सफलतापुर्वक गुलदाउदी की खेती व्यावसायिक स्तर पर की जा रही है| हमारे देश में पिछले दशक से गुलदाऊदी के पुष्प की मांग काफी बढ़ गयी है| स्टेंडर्ड टाईप गुलदाउदी के पुष्प की मांग स्प्रे टाईप गुलदाउदीसे अधिक होती जा रही है|

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उपयुक्त जलवायु

यह एक शरद ऋतु का पौधा है, ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में इसके पौधे का विकास अच्छा नहीं होता है| अच्छे पुष्पन के लिये 8 से 16 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान उपयुक्त रहता है| यानि की जलवायु पौधों की अच्छी वृद्धि और विकास के लिए उचित जलवायु होना आवश्यक है|

गुलदाउदी की खेती के पौधों की वृद्धि और पुष्पन उसकी आनुवंशिकता के साथ-साथ वाह्य कारक जैसे वातावरण, शस्य क्रियाएं आदि पर निर्भर करता है| जलवायु के अन्तर्गत प्रकाश, तापमान, आपेक्षिक आर्द्रता एवं कार्बन डाइआक्साइड की सांद्रता पौधे के विकास और पुष्प की गुणवत्ता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है|

भूमि का चयन 

गुलदाउदी की सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है, परन्तु अधिक पुष्प उत्पादन हेतु अच्छे जल निकास वाली दोमट एवं बलुई दोमट भूमि जिसमें जीवांश पदार्थ पुचर मात्रा में उपलब्ध हो सबसे उत्तम रहती है| पौध के उचित विकास के लिये खुली धूप वाली जगह अधिक उपयुक्त रहती है, यानि की गुलदाउदी की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में किया जा सकता हैं|

लेकिन उपजाऊ पदार्थों से परिपूर्ण मिट्टी जिसका पीएचमान 5.5 से 6.5 के बीच हो उपयुक्त पाया गया है| इसमें जिप्सम मिलाकर पीएचमान को कम किया जा सकता है और 5.5 से कम पीएचमान होने पर चूना को मिट्टी में मिलाने पर इसका पीएचमान बढ़ाया जा सकता है| जिप्सम और चूने की मात्रा वर्तमान मिट्टी के पीएचमान पर निर्भर करता है|

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उन्नत किस्में

किस्मों का चुनाव करते समय यह ध्यान देना होता है, कि आजकल पुष्प बाजार में किस प्रकार के गुलदाउदी की किस्मों की मांग है, जैसे- स्प्रे टाईप, स्टैण्डर्ड टाईप आदि, कर्तित पुष्प हेतु गुलदाऊदी के बड़े और मध्यम आकार की पुष्प वाली प्रजातियों का चुनाव करना चाहिए|

इसके पुष्प की माला बनाने के लिए अधिकांश छोटे आकार वाली पुष्प की मांग है| अगर पुष्प के रंग की बात करें, तो सबसे ज्यादा खपत सफेद और पीले रंग के पुष्प की है| बाजार में प्रचलित किस्में इस प्रकार है, जैसे-

स्प्रे टाईप किस्में-

सफेद- व्हाईट मुंडियाल, व्हाईट मनीमेकर, रीमार्क, स्पाइनमार्क, स्पाइडर व्हाईट, स्टारमार्क, सुपर व्हाईट, व्हाईट मार्बल, इलीगेंस, आर्कटिक, इंगा आदि प्रमुख है|

पिला- रोगन येलो, रीगन सन्नी, स्पाइडर येलों, रीगोलटाइम, बटर कप, सन्नी कासा, गोल्डन कासा, फीलिंग, येलो मुन्डियाल, एप्रीकाट मनोमेकर, गोल्डन वेस्ट लैण्ड, सल्फर वेस्ट लैण्ड, हिप्पो, गोल्डन क्रीस्टल, सुपर येलो, सनबीम आदि प्रमुख है|

ब्रोज (ताँबई)- एप्रिकाट मार्बल, एप्रीकाट डीनर, ड्रामैटिक, ब्रोन्ज़ मुण्डियाल, गोल्डन ब्रोन्ज मनीमेकर,गोल्डन ब्रान्ज इम्पाला, ब्रान्ज नेरो आदि प्रमुख है|

सालमन- रीगन सालमन, रीगन क्रण्ट, कोरल मार्बल, सालमन मुंडियाल, मुण्डियाले आदि मुख्य है|

गुलाबी- पिंक मार्बल, बॉण्ड स्ट्रीट, पिंक मुण्डियाल, रायल मुण्डियाल, कोरल मनीमेकर, पाल माल, डार्क बोनस, रीगल वेस्टलैण्ड, पिंक इम्पाला, फनसाइन, इम्प्र॒वड़ फनलाइन आदि प्रमुख है|

लाल- रीगन रेड, रेड ग्लैक्सी, रेड नेरो, टाईगर राग आदि प्रमुख है|

नारंगी- रोगन आरेन्ज, टाईगर, रीगन स्पलेन्डिड, रीगन डार्क स्पलेन्डिड, हार्लोक्वीन आदि मुख्य है|

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बड़े फूलों वाली सफेद-

सफेद- स्नो बाल, वीलियम टर्नर, इनोसेन्स, प्रीमियर, इम्प्र॒वड़ मेफो, स्लो डान, अजीना व्हाईट, ब्यूटी, व्हाईट हारमोनी, पूर्णिमा, व्हाईट स्टार आदि प्रचलित है|

पिला- मॉउन्टेनीयर, चन्द्रमा, सुपर जाएन्ट, सोनार बंगला, इवनिंग स्टार, ब्राइट गोल्डेन एन्नी, ब्राईट येलो, लेडी फ्रेन्क कलार्क, येलो स्नोडान, येलो स्टार आदि मुख्य है|

गुलाबी- कैसेन्डा, रीगल एनी, कवर गर्ल, पिक टर्नर आदि|

परपल- अजाना परपल, रापॅल परपल, परपल एन्नी प्रमुख है|

ब्रोज (ताँबई)- ब्रोन्ज़ प्रीन्सेस एन्नी, रेजीलिएन्ट आदि|

लाल- क्रीमसन एन्नी, रेड रेज़ीलिएन्ट, एल्फ्रेड विलसन, एल्ड सिम्पसन प्रमुख है|

हरा- ग्रीन गाडेस, वुल्मैन्स सेंचुरी, मैडम ई रोज़र्स आदि प्रमुख है|

खेत की तैयारी

जिस खेत में गुलदाउदी की रोपाई करनी हो उसकी पहली जुताई ग्रीष्म ऋतु में मिट्टी पलटने वाले हल से करें, फिर पाटा लगाकर तीन से चार जुताई देशी हल से कर मिट्टी को भुरीभुरी बना लें| खेत को समतल कर सिंचाई की सुविधानुसार क्यारियां बना लेनी चाहिये|

भूमि की आखिरी जुताई के समय 25 से 30 टन प्रति हैक्टेयर की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद बिखेर कर भली भांति मिला दें, पौध की रोपाई के पूर्व 100 किलो यूरिया, 500 किलो सुपर फॉस्फेट और 100 किलो म्युरेट ऑफ पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिला दे, शेष 100 किलो यूरिया को दो भागों में विभाजित कर रोपाई के चार सप्ताह एवं आठ सप्ताह बाद खड़ी फसल में देकर सिंचाई करें|

दीमक का प्रकोप हो तो 25 किलोग्राम एण्डोसल्फॉन 4 प्रतिशत चूर्ण या क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिलाएं|

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प्रवर्धन और प्रसारण

एक वर्षीय गुलदाउदी बीजों द्वारा उगाई जाती है, इसके बीज नर्सरी में अक्टूबर माह में बोते हैं| बीज बोने से 4 से 6 सप्ताह बाद तैयार पौध की खेत में रोपाई की जाती है| बहुवर्षीय गुलदाउदी का प्रवर्धन किया जाता है, इसके प्रवर्धन की जानकारी के लिए यहां पढ़ें- गुलदाउदी का प्रवर्धन कैसे करें

पौध रोपण

गुलदाउदी का पौध रोपण काफी हद तक क्षेत्र विशेष के ऊपर निर्भर करता है, लेकिन सबसे अधिक ध्यान देने की बात यह है, कि ऐसे समय में पौध रोपण करें, जब गुलदाउदी के पौधों का वानस्पतिक वृद्धि प्राकृतिक तौर पर शार्ट डे आने से पहले हो जाए| मैदानी क्षेत्रों में इसका पौध लगाने का समय जून से अगस्त तक होता है| मध्य पर्वतीय क्षेत्र में इसका पौध रोपण मई से जुलाई और निचले पर्वतीय क्षेत्र में जून से जुलाई में लगाने पर अच्छे परिणाम खुले क्षेत्र और पॉलीहाउस में पाया गया हैं| लेकिन खुले क्षेत्र में इसका पुष्पोत्पादन पर असर पड़ता है|

पौध रोपण करने से एक दिन पहले क्यारियों को हल्का नम कर लेना चाहिए| स्प्रे टाईप गुलदाउदी की रोपाई 1 मीटर चौड़ी क्यारी में 16.50 x 16.50 सेंटीमीटर और स्टैण्डर्ड टाईप किस्मों के लिए 14 x 14 सेंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति और पौध से पौध का फासला रखते हुए 3 से 4 सेंटीमीटर गहराई पर करनी चाहिए|

रोपण के समय यह ध्यान रखना चाहिए, कि पौध की पूर्ण विकसित जड़ें सही तरीके से पंक्ति में बने गड्ढे या नाली में रखें और पौध का तना सीधा रखते हुए चारो तरफ से मिट्टी में दबा दें, ताकि पौध के जड़ों और मिट्टी में फासला न रहे। ऐसा करने से पौध रोपण के उपरान्त पौध की मृत्यु दर कम हो जाती है| पौध रोपण बहुत तेज धूप में न करें, बल्कि सुबह या सायंकाल करना ठीक रहता है|

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सिंचाई प्रबन्धन 

पौध रोपण करने के साथ-साथ सिंचाई का कार्य भी शुरू हो जाता है, जैसे की एक क्यारी में पौध रोपण हो जाए उसके बाद उस क्यारी में पाईप के द्वारा इतना पानी देते हैं, कि जडों एवं मिट्टी के बीच में बिल्कुल फासला न रह जाए| यदि आप ऐसा न करके पूरे पौध रोपण होने के बाद सिंचाई का कार्य करना सोचते हैं, तो पौध की मृत्यु दर बहुत ज्यादा होगी|

गुलदाउदी के वानस्पतिक वृद्धि के साथ जब नई पत्तियों का विकास होता है, तब अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता होती हैं| इसके पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए फ्लोराइड और लवण रहित पानी देना चाहिए| इसके पौधे पानी के जमाव के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं, इसलिए क्यारियों में पानी इक्कट्ठा नहीं होना चाहिए| सिंचाई में पानी की मात्रा क्यारी में उपलब्ध नमी, प्रकाश की तीव्रता और पौधों की वृद्धि के ऊपर निर्भर करती है|

पौध रोपण के उपरान्त पहली सिंचाई के बाद हल्का-हल्का पानी डीप सिंचाई पद्धति या पाईप के द्वारा देना चाहिए| यदि सिंचाई का साधन ड्रीप विधि हो तो प्रतिदिन लगभग 5 से 6 मिनट के अन्तराल पर दो से तीन बार ड्रीप चलाना चाहिए| डीप सिंचाई पद्धति न होने की दशा में आवश्यकतानुसार सप्ताह में दो से तीन बार हल्की सिंचाई करनी चाहिए|

खाद और उर्वरक

गुलदाउदी के पौधों को अधिक मात्रा में पोषक तत्वों जैसे- नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और कैल्शियम की आवश्यकता होती है| इसलिए खेत को तैयार करते समय फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा मिट्टी में मिला देते हैं और नत्रजन की मात्रा को दो बराबर भागों में पौध रोपण के 15 और 30 दिनों बाद मिट्टी में मिलाते हैं|

फास्फोरस तत्व के लिए सिंगल सुपर फास्फेट, पोटाश के लिए म्यूरेट आफ पोटाश और नत्रजन के लिए कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट उरर्वकों का इस्तेमाल किया जाता है| नत्रजन खाद डालने के उपरान्त उरर्वक को खुरपी या बँटी द्वारा क्यारी में मिलाकर हल्की सिंचाई कर देते हैं|

डीप सिंचाई पद्धति में पोषक तत्वों को सिंचाई के पानी के साथ ही पूर्ण घुलनशील उरर्वक जैसे 19:19:19,0: 0:51, 13:13:13 (नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश) द्वारा नत्रजन 120 पीपीएम, फास्फोरस 60 पीपीएम और पोटाश 240 पीपीएम का घोल पौधों को देते हैं| जब पुष्प डण्डियों पर कलियाँ खिलने लगें और रंग दिखाई देने लगे तो उसके उपरान्त किसी भी उवर्रक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए|

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गुड़ाई और खरपतवार

जब क्यारियों की मिट्टी कड़ी हो जाए तो ख़ुटी से हल्की गुड़ाई कर खरपतवार को निकाल देते हैं| यह प्रक्रिया फसल के दौरान दो से तीन बार करनी पड़ती है| ऐसा करने से मिट्टी ढीली हो जाती है, जिससे पौधों की वृद्धि और विकास अच्छा होता है| आमतौर पर यह देखा गया है, कि मिट्टी में गोबर की मात्रा अधिक डालने पर खरपतवार की समस्या ज्यादा आती है|

सूखे घास का छोटा-छोटा टुकड़ा करके क्यारियों के ऊपरी सतह पर एक परत बिछा दिया जाए, तो खरपतवार की समस्या कम हो जाती है और पौधों को बढ़वार भी अच्छी हो जाती है| यदि गोबर की खाद की जगह पर वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग किया जाए, तो खरपतवार की समस्या काफी हद तक कम हो जाएगी और मृदा की संरचना व गुणवत्ता और बढ़ जाती है|

पींचिंग- गुलदाउदी के पौधों की वृद्धि और पुष्प की डण्डी की संख्या को बढ़ाने के लिए पचिंग क्रिया की जाती है| यह क्रिया दोनों प्रकार के वर्गों (स्प्रे और स्टॅण्डर्ड) के किस्मों में की जाती हैं| पचिंग में पौधों को क्यारी की सतह से 10 से 12 सेंटीमीटर या 6 से 7 पत्तियाँ छोड़कर शीर्षस्थ भाग को हाथ से नोच कर पौधों से अलग कर देते हैं|

ऐसा करने से एक पौधा औसतन 3 से 4 पुष्प डण्डियाँ उत्पादित करता है| यह क्रिया पौध रोपण के 10 से 12 दिनों बाद करनी पड़ती है| पचिंग के माध्यम से पॉलीहाउस में गुलदाऊदी की पुष्पन अवधि बढ़ाई जा सकती है| इसके लिए पूरे पॉलीहाउस के पौधों को 3 या 4 अलग-अलग दिन में पचिंग करना चाहिए|

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कीट व रोग

गुलदाउदी के पौधों पर अनेक प्रकार के कीट पतंग जैसे- एफिड, लाल मकड़ी, थ्रिप्स, कैटरपीलर, सफेद मक्खी, लीफ माइनर, निमेटोड इत्यादि का प्रकोप होता है|

रोग व्याधियों में फफूद जनक रोग जैसे- पाउडरी मिल्ड्यू, सेप्टोरिया लीफ स्पाट व रूट रॉट प्रमुख हैं| बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न रोगों में बैक्टीरियल ब्लाईट प्रमुख है|

गुलदाउदी के पौधों पर विभिन्न प्रकार के विषाणु का प्रकोप भी पाया गया है, इनमें मुख्य तौर पर क्राइसेन्थिम्म वाइरस ‘बी’, टोमैटो स्पर्मों वाइरस, कुकुम्बर मोजैक वाइरस, टोमैटो स्पॉटेड विल्ट वाइरस एवं क्राइसेन्थिम्म स्टंट वाइरस हैं, जैसे-

कीट रोकथाम-

1. एफिड़ से प्रभावित पौधा मैलाथियान या इण्डोसल्फान 1.5 से 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर सम्पूर्ण पौधों पर अच्छी तरह से छिड़काव करनी चाहिए|

2. थ्रिप्स की रोकथाम के लिए मैलाथियान या मोनोक्रोटोफास का 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए|

3. लाल मकड़ी की रोकथाम के लिए वातावरण में कृत्रिम रुप से आर्द्रता बढ़ानी चाहिए और ओमाईट (प्रोपारजाईट) नामक मकड़ी नाशक दवा का 0.03 प्रतिशत का घोल या हिलफोलडाईक्रोफोल 1.0 से 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का लाल मकड़ी से प्रभावित पौधों पर छिड़काव करना चाहिए|

4. लीफ माईनर की रोकथाम के लिए संक्रमण की प्रारंभिक अवस्था में साईपरमेथ्रीन 2.21 प्रतिशत के सांद्रता का घोल का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए|

5. सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए शार्प (एसीटामिप्रिड) का 0.03 प्रतिशत सांद्रता का घोल बनाकर 10 से 12 दिनों के अन्तराल पर कम से कम दो बार छिड़काव करना चाहिए|

6. टोबैको कैटरपीलर की रोकथाम के लिए इण्डोसल्फान या मैलाथियान का 1.5-2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए|

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रोग रोकथाम-

1. पाउडरी मिल्ड्यू फर्कैद की रोकथाम के लिए केराथेन का 0.03 प्रतिशत सांद्रता का घोल बनाकर समय-समय पर छिड़काव करने से काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है|

2. सेप्टोरिया लीफ स्पाट रोग के नियंत्रण के लिए सर्वप्रथम रोग युक्त पौधों को नष्ट कर देते हैं और डाईथेन एम- 45 या कैप्टान या बावीस्टीन के 0.2 प्रतिशत सांद्रता का घोल बनाकर 10 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करते हैं एवं क्यारियों में पानी के जमाव को रोकते हैं|

3. जड़ व तना सड़न रोकथाम के लिए सर्वप्रथम रुटिंग मीडिया को ठीक ढंग से एक प्रतिशत फार्माल्डिहाईड के घोल से उपचारित करते हैं और यदि कोई कटिंग रोग से ग्रसित हो तो उसे निकालकर जमीन में गड्ढा खोदकर दबा देते हैं, इसके अलावा अन्य कवक नाशी जैसे कैप्टान या बिनोमिल के 0.2 प्रतिशत सांद्रता वाले घोल से पौधों की ड्रेचिंग करते हैं|

4. बैक्टीरियल ब्लाईट बीमारी की रोकथाम के लिए कटिंग्स को लगाने के पूर्व मिट्टी का शोधन करना चाहिए और कटिंग्स को जीव प्रतिरोधी जैसे- स्ट्रेप्टोमाईसिन, कैरामाईसिन के घोल में 4 घण्टे तक डुबाकर रखने पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है|

विषाणु रोग-

गुलदाउदी के पौधे कई प्रकार के विषाणु से ग्रसित हो सकते हैं| विषाणु से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर विभिन्न प्रकार की आकृति एवं धब्बे दिखाई देते हैं| विषाणु रोग का फैलाव एफिड, थ्रिप्स, संक्रमित मातृ पौध से प्रवर्धन, संक्रमित औजार आदि से होता है|

इसकी रोकथाम के लिए एफिड व थ्रिप्स पर नियंत्रण, विषाणु मुक्त पौधों का प्रवर्धन तथा आस-पास उगने वाली घासों की सफाई और स्वच्छ कृषि यंत्रों का प्रयोग अनिवार्य है|

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पुष्प डण्डियों की कटाई

पुष्प डण्डियों को काटने की उचित अवस्था, किस्मों, संभावित पुष्प बाजार से दूरी तथा ट्रांसपोरटेशन की सुविधा पर निर्भर करता है| स्टैण्डर्ड गुलदाऊदी की किस्मों के फूल तभी काटने चाहिए, जब पुष्प पूर्ण रूप से खिल जायें तथा बाह्य पँखुड़ियाँ पूरी तरह से सीधी हो जाएं|

स्प्रे गुलदाउदी की किस्मों को उस समय काटना चाहिए, जब पुष्प डण्डी पर ऊपरी एक पुष्प पूर्ण रूप से खिल जाए और अन्य पुष्प कलियों में रंग दिखने लगे, पुष्प टहनी को जमीन से लगभग 10 से 12 सेंटीमीटर की ऊँचाई पर काटना चाहिए|

पुष्प डण्डियों को काटने का कार्य सुबह या सार्यकाल के समय करनी चाहिए। पुष्प डण्डियों को काटने के तुरन्त बाद इसका निचला 5 से 6 सेंटीमीटर हिस्सा साफ पानी में डुबा देना चाहिए और किसी ठण्डे कमरे या छायादार स्थान पर 3 से 4 घण्टे के लिए रख देना चाहिए|

भण्डारण

फुल उत्पादक को यदि फुल डण्डियों को भण्डारण न करना पड़े तो बहुत अच्छी बात हैं, भण्डारण की स्थिति पुष्प बाजार में पुष्प की अधिक उपलब्धता, कम खपत और एक ही समय में अधिक से अधिक पुष्प डण्डियों में पुष्पों की खिलने की सम्भावना आदि पर निर्भर करती है|

गुलदाउदी को 0.5 से 1 सेंटीग्रेड तापमान पर 12 से15 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है| इसके कर्चित पुष्प इंण्डियों को 1000 पीपीएम सिल्वर नाइट्रेट के घोल में 10 मिनट के लिए डुबोकर या 4 प्रतिशत सुक्रोज के घोल में डालकर इसके जीवन काल को बढ़ाया जा सकता है|

पैदावार

गुलदाउदी के फूलों की उपज पौध रोपण का समय, सघनता और इसके पौधों की पचिंग विधि पर निर्भर करती है| यह देखा गया है, कि पौध से पौध लगभग 14 सेंटीमीटर और पंक्ति से पंक्ति भी 14 सेंटीमीटर का फासला रखा जाए तो सिंगल पीचिंग विधि द्वारा औसतन 150 से 200 पुष्प डण्डियाँ प्रति वर्गमीटर क्षेत्रफल में उत्पादित हो सकता है|

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