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Home » Blog » अंगूर का प्रवर्धन कैसे करें? | अंगूर के पौधे कैसे तैयार करें?

अंगूर का प्रवर्धन कैसे करें? | अंगूर के पौधे कैसे तैयार करें?

October 22, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

अंगूर का प्रवर्धन कैसे करें?

अंगूर का प्रवर्धन वानस्पतिक सख्त काष्ठ कलम से करते हैं, कलमें तैयार करने के लिए शरद ऋतु में एक वर्षीय पकी हुई टहनियों को चुनते हैं| जनवरी में जब लताओं की वार्षिक काट-छांट होती है, उस समय उनमें से 0.5 से 1.5 सेंटीमीटर मोटाई की लगभग 20 सेंटीमीटर लम्बी स्वस्थ कलमें काट कर इन्हें बंडलों में बांध लेते हैं| कलमों की लम्बाई किस्म पर भी निर्भर करती है|

अंगूर का प्रवर्धन हेतु आमतौर पर 18 से 25 सेंटीमीटर लम्बी कलमें काटते हैं| ऊपर का कटाव आंख के 1.5 सेंटीमीटर उपर और नीचे का कटाव आंख के ठीक नीचे रहता है| पहचान के लिए कलम का ऊपरी कटाव तिरछा और नीचे का कटाव सीधा बनाना चाहिए| जब पर्याप्त संख्या में कलमें कट जाती हैं, तब कटी हुई कलमों को 0.2 प्रतिशत बाविस्टीन या कैप्टान या ब्लाइटाक्स के घोल में भिगो लेना चाहिए|

तब उन्हें 50 या 100 के बंडलों में बांधकर कैलसिंग के लिए रख देते हैं| अंगूर का प्रवर्धन हेतु कलमें जनवरी में लेते समय बेलें सुप्तावस्था में होती हैं| कलमों के कैलसिंग से पहले कलमों के आधार की ओर का 5 सेंटीमीटर सिरा 50 प्रतिशत इथेनोल मे बने 2000 पीपीएम आईबीए के घोल में 15 सैकड़ के लिए उपचारित करना अत्यन्त आवश्यक है| ऐसा करने से जड़े शीघ्र फूट जाती हैं| यदि आप अंगूर की बागवानी की पूरी जानकारी जानना चाहते है, तो यहां पढ़ें- अंगूर की खेती कैसे करें

कलमों की कैलसिंग

अंगूर का प्रवर्धन हेतु कलमों की कैलसिंग उचित नमी के साथ रेत में या खड्डे में दबा कर करते हैं| खड्डा लगभग ढाई फुट गहरा व आवश्यकतानुसार लम्बा होता है| खड्डे की तली पर मिट्टी में फील्ड कैपेसिटी के बराबर नमीं होनी चाहिए और इस मिट्टी में नमक बिल्कुल न हो| कलमों के बंडलों को खड्डे में सीधे खड़े रखकर जचा दें ताकि उन का जड़ निकलने वाला सिरा नर्म रेत पर टिक जाए|

दीमक न लगने के लिए कोई पाऊडर कीटनाशक बिखेर दें| खड्डे में पानी बिल्कुल भी न डालें, क्योंकि ऐसा करने से कलमें सड़ सकती हैं| खड्डा कुछ उंचे स्थान पर बनाएं, कलमों को कैलसिंग के लिए खड्डे में उसी दिन रखें जिस दिन कलमे बेलों से काटी गई हैं| कलमे सूखने के पश्चात इन में जड़े नही निकल सकती, कलमों को खड्डे की तली पर रख कर मिट्टी में दबाते समय खड्डे को मिट्टी से भरकर जमीन के बराबर कर दें|

यह भी पढ़ें- नींबू वर्गीय पौधों का प्रवर्धन कैसे करें

पौधशाला में रोपण 

अंगूर का प्रवर्धन हेतु कैलसिंग के पश्चात फरवरी के दूसरे सप्ताह में इन कलमों को खड्डे से बाहर निकालकर तैयार की हुई नर्सरी में कलम द्वारा तैयार पौधा पौधशाला की क्यारियों में प्रत्येक कलम को थोड़ा तिरछा करके रोपण कर देते हैं| लगाते समय ध्यान रखें, की कलमों की जड़े न टूटें, कलम की लगभग आधी लम्बाई भूमि के भीतर और आधी बाहर रखते हैं|

अंगूर का प्रवर्धन के लिए एक कलम में कम से कम चार या इससे अधिक आखें होनी आवश्यक हैं| दो गांठे भूमि के बाहर और कलम की अन्य आंखे भूमि में गाड़ देनी चाहिए| कलम को गाड़ते समय यह ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है, कि कलम कही उल्टी न लग जाएं| कलमें लगाने के पश्चात सिंचाई करें और उसके बाद नियमित सिंचाई व निराई-गुडाई इत्यादि करते रहना चाहिए|

फरवरी के अंतिम या मार्च के प्रथम सप्ताह में इन कलमों से कलियाँ आने लगती हैं, जिनमें बढ़वार सितम्बर से अक्तूबर तक चलती रहती है| यह लताएं लगभग एक वर्ष तक पौधशाला में रखकर अगले वर्ष शरद ऋतु में नग्न जड़ विधि अपनाकर खेत में लगाने योग्य हो जाती हैं| पश्चिमी भारत विशेषकर महाराष्ट्र में सितम्बर से अक्तूबर की काट-छांट से कलमें तैयार करके लगभग दो सप्ताह तक कैलसिंग के पश्चात क्यारियों में लगा देते हैं|

यह भी पढ़ें- अमरूद का प्रवर्धन कैसे करें

कलमों के आरम्भिक फुटाव के लिए मिस्ट-प्रोपेगेशन अत्यन्त लाभदायक है| क्यारियों में लगाने के लगभग तीन महीने से एक वर्ष पश्चात् जब उनमें भली-भांति काफी जड़े और पत्तियां निकल जाती हैं, तब उन पौधों को भूमि से निकाल कर बाग में जनवरी के आरम्भ में या जुलाई से अगस्त में लगा देते हैं|

जहां मिट्टी में नमक की मात्रा अधिक हो वहां डोगरज मूलवृन्त का उपयोग किया जाना चाहिए| डोगरिज के पौधे कटिंग द्वारा तैयार किए जाते हैं| शीतकाल के आखिर में एक वर्षीय मूलवृन्त पौधों पर सायन की क्लैफ्ट ग्राफ्टिंग विधि से ग्राफ्टिंग की जाती है| सायन की कलमें जनवरी के शुरू में लेकर लगभग एक महीने तक इनकी खड्डे में कैलसिंग करें|

जिस सायन कटिंग में सिरे की ओर से बड फुटाव लेने के नजदीक हो उस कटिंग से आखिर की एक या दो आंखों के साथ सायन कटिंग लेकर यहां फरवरी के पहले सप्ताह में क्लैफ्ट ग्राफ्टिंग करते हैं| दक्षिणी भारत विशेषकर महाराष्ट्र में वर्षाकाल के शुरू में चिप बडिंग करते हैं| उन स्थानों पर जहा मिट्टी में नमक की मात्रा ज्यादा न हो व मूलवृन्त का उपयोग आवश्यक समझा जाये, वहां अनाब-ए-शाही के कटिंग द्वारा तैयार पौधों को मूलवृन्त के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए|

उपरोक्त विधि से किसान और बागवान बन्धु अंगूर का प्रवर्धन सफलतापुर्वक कर के अच्छे पौधे तैयार कर सकते है, और उसके बाद एक प्रमाणित बाग की स्थापना कर सकते है, उत्तम पैदावार के लिए|

यह भी पढ़ें- बागवानी पौधशाला (नर्सरी) की स्थापना करना, देखभाल और प्रबंधन

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