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Home » Blog » कटहल की खेती: किस्में, रोपाई, पोषक तत्व, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

कटहल की खेती: किस्में, रोपाई, पोषक तत्व, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

October 7, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

कटहल की खेती

कटहल का पौधा एक सदाबहार 8 से 15 मीटर ऊँचा बढ़ने वाला, फैलावदार तथा घने छत्रकयुक्त बहशाखीय वृक्ष है, जो भारत का देशज है| भारत वर्ष में इसकी खेती पूर्वी एवं पश्चिमी घाट के मैदानों, उत्तर से पूर्व के पर्वतीय क्षेत्रों, संथाल परगना एवं छोटानागपुर के पठारी क्षेत्रों, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बंगाल के मैदानी भागों में मुख्य रूप से की जाती है| कटहल के वृक्ष की छाया में कॉफी, इलाईची, काली मिर्च, जिमीकन्द, हल्दी, अदरक, ऑल इत्यादि की खेती की जा सकती स्वाद और पौष्टिकता की दृष्टि से कटहल का फल अत्यंत ही महत्वपूर्ण माना जाता है| इसके फल बसन्त से वर्षा ऋतु तक उपलब्ध होते हैं|

बसन्त ऋतु में जब प्रायः सब्जी की अन्य प्रजातियों का अभाव रहता है| कटहल के छोटे एवं नवजात मुलायम फल एक प्रमुख एवं स्वादिष्ट सब्जी के रूप में प्रयोग किये जाते हैं| जैसे-जैसे फल बड़े होते जाते हैं, इनमें गुणवत्ता का विकास होता जाता है और परिपक्व होने पर इसके फलों में शर्करा, पेक्टिन, खनिज पदार्थ तथा विटामिन ‘ए’ का अच्छा विकास होता है| इस लेख में कटहल की वैज्ञानिक तकनीक से बागवानी कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है| ताकि बागान इसकी फसल से अधिकतम और गुणवत्ता युक्त उत्पादन प्राप्त कर सकें|

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उपयुक्त जलवायु

कटहल उष्ण प्रदेशीय फल होने के कारण इसके लिए गर्म व तर जलवायु उपयुक्त रहती है, यानि की मध्यम से अधिक वर्षा और गर्म जलवायु वाले क्षेत्र कटहल के खेती के लिए उपयुक्त होते है| गर्म और नम जलवायु में इसकी बृद्धि अच्छी होती है, समुन्द्र तल 1500 मीटर ऊंचाई तक इसके पौधे उगाये जा सकते है, छोटे पौधे पाले से जल्दी प्रभावित होते है|

भूमि का चयन

कटहल कि खेती या बागवानी प्राय सभी प्रकार कि भूमियों में कि जा सकती है, परन्तु जीवनस युक्त गहरी दोमट भूमि जल निकास का उत्तम प्रबंध हो इसके लिए सर्वोत्तम होती है| इसकी जड़े गहरी जाती है, अत: मृदा प्राप्त गहरी होनी चाहिए, निचे में कंकड़ कि परत तथा ऊँचा जल स्तर इसके लिए हानिकारक होता है| भूमि का पी एच मान 7 से 7.5 तक होना चाहिए| जल भराव कि स्थिति में इसके पौधे एक सप्ताह में मर सकते है|

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उन्नत किस्में

कटहल एक परपरागण फल वृक्ष होने तथा प्रमुखतः बीज द्वारा प्रसारित होने के कारण इसमें प्रचुर जैव विविधता है| अभी तक कटहल की कोई मानक किस्मों का विकास नहीं हुआ था| परन्तु फलन एवं गुणवत्ता के आधार पर विभिन्न शोध केन्द्रों द्वारा कटहल की कुछ उन्नतशील चयनित किस्में इस प्रकार हैं, जैसे-

भा कृ अनु प- खजवा, स्वर्ण मनोहर, स्वर्ण पूर्ति (सब्जी के लिए) आदि प्रमुख है|

नरेन्द्र देव कृषि- एन जे -1, एन जे -2, एन जे- 15 और एन जे- 3 आदि प्रमुख है|

केरल कृषि वि वि- मुत्तम वरक्का प्रमुख है|

स्वर्ण मनोहर- छोटे आकार के पेड़ में बड़े-बड़े एवं अधिक संख्या में फल देने वाली यह एक उम्दा किस्म है| मध्यम घने छत्रक वाले इस किस्म में फरवरी के प्रथम सप्ताह में फल लग जाते हैं| जिनको छोटी अवस्था में बेचकर अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है| इस किस्म के पूर्ण रुप से विकसित फल की लम्बाई 45.2 सेंटीमीटर परिधि 70 सेंटीमीटर तथा वजन 15 से 20 किलोग्राम होता है| इसके कोये (फ्लैक्स) का आकार बड़ा (6.0 x 3.9 सेंटीमीटर), संख्या अधिक (280 से 350 कोये या फल) और मिठास ज्यादा (20 डिग्री ब्रिक्स) होता है| इसकी प्रति वृक्ष औसत उपज 350 से 300 किलोग्राम पकने के बाद है|

स्वर्ण पूर्ति- यह सब्जी के लिए एक उपयुक्त किस्म है| इसका फल छोटा (3 से 4 किलोग्राम), रंग गहरा हरा, रेशा कम, बीज छोटा एवं पतले आवरण वाला तथा बीच का भाग मुलायम होता है| इस किस्म के फल देर से पकने के कारण लम्बे समय तक सब्जी के रूप में उपयोग किये जा सकते हैं| इसके वृक्ष छोटे तथा मध्यम फैलावदार होते हैं, जिसमें 80 से 90 फल प्रति वर्ष लगते हैं|

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पौध प्रवर्धन

कटहल मुख्य रुप से बीज द्वारा प्रसारित किया जाता है, एक समान पेड़ तैयार करने के लिए वानस्पतिक विधि द्वारा पौधा तैयार करना चाहिए| वानस्पतिक विधि में कलिकायन तथा ग्राफ्टिंग अधिक सफल पायी गयी है| इस विधि से पौधा तैयार करने के लिए मूल वृन्त की आवश्यकता होती है| जिसके लिए कटहल के बीजू पौधों का प्रयोग किया जाता है| चूंकि कटहल का बीज जल्दी सूख जाता है, अत: उसे फल से निकालने के तुरन्त बाद थैलियों में 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर बुआई कर देना चाहिए|

कटहल के पौधे को पैच बडिंग या क्लेफ्ट ग्राफ्टिंग विधि द्वारा तैयार किया जा सकता है| पैच बडिंग के लिए मातृ वृक्ष से सांकुर डाली काटकर ले आते हैं| जिससे 2 से 3 सेंटीमीटर लम्बी कली निकालकर मूलवृन्त पर उचित ऊँचाई पर उसी आकार की छाल हटाकर बडिंग कर देते हैं| बडिंग के बाद कली को सफेद पॉलीथीन की पट्टी (100 गेज) से अच्छी तरह बांध देते हैं और मूलवृन्त का ऊपरी भाग काट देते हैं| ग्राफ्टिंग विधि से पौधा तैयार करने के लिए मातृवृक्ष पर ही सांकुर डाली की पत्तियों को लगभग एक सप्ताह पहले पर्णवृन्त छोड़कर काट देते हैं|

जब पत्ती का पर्णवृन्त गिरने लगे तब सांकुर डाली को काटकर ले आते हैं| मूलवृन्त को उचित ऊँचाई पर काट देते हैं तथा उसके बीचो-बीच 3 से 4 सेंटीमीटर लम्बा चीरा लगा देते हैं| सांकुर डाली के निचले भाग को दोनों तरफ से 3 से 4 सेंटीमीटर लम्बी कलम बनाते हैं| जिसे मूलवृन्त के चीरे में घुसाकर 100 गेज मोटाई की सफेद पॉलीथीन की पट्टी से बाँध देते हैं| पूर्वी क्षेत्र में बडिंग के लिए फरवरी से मार्च तथा ग्राफ्टिंग के लिए अक्तूबर से नवम्बर का महीना उचित पाया गया है|

पौधा रोपण

कटहल का पौधा आकार में बड़ा तथा अधिक फैलावदार होता हैं| अत: इसे 10 x 10 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है| बाग स्थापना के प्रारंभिक वर्षों के दौरान खाली जमीन का उचित उपयोग के लिए कटहल के पौधों के बीच में 5 x 5 मीटर के व्यवधान पर छोटे आकार की फलदार पौधों यथा अमरूद, शरीफा, नींबू इत्यादि को लगा देना चाहिए| पौध रोपण के लिए समुचित रेखांकन के बाद निर्धारित स्थान पर मई से जून के महीने में 1 x 1 x 1 मीटर आकार के गड्ढे तैयार किये जाते हैं| गड्ढा तैयार करते समय ऊपर की आधी मिट्टी एक तरफ तथा आधी दूसरी तरफ रख देते हैं|

इन गड्ढो को 15 दिन खुला रखने के बाद ऊपरी मिट्टी दूसरी तरफ रख देते हैं| ऊपरी मिट्टी में 20 से 30 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद, 1से 2 किलोग्राम करंज की खली तथा 100 ग्राम एन पी के मिश्रण अच्छी तरह मिलाकर भर देना चाहिए| जब गड्ढे की मिट्टी अच्छी तरह दब जाये तब उसके बीचो-बीच में पौधे की पिण्डी के आकार का गड्ढा बनाकर पौधा लगा दें| पौधा लगाने के बाद चारों तरफ से अच्छी तरह दबा दें और उसके चारों तरफ थाला बनाकर पानी दें|

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पौधों की देखभाल 

पौधा लगाने के बाद से एक वर्ष तक पौधों की अच्छी देख-रेख करनी चाहिए| पौधों के थालों में समय-समय पर खरपतवार निकाल कर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए| पौधों को जुलाई से अगस्त में खाद एवं उर्वरक तथा आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए| नये पौधों में 3 वर्ष तक उचित ढांचा देने के लिए काट-छांट करना चाहिए| ढांचा देते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि तने पर 1.5 से 2.0 मीटर ऊँचाई तक किसी भी शाखा को नहीं निकलने दें|

उसके ऊपर 3 से 4 अच्छी शाखाओं को चारों तरफ बढ़ने देना चाहिए, जो पौधों का मुख्य ढांचा बनाती है| कटहल के पौधों के मुख्य तनों एवं शाखाओं से निकलने वाले उसी वर्ष के कल्लों पर फल लगते है| अतः इसके पौधों में किसी विशेष काट-छांट की आवश्यकता नहीं होती है| फल तोड़ाई के बाद फल से जुड़े पुष्पवृन्त टहनी को काट दें जिससे अगले वर्ष अच्छी फलत हो सके|

खाद एवं उर्वरक

कटहल के पेड़ में प्रत्येक वर्ष फलन होती है| अतः अच्छी पैदावार के लिए पौधे को खाद एवं उर्वरक पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए| प्रत्येक पौधे को 20 से 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद, 100 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 100 ग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश प्रति वर्ष की दर से जुलाई माह में देना चाहिए| तत्पश्चात् पौधे की बढ़वार के साथ खाद की मात्रा में वृद्धि करते रहना चाहिए|

जब पौधे 10 वर्ष के हो जाये, तब उसमें 80 से 100 किलोग्राम गोबर की खाद, 1 किलोग्राम यूरिया, 2 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 1 किलोग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश प्रति वर्ष देते रहना चाहिए| खाद एवं उर्वरक देने के लिए पौधे के छत्रक के नीचे मुख्य तने से लगभग 1 से 2 मीटर दूरी पर गोलाई में 25 से 30 सेंटीमीटर गहरी खाई में खाद के मिश्रण को डालकर मिट्टी से ढक देना चाहिए|

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पुष्पन एवं फलन

कटहल एक मोनोसियस पौधा है, जिसमें नर एवं मादा पुष्पक्रम (स्पाइक) एक ही पेड़ पर परन्तु अलग-अलग स्थानों पर आते हैं| नर फूल, जिसकी सतह अपेक्षाकृत चिकनी होती है| नवम्बर से दिसम्बर में पेड़ की पतली शाखाओं पर आते हैं| ये फूल कुछ समय बाद गिर जाते है| मादा फूल मुख्य तने एवं मोटी डालियों पर जनवरी से फरवरी में आते हैं|

कटहल एक परपरागण फल है, जिसमें परागण समकालीन नर पुष्प से ही होता हैं| यदि मादा फूल में समान परागन नहीं होता है तो फल विकास सामान्य नहीं होता है| फल जनवरी-फरवरी से जून-जुलाई तक विकसित होते रहते हैं| इसी समय में फल के अंदर बीज, कोया इत्यादि का विकास होता है और अन्तत: जून से जुलाई में फल पकने लगते हैं|

पौध सुरक्षा

तना छेदक- इस कीट के नवजात पिल्लू कटहल के मोटे तने एवं डालियों में छेद बनाकर नुकसान पहुंचाते हैं| उग्रता की अवस्था में मोटी-मोटी शाखायें सूख जाती है एवं फसल को प्रभावित करती है|

रोकथाम- इसके नियंत्रण के लिए छिद्र को किसी पतले तार से साफ करके नुवाक्रान का तना छेदक घोल (10 मिलीलीटर प्रति लीटर) अथवा पेट्रोल या किरोसिन तेल के चार-पांच बूंद रुई में डालकर गीली चिकनी मिट्टी से बन्द कर दें|

माहू- अवयस्क तथा ब्यस्क किट पत्तियों , टहनियों , फूलो तथा फलो का रस चूसते है, प्रभावित पौधों कि बृद्धि रुक जाती है, और उपज पर प्रति कुल प्रभाव पड़ता है|

रोकथाम- इमिडाक्लोप्रिड 1 मिलीलीटर को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए या डाइमिथिएट 30 ईसी का 1 से 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना उत्तम रहता हैं|

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बग- इसके अवयस्क पत्तियों तथा मुलायम शाखाओ का रस चूसते है, इससे प्रभावित पत्तियां पिली पड़ जाती है, और सड जाती है इससे कटहल के पौधों कि बृद्धि रुक जाती है, तथा उपज भी कम हो जाती है|

रोकथाम- इसको नियंत्रित करने के लिये 0.03 से 0.05 प्रतिशत सान्द्रता वाले मैलाथिया्रन घोल का छिडकाव आवश्यकतानुसार करना चाहिये|

गुलाबी धब्बा- इस रोग में पत्तियों को निचली सतह पर गुलाबी रंग का धब्बा बन जाता है|

रोकथाम- इसके नियंत्रण के लिए कॉपर जनित फफूंद नाशी जैसे कॉपर आक्सीक्लोराइड या ब्लू कॉपर के 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करना चाहिए|

फल सड़न रोग- यह रोग राइजोपस आर्टीकापी नामक फफूंद के कारण होता है| जिसमें नवजात फल डंठल के पास से धीरे-धीरे सड़ने लगते हैं| कभी-कभी विकसित फल को भी सड़ते हुए देखा गया है|

रोकथाम- इसके नियंत्रण के लिए फल लगने के बाद लक्षण स्पष्ट होते ही ब्लू कॉपर के 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का दो छिड़काव 15 से 20 दिनों के अन्तराल पर करें|

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फल परिपक्वता

कटहल के फलों को विकास के साथ कई प्रकार से उपयोग में लाया जाता है| अति नवजात एवं मध्यम उम्र के फल (जिसे सब्जी के लिए प्रयोग किया जाता है) को उस समय तोड़ना चाहिए, जब उसके डंठल का रंग गहरा हरा, गूदा कठोर और कोआ मुलायम हो| इसके साथ-साथ बाजार में माँग के आधार पर तोड़ाई को नियंत्रित कर सकते हैं| ताजा फल खाने के लिए फलों को पूर्ण परिपक्वता पर तोड़ना चाहिए|

साधारणत: फल लगने के 100 से 120 दिनों बाद तोड़ने लायक हो जाते हैं| इस समय तक डंठल तथा डंठल से लगी पत्तियों का रंग हल्का पीला हो जाता है| फल के ऊपर के कांटे विरल हो जाते हैं एवं कांटों का नुकीलापन कम हो जाता है| फलों को किसी तेज चाकू से लगभग 10 सेंटीमीटर डंठल के साथ तोड़ने से दूध का बहाना कम हो जाता है|

तोड़ते समय कटहल फलों को सीधा जमीन पर गिराने से फल फट जाते हैं| इसलिए फल के वृन्त को रस्सी से बांधकर धीरे-धीरे नीचे सावधानीपूर्वक उतार कर किसी छायादार स्थान पर रखना चाहिए| फलों के आपस की रगड़ से छिलके के भूरे होने का भय रहता है, जिससे फल की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है|

पैदावार 

कटहल के बीजू पौधे में 7 से 8 वर्ष में फलन प्रारम्भ हो जाता है| उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से कटहल की बागवानी करने पर एक विकसित वृक्ष से लगभग 150 से 350 किलोग्राम फल प्रति वर्ष प्राप्त होता है|

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