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Home » सेब में कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें: जाने उन्नत उत्पादन हेतु

सेब में कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें: जाने उन्नत उत्पादन हेतु

July 24, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

सेब में कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें

सेब के बागों या फलों को अनेक कीट व रोग हानी पहुंचाते है| सेब के कीटों में सैन जोस स्केल, सेब का रूईदार तेला, फूलों के कीट, पत्ता मोडक तथा फल खुरचने वाले कीट, सेब का फल पतंगा और छेदक कीट आदि प्रमुख है| वहीं रोगों में नर्सरी पौधों का अंगमारी, हेयरी रूट, श्वेत जड़ सड़न, कॉलर सड़न, कैंकर रोग, चूर्णिल आसिता, पत्तों के धब्बे, कजली छाले एवं फ्लाई धब्बे, फल सड़न और विषाणु रोग आदि प्रमुख है| जो सेब में आर्थिक स्तर से अधिक नुकसान पहुंचाते है|

जब इनका प्रकोप होता है, तो उत्पादन पर अत्यधिक विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा फल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है| इसलिए यदि कृषक बन्धु अपने सेब के बागों से इच्छित उपज लेना चाहते है, तो इन सब कीट व रोग की समय पर रोकथाम करनी चाहिए| इस लेख में बागान बन्धुओं के लिए सेब में कीट एवं रोग की रोकथाम कैसे करें, की जानकारी का उल्लेख किया गया है| सेब की वैज्ञानिक तकनीक से बागवानी कैसे करें, की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सेब की खेती कैसे करें

सेब में कीट नियंत्रण

सैन जोस स्केल- सेब के बाग में संक्रमित पौधों की छाल पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं| अधिक संक्रमण की अवस्था में छाल पर भूरे रंग की स्केल्ज की एक परत सी बन जाती है| जो देखने में ऐसी लगती है, जैसे राख छिड़की गई हो|

नियंत्रण-

बसन्त ऋतु में आधा इंच हरी कली की अवस्था तथा कलियों के सख्त गुच्छे की अवस्था के मध्य पैट्रोलियम स्प्रे तेल (टी एस ओ) की 4 लीटर मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- सेब के विकार एवं उनका प्रबंधन कैसे करें, जानिए अधिक उपज हेतु

सेब का रूईदार तेला- ये रूईदार तेले सेब के पौधों की जड़ों तथा वायवीय भागों पर कालोनी बनाकर रहते है| वायवीय भागों पर ये सफेद रूई के फाहे जैसे देखे जा सकते हैं| ये कीट तने, टहनियों तथा जड़ों से रस चूसते है तथा वहां पर मस्से बन जाते हैं| प्रभावित पौधों की बढ़वार रूक जाती है तथा ऐसे पौधों पर फल भी कम लगते हैं|

नियंत्रण-

1. छोटे पौधों (1 से 4 वर्ष) में फोरेट (10 से 30 ग्राम) या कार्बोफ्यूटान (30 से 50 ग्राम) के दाने जड़क्षेत्र में 5 सेंटीमीटर की गहराई पर डालें|

2. बड़े पेड़ों में ट्रायाजोफॉस (0.08 प्रतिशत) या फेनिट्रोथियोन (0. 05 प्रतिशत) या क्लोरपाइरीफॉस (0.04 प्रतिशत) का छिड़काव जून से अक्तूबर के मध्य करें|

3. अप्रैल के महीने में तने के चारों ओर 5 सेंटीमीटर मिट्टी निकालकर एक नाली बनाएं और उसमें फॉरेट (25 से 30 ग्राम) या कार्बोफ्यूरॉन (70 से 80 ग्राम) डालकर मिट्टी से वापस ढक दें|

फूलों के कीट- ये बहुत छोटे, पीले, भूरे या काले रंग के कीट सेब की कलियों और फूलों का भोजन करते है| जिससे उत्पादन के साथ-साथ सेब के पौधों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|

नियंत्रण-

गुलाबी कलियों की अवस्था में फैनिट्रोथियॉन (0.05 प्रतिशत) या क्लोरपाईरीफॉस (0.04 प्रतिशत) का छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- सेब की किस्में, जानिए उनका विवरण और क्षेत्र के अनुसार वर्गीकरण

पत्ता मोडक तथा फल खुरचने वाले कीट- सेब में हरे रंग की ये सुंडियां अप्रैल से मई में पत्तों को मोडना शुरू करती हैं तथा इस कीट की अन्तिम अवस्था अक्तूबर में फलों के छिलके को खुरचकर फलों को नुकसान पहुंचाती हैं|

नियंत्रण-

फलों के तुडान से लगभग 2 सप्ताह पहले कार्बारिल (0.05 प्रतिशत) या मैलाथियॉन (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव करें|

सेब का फल पतंगा- ये पतंगे जून के महीने में अण्डे देते हैं| अण्डे से निकलकर सुंडियां फलों में प्रवेश कर जाती हैं तथा विकासशील बीजों को खाती है| पूरी तरह विकसित डिम्भक फल के गूदे में सुरंग बनाकर बाहर निकल आते हैं और कोषावस्था के लिए दिवारों की दरारों में प्रवेश करते है|

नियंत्रण-

जून के मध्य में फैनिथियोन (0.05 प्रतिशत) या फेनिट्रोथियोन (0. 05 प्रतिशत) का छिड़काव करें और जुलाई के प्रथम सप्ताह में छिड़काव को दोहरायें|

छेदक कीट- ये कीट सेब की जडों, तने व टहनियों आदि में छेद करके उनको नुकसान पंहुचाते हैं| जिसकी वजह से पौधा कमजोर हो जाता है तथा सूखना शुरू हो जाता है| तने व शाखाओं के छेदक कीटों का अभास कीट की विष्ठा की गोलियों या शाखा के शिखर वाले भाग के सूखने से हो जाता है| जबकि जड़ों में इन कीटों के आक्रमण से पौधा कमजोर हो जाता है और उसकी बढ़वार रूक जाती है| ऐसी अवस्था में पत्तियां छोटी रह जाती हैं, पीली पड़ जाती हैं तथा सूखे के लक्षण प्रदर्शित करती हैं| कई बार तने व शाखा की छाल में दरारें आ जाती हैं|

नियंत्रण-

1. तना छेदक की रोकथाम के लिए नर्म तार से छेद को साफ करके छेद में पैराडाइक्लोरो बैन्जीन के दाने (0.5 ग्राम) डाल दें तथा चिकनी मिट्टी से छेद को बंद कर दें| पैराडाइक्लोरो बैन्जीन के स्थान पर पैट्रोल या मिथाईल पैराथियान (0.27 प्रतिशत) के घोल में सोखी हुई रूई का प्रयोग भी कर सकते हैं|

2. शाखा छेदक कीट की रोकथाम के लिए संक्रमित स्थान को मिथाइल पैराथियान (0. 27 प्रतिशत) से साफ करें या फैनीट्रोथियॉन (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव करें|

3. जड़ छेदक की रोकथाम के लिए तने के चारों ओर की मिट्टी को नवम्बर व मार्च के मध्य 10 से 20 लीटर क्लोरपाईरीफॉस (0.1 प्रतिशत) के घोल से सराबोर कर दें|

4. जून से जूलाई के महीने में तौलियों की मिट्टी में लीन्डेन धूल 300 ग्राम प्रति तौलिये के हिसाब से मिलायें|

यह भी पढ़ें- नींबू वर्गीय फसलों के रोग एवं दैहिक विकार और उनकी रोकथाम कैसे करें

सेब में रोग नियंत्रण

नर्सरी पौधों का अंगमारी रोग- इस रोग से संक्रमित सेब के पौधे पूर्णतया मर जाते हैं तथा बरसात के मौसम में सरसों के रंग जैसे छोटे-छोटे कवक जमीन के साथ वाले तने के भाग पर दिखाई देते हैं|

नियंत्रण-

1. संक्रमित पौधों को नष्ट कर दें|

2. थिराम (0.3 प्रतिशत) या ऑरियोलगीन (0.04 प्रतिशत) के घोल के साथ नर्सरी की सिंचाई करें|

3. बिजाई से पहले मिट्टी को पारदर्शी पौलीथीन शीट का प्रयोग करके जीवाणु रहित कर ले|

यह भी पढ़ें- आम के विकार एवं उनका प्रबंधन कैसे करें, जानिए अधिक उपज हेतु

हेयरी रूट- एक ही स्थान से रेशेदार जड़ों का गुच्छा जैसा निकलता है जो झाडू की तरह लगता है|

नियंत्रण-

1. जड़ों को चोट लगने या नुकसान पहुंचने से बचायें|

2. ग्राफ्टिंग के बाद पौधों को क्यारी में लगाने से पहले कॉपर सल्फेट (1 प्रतिशत) के घोल में 1.5 घण्टे तक डुबोयें|

श्वेत जड़ सड़न- इस बिमारी से प्रभावित वृक्षों की पत्तियां विरली व विकिर्ण, कम बढ़वार वाली व कांस्यवर्ण व पीली हो जाती हैं| ऐसे वृक्ष अन्ततः मर जाते हैं| वृक्ष की जड़े भूरे रंग की हो जाती हैं तथा बरसात के मौसम में सफेद रंग के रूईदार धागों जैसे कवक तन्तुओं से ढकी रहती हैं|

नियंत्रण-

1. तौलिये में पानी इक्ट्ठा न होने दें जल निकासी का उचित प्रबंध रखें|

2. संक्रमित जडों को नवम्बर से दिसम्बर में काटकर अलग कर दें तथा कटे भाग पर चौबटिया पेस्ट का लेप करें|

3. बरसात के मौसम में कम से कम तीन बार कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) के घोल से तौलिये की मिट्टी को तर कर दें|

यह भी पढ़ें- आम के बागों का जीर्णोद्धार कैसे करें, जानिए उपयोगी जानकारी

कॉलर सड़न- तने का जमीन के साथ वाला भाग भूरा, नर्म व स्पंज जैसा हो जाता है| खराब जल निकासी व्यवस्था के कारण यह बिमारी बहुत फैलती है|

नियंत्रण-

1. नवम्बर से दिसम्बर में तने के आस-पास की मिट्टी हटा कर तने वाले भाग को सूर्य की रोशनी में खुला छोड़ दें| सड़ी हुई छाल को सुरक्षा दें तथा घाव पर चौबटिया पेंट या कॉपर आक्सीक्लोराईड पेस्ट का लेप करें|

2. तने के 30 सेंटीमीटर दायरे में मैंकोजेब (0.3 प्रतिशत) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.5 प्रतिशत) या रिडोमिल एम जैड (0.3 प्रतिशत) के घोल से सिंचाई करें|

कैंकर रोग- इस रोग की वजह से तने और टहनियों पर विभिन्न प्रकार के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं| कैंकर की शुरूआत खुले घाव से होती है तथा छाल पर भूरे रंग के जलयुक्त गहरे धंसे हुए या काले रंग के फोड़े जैसे घाव बनते हैं| जिससे पौधे की छाल कगजी हो जाती है तथा घाव के ऊपर व नीचे उतक मर जाते हैं|

नियंत्रण-

1. पौधे पर झुलसे हुए तथा कैंकर युक्त भाग को काट दें|

2. कैकर युक्त भाग को स्वस्थ उतक तक खुरच दें तथा घाव पर चौबटिया या कॉपर आक्सीक्लोराईड पेस्ट लगायें|

3. फल तोड़ने के बाद तथा कलियां बनने के समय कॉपरआक्सीक्लोराईड (0.3 प्रतिशत) या कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) का छिडकाव करें|

यह भी पढ़ें- बागों के लिए हानिकारक है पाला, जानिए इसके प्रकार एवं बचाव के उपाय

चूर्णिल आसिता रोग- रोग के कारण कलियों, नयी टहनियों व पत्तों की बढ़वार प्रभावित होती है| इन भागों पर सफेद रंग के चूर्ण जैसे धब्बे बन जाते हैं| कुछ प्रजातियों जैसे जोनाथन के फलों में गेरूआपन आ जाता है|

नियंत्रण-

1. नर्सरी में जैसे ही रोग दिखाई दे बिटरटानौल (0.05 प्रतिशत) या हैक्साकोनाजोल (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव 14-14 दिनों के अन्तराल पर करें|

2. सुप्तावस्था, कलियां फूलने, पंखुडियां झड़ने तथा उसके दो सप्ताह बाद की अवस्थाओं में जलमोग्म गंधक (0.2 प्रतिशत) या कार्बेन्डाजिम (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव करें|

पत्तों के धब्बे- गर्मियों तथा बरसात के मौसम में पत्तियों पर विभिन्न आकार, रंग व रूप के दाग धब्बे ब न जाते हैं| जिन पत्तियों पर ये दाग धब्बे अधिक मात्रा में होते हैं, वे पीली पड़कर समय से पहले ही गिर जाती है|

नियंत्रण-

बरसात के मौसम में कार्बेन्डाजिम (0.05 प्रतिशत) मैंकोजेब (0.25 प्रतिशत) का छिड़काव 15 दिनों के अन्तराल पर करें|

कजली छाले एवं फ्लाई धब्बे- बरसात के मौसम में अत्याधिक आपेक्षिक आद्रता के कारण फलों की बाहरी सतह पर श्यामवर्णी (कजली) धब्बे बन जाते हैं| जिसकी वजह से फलों का विपण्न मूल्य कम हो जाता है|

नियंत्रण-

कैप्टान 75 डब्यू पी (0.2 प्रतिशत) या कार्बेन्डाजिम (0. 05 प्रतिशत) के दो छिड़काव 15 दिनों के अन्तराल पर इस तरह से करें, आखिरी छिड़काव फलों के तुड़ान से लगभग 20 दिन पहले करें|

यह भी पढ़ें- बागवानी पौधशाला (नर्सरी) की स्थापना करना, देखभाल और प्रबंधन

फल सड़न- सेब के फलों में पेड़ पर या भण्डारण के समय विभिन्न प्रकार के सड़न रोग लग जाते हैं|

नियंत्रण-

1. पेड़ पर फलों में सड़न हो तो फलों को तोड़कर नष्ट कर दें|

2. कैप्टान 75 डब्बलयू पी (0.2 प्रतिशत) या कार्बेन्डाजिम (0.05 प्रतिशत) या मैंकोजेब (0.03 प्रतिशत) के 2 छिडकाव 15 दिन के अन्तराल पर इस ढंग से करें कि आखिरी छिड़काव फलों के तुड़ान से लगभग 20 दिन पहले हो|

3. फलों को भण्डाण से पहले कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) के घोल में पांच मिनट तक डुबोयें|

4. फलों की ग्रेडिंग व पैकिंग के समय फलों में खरोंच न लगने दें|

विषाणु रोग- रोग की वजह से पत्तों पर मोजैक के लक्षण हो जाते हैं, पत्ते मुड़ जाते हैं तथा सिकुड़ कर छोटे हो जाते हैं, कलियों में अत्याधिक बहुप्रजता हो जाती है तथा फलों का उत्पादन घट जाता है|

नियंत्रण-

ग्राफ्टिंग या बडिंग के लिए कलम या कलिका संक्रमित पौधे से न लें|

यह भी पढ़ें- नींबूवर्गीय फसलों में समन्वित रोग एवं कीट नियंत्रण कैसे करें

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