
हमारे देश में सरसों समूह की उगाई जाने वाली फसलें राया-सरसों, पीली सरसों, भूरी सरसों, गोभी सरसों और तारामीरा आदि प्रमुख है| भारत मे सरसों समूह फसलों की उत्पादकता को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक है, जैसे- अच्छे से खेत की तैयारी न करना, क्षेत्र विशेष की उपयुक्त किस्मों का चयन नहीं करना, असंतुलित उर्वरकों का प्रयोग, पादप रोगों, कीटों व खरपतवारों की पर्याप्त रोकथाम न करना, कोहरा एवं पाला का प्रकोप होने पर फसलों का बचाव न करना, उचित समय पर फसल की कटाई न करना इत्यादि प्रमुख है|
इनमें से किसी एक भी कमी से फसल की पैदावार में भारी नुकसान हो जाता है| कुछ क्षत्रों में नमी की सीमित मात्रा एवं खरपतवारों का अधिक प्रकोप भी उपज पर प्रतिकूल प्रभाव डालते है| भिन्न भिन्न क्षेत्रों में बोआई का उपयुक्त समय भी अलग है| यदि सिर्फ पुरानी किस्मों को ही बदल दिया जाए तो उत्पादकता में 15 से 20 प्रतिशत की बढोतरी की जा सकती है|
वैज्ञानिक अनुसंधानो से पता चला है, कि उन्नतशील शस्य विधियों का समन्वित प्रबंधन करके सरसों समूह फसलों की पैदावार में डेढ़ से दो गुना वृद्धि की जा सकती है| इस लेख मे अच्छे उत्पादन के लिए सरसों समूह की फसलों के लिए खेत की तैयारी कैसे करें का उल्लेख किया गया है|
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सरसों समूह की फसलों से अच्छे उत्पादन हेतु मृदा का चयन और सुधार
यह फसल समतल और अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट से दोमट मिट्टी में अच्छी उपज देती है| अच्छी पैदावार के लिए जमीन का पी एच मान 6 से 7 होना चाहिए| अत्यधिक अम्लीय एवं क्षारीय मिट्टी इसकी खेती हेतु अच्छी नहीं है| यधपि क्षारीय भूमि में उसके अनुकूल किस्म लेकर इसकी खेती की जा सकती है| जहाँ की भूमि लवणीय हो वहाँ पर खेत में पानी भरकर बाहर निकाल देना चाहिए, जिससे लवण पानी के साथ घुल कर बाहर चले जायें|
अगर पानी के निकास का समुचित प्रबंध न हो तो प्रत्येक वर्ष सरसों लेने से पूर्व देंचा को हरी खाद के रूप में उगाना चाहिए| जहाँ की जमीन क्षारीय है वहाँ प्रति तीसरे वर्ष जिप्सम 250 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करनी चाहिए| जिप्सम की आवश्यकता मिटटी के पी एच मान के अनुसार भिन्न हो सकती है| जिप्सम को मई से जून में जमीन में मिला देना चाहिए|
सरसों समूह की फसलों से अच्छे उत्पादन हेतु गर्मी की जुताई
गर्मी की जुताई से कीटों, रोगों, खरपतवारों व भूमि में वायु संचार को नियंत्रित किया जा सकता है| भूमि में छिपे कीडे व अंडे, खरपतवारों के बीज, फफूंद एवं सूक्ष्म जीव जो बीमारियों को फैलाने में सहायक होते हैं, सूर्य की तेज किरणों से नष्ट हो जाते हैं| भूमि के छिद्र खुल जाते हैं, जिससे भूमि की जल सोखने की क्षमता बढ जाती है|
भूमि की निचली सतह पर पाए जाने वाले लाभदायक सूक्ष्म जीवों की क्रियाएं तेज होने के परिणामस्वरूप भूमि में जीवांश पदार्थों की मात्रा एवं भूमि की उर्वरा शक्ति बढ जाती है| इसी के साथ पौधों को पोषक तत्वों एवं खनिज पदार्थों की उपलब्धता बढ़ती है| मिट्टी पलटने वाले हल से 15 से 25 सेंटीमीटर गहराई तक गर्मी की जुताई करनी चाहिए| देशी हल द्वारा जुताई नहीं करें, क्योकि इसके द्वारा मिट्टी पलटना संभव नहीं है|
यदि खेत में ढलान हो तो जुताई ढलान के विपरीत दिशा में करनी चाहिए, जिससे वर्षा ऋतु में खेत से पानी व मिट्टी न बह पाएं| गर्मी की जुताई रबी फसल की कटाई के बाद प्रायः मई के प्रथम सप्ताह से जून के दूसरे सप्ताह के बीच करनी चाहिए| सरसों समूह की फसलों से अच्छी पैदावार के लिए ठीक से खेत तैयार करना जरूरी है, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए|
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सरसों समूह की फसलों से अच्छे उत्पादन हेतु बारानी स्थिति में
बारानी क्षेत्रों में भूमि तैयारी के वक्त नमी संरक्षण का विशेष ध्यान रखना चाहिए| भूमि की तैयारी वर्षा ऋतु से ही शुरू हो जाती है| खरपतवार नष्ट करने व नमी संरक्षण के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करें| इसके बाद हर प्रभावी बारिस के बाद खेत की जुताई करें तथा जुताई के तुरन्त बाद पाटा लगायें| यह नमी संरक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक है|
अन्तिम बारिस के बाद गहरी जुताई कर पाटा लगाकर नमी संरक्षण करें| इससे ज्यादा से ज्यादा वर्षा का पानी मिट्टी में जायेगा और मिट्टी के लवण की कुछ मात्रा भी फसल के जड़ क्षेत्र से नीचे चली जाएगी| बुवाई से पहले कल्टीवेटर से दो आड़ी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना दें| खेत में ढेले ना हों, क्योंकि इससे नमी में तेजी से कमी हो जाती हैं|
आखरी जुताई के समय 5 से 10 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग लाभकारी रहता है, साथ मे 25 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 से 35 किलोग्राम फास्फोरस, 25 किलोग्राम पोटाश ओर यदि कमी हो तो 20 किलोग्राम सल्फर का प्रति हेक्टेयर उपयोग किया जाता है| यदपि उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना लाभकारी पाया गया है|
सरसों समूह की फसलों से अच्छे उत्पादन हेतु सिंचित स्थिति में
सिंचित क्षेत्रों में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और उसके बाद तीन से चार जुताईयां तबेदार (हेरो) हल से करनी चाहिए| सिचिंत क्षेत्र में जुताई करने के बाद खेत में पाटा लगाना चाहिए जिससे खेत में ढैले न बने| अगर बोने से पूर्व भूमि में नमी की कमी है, तो खेत में पलेवा करना चाहिए| बोने से पूर्व खेत खरपतवार रहित होना चाहिए|
सिंचित क्षेत्रों में दो फसलीय पद्धति के अंतर्गत सरसों बुवाई के लिए भूमि की तैयारी, खरीफ फसलों की कटाई के बाद पलेवा देकर प्रारम्भ करें| पलेवा के बाद 2 या 3 जुताई करें व पाटा लगायें| हर दशा में खेत की मिट्टी को भुरभुरा व समतल बनायें|
आखरी जुताई के समय 15 से 20 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग लाभकारी रहता है, साथ मे 55 से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 60 किलोग्राम पोटाश ओर यदि कमी हो तो 20 किलोग्राम सल्फर का प्रति हेक्टेयर उपयोग किया जाता है|
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सरसों समूह की फसलों से अच्छे उत्पादन हेतु उत्पादन बढ़ाने के प्रमुख बिंदु
1. अच्छे उत्पादन के लिए सरसों समूह की फसल के अनुकूल भूमि का चयन करें|
2. क्षेत्र और मिटटी के अनुकूल किस्म का चयन करें|
3. यदि पूर्व की फसल के अवशेष खेत में है तो पहली जुताई कटर या मिटटी पलटने वाली मशीन से अवश्य करें|
4. सरसों की फसल के लिए गहरी जुताई के बाद दो से तीन जुताई देसी हल अथवा कल्टीवेटर से करने के बाद खेत की भूरबुरा और समतल बना लें|
5. यदि संभव हो तो अच्छे उत्पादन के लिए दूसरी जुताई के समय अच्छी गली-सड़ी गोबर अथवा कम्पोस्ट खाद मिटटी में मिला दें|
6. यदि खेत में दीमक का प्रकोप है, तो अंतिम जुताई से पहले 1.5 प्रतिशत चूर्ण क्लोरापाइरीफास 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर खेत में मिलाएं|
7. उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें|
8. सरसों समूह की फसलों की बुआई स्मी पर करें|
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