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Home » Blog » भिंडी की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

भिंडी की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

December 21, 2017 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

भिन्डी की खेती

भिंडी (Lady finger) की खेती: यह एक लोकप्रिय सब्जी है| सब्जियों में भिन्डी (Okra) का प्रमुख स्थान है, जिसे लोग लेडीज फिगर या ओकरा के नाम से भी जानते हैं| भिंडी की अगेती फसल लगाकर किसान भाई अधिक लाभ अर्जित कर सकते है| मुख्य रुप से भिंडी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवणों जैसे कैल्शियम, फास्फोरस के अतिरिक्त विटामिन- ए, बी, सी, थाईमीन और रिबोफ्लेविन भी पाया जाता है|

इसमें विटामिन ए और सी पर्याप्त मात्रा में पाये जाते है| भिंडी के फल में आयोडीन की मात्रा अधिक होती है| भिंडी का फल कब्ज रोगी के लिए विशेष गुणकारी होता है| अधिक उत्पादन और मौसम की भिन्डी की उपज प्राप्त करने के लिए संकर किस्मों का विकास कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किया गया हैं|

ये किस्में यैलो वेन मोजैक वाइस रोग को सहन करने की अधिक क्षमता रखती हैं| यदि भिंडी उत्पादक बन्धु वैज्ञानिक विधि से खेती करें, तो उच्च गुणवत्ता का उत्पादन कर सकते हैं| इस लेख में भिन्डी की खेती से अधिकतम पैदावार कैसे प्राप्त करें का विस्तार से उल्लेख किया गया है| भिंडी की जैविक खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- भिंडी की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

भिंडी की खेती के लिए भूमि और खेत की तैयारी

भिंडी के लिये दीर्घ अवधि का गर्म तथा नम वातावरण सर्वोतम माना जाता है| बीज उगने के लिये 27 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है लेकिन 17 डिग्री सेंटीग्रेट से कम पर बीज अंकुरित नहीं होते| यह फसल ग्रीष्म और खरीफ, दोनों ही ऋतुओं में उगाई जाती है| भिन्डी को उत्तम जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में उगाया जा सकता है| भिंडी की खेती के लिए भूमि का पी एच मान 7.0 से 7.8 होना उपयुक्त रहता है| भूमि की दो से तीन बार जुताई कर भुरभरी कर तथा पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए|

यह भी पढ़ें- समेकित पोषक तत्व (आईएनएम) प्रबंधन कैसे करें

भिंडी की खेती के लिए उन्नत किस्में

भिंडी उत्पादक बन्धुओं को अधिक पैदावार के लिए अपने क्षेत्र की प्रचलित भिंडी की किस्म का चयन करना चाहिए, इसके साथ साथ उस किस्म की विशेषताओं और उपज की जानकारी होना भी आवश्यक है| कुछ प्रमुख किस्में इस प्रकार है, जैसे- हिसार उन्नत, वी आर ओ- 6, पूसा ए- 4, परभनी क्रांति, पंजाब- 7, अर्का अनामिका, वर्षा उपहार, अर्का अभय, हिसार नवीन, एच बी एच और पंजाब- 8 आदि है, भिन्डी की किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- भिंडी की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार

भिंडी की खेती के लिए बीज और बुवाई की विधि

सिंचित अवस्था में 2.5 से 3 किलोग्राम और असिंचित दशा में 5 से 7 किलोग्राम प्रति हेक्टेअर बीज की आवश्यकता होती है| संकर किस्मों के लिए 5 किलोग्राम प्रति हेक्टर की बीजदर पर्याप्त होती है| भिन्डी के बीज सीधे खेत में ही बोये जाते है|

वर्षाकालीन भिंडी के लिए कतार से कतार दूरी 40 से 45 सेंटीमीटर और कतारों में पौधे की बीच 25 से 30 सेंटीमीटर का अंतर रखना उचित रहता है| ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई कतारों में करनी चाहिए| कतार से कतार की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर और कतार में पौधे से पौधे के मध्य दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए| बीज की 2 से 3 सेंटीमीटर गहरी बुवाई करनी चाहिए|

बुवाई के पूर्व भिंडी के बीजों को 3 ग्राम मेन्कोजेब कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए| पूरे खेत को उचित आकार की पट्टियों में बांट लें, जिससे कि सिंचाई करने में सुविधा हो| वर्षा ऋतु में जल भराव से बचाव के लिए उठी हुई क्यारियों में भिन्डी की बुवाई करना उचित रहता है|

भिंडी की खेती के लिए बुआई का समय

ग्रीष्मकालीन भिन्डी की बुवाई फरवरी से मार्च में और वर्षाकालीन भिंडी की बुवाई जून से जुलाई में की जाती है| यदि भिंडी की फसल लगातार लेनी है, तो तीन सप्ताह के अंतराल पर फरवरी से जुलाई के मध्य अलग-अलग खेतों में भिंडी की बुवाई की जा सकती है|

भिंडी की खेती के लिए खाद और उर्वरक

भिंडी की फसल में अच्छा उत्पादन लेने के लिए प्रति हेक्टेर क्षेत्र में लगभग 15 से 20 टन गोबर की खाद तथा नत्रजन, स्फुर और पोटाश की क्रमशः 80 किलोग्राम, 60 किलोग्राम व 60 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से मिट्टी में देना चाहिए| नत्रजन की आधी मात्रा स्फुर और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व भूमि में देना चाहिए| नत्रजन की शेष मात्रा को दो भागों में 30 से 40 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए|

यह भी पढ़ें- टपक सिंचाई प्रणाली: लाभ, देखभाल और प्रबंधन

भिंडी की खेती के लिए निराई व गुडाई

नियमित निराई-गुडाई कर खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए| बोने के 15 से 20 दिन बाद प्रथम निराई-गुडाई करना जरुरी रहता है| खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक नींदानाशकों का भी प्रयोग किया जा सकता है| खरपतवारनाशी फ्ल्यूक्लरेलिन की 1.0 किलोग्राम सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हेक्टर की दर से पर्याप्त नम खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से प्रभावी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है|

भिंडी की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन

सिंचाई मार्च में 10 से 12 दिन, अप्रैल में 7 से 8 दिन तथा मई से जून मे 4 से 5 दिन के अन्तर पर करें| बरसात में यदि बराबर वर्षा होती है, तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है|

भिंडी की खेती के लिए पौध संरक्षण

भिंडी की खेती के रोगों में यलो वेन मोजैक वाइरस और चूर्णिल आसिता तथा कीटों में मोयला, हरा तेला, सफेद मक्खी, प्ररोह, फल छेदक कीट और रेड स्पाइडर माइट मुख्य है| पहचान और रोकथाम के उपाय इस प्रकार है, जैसे-

रोग रोकथाम

पीत शिरा रोग (यलो वेन मोजैक वाइरस)- इस रोग से पत्तियों की शिराएं पीली पडने लगती है| पूरी पत्तियाँ और फल भी पीले रंग के हो जाते है| पौधे की बढवार रुक जाती है|

रोकथाम- इस रोग की रोकथाम के लिए आक्सी मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई सी या डायमिथोएट 30 प्रतिशत ई सी की 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस एल या एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एस पी की 5 मिलीलीटर मात्रा का प्रति 15 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें|

चूर्णिल आसिता- इस रोग में भिंडी की खेती की पुरानी निचली पत्तियों पर सफेद चूर्ण युक्त हल्के पीले धब्बे पड़ने लगते है| ये सफेद चूर्ण वाले धब्बे काफी तेजी से फैलते है|

रोकथाम- इस रोग का नियंत्रण न करने पर पैदावार 30 प्रतिशत तक कम हो सकती है| इस रोग की रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम मात्रा या हैक्साकोनोजोल 5 प्रतिशत ई सी की 1.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर 2 से 3 बार 10 से 15 दिनों के अंतराल पर छिडकाव करने चाहिए|

यह भी पढ़ें- सब्जियों में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

कीट रोकथाम

प्ररोह और फल छेदक- इस कीट का प्रकोप भिंडी की खेती में वर्षा ऋतु में अधिक होता है| प्रारंभिक अवस्था में इल्ली कोमल तने में छेद करती है, जिससे तना सूख जाता है| फूलों पर इसके आक्रमण से फल लगने के पूर्व फूल गिर जाते है| फल लगने पर इल्ली छेदकर उनको खाती है, जिससे फल मुड जाते हैं तथा खाने योग्य नहीं रहते है|

रोकथाम- नियंत्रण के लिए क्युनालफास 25 प्रतिशत ई सी या क्लोरपायरिफॉस 20 प्रतिशत ई सी या प्रोफेनफास 50 प्रतिशत ई सी की 2.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी के मान से छिडकाव करें एवं आवश्यकतानुसार छिडकाव को दोहराएं|

हरा तेला, मोयला एवं सफेद मक्खी- ये सूक्ष्म आकार के कीट पत्तियों, कोमल तने और फल से रस चूसकर नुकसान पहुंचाते है|

रोकथाम- नियंत्रण के लिए आक्सी मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई सी या डायमिथोएट 30 प्रतिशत ई सी की 1.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस एल या एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एस पी की 5 मिलीलीटर मात्रा को प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें तथा आवश्यकतानुसार छिडकाव को दोहराएं|

रेड स्पाइडर माइट- यह माइट पौधो की पत्तियों की निचली सतह पर भारी संख्या में कॉलोनी बनाकर रहता हैं| यह अपने मुखांग से पत्तियों की कोशिकाओं में छिद्र करता हैं| इसके फलस्वरुप जो द्रव निकलता है, उसे माइट चूसता हैं| क्षतिग्रस्त पत्तियां पीली पडकर टेढ़ी मेढ़ी हो जाती हैं| अधिक प्रकोप होने पर संपूर्ण पौधा सूख कर नष्ट हो जाता हैं|

रोकथाम- इस कीट के नियंत्रण के लिए डाइकोफॉल 18.5 ई सी की 2.0 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर या घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें तथा आवश्यकतानुसार छिडकाव को दोहराएं| कीट और रोग नियंत्रण की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- भिंडी फसल के प्रमुख कीट व रोग एवं उनका नियंत्रण कैसे करें

यह भी पढ़ें- ऑर्गेनिक या जैविक खेती: जाने उद्देश्य, प्रबंधन और फायदे

भिंडी की खेती से फलों की तुड़ाई व पैदावार

तुड़ाई- भिंडी की फली तुड़ाई किस्म की गुणवता के अनुसार 45 से 60 दिनों में फलों की तुडाई प्रारंभ की जाती है और 4 से 5 दिनों के अंतराल पर नियमित तुड़ाई की जानी चाहिए| तोड़ने में थोड़ा भी अधिक समय हो जाने पर फल कड़ा हो जाता है|

पैदावार- उपरोक्त विधि से उचित देखरेख, उचित किस्म, खाद व उर्वरकों के प्रयोग से प्रति हेक्टेअर 130 से 150 क्विंटल हरी फलियाँ प्राप्त हो जाती हैं|

यह भी पढ़ें- वर्षा आधारित खेती में आय बढ़ाने वाली उपयोगी तकनीकें

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