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Home » टमाटर की जैविक खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल और उत्पादन

टमाटर की जैविक खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल और उत्पादन

April 2, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

टमाटर की जैविक खेती

टमाटर की जैविक खेती आज के समय की आवश्यकता है, क्योंकि टमाटर खपत और उत्पादन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण सब्जी की फसल है| जिसका सीधा सम्बन्ध मानव स्वाथ्य से है| इसकी खेती लगभग पुरे देश में गृहवाटिका तथा व्यावसायिक स्तर पर की जाती है| इसकी मांग साल भर बनी रहती है| सलाद व सब्जी के अलावा इसे सूप, चटनी, सलाद, सॉस, स्कवैश आदि के रूप में भी उपयोग किया जाता है| टमाटर के प्रति 100 ग्राम में 0.9 ग्राम प्रोटीन, 0.8 ग्राम रेशे, 3.6 ग्राम कार्बोज और 20 से 25 कैलोरी ऊर्जा होती है| टमाटर पौष्टिक तत्वों से भरपूर है|

इसके फल में विटामिन- सी, ए, बी- 1 तथा बी- 2 पाये जाते है| टमाटर एन्टी ऑक्सीडेन्ट का अच्छा स्त्रोत होता है| इसलिए इसकी मांग के अनुसार खेती उत्पादकों के लिए फायदे का सोदा है| यदि किसान भाई इसकी आधुनिक तकनीक से जैविक खेती करें तो अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते है| इस लेख में टमाटर की जैविक खेती कैसे करें और उसके लिए किस्में, देखभाल और पैदावार की जानकारी का उल्लेख है|

यह भी पढ़ें- शिमला मिर्च की जैविक खेती, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

टमाटर की जैविक खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

टमाटर एक उष्ण कटिबन्धीय जलवायु की फसल है, वैसे टमाटर को गर्मियों तथा सर्दियों दोनों मौसमों में उगाया जाता हैं| पौधों की सर्वाधिक वृद्धि 34 से 39 डिग्री सेल्सियस तापमान पर होती है| टमाटर में सूखा सहने की क्षमता भी होती है, परंतु अधिक वाष्पोत्सर्जन के कारण बहुत गर्म और शुष्क मौसम में टमाटर के कच्चे फल गिरने लगते हैं|

तापक्रम और प्रकाश की तीव्रता का टमाटर के फलों के लाल रंग और खट्टेपन पर काफी प्रभाव पड़ता है| यही कारण है कि सर्दियों में फल मीठे और गहरे लाल रंग के होते हैं, जबकि गर्मियों में कुछ कम लाल तथा खट्टापन लिये होते हैं| इसके पौधे पाले से शीघ्र नष्ट हो जाते हैं| अधिक वर्षा वाले क्षेत्र टमाटर की खेती के लिए अनुपयुक्त रहते है|

टमाटर की जैविक खेती के लिए भूमि का चयन

उचित जल निकास वाली दोमट भूमि इसकी खेती के लिए अच्छी रहती है| अगेती फसल के लिए हल्की भूमि अच्छी होती है, जबकि अधिक उपज के लिये चिकनी दोमट और दोमट अच्छी रहती है| इसकी खेती 6 से 7 पी एच मान वाली भूमि में अच्छी होती है|

टमाटर की जैविक खेती के लिए खेत की तैयारी

पहली जुताई भूमि पलटने वाले हल से करें, इसके बाद 3 से 4 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करते है| प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाए, ताकि भूमि भुरभुरी और समतल हो जाये|

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टमाटर की जैविक खेती के लिए किस्मों का चयन

टमाटर की जैविक खेती हेतु किसानों को चाहिए की वे अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्म का चयन करें और जहां तक संभव हो जैविक प्रमाणित बीज ही उपयोग में लायें कुछ संकर और उन्नत किस्में इस प्रकार है, जैसे-

सर्दी की ऋतू हेतु- पूसा सदाबहार, पूसा रोहिणी, पूसा- 120, पूसा गौरव, पी एच- 8 और पी एच- 4 आदि है|

बसंत गर्मी ऋतू हेतु- पूसा सदाबहार, पूसा शीतल, पूसा- 120, पूसा उपहार और पूसा हाइब्रिड- 1 आदि है| किस्मों की अधिक जानकारी के यहाँ पढ़ें- टमाटर की संकर व उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार

टमाटर की जैविक खेती के लिए बुवाई का समय

इसके बीजों को सीधे खेत में न बोकर पहले नर्सरी में बोया जाता है| यानि की पौध तैयार की जाती है| जब पौध 4 से 5 सप्ताह बाद अर्थात 10 से 15 सेंटीमीटर की हो जाये तब इनकी खेत में रोपाई करते है| समय इस प्रकार है, जैसे-

खरीफ की फसल हेतु- टमाटर का बीज जून माह में ऊँची उठी हुई क्यारियों में बोया जाता है|

गर्मी की फसल हेतु- दिसम्बर से जनवरी में नर्सरी की क्यारियों में बोया जाता है|

सर्दी की फसल हेतु- सितम्बर में नर्सरी की क्यारियों में तैयार करते है|

टमाटर की जैविक खेती के लिए बीज की मात्रा

एक हेक्टेयर टमाटर की जैविक खेती हेतु 500 से 600 ग्राम उन्नत किस्मों के बीज की आवश्यकता होती है और संकर किस्मों के लिये बीज की मात्रा 200 से 250 ग्राम, एक हेक्टेयर के लिये उपयुक्त रहती है|

यह भी पढ़ें- नीम आधारित जैविक कीटनाशक कैसे बनाएं

टमाटर की जैविक खेती के लिए नर्सरी तैयार करना

क्यारी लगभग 1 मीटर चौड़ी तथा 6 इंच ऊंची होनी चाहिए, लम्बाई जरूरत के अनुसार रखें| क्यारी जो 3 मीटर लम्बी, एक मीटर चौड़ी तथा 10 से 15 इंच ऊंची आकार की हो, में 20 से 25 किलोग्राम गली सड़ी गोबर की खाद मिलाये| क्यारी सीधी तथा समतल रखें, ताकि बीच में पानी खड़ा न हो।

टमाटर की जैविक खेती के लिए मिट्टी का उपचार

सौर ऊर्जा द्वारा भूमि को रोगाणुरहित करने की इस तकनीक में भूमि को गर्मियों में सफर पारदर्शी पॉलीथिन से ढके, जिससे सौर ऊर्जा संचित होती है और भूमि का तापमान बढ़ने से इसमें उपस्थित रोगाणु या तो निष्क्रिय हो जाते हैं या मर जाते हैं| सौर ऊर्जा से भूमि के तापमान में वृद्धि भूमि के सामान्य तापमान की अपेक्षा 5 सेंटीमीटर गहराई पर 10 से 12 डिग्री सैल्सियस तक और इससे भी अधिक दर्ज की गई है| यह तकनीक भूमि जनित फफूंद जैसे कि फ्यूजेरियम, राइजोक्टोनिया और स्क्लेरोशियम आदि के बीजाणुओं को 40 दिनों में सौर ऊर्जा उपचार से पूरी तरह नष्ट करने में सक्षम है|

टमाटर की जैविक खेती के लिए बीजोपचार

टमाटर की जैविक खेती हेतु बीज को बोने से पहले गोमूत्र या नीम का तेल से उपचार के साथ-साथ बोआई के 2 से 3 घंटे पहले बीजों को ट्राइकोडर्मा और राइजोबियम या पी एस बी से भी उपचारित करें|

यह भी पढ़ें- एजाडिरेक्टिन (नीम आयल) का उपयोग खेती में कैसे करें

टमाटर की जैविक खेती के लिए बीजों में अंतराल (नर्सरी)

बीजों की बुआई लगभग 5 सेंटीमीटर गुणा 2 सेंटीमीटर के अंतराल पर और 0.5 से 1 सेंटीमीटर की गहराई पर की जानी चाहिए पानी लगाने के बाद क्यारियों को नमी बरकरार रखने के लिए घास और सूखी टहनियों से ढक देना चाहिए| लेकिन 50 प्रतिशत अंकुरण के बाद घास फूस को हटा देना चाहिए| ऐसा करने से कीटों तथा रोगों को नियंत्रित करने में भी मदद मिलेगी|

टमाटर की जैविक खेती की बिजाई और देखभाल

नर्सरी में उपचारित बीज को पंक्तियों में 5 सेंटीमीटर की दूरी पर बोये और पंक्तियों को मिट्टी तथा गोबर के मिश्रण से ढके| बिजाई के तुरन्त बाद क्यारी को सूखी घास से ढक दें| मौसम के अनुसार एक या दो बार सिंचाई करें| क्यारी में घनी बिजाई न करें और अधिक पानी भी न दें अन्यथा पौधों में कमर तोड रोग फैलने की संभावना रहती है| जब पौधे 8 से 10 सेंटीमीटर लम्बे हो जाये तो पंचगव्य के घोल का छिड़काव करें, जिससे पौधों में हरापन ज्यादा रहता है|

समय पर खरपतवार निकालते रहें तथा हल्की गुड़ाई के बाद अवांछनीय पौधों को निकाल दें| 4 से 6 सप्ताह में जब पौधे 10 से 15 सेंटीमीटर ऊंचे हो जाते हैं, तो पौधों में पानी देना कम कर दें और जिस दिन पौधों का रोपण करना हो उससे 1 से 2 घंटे पूर्व खूब पानी दें ताकि पौध बिना जड़ टूटे सरलता से उखाड़ी जा सके| रोपण शाम के समय कर एकमद सिंचाई करें, जब तक पौधे अच्छी तरह स्थापित न हो जायें, हर रोज सिंचाई करें|

टमाटर की जैविक खेती के लिए प्रो ट्रेज में पौध तैयार करना

टमाटर की पौध तैयार करने के लिए प्लास्टिक ट्रे जिसमें 3 इंच सुराख हो लें और इन्हें दो प्रकार के मिश्रणों से भरा जा सकता है| पहला जिसमें एक भाग गली सड़ी गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट तथा एक भाग कोकोपीट हो, दूसरा जिसमें तीन भाग कोकोपीट एक भाग केंचुआ खाद तथा एक भाग वर्मीकुलाईट हो ट्रे के एक-एक छिद्र में एक ही उपचारित बीज डालें| इन मिश्रणों के प्रयोग से पौधों में विभिन्न प्रकार के मिट्टी जनित रोग नहीं लगते और पौध स्वस्थ तथा सुदृढ़ बनती है| रोपण के बाद पौधे मरते नहीं तथा फसल उपज जल्दी तथा अधिक निकलती है|

यह भी पढ़ें- बैंगन की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में देखभाल और पैदावार

टमाटर की जैविक खेती के लिए पौध संरक्षण (नर्सरी)

पौध को चूषक कीटों जैसे सफेद मक्खी (वाइट फ्लाई) तथा कीटों से बचाव के लिए 15 दिन पुरानी पौध पर नीम के साबुन का छिड़काव (7 ग्राम प्रति लीटर पानी) किया जाता है| प्रतिरोपण (बुआई से 20 दिन बाद) के 2 से 3 दिन पूर्व पानी में थोड़ी कमी कर तथा प्रतिरोपण से 1 से 2 दिन पूर्व उन्हें सीधे धूप के संपर्क में लाकर पौध को सख्त किया जाता है| खेत में प्रतिरोपण से 12 घंटे पूर्व पौध को अच्छी तरह पानी दें| एक अच्छी पौध मजबूत और 4 से 5 पत्ते (लगभग 4 सप्ताह पुरानी) वाली होती है|

रोगों से बचाव के लिए पौध को प्रतिरोपण से पूर्व सुडोनोमास फ्लोरोसेन्स (10 ग्राम प्रति लीटर पानी) में भिगोया जाता है| टमाटर की नर्सरी पौध की जड़ को 15 से 30 मिनट तक हींग के घोल (एक बर्तन में 5 लीटर पानी में लगभाग 100 ग्राम हींग मिलाएं और अच्छी तरह हिलायें) में डुबोएं तथा मुरझाने संबंधी मिटटी जनित रोग कारकों से बचाव के लिए पौध को मुख्य खेत में प्रतिरोपित करें|

टमाटर की जैविक फसल में जैविक खाद प्रबंधन

दलहनी या फलीदार परिवार की फसलों के साथ आवर्तन से मिटटी में नाइट्रोजन की स्थिति समृद्ध होती है| टमाटर की जैविक खेती हेतु आखिरी बार जुताई करते समय लगभग 40 टन भली भांति अपघटित गोबर की खाद या 8 से 10 टन वर्मी कम्पोस्ट या कम्पोस्ट खाद का प्रयोग किया जाता है| खाद में 500 ग्राम प्रति टन की दर से ट्राईकोडर्मा का प्रयोग भी किया जा सकता है| 1 मीटर के अंतराल पर मेंढ़ और नाली बनाई जाती है तथा मेंढ़ बनाते समय और प्रतिरोपण के 7 सप्ताह बाद भी 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से नीम की खली का प्रयोग किया जाता है|

टमाटर की जैविक खेती के लिए रोपण व दुरी (मुख्य खेत)

टमाटर की जैविक खेती में अच्छी वायु प्रवाह तथा पर्णीय रोगों को तेजी से फैलाव को न्यूनतम करने के लिए टमाटर की जैविक खेती के लिए 60 x 45 सेंटीमीटर बौनी किस्मों के लिए और 90 x 30 सेंटीमीटर ऊंची किस्मों के दुरी की सिफारिश की जाती है| पॉली हाऊस में पंक्तियों की दूरी 70 से 90 रखी जाती रखी जाती है|

यह भी पढ़ें- जैविक कीटनाशक कैसे बनाएं, जानिए आधुनिक तकनीक

टमाटर की जैविक फसल में सिंचाई प्रबंधन

प्रतिरोपण के तत्काल बाद, फूल आने के दौरान और फल के विकास होने के दौरान टमाटर पानी की कमी के प्रति सर्वाधिक संवेदी होता है| फसल की अच्छी बढ़ौतरी के लिए, सही समय पर नालियां द्वारा या ड्रिप सिंचाई प्रभावी होती है| प्रात:काल पौधे मुरझाने से पता चलता है कि फसल की सिंचाई की जानी चाहिए| शुष्क मौसम के दौरान प्रतिरोपण के बाद पहले 3 से 4 दिन के अंतराल पर सिंचाई और तदोपरांत फसल तैयार होने तक 5 से 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिए|

टमाटर की जैविक खेती में कांट-छांट तथा सहारा देना

लम्बी किस्मों में अधिक ऊंचाई के कारण सहारे की आवश्यकता होती है, जिसके लिए तने की सतह से पौधों को सुतली या रस्सी से सहारा दिया जाता है| टमाटर के पौधे में मुख्य तने ही रखें तथा इनमें निकलने वाली अन्य शाखाओं को समय-समय पर निकालते रहें| पौधों को सहारा देने से फल मिट्टी तथा पानी के सम्पर्क में नहीं आते जिससे वे सड़ने वाले रागों से बचे रहते हैं| इस क्रिया से प्रति वर्ग मीटर ज्यादा पौध भी रोपे जा सकते है, जिससे उत्पादन में भी वृद्धि होती है|

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  • टमाटर की जैविक फसल में खरपतवार प्रबंधन
  • टमाटर का भण्डारण

टमाटर की जैविक फसल में खरपतवार प्रबंधन

हाथ द्वारा खरपतवार निकालने से मिटटी ढीली होती है| टमाटर की जैविक खेती में निराई प्रतिरोपण के बाद तीसरे और सातवें सप्ताह में की जा सकती है| अन्य निराई आवश्यकतानुसार करें| खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए फसल चक्र अपनाएं, फसल को ढके और पलवार (मल्चिंग) करें| पंक्तियों में, मल्चिंग बनाकर खरपतवार को नियंत्रित कर सकते हैं| ये तिनके अथवा निराई-गुड़ाई के घास से जैविक मल्च भी हो सकती है|

यह भी पढ़ें- न्यूक्लियर पॉली हाइड्रोसिस एवं बैसिलस थूरिनजियेन्सिस का उपयोग

टमाटर की जैविक फसल में कीट और रोग रोकथाम

टमाटर की जैविक फसल को बहुत से हानिकारक कीट एवं रोग प्रभावित करते है| जिससे टमाटर फसल में उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| प्रमुख कीट- कटवा कीड़ा, फल छेदक, फल मक्खी, माईट, सफेद मक्खी, सुरंगी कीड़ा, जड़ गांठ, सूत्रकृमि आदि है, वही प्रमुख रोग-,कमर तोड़ रोग, फल सड़न रोग, पछेती झुलसा रोग, पत्तों का धब्बा रोग, पाउडरी मिल्ड्यू रोग आदि है| टमाटर फसल में जैविक विधि से कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें का विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- टमाटर फसल में जैविक विधि से कीट एवं रोग रोकथाम कैसे करें

टमाटर की जैविक खेती के फलों की तुड़ाई

टमाटर के फलों की तुड़ाई इस बात पर निर्भर करती है, कि उन्हें कितनी दूर ले जाना है| आमतौर पर फलों को हरी परिपक्व जब फल के निचले भाग के एक चौथाई हिस्से में गुलाबी रंग आ जाए ऐसी अवस्था में तोड़कर दूर मंडियों में भेजा जा सकता है|

टमाटर की जैविक खेती से पैदावार

टमाटर की जैविक खेती द्वारा उपरोक्त तकनीक से सामान्य किस्मों की पैदावार 300 से 450 क्विंटल प्रति हैक्टेयर और संकर किस्मों की 450 से 650 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है परन्तु औसतन पैदावार कई संकर किस्मों की अधिक भी हो सकती है|

टमाटर का भण्डारण

टमाटर का भण्डारण 10 से 15 सेंटीग्रेट तापमान और 80 से 85 प्रतिशत सापेक्षित आर्द्रता में 30 दिन तक किया जा सकता है| जब फलों का तुड़ान हरे रंग से पीले रंग में परिवर्तित हो रहा हो तो पके हुए टमाटर सामान्य तापमान पर 10 दिन तक रखे जा सकते हैं|

यह भी पढ़ें- स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस का उपयोग खेती में कैसे करें

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