• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Blog
  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post
Home » Blog » जौ में समेकित कीट नियंत्रण कैसे करें | जौ फसल बचाव के उपाय

जौ में समेकित कीट नियंत्रण कैसे करें | जौ फसल बचाव के उपाय

December 5, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

जौ में समेकित कीट नियंत्रण कैसे करें

आप सभी बन्धु जानते है की हम प्राचील काल से ही कृषि प्रधान देश रहा है| जौ की फसल उत्तर भारत के अधिकांश प्रदेशों में उगाई जाती है| कीटों, रोगों और सूत्रकृमियों के कारण जौ में 10 से 30 प्रतिशत तक उत्पादन की हानि हो जाती है| जिससे दाना और बीज की गुणवत्ता भी खराब हो जाती हैं| जौ में प्रमुख रुप से दीमक, कर्तन कीट, सैनिक कीट, तना मक्खी और बाली का निमाटोड इत्यादि लगने की सम्भावना रहती हैं|

उत्तम बीज एवं उत्पादन तकनीक ने भारत को इस क्षेत्र में आत्मर्निभर बनाया है| उत्तम तकनीकों में विभिन्न कृषि रसायनों के प्रयोग और अधिक खाद की आवश्यकता के कारण उत्पादन की लागत लगातार बढ़ रही हैं| आज इस विकास की होड़ में ज्यादा से ज्यादा उत्पादन लेने की प्रतिस्पर्धा लगी हुई है, जिससे रसायनों का अन्धाधुन्ध प्रयोग भी बढ़ता जा रहा है|

इसके दुष्परिणाम भी अब परिलक्षित होने लगे हैं| इन रसायनों के कारण न सिर्फ वातावरण और भूमिगत जल दुषित हो रहा है, नही तो कीटों में इन दवाओं के प्रति अवरोधिता भी बढ़ गई तथा कीटनाशी अप्रभावी सिद्ध हो रहे है| रसायनों के अधिक प्रयोग से केचुए भी इन रसायनों की भेंट चढ़ रहे हैं|

खाद्य पदार्थों में कीटनाशियों के अवशेष भी पाए जाने लगे हैं, जिसके परिणामस्वरुप मनुष्य और पशुओं में विभिन्न प्रकार के रोग जैसे अंगों का विकृत होना पाया जाने लगा है| इसलिए जरुरी है कि कीट नियंत्रण की ऐसी तकनीक अपनायी जाए जिससे अधिक उत्पादन के साथ-साथ लागत कम हो और मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित भी हो|

यह भी पढ़ें- जौ के प्रमुख रोग एवं रोकथाम

समेकित कीट नियंत्रण में कम से कम रसायनों का प्रयोग, सस्य क्रियाओं में सुधार एवं कीटों की निगरानी रखते हुए कीटों का उचित समय पर नियंत्रण किया जाता है|

सुनियोजित और विवेकपूर्ण फसल प्रबंधन योजनाएं ही फसलों पर लगने वाले कीटों से सुरक्षित कर अधिक उपज में मुख्य भूमिका निभाती है| आज जौ की फसल उगाने में बाधाएं आ रही हैं। उसको सुलझाने में सुरक्षा का विशेष महत्व है| इसलिए इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए जौ में लगने वाले कीटों को एक सीमा तक नियंत्रण कर दिया जाए तो जौ की उत्पादकता को बढ़ाते बढ़ाया जा सकता है| जौ की उत्तम खेती के लिए यहां पढ़ें- जौ की खेती की जानकारी

जौ में कीट नियंत्रण

दीमक

लक्षण- यह जौ का प्रमुख हानिकारक कीट है, जो असिंचित एवं हल्की भूमि में अधिक नुकसान पहुँचाता है| इसके प्रकोप से 25 प्रतिशत तक अंकुरित पौधे नष्ट हो जाते हैं और इसका प्रकोप फसल की सम्पूर्ण अवस्थाओं में पाया जाता है| दीमक हल्के भूरे रंग की होती है और यह जमीन में सुरंग बनाकर रहती है तथा पौधों की जड़ों को काटकर क्षतिग्रस्त कर देती हैं| इससे प्रभावित पौधे धीरे-धीरे सूख जाते हैं एवं ऊपर खींचने पर आसानी से निकल जाते हैं| लेकिन इसका प्रकोप खण्ड़ों में कही कही होता हैं, जिससे इसे आसानी से पहचाना जा सकता है|

नियंत्रण-

1. बीज को बुआई से पूर्व इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस 0.1 प्रतिशत से उपचारित करें|

2. जौ में समेकित कीट प्रबंधन के तहत प्रभावित खेत में सिंचाई समय-समय पर करते रहें|

3. दीमक का अधिक प्रकोप होने पर क्लोरपाइरिफॉस 20 ई सी की 4 से 5 लीटर मात्रा को बालू रेत में मिलाकर प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें|

यह भी पढ़ें- धान व गेहूं फसल चक्र में जड़-गांठ सूत्रकृमि रोग प्रबंधन

पत्ती का माहू

लक्षण- यह कीट भारत के सभी क्षेत्रों में पाया जाता है और यह पंखहीन व पंखवाला दोनों अवस्था में होता है| इस कीट का प्रकोप लगभग जनवरी से शुरु होकर मार्च तक रहता है| यह फसल की पत्तियों का रस चूसकर नुकसान पहुँचाता है और इसके मल से पत्तियों पर चिपचिपाहट तथा काली रंग की फफूद पैदा हो जाती हैं| जिससे फसल का रंग खराब हो जाता है तथा पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है|

नियंत्रण-

1. जौ की फसल में नत्रजन उर्वरकों का अधिक प्रयोग न करें|

2. जौ में समेकित कीट प्रबंधन हेतु कीट के शुरु के आक्रमण ग्रसित प्ररोहों को तोड़कर नष्ट कर दें|

3. माहू का प्रकोप होने पर पीले चिपचिपे टैप का प्रयोग करें, जिससे माहू ट्रैप पर चिपक कर मर जाए|

4. आवश्यकता होने पर मैलाथियान 50 ई सी का या डाइमेथोएट 30 ई सी या मेटासिस्टॉक्स 25 ई सी, 2 से 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें|

सैनिक कीट (आर्मी वर्म)

लक्षण- प्रौढ कीट भूरा रंग का होता है, मादा कीट पर्ण छेद और तने की मध्य में अण्डे देती है| नवजात सूण्डी बहुत गतिशील होती हैं, जो शुरु में मटमैली सफेद और बाद में हरी हो जाती है| इस कीट की सूण्डी जौ की फसल को नुकसान पहुंचाती है और यह सूण्डी मार्च के महीने में सर्वाधिक पायी जाती हैं| अण्डों से निकली सूण्डी हवा के झोंको से एक पौधों से दूसरे पौधों तक पहुंच जाती है|

प्रथम अवस्था में ये पौधे के मध्य वाली कोमल पत्तियों को खाती है| जैसे-जैसे सूण्डी बढ़ती है, तो उसके साथ-साथ पुरानी पत्तियों को खाने लगती है तथा पत्तियों में मात्र मुख्य शिरा बचता है, इस प्रकार पौधा कंकाल का रुप ले लेता हैं| बड़ी सूण्डियां बालियों को पत्तियों सहित खाती है और साथ ही अपरिपक्व दानों को भी खाती है| इसलिए इसे बाली खाने वाला कीट भी कहा जाता है|

नियंत्रण-

1. फसल की बुआई से पूर्व खेत में खड़े हुए पूर्व के अवशिष्टों को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए|

2. जौ में समेकित कीट प्रबंधन हेतु खेत और आस-पास खड़े खरपतवार को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए|

3. कीट का प्रकोप होने पर डाइमेथोएट 30 ई सी की 1.5 से 1.75 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में या क्विनॉलफॉस 25 ई सी 1 लीटर या डायक्लोरफोंस 76 प्रतिशत 500 मिलीलीटर को 650 से 700 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- खरपतवारनाशी रसायनों के प्रयोग में सावधानियां एवं सतर्कता बरतें

प्ररोह मक्खी या तना मक्खी

लक्षण- इस कीट का प्रौढ़ घरेलू मक्खी जैसा होता है और मेगट गुलाबी सफेद हो जाता है| यह कीट नवम्बर से मार्च तक पाया जाता है, लेकिन नवंबर से दिसंबर में अधिक सक्रिय रहता है| मादा कीट नर कीट से बड़ी होती है, मादा मक्खी तने के निचले भाग में या पत्तियों के नीचे अण्डे देती हैं| अण्डे से मैगट निकलकर तने में छेद करके अन्दर प्रवेश कर जाते हैं तथा अंदर से तने को ख़ाते रहते हैं| तने के अंदर सुरंग बनाकर मृत केन्द्र डैड हर्ट का निर्माण करती है, जिसके कारण पौधा पीला पड़ जाता है एवं अन्त में सूख जाता हैं| पूर्ण विकसित मैगट तने के निचले भाग में प्यूपा में परिवर्तित हो जाता है और 6 से 7 दिन बाद व्यस्क कीट बन जाता है|

नियंत्रण-

1. जौ में समेकित कीट प्रबंधन हेतु एक ही खेत में लगातार जौ की फसल न उगाए और फसल-चक्र अपनायें|

2. जौ की फसल की बुआई 15 नवंबर के बाद करें|

3. खेत में पानी की मात्रा पर्याप्त होने पर इस कीट का प्रकोप कम होता है|

4. कीट का प्रकोप होने पर साइपरेमथिन 25 प्रतिशत का 350 मिलीलीटर या मोनोक्रोटोफॉस 36 प्रतिशत एस एल 650 मिलीलीटर मात्रा का पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें और कार्बरिल 10 प्रतिशत डी पी 25 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- सस्य क्रियाओं द्वारा कीट नियंत्रण

कर्तन कीट

लक्षण- इस कीट का प्रकोप देश के प्रत्येक भाग में होता है, कीट का व्यस्क मटमैला भूरा और सूण्डी हरे या काले भूरे रंग की होती है| इस कीट की सूण्डियां खेत में एक साथ आक्रमण करके संपूर्ण पत्तियों को नष्ट कर देती है| मादा कीट रात के वातावरण में निकलकर पतियों पर अण्डे देती हैं, इसकी सूण्डी जमीन में जौ के पौधे के पास मिलती है तथा जमीन की सतह से पौधों को काट देती हैं|

नियंत्रण-

1. खेतों के पास प्रपंच या फेरोमोन ट्रैप 20 प्रति हैक्टर के हिसाब से लगाकर प्रौढ कीटों को आकर्षित करके नष्ट किया जा सकता हैं, जिससे इनकी संख्या को कम किया जा सकता है।

2. खेतों के बीच में जगह-जगह घास-फूस के छोटे-छोटे ढेर शाम को लगा देने चाहिए, रात्रि में जब सूण्डियां खाने निकलती है और बाद में इन्हीं में छिपेंगी, घास-फूस को हटाने पर आसानी से नष्ट किया जा सकता है|

3. कीट का प्रकोप बढ़ने पर डाईमेथोएट 30 ई सी को 1.5 से 20 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर, प्रति लीटर पानी में या क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई सी 1 लीटर प्रति हेक्टेयर या नीम का तेल 3 प्रतिशत की दर से प्रभावित खेत में छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- समेकित कृषि प्रणाली क्या है, इससे कैसे बढ़ सकती है किसानों की आय

प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

“दैनिक जाग्रति” से जुड़े

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

करियर से संबंधित पोस्ट

आईआईआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कट ऑफ, प्लेसमेंट

एनआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कटऑफ, प्लेसमेंट

एनआईडी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, फीस, कट ऑफ, प्लेसमेंट

निफ्ट: योग्यता, प्रवेश प्रक्रिया, कोर्स, अवधि, फीस और करियर

निफ्ट प्रवेश: पात्रता, आवेदन, सिलेबस, कट-ऑफ और परिणाम

खेती-बाड़ी से संबंधित पोस्ट

June Mahine के कृषि कार्य: जानिए देखभाल और बेहतर पैदावार

मई माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

अप्रैल माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

मार्च माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

फरवरी माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

स्वास्थ्य से संबंधित पोस्ट

हकलाना: लक्षण, कारण, प्रकार, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

एलर्जी अस्थमा: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

स्टैसिस डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान, इलाज

न्यूमुलर डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, डाइट, निदान और इलाज

पेरिओरल डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, निदान और इलाज

सरकारी योजनाओं से संबंधित पोस्ट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार: प्रशिक्षण, लक्षित समूह, कार्यक्रम, विशेषताएं

राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम: लाभार्थी, योजना घटक, युवा वाहिनी

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार: उद्देश्य, प्रशिक्षण, विशेषताएं, परियोजनाएं

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना | प्रधानमंत्री सौभाग्य स्कीम

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, पेंशन, देय और ऋण

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap