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Home » Blog » चमेली की खेती: किस्में, बुवाई, पोषक तत्व, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

चमेली की खेती: किस्में, बुवाई, पोषक तत्व, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

August 9, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

चमेली की खेती

चमेली की खेती (Jasmine farming) एक महत्वपूर्ण फूल की फसल है, जो व्यापारिक स्तर पर पूरे भारत में हर स्थान पर की जाती है| चमेली की खेती (Jasmine farming) का पौधा 10 से 15 फीट की ऊंचाई तक पहुंच जाता है| इसके सदाबाहार पत्ते किस्म के आधार पर 2 से 3 इंच लम्बे, हरे, तना पतला और सफेद रंग के फूल पैदा करते है| इसके फूल मार्च से जून के महीने में खिलते हैं| इसे मुख्य तौर पर पुष्पमाला, सजावट और भगवान की पूजा के लिए प्रयोग किया जाता है| इसकी अत्याधिक सेन्ट जैसी सुंगंध के कारण इसको परफ्यूम और साबुन, क्रीम, तेल, शैम्पू और कपड़े धोने वाले डिटर्जेंट में खुशबू के लिए प्रयोग किया जाता है| भारत में पंजाब, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और हरियाणा इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं|

किसान भाइयों के लिए चमेली की खेती (Jasmine farming) वरदान साबित हो सकती है| क्योंकि सुगंधित पुष्पों में चमेली के पुष्प का अपना अनोखा ही महत्व है| चमेली की 20 से 25 प्रजातियां हैं, जो कि संसार के विभिन्न भागों में पाई जाती हैं| शहरों के निकट बड़े पैमाने पर चमेली की खेती की जाती है| यदि उत्पादक बन्धु चमेली की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें तो अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है| इस लेख में चमेली की उन्नत खेती कैसे करें की जानकारी विस्तार के साथ दी गई है|

उपयुक्त जलवायु

चमेली की खेती (Jasmine farming) ऊष्ण व नम जलवायु में सबसे अच्छी होती है| साधारण दशाओं में ऊष्ण व उपोष्ण जलवायु इसके लिए उत्तम समझी जाती है| इसकी कुछ किस्में शीतोष्ण जलवायु में भी आसानी से उगाई जा सकती हैं| इसके पौधों की वृद्धि के लिए 24 सेंटीग्रेट से 32सेंटीग्रेट तापमान सबसे उपयुक्त रहता है|

यह भी पढ़ें- ग्लेडियोलस की खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार

उपयुक्त भूमि

चमेली की खेती के लिए दोमट भूमि, जिसमें जीवांश पर्याप्त मात्रा में हो, सिंचाई व जल निकास के उचित साधन हो व भूमि में किसी तरह की सख्त सतह न हो, सबसेउपयुक्त मानी जाती है| अच्छी खेती के लिए, मिट्टी का पीएच मान 6.5 होना चाहिए|अम्लीय क्षारीय मृदाओं में इनका समुचित विकास नहीं हो पाता है, अत: ऐसी मृदाओं में इनकी खेती न करें|

खेत की तैयारी

चमेली की खेती (Jasmine farming) के लिए खेत की तैयारी में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके दो से तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करना चाहिए| जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल करते हुए भुरभुरा बना लेना चाहिए| भूमि की तैयारी के समय पुरानी फसलों के अवशेषों को इकट्ठा करके जला दें| इसी समय 300 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी खाद भी मिला देनी चाहिए|

चमेली की खेती के लिए 15 दिन पहले खेत में गड्डे खोदने चाहिए, गड्डों की आपसी दुरी के 1 से 3 मीटर तक किस्म के अनुसार के अनुसार रखी जाती है, कम फैलने वाली किस्मों में आपसी दुरी कम रखी जाती है, 45 से 60 क्यूबिक सेंटीमीटर आकार के गड्डे खोदने चाहिए|

उन्नतशील किस्में

सी ओ- 2 (जुई)- इस किस्म के फूल की कलियां मोटी और कोरोला ट्यूब लम्बी होती है| इसकी औसतन पैदावार 46 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| यह फायलोडी बीमारी की रोधक होती है|

सी ओ- 1 (चमेली)- यह किस्म टी एन ऐ यू(तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी) द्वारा विकसित की गई है| इसकी औसतन पैदावार 42 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| यह कमज़ोर फूलों और तेल निष्कर्य के लिए उपयुक्त होती है|

सी ओ- 2 (चमेली)- इस किस्म की कलियां मोटी, गुलाबी रंग की और लम्बी कोरोला ट्यूब होती है| इसकी औसतन पैदावार 48 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

जैसमिनस क्लोफाइलम- इसकी किस्म की पत्तियां कुछ पीलापन लिए हुए हरे रंग की होती हैं| पौधे चढ़ने वाला, झाड़ीनुमा होते हैं| जिसे सहारे की आवश्यकता होती है| इसके पुष्प लगभग वर्षभर उपलब्ध होते रहते हैं| प्रतिवर्ष प्रति पौधा लगभग 3 से 4 किलोग्राम फूल मिलते हैं| फूल आकार में छोटे सफेद व खुशबूदार होते हैं|

गुंडुमाली- इसके फूल गोलाकार और सुगंधित होते है| इसकी औसतन पैदावार 29-33 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

अन्य किस्में- एच.एस 18, एच.एस 85, एच.एस 82, जैस्मिन फेक्सिल, जैस्मिन पवलिसेंस, जैस्मिन एरीकूलाटम आदि है|

यह भी पढ़ें- गुलाब की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल, पैदावार

दोहरी पंखडीनुमा किस्में-

मोतियाँ- यह एक अत्यंत प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय किस्म है, इसकी कुछ उपकिस्में भी पाई जाती है, इस जाति के पौधे की पत्तियां लगभग 8 सेंटीमीटर लम्बी और 6 से 7 सेंटीमीटर चौड़ी होती है, कलियाँ गोल होती है, पुष्प दोहरी पंखुड़ियों वाले वृत्ताकार होते है| फूल 3 सेंटीमीटर तक चौड़े होते है, पंखुडियां लगभग 4 कतारों में पाई जाती है| यह अपनी सुगंध के लिए बहुत ही लोकप्रिय है, फूल मोटे डबल 10 से 20 पंखुड़ी वाले होते है|

मदनमान- इस किस्म के पौधों की पत्तियां लम्बी कुछ हल्के हरे रंग की होती है, पत्तियां 10 सेंटीमीटर लम्बी और 5 सेंटीमीटर चौड़ी होती है| पत्तियां नीचे की ओर पतली और ऊपर की ओर नुकीली होती है, पत्तियां चिकनी होती है, कलियाँ लम्बी एवं नुकीली होती है, खिले हुए पुष्प लगभग 3 सेंटीमीटर चौड़े होते है| जिसमे पंखुड़ियों की चार कतारें होती है, इस किस्म के फूलों की सुगंध सर्वोत्तम रहती है|

पालमपुर- इस किस्म की पत्तियां हरी होती है| जो लगभग 10 सेंटीमीटर लम्बी और 7 सेंटीमीटर चौड़ी होती है| पत्तियां आगे की ओर नुकीली और नीचे की ओर गोलाई लिए होता है| एक पुष्प शाखा पर 3 कलियाँ निकलती है, कलियाँ लगभग 3 सेंटीमीटर और 1.5 से 2 सेंटीमीटर चौड़ी होती है| फूल श्वेत और देखने में अत्यंत आकर्षक लगते है, फूलों में पंखुड़ियों की चार कतारें पाई जाती है|

मोगरा- इस किस्म के पत्ते गोल, शाखा पर एक ही जगह 3 या 4 होते है| इस किस्म के पुष्प की पंखुड़ियों में अनेक चक्र होते है, पंखुडियां गुथी हुई घनी और वृत्ताकार होती है| कलियों का व्यास लगभग 6 सेंटीमीटर होता है, पुष्प देखने में अत्यंत सुन्दर लगते है| इसके फूलों से निरंतर सुमधुर सुगंध निकलती है| इसकी कुछ किस्में ऐसी भी है जिनमे थोड़ी भिन्नता पाई जाती है|

बेला- इस किस्म के पत्ते गोल मोतियों जैसे किन्तु फूल इकहरे छोटे छोटे होते है|

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पौधों का प्रसारण

चमेली की खेती (Jasmine farming) के लिए किस्म के पौधों का प्रसारण वानस्पतिक विधि द्वारा ही किया जाता है जिसकी दो निम्न मुख्य विधियां हैं-

कलम द्वारा- एक वर्ष पुरानी शाखाओं से लगभग 15 से 20 सेंटीमीटर आकार की कलम तैयार कर ली जाती हैं| तैयार कलमों को 30 गुने 30 सेंटीमीटर की दूरी पर वर्षा ऋतु में पौधशाला में लगा दिया जाता है| इनको लगाने के तुरंत हल्की-सी सिंचाई कर देनी चाहिए| कलम लगाने के तीन माह बाद पौधे तैयार हो जाते हैं|

लेयरिंग (दबाना) द्वारा- चमेली की खेती के लिए बहुत सी किस्मों का प्रसारण लेयरिंग द्वारा ही किया जाता है| जून से जुलाई के महीनों में पौधों की टहनियों को जमीन में दबा दिया जाता है| लगभग तीन माह में पौधा बनकर तैयार हो जाता है| जिसको मुख्य पौधे से काटकर अलग कर दिया जाता है|

पौधे रोपण

चमेली की खेती (Jasmine farming) के लिए पौध रोपण का समय उत्तरी भारत में जून से जुलाई है| दक्षिणी भारत में किसी भी माह में लगाया जा सकता है| पौधे से पौधे की दूरी तथा कतार से कतार की दूरी किस्म पर निर्भर करती है| यह दूरी 1 मीटर से लेकर 3 मीटर तक रखी जा सकती है| प्रति हेक्टेयर पौधों  का अनुमान 3300 से 3500 उपयुक्त रहता है|

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खाद एवं उर्वरक

चमेली की खेती (Jasmine farming) के लिए 250 से 3000 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद खेत तैयारी के समय आख़िरी जुताई में अच्छी तरह मिला देना चाहिए| इसके साथ ही 200 किलोग्राम नत्रजन, 400 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 125 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर देना चाहिए| नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस व् पोटाश की पूरी मात्रा गड्ढो में खेत तैयारी के समय देना चाहिए| तथा नत्रजन की आधी मात्रा फूल आने की अवस्था में देना चाहिए| इसके बाद भी आवश्यकतानुसार देते रहना चाहिए| अच्छी पैदावार के लिए यह आवश्यक है|

सिचाई प्रबंधन

चमेली जाति के पौधों को नियमित रूप से पानी देना चाहिए, गर्म मौसम में एक सप्ताह में कम से कम दो बार सिचाई करें और संतुलित मौसम में इसकी सप्ताह में केवल एक बार सिचाई करें, मौसम और भूमि के अनुसार ही भी इनकी सिचाई महत्व रखती है|

खरपतवार रोकथाम

चमेली की फसल को खरपतवार काफी क्षति पहुंचाते है, और साथ ही खेती की लागत में भी बढ़ोत्तरी कर देते है| इनकी रोकथाम करने के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहे| पौधों के पास जब और जैसे ही खरपतवार दिखाई दें, उन्हें तुरन्त निराई-गुड़ाई करके निकाल देना चाहिए| पौधों के चारों तरफ 30 सेमी जगह छोड़कर फावड़े से खुदाई करें| वर्ष में कम-से-कम दो से तीन खुदाई करना अति आवश्यक है, इससे पौधों की वृद्धि अच्छी होती है|

कटाई छँटाई

चमेली की खेती (Jasmine farming) में जिस समय फूल आना समाप्त हो जाए, उस समय से रोगग्रस्त सूखी तथा उन शाखाओं को जो दूसरी शाखाओं की वृद्धि पर कुप्रभाव डालती हैं, उनको काट कर निकाल देना चाहिए| कभी-कभी जब पौधे पुराने हो जाते हैं, और फूलों की पैदावार भी कम हो जाती है| तो उस समय ऐसे पौधों को जमीन की सतह से 15 से 20 सेंटीमीटर की ऊंचाई से काट देते हैं|

इसके बाद इन पौधों के चारों तरफ खुदाई करके गोबर की सड़ी खाद मिट्टी में मिला देते हैं, तथा पानी दे देते हैं| इससे जो नई शाखाएं निकलती हैं| उनमें से भी कुछ स्वास्थ शाखाओं को छोड़कर शेष शाखाओं को काट देना चाहिए| इस तरह स्वस्थ पौधों की प्राप्ति हो जाती है, और उनसे अच्छी उपज मिलती है|

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रोग रोकथाम

चमेली के पौधों को विभिन्न प्रकार से रोग लगते है, जो पौधो की बढ़वार और फूलों की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव डालते है, लगने वाले रोग इस प्रकार है, पत्ती का मोजैक, झुलसा, आल्टरनेरिया जेस्मिनी, उकठा आदि है, इनकी रोकथाम के लिए इसकी रोकथाम के लिए प्रमाणित जगह से कटिंग लेना चाहिए|

फसल चक्र अपनाना चाहिए, इसके साथ ही कोषावेट गंधक दो ग्राम प्रति लीटर पानी में या कैरोथिन एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर 3 से 4 छिड़काव 10 से 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए| विषाणु रोग की रोकथाम के लिए स्टेप्टोमायसीन का छिड़काव 10 से 12 दिन के अंतराल पर दो बार करना चाहिए|

कीट रोकथाम

चमेली के पौधों पर माहू, माकटूस, बडवम आदि कीटों का प्रकोप होता है| इसकी रोकथाम के लिए थायोडान नमक कीटनाशक दवा का 0.20% डायथेन एवं कवकनाशी दवा का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए|

फूलों की चुनाई

चमेली का पौधा लगाने के लगभग 9 से 10 माह बाद फूल आने प्रारम्भ हो जाते है| हालाँकि कुछ किस्मों में फूल पूरे वर्ष उपलब्ध रहते हैं| अधिकांश जातियों में फूल आने का समय मार्च से अक्टूबर तक रहता है| फूल सुबह सूर्य निकलने से पहले ही तोड़े जायें तो काफी अच्छा रहता है, इससे उनकी खुशबु बनी रहती है| यदि क्षेत्र बहुत अधिक हो तो फूलों की तुड़ाई सायं चार बजे के बाद से भी शुरू की जाती है, और तोड़े गये फूल रात को खुले स्थान पर रखना चाहिए| आवश्यकतानुसार इन फूलों पर पानी भी छिड़कते रहना चाहिए|

पैदावार

फूलों की उपज चमेली किस्म, भूमि की उर्वरा शक्ति और फसल की देखभाल पर निर्भर करती है| फूलों को सुबह के समय तोड़ते है, तो 1 किलोग्राम भार में लगभग 9 से 13 हजार फूल होते है| प्रति वर्ष 2 से 4 किलोग्राम तक प्रति पौधा मिल जाते है|

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