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Home » ब्लॉग » हॉप्स की खेती: किस्में, रोपाई, पोषक तत्व, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

हॉप्स की खेती: किस्में, रोपाई, पोषक तत्व, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

हॉप्स की खेती

हॉप्स सामान्य तौर से प्रायः मादा शंकुओं (कोन्स) के लिए उगाया जाता है| ये शंकु पेय पदार्थों के परिरक्षण व उन्हें सुंगधित बनाने के लिए उपयोग में लाये जाते हैं, क्योंकि इनमें हॉप तेल और अल्फा अम्ल पाये जाते हैं| औषधीय रूप में हॉप्स का उपयोग टॉनिक और जीवाणुनाशक के रूप में उल्लेखनीय है|

इस लेख द्वारा आप जानकारी प्राप्त करेंगे, की हॉप्स की खेती कैसे करें, और इसके लिए उपयुक्त जलवायु, भूमि, किस्में, देखभाल, पैदावार आदि किस प्रकार है| जिससे की जागरूक किसान और बागवान भाई हॉप्स की उत्तम खेती और अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते है|

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उपयुक्त जलवायु

हॉप्स को वैसे तो कई प्रकार के जलवायु में उगाया जा सकता है| परन्तु इसका उत्तम और व्यावसायिक उत्पादन कुछ ही क्षेत्रों में किया जा सकता है| हॉप्स की सफल पैदावार के लिए गर्मियों में तापमान औसतन 15.50 से 18.50 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त माना गया है| पानी की समुचित व्यवस्था हो तो अधिक तापमान से पौधे की बढ़ौतरी पर असर नहीं पड़ता है| परन्तु जब शंकु लग रहे हों तो अधिक वर्षा हानिकारक होती है|

भूमि का चुनाव 

हॉप्स की खेती के लिए उपजाऊ, अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी से चिकनी दोमट मिट्टी होनी चाहिए| इसकी खेती नदियों के किनारे जहां पौधे की जड़े जल स्तर तक पहुँच सकें सफलता से की जा सकती है, परन्तु मिट्टी में पानी खड़ा नहीं होना चाहिए|

उन्नत किस्में

हॉप्स की खेती के लिए व्यवसायिक तौर पर उगाई जाने वाली किस्में इस प्रकार है, जैसे- लेट क्लस्टर, गोल्डन क्लस्टर और हाइब्रिड-2 आदि प्रमुख है|

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पौधे तैयार करना (प्रवर्धन)

हॉप्स के बाग को बीज तथा वानस्पतिक दोनों विधियों से लगाया जा सकता है| परन्तु वानस्पतिक विधि ही व्यावसायिक रूप से प्रचलित है| इस विधि से कलम, लेयरिंग, अंत भू-स्तरी और शाखाओं द्वारा पौधे तैयार किये जाते हैं|

पौधा रोपण

हॉप्स की बागवानी हेतु सामान्यतः पौधों को पतझड़ के मौसम में लगाया जाना चाहिए, ताकि सर्दियों में स्थापित होकर बसन्त ऋतु में अच्छे चल सके| फरवरी के दूसरे पखवाड़े से अप्रैल तक भी पौधे लगाए जा सकते हैं| पौधा रोपण के बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें|

पौधों का फासला

हॉप्स की लेट कलस्टर और गोल्डन कलस्टर किस्मों को अंब्रेला सिधाई विधि में 2 x 2 मीटर, वरसैस्टर सिधाई विधि में 1.25 x 2.25 मीटर तथा बूचर विधि में 2 x 2.5 मीटर की दूरी पर लगाना उचित है| वरसैस्टर विधि सबसे उत्तम मानी गई है| विभिन्न विधियों में पौधों की ऊंचाई 2 से 7 मीटर तक रहती है|

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खाद और उर्वरक

हॉप्स की बागवानी के लिए खाद और उर्वरक की संतुलित मात्रा देना आवश्यक है, ताकि पौधों का विकास अच्छे से हो, जो इस प्रकार है, जैसे- गोबर की खाद 25-30 टन, नाईट्रोजन 100 किलोग्राम, सुपर फॉस्फेट 250 किलोग्राम, म्यूरेट ऑफ पोटाश 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए|

गोबर की खाद व अन्य उर्वरकों की पूरी मात्रा पौध रोपण के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए| नाईट्रोजन के उचित उपयोग हेतु पहली मात्रा को पौधों के चारों तरफ 90 सेंटीमीटर के घेरे में मार्च के अन्त या अप्रैल के शुरू में अमोनियम सल्फेट के रूप में भी 1,750 ग्राम प्रति पौधा की दर से डालनी चाहिए और बाकी बची आधी मात्रा को जून माह में प्रयोग करना चाहिए|

पुष्पंन

हॉप्स में फूल जून में आते है, और मध्य जुलाई में मादा फूल जिन्हें प्रायः ‘बर’ कहा जाता है, बनते हैं|परागण के बाद बर शीघ्र बढ़ता है और शंकु तैयार होते हैं| इसी समय बर में छोटे बहुकोषीकीय युगल कणों का तेजी से विकास होता है| ‘लुपुलिन’ जिससे रेजिन व तेल निकलता हैं, की गलत ढंग से तुड़ाई करने और सुखाने पर लुपुलिन क्षतिग्रस्त हो सकते हैं|

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रोग और कीट रोकथाम

रोमिल (सिडो पैरोनोसपोरा)- पौधे की बढ़ रही शाखाओं के शिखरों, पत्तों, बर या पके शंकुओं पर इस रोग का प्रकोप देखा जा सकता है|

रोकथाम- स्वस्थ वृन्तों का उपयोग करें, रोगग्रस्त भाग को निकाल दें, बोर्डो मिश्रण (नीला थोथा 1 किलोग्राम + अनबुझा चूना 1 किलोग्राम को 100 लिटर पानी) का अप्रैल माह में 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें|

वर्टीसिलियम विल्ट- यह फफूद मिट्टी से जड़ों में प्रवेश करता है| पत्तों और शाखाओं में इसका प्रकोप होता है और वे मुझ जाती हैं|

रोकथाम- रोगग्रस्त पौधों को निकाल दें, चार वर्षीय अन्तर फसल चक्र प्रणाली आलू के साथ अपनायें|

शंकुओं की तुड़ाई

हॉप्स की तुड़ाई अगस्त के अन्त से सितम्बर के अन्त तक समाप्त की जाती है| शंकुओं की तुड़ाई रंग के पीले होने पर जब लुपुलिन कोशिकाओं में पूर्ण रूप से रेजिन भर जाए तथा सुंगध का पूर्ण विकास होने पर ही की जाती है|

पैदावार

तीन वर्ष के हॉप्स के पौधे से 3 से 4 टन प्रति हैक्टेयर हरे शंकुओं की पैदावार प्राप्त की जा सकती है, हरे और सूखे शंकुओं के बीच 4:1 का अनुपात होता है|

सुखाना

हॉप्स की तुड़ाई के बाद सुखाने में तापमान की एक विशेष भूमिका है| आरम्भिक तापमान 32.2 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक नहीं होना चाहिए, तत्पश्चात तापमान को आरम्भ में 5 सेंटीग्रेट प्रति घण्टा की दर से निर्धारित उच्चतम तामपान तक बढ़ाते हैं, जो वायु की गति और हॉप्स की मात्रा पर निर्भर करता है| आमतौर से यह पाया गया है, कि सामान्य मात्रा को सुखाने के लिए 60 से 65 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान 10 घण्टों के लिए आवश्यक होता है|

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