सौंफ की स्थानीय एवं उन्नत किस्में बहुत हैं, जो अपने क्षेत्र विशेष में अधिक प्रचलित हैं| सौंफ की स्थानीय किस्मों में उत्पादकता एवं गुणवत्ता स्थिर नहीं होने के उपरान्त भी इनका उपयोग जारी है| जबकि देश में क्षेत्रवार सौंफ की उन्नत किस्में उपलब्ध हैं| उन्नत किस्मों में अधिक उत्पादन एवं सुनिश्चित गुणवत्ता युक्त उपज निश्चित है|
यदि कृषक बंधु सामान्य किस्मों की अपेक्षा इसकी खेती के लिए सौंफ की उन्नत किस्मों को महत्व दें, तो सौंफ की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है| इस लेख में कुछ सौंफ की उन्नत किस्में तथा उनकी विशेषताएं और पैदावार की जानकारी का उल्लेख किया गया है| सौंफ की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सौंफ की खेती की जानकारी
सौंफ की अनुमोदित उन्नत किस्में
आर एफ 105- इस सौंफ की किस्म का विकास राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के अधीन श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि महाविद्यालय, जोबनेर (जयपुर) द्वारा किया गया है| इसके पौधे बड़े, सीधे और मजबूत तने वाले होते हैं| इस किस्म में छत्रक बड़े और मोटे दाने वाले हैं| यह किस्म 150 से 160 दिन में पकती है| इस किस्म की औसत उपज 15.50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है|
आर एफ 125- इस सौंफ की किस्म का विकास राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के अधीन श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि महाविद्यालय, जोबनेर (जयपुर) द्वारा किया गया है| इसके पौधे छोटे होते हैं और यह किस्म अपेक्षाकृत जल्दी पकने वाली है| इस किस्म से 17.30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज ली जा सकती है|
यह भी पढ़ें- अलसी की उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार
पी एफ 35- इस किस्म का विकास मसाला अनुसंधान केन्द्र, जगुदन (गुजरात) द्वारा किया गया है| इसके पौधे फैले हुए लम्बे होते हैं और पुष्पछत्रक बड़ा होता है| इसके बीज हल्के हरे धारीयुक्त मध्यम आकार के होते हैं| यह सौंफ की किस्म पकने में 216 दिन लेती है| इसकी उपज 16.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है| यह किस्म झुलसा एवं गुंदिया रोग के प्रति मध्यम सहनशील है| इसमें वाष्पशील तेल की मात्रा 1.90 प्रतिशत होती है|
गुजरात सौंफ 1- यह किस्म मसाला अनुसंधान केन्द्र, जगुदन (गुजरात) द्वारा विकसित की गई है| इसका पौधा लम्बा फैला हुआ झाड़ीनुमा होता है| यह किस्म शुष्क परिस्थिति के लिए उपयुक्त है| इसके पुष्पछत्रक कड़े तथा दानें गहरे हरे रंग के बड़े व लम्बे होते हैं जो झड़ते हैं| यह किस्म पकने में 200 से 230 दिन लेती है और 16.95 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदावार देती है| इसमें वाष्पशील तेल की मात्रा 1.60 प्रतिशत होती है|
गुजरात सौंफ-2- यह सौंफ की किस्म सिंचित तथा असिंचित दोनों परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है| इसे मसाला अनुसंधान केन्द्र जगुदन, गुजरात द्वारा विकसित किया गया हैं| इसकी औसत उपज 19.4 किंवटल प्रति हैक्टर हैं| इसमें वाष्पशील तेल की मात्रा 2.4 प्रतिशत होती हैं|
गुजरात सौंफ 11- इस सौंफ की किस्म का विकास मसाला अनुसंधान केन्द्र, जगुदन (गुजरात) द्वारा किया गया है| यह किस्म सिंचित खेती के लिए उपयुक्त है| इसमें वाष्पशील तेल की मात्रा 1.8 प्रतिशत होती है| इसकी औसत पैदावार 24.8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है|
यह भी पढ़ें- सरसों की उन्नत किस्में
को 11- इस किस्म का विकास तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयम्बटूर द्वारा किया गया है| पौधा मध्यम लम्बाई तथा घनी शाखाओं वाला होता है| यह मिश्रित खेती के लिए उपयुक्त है| लवणीय मिट्टी में भी यह किस्म तुलनात्मक रूप से अच्छी पैदावार देती है| यह 210 से 220 दिन में पकती है तथा 5.67 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदावार देती है|
हिसार स्वरूप- यह किस्म हरियाण कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विक़सित की गई है| इसके दाने लम्बे एवं माटे होते हैं| इसकी औसत उपज 17 किंवटल प्रति हैक्टर हैं। इसमें वाष्पशील तेल की मात्रा 1.6 प्रतिशत पायी जाती हैं|
एन आर सी एस एस ए एफ 1- इस किस्म का विकास राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केन्द्र, अजमेर द्वारा किया गया है| इसका पौधा बड़ा तथा शाखाओं युक्त होता है जिस पर बड़े आकार के पुष्पछत्रक होते हैं| इसके दाने बोल्ड होते हैं| यह किस्म 180 से 190 दिन में पक कर तैयार हो जाती है| यह किस्म सीधी बुवाई द्वारा 19 तथा पौध रोपण द्वारा 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज होती है|
आर एफ 143- इस किस्म के पौधे सीधे एवं ऊँचाई 116 से 118 सेंटीमीटर होती है| जिस पर 7 से 8 शाखाएं निकली हुई होती है| इसका पुष्पक्रम संधन होता है और प्रति पौधा अम्बल की संख्या 23 से 62 होती है| यह किस्म 140 से 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है| इसकी औसत उपज 18 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर है| इसमें वाष्पशील तेल अधिक (1.87 प्रतिशत) होता है|
आर एफ 101- यह किस्म दोमट एवं काली कपास वाली भूमियों के लिये उपयुक्त है| यह 150 से 160 दिन में पक जाती है| पौधे सीधे व मध्यम ऊंचाई वाले होते हैं| इसकी औसत उपज क्षमता 15 से 18 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर है| इसमें वाष्पशील तेल की मात्रा भी अधिक (1.2 प्रतिशत) होती है| इस किस्म में रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता अधिक तथा तेला कीट कम लगता है|
यह भी पढ़ें- तिल की उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार
यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|
Leave a Reply