लोबिया में खादों और उर्वरकों का प्रयोग संस्तुतियों के आधार पर करना चाहिए| लोबिया की फसल में प्रयोग की जाने वाली उर्वरक की मात्रा मिटटी की किस्म, उर्वरता, पूर्व की फसल और उसमें की गई कृषि-क्रियाएँ एवं लोबिया की उगाई जाने वाली किस्म, बुआई का मौसम, खेती की स्थिति आदि अनेक बातों पर निर्भर करती है| हल्की तथा अच्छे जल-निकास की भूमियाँ लोबिया की खेती हेतु उपयुक्त होती हैं| इन भूमियों की पैत्रिक उर्वरता और पोषक-तत्व संरक्षण-क्षमता मध्यम तथा भारी बनावट की भूमियों की अपेक्षा कम होती है|
आलू, गन्ना और अन्य दलहनी फसलों के उपरान्त लोबिया की फसल उगाने पर अपेक्षाकृत कम खादों का प्रयोग आवश्यक होता है| अतएव खादों और उर्वरकों के प्रयोग की योजना उपरोक्त तथ्यों पर विचार करने के उपरान्त मिटटी-परीक्षण के आधार पर ही बनाई जानी चाहिए| लोबिया दलहनी फसल होने के कारण अधिक मात्रा में खाद और उर्वरक देने की आवश्यकता नहीं होती है|
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अच्छी फसल लेने के लिए फसल की प्रारम्भिक वृद्धि हेतु 15 से 20 किलोग्राम नाइट्रोजन देने की आवश्यकता होती है| पौधों के कुछ बड़े हो जाने पर नाइट्रोजन की आवश्यकता की पूर्ति जड़ ग्रन्थियों में संग्रहित वायुमण्डलीय नाइट्रोजन से होती रहती है, किन्तु जड़ ग्रन्थियों के विकास हेतु 30 से 60 किलोग्राम फास्फोरस प्रदान करना आवश्यक है|
नाइट्रोजन तथा फास्फोरस प्रदान करने वाले उर्वरकों को बुआई के समय कूड़ों में डालना लाभदायक होता है| लोबिया की फसल में आमतौर पर पोटाशधारी उर्वरकों के प्रयोग की आवश्यकता नहीं होती है|
सामान्य तौर पर नाइट्रोजन 10 से 15 किलोग्राम, फास्फोरस 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के पहले प्रयोग करना आवश्यक होता है|
लोबिया में पोषक तत्व प्रबंधन के लिए सुझाव
1. लोबिया में पोषक तत्व प्रबंधन के लिए लोबिया में मिटटी परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर ही उर्वरकों का प्रयोग करें|
2. पिछली फसल में दिये गये पोषक तत्वों की मात्रा के आधार पर वर्तमान फसल की उर्वरक मात्रा का निर्धारण करना चाहिए|
3. दलहनी फसलों में सम्बन्धित राइजोबियम कल्चर का उपयोग मिटटी शोधन और बीज शोधन में करना चाहिए|
4. तिलहनी और धान्य फसलों में पी एस बी और ऐजोटोबैक्टर कल्चर का प्रयोग बीज शोधन तथा मिटटी शोधन में करना चाहिए|
5. लोबिया में पोषक तत्व प्रबंधन के लिए धान, गेहूं जैसे फसल चक्र में ढेंचा या सनई जैसी हरी खाद का प्रयोग अवश्य करना चाहिए|
6. फसल चक्र के सिद्धान्त के अनुसार फसल चक्र में आवश्यकतानुसार परिवर्तन करते रहना चाहिए|
7. उपलब्धता के आधार पर गोबर, फसल अवशेषों तथा अन्य कम्पोस्ट खादों का अधिकाधिक प्रयोग करना आवश्यक होता है|
8. लोबिया में पोषक तत्व प्रबंधन के लिए खेत में फसल अवशिष्ट जैविक पदार्थों को मिट्टी में निरंतर मिलाते रहना चाहिए|
9. मिटटी स्वास्थ्य बढ़ाने के लिए टिकाऊ खेती हेतु जैविक खेती अपनाने पर प्रयासरत रहना चाहिए|
10. लोबिया में आवश्यकतानुसार सल्फर, जिंक, कैल्शियम के अतिरिक्त अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए|
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