हमारे देश में रामदाना (Ramdana) को विभिन्न नामों जैसे- राजगीरा, चुआ, चौलाई, मारछा से जाना जाता है| यह एक बहुउद्देश्यी धान्य स्वरूप फसल है, इसकी खेती बीज, हरे एवं सूखे चारे, प्रारम्भिक में सब्जी व सजावट के लिए की जाती है| इसकी खेती मुख्यतया उत्तर पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में होती रही है| परन्तु अब देश के अन्य भागों में भी होने लगी है| इसका दाना काफी पौष्टिक होता है|
इसकी विभिन्न किस्मों में सामान्यतया 12 से 17 प्रतिशत प्रोटीन तथा प्रोटीन में 5.5 प्रतिशत लाइसिन होता है| रामदाना एवं गेहूं की मिश्रित आटे से बनी रोटी को एक पूर्ण आहार माना जाता है| इसके दानों को फुलाकर कई तरह के खाद्य पदार्थ, विशेष रूप से लड्डू बनाना अधिक प्रचलित है| इसके अलावा कई प्रकार के बेकरी खाद्य पदार्थ जैसे बिस्किट, केक पेस्ट्री, केक आदि भी बनाये जाते हैं|
रामदाना या राजगीरा से बनाये गये बाल आहार को उत्तम माना जाता है| इसकी पत्तियों में ऑक्जलेट एवं नाइट्रेट की मात्रा कम होने के कारण यह एक पौष्टिक एवं सुपाच्य हरा चारा भी माना जाता है| रामदाना तेल रक्तदबाव व कोरोनरी हृदय बीमारी में भी उपयोगी है|
रामदाना की खेती के लिए भूमि का चयन
रामदाने की अच्छी उपज लेने हेतु बलुई दोमट भूमि जिसका पी एच मान 5 से 7 के बीच हो तथा ऐसी भूमि जिसमें जल निकास का उचित प्रबन्ध हो अधिक उपयुक्त रहती है|
रामदाना की खेती के लिए खेत की तैयारी
जहाँ तक सम्भव हो प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए| दूसरी जुताई देशी हल से करके पाटा लगाकर मिट्टी के ढेले तोड़ दें, जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाय, ऐसा करने से बीजों का अंकुरण भली प्रकार होने के साथ-साथ पौधों की वृद्धि भी अच्छी होती है| फलस्वरूप अच्छी उपज प्राप्त होती है|
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रामदाना की खेती के लिए उन्नत किस्में
आर एम ए- 4- यह किस्म राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के कृषि अनुसंधान केन्द्र मण्डोर द्वारा विकसित की गई है| पौधे की ऊँचाई लगभग एक मीटर होती है| फसल लगभग 120 से 130 दिन में पक कर तैयार हो जाती है| दानों में 12.6 प्रतिशत प्रोटीन तथा प्रोटीन में 5.1 प्रतिशत लाइसिन होता है| इसकी औसत पैदावार 13 से 14 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर होती है|
आर एम ए- 7- यह किस्म राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के कृषि अनुसंधान केन्द्र मण्डोर द्वारा विकसित की गई है| पौधे की ऊँचाई लगभग 1.20 मीटर होती है| फसल लगभग 125 से 130 दिन में पक कर तैयार हो जाती है| दानों में 12.1 प्रतिशत प्रोटीन तथा प्रोटीन में 5.8 प्रतिशत लाइसिन होता है| इसकी औसत पैदावार 14 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर होती है|
अन्नपूर्णा- इस रामदाना किस्म में बुवाई के 71 दिन बाद फुल आने शुरू हो जाते है| फसल पकने की अवधि 132 दिन, पौधे की उचाई 138 सेंटीमीटर और औसतन पैदावार क्षमता 16 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
पी आर ए- 1- इस रामदाना किस्म में बुवाई के 65 दिन बाद फुल आने शुरू हो जाते है| फसल पकने की अवधि 125 दिन, पौधे की उचाई 150 सेंटीमीटर और औसतन पैदावार क्षमता 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
पी आर ए- 2- इस रामदाना किस्म में बुवाई के 70 दिन बाद फुल आने शुरू हो जाते है| फसल पकने की अवधि 130 दिन, पौधे की उचाई 140 सेंटीमीटर और औसतन पैदावार क्षमता 20 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
पी आर ए- 3- इस रामदाना किस्म में बुवाई के 70 दिन बाद फुल आने शुरू हो जाते है| फसल पकने की अवधि 130 दिन, पौधे की उचाई 135 सेंटीमीटर और औसतन पैदावार क्षमता 22 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
वी एल चुआ-44- इस रामदाना किस्म में बुवाई के 55 दिन बाद फुल आने शुरू हो जाते है| फसल पकने की अवधि 100 दिन, पौधे की उचाई 135 सेंटीमीटर और औसतन पैदावार क्षमता 20 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
दुर्गा (आई सी- 35407)- इस रामदाना किस्म में बुवाई के 60 दिन बाद फुल आने शुरू हो जाते है| फसल पकने की अवधि 110 दिन, पौधे की उचाई 135 सेंटीमीटर और औसतन पैदावार क्षमता 22 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
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रामदाना की खेती की बुवाई का समय
ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में बुवाई का उपयुक्त समय मई का प्रथम पखवाड़ा है| जबकि मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में बुवाई का समय मई अंत से जून मध्य तक है| मध्य जून के पश्चात बुवाई करने पर पौधों की बढ़वार बहुत कम हो जाती है| जिससे उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|
रामदाना की खेती के लिए बीज की मात्रा
रामदाना के बीज अत्यधिक छोटे एवं हल्के हाने के कारण कम मात्रा में बीज की आवश्यकता होती है| एक हैक्टेयर क्षेत्र में बुवाई करने हेतु डेढ़ से दो किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है| बीज अत्यधिक छोटे होने के कारण बुवाई करने में काफी कठिनाई होती है| इस कठिनाई से बचने के लिए बीज को बुवाई करने से पूर्व बारीक मिट्टी अथवा रेत में मिला लेना चाहिए ताकि बीज समान मात्रा में पूरी खेत में भली प्रकार पहुँच सके|
रामदाना की खेती के लिए बुवाई की विधि
रामदाना की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए रामदाने की बुवाई पंक्तियों में करनी चाहिए| यह विधि पौधों की आपसी सही दूरी बनाये रखने में सहायक होती है| साथ ही साथ निराई-गुड़ाई में भी सुविधा होती है| एक पंक्ति से दूसरे पंक्ति की दूरी 50 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए| बुवाई के समय बीज को ढके नहीं तथा 2 से 3 सेंटीमीटर से अधिक गहराई पर न बोएं अन्यथा बीज का जमाव भली प्रकार नहीं होता|
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रामदाना की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक
रामदाना की अच्छी पैदावार लेने हेतु उर्वरकों का प्रयोग अत्यन्त आवश्यक है| उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए| यदि ऐसा कर पाना सम्भव न हो तब 60 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस एवं 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग कना चाहिए| नत्रजन की आधी मात्रा फास्फोरस तथा पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय हल के पीछे कूड़ों में देना चाहिए|
नत्रजन की आधी मात्रा प्रथम निराई-गुड़ाई के पश्चात खड़ी फसल में समान रूप से बिखेर दें| टापॅ ड्रैसिंग करते समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए ताकि उसका पूरा लाभ फसल को मिल सके| परीक्षणों से पता चला है, कि रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ गोबर अथवा कम्पोस्ट खाद का 100 कुन्तल प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करने पर उत्पादन में काफी बढ़ोत्तरी होती है|
अगर फसल को जैविक खेती के अन्तर्गत लगाया जाना है| तब 15 टन प्रति हैक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करें| गोबर अथवा कम्पोस्ट की भली प्रकार सड़ी खाद प्रथम जुताई से पूर्व खेत में बिखेर दें ताकि वह जुताई के समय मिट्टी में अच्छी प्रकार मिल जाए|
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रामदाना की खेती में खरपतवार नियंत्रण
रामदाना फसल को खरपतवार अधिक नुकसान पहुँचाते हैं| अनुसंधान से पता चला है, कि बीज की बुवाई के पश्चात प्रथम 45 दिन तक खरपतवार फसल को सर्वाधिक क्षति पहुँचाते है| इसके जिए प्रथम निराई-गुड़ाई बुवाई के लगभग 20 दिन बाद व दूसरी 35 दिन पर करनी चाहिए|
प्रथम निराई-गुड़ाई के समय ही फसल के घने उगे पौधों की छंटाई करके कतार में पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर कर दें| यदि कहीं पर पौधे कम उगे हों तब वर्षा वाले दिन घने उगे पौधों में से कुछ को जड़ सहित उखाड़ कर वहाँ पर रोपाई करें, यह प्रकिया सांयकाल करनी चाहिए|
रामदाना के पौधों पर मिट्टी चढ़ाना
अनुकूल परिस्थिति मिलने पर रामदाना का पौधा तुरन्त बढ़वार पकड़ता है, कभी-कभी, पौधा 6 फीट से भी अधिक ऊँचा हो जाता है| जिससे अधिक वर्षा व तेज हवा चलने के कारण पौधे गिर जाते हैं एवं उपज में कमी आ जाती है| अतः यदि फसल शुद्ध रूप में उगाई जा रही है, तब पौधों की ऊँचाई घुटनों तक हो जाने पर उनमें मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए| इससे न केवल पौधों को गिरने से रोका जा सकता है साथ ही खरपतवारों का काफी सीमा तक नियंत्रण किया जा सकता है|
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रामदाना की खेती में रोग नियंत्रण
रामदाना की फसल को मृदा जनित रोगों द्वारा काफी नुकसान पहुँच सकता है| फसल बुवाई के समय यदि खेत में पानी का निकास उचित न हो तो पानी के जमाव वाली जगहों पर आर्द्र गलन की समस्या आती है| ऐसे में पौधे अंकुरण के समय या अंकुरण के कुछ दिन बाद जमीन की सतह के पास गलकर मर जाते हैं| इस रोग के नियंत्रण हेतु यह सुनिश्चित कर लें कि खेत में पानी जमा न हो| साथ ही थाइरम 75 डी एस नामक फफूंदीनाशी रसायन (2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) से बीज उपचारित करें|
कभी-कभी बड़े पौधों में भी जड़ विगलन की समस्या हो जाती है| प्रभावित पौधों की जड़ों पर भूरे-काले धब्बे बन जाते हैं, जो समय के साथ बढ़ते जाते हैं और जड़ें गल जाती हैं| जिस कारण पौधे का उपरी भाग पीला पड़कर मुरझा जाता है| जड़ सड़न रोग के नियंत्रण हेतु फसल के निचले भागों पर 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के घोल का 15 दिन के अन्तराल पर एक से दो बार छिड़काव करें|
रामदाने के बड़े पौधों में अक्सर पत्तियों पर छोटे भूरे या काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं| यह धब्बे मुख्यतः आलटरनेरिया नामक फफूंद के प्रकोप से बनते हैं| उचित तापमान व अधिक नमी वाला वातावरण मिलने पर यह धब्बे पत्तियों के काफी बड़े हिस्से पर फैल जाते हैं और प्रभावित पत्ते सूख जाते हैं| इस रोग के लक्षण दिखाई पड़ने पर मैंकोजेब फफूंदनाशी का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अन्तराल पर एक या दो छिड़काव करें|
जैविक रोग नियंत्रण- यदि रामदाना फसल को जैविक खेती के अंतर्गत उगाते हैं तो रोग नियंत्रण के लिए जैव नियंत्रक फफूंद ट्राइकोडर्मा का प्रयोग किया जा सकता है| आर्द्र गलन व जड़ विगलन जैसी समस्या के नियंत्रण हेतु 8 से 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा के पाउडर से प्रति एक किलोग्राम बीज को उपचारित करना चाहिये|
साथ ही जैव नियंत्रक को खाद में मिलाकर (1 किलोग्राम पाउडर प्रति 100 किलोग्राम खाद) खेत में बिखेर दें| यह विभिन्न मृदा जनित फफूदियों के नियंत्रण में उपयोगी होगा| रोग नियंत्रण के साथ-साथ ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से अंकुरण प्रतिशत बढ़ता है तथा पौधों की बढ़वार भी अच्छी होती है| ट्राइकोडर्मा आधारित जैविक फफूंदीनाशक आजकल बाजार में उपलब्ध हैं|
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रामदाना की खेती में कीट नियंत्रण
रामदाना में प्रमुख रूप से पर्णजालक कीट, तना विविल, तम्बाकू की सूंडी का प्रकोप देखा गया है| पर्णजालक कीट की सुण्डियां छोटी अवस्था में ही पत्तियों के हरे भाग को खाती हैं और जैसे-जैसे पर्णजालक कीट की सुण्डिया छोटी अवस्था से ही पत्तियों के हरे भाग को खाती हैं और जैसे-जैसे बड़ी होती हैं, पत्तियों के हरे भाग को खाकर जाल जैसा बना देती हैं तथा पत्तियों को अपने मुंड से निकाले गये लार द्वारा आपस में जोड़ देती हैं|
सुण्डियाँ इनके अन्दर छिपकर पत्तियों को खाती रहती हैं, जिससे पत्तियों पर बना सफेद जाल खेत में दूर से ही स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है| इनका जीवन काल लगभग 20 से 30 दिनों का होता है| तना विविल कीट के भृगंक तने के अन्दर छेद बनाते है एवं आन्तरिक ऊतकों को खाकर खत्म कर देतें हैं| फलस्वरूप पौधे सूखने लगते हैं, इसके अतिरिक्त तम्बाकू की सूंडी का प्रकोप भी अक्सर देखा गया है|
इसकी सुण्डियाँ हल्के हरे भूरे रंग की होती हैं जिन पर गहरे रंग की लाइने दिखाई पड़ती हैं| ये पत्तियों को खाकर भारी क्षति पहुँचाती हैं| इस कीट का कुल जीवन चक 30 से 40 दिनों का होता है| इसके अतिरिक्त टसर तितली, टिड्डी कीट, माहू कीट, कछुआ भंग अत्यादि का भी प्रकोप थोड़ा बहुत दिखाई पड़ता है|
कीटों के नियंत्रण हेतु हमें समेकित कीट प्रबन्धन रणनीति अपनानी चाहिये, जिससे नाशीकीट एवं उनके भक्षक अथवा शोषक कीटों के प्राकृतिक सामंजस्य में बदलाव कम से कम अथवा न के बराबर हो| इसके लिए हमें निम्न उपयों को अपना चाहिये, जैसे-
जिन क्षेत्रों में कीटों का अधिक प्रकोप होता है, वहाँ रबी की फसल कटाई के उपरांत गर्मी के दिनों में खेत की गहरी जुताई करके कुछ दिनों के लिए छोड़ दें जिससे कि मिट्टी में पल रहे पर्ण जालक कीट, तम्बाकू की सूण्डी इत्यादि के प्यूपा सूर्य के प्रकाश में नष्ट हो जायें अथवा परभक्षी द्वारा उनका भक्षण हो सके, तदुपरांत बुवाई करें|
कीटों के अत्यधिक प्रकोप वाले क्षेत्रों में फसल का बदलाव करें| ज्यादा घनी बुवाई न करें, कतारों की दूरी 50 सेंटीमीटर के करीब रखें| पत्तियों को खाने वाली सुण्डियों के लिए कारटेप हाइड्रोक्लोराइड (50 डब्ल्यू पी) दवा की 1 ग्राम प्रति लीटर पानी अथवा इन्डोक्साकारव दवा की 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें| छिड़काव के समय मुंह पर पट्टी अवश्य बांधे|
जैविक कीट नियंत्रण- रामदाना की जैविक खेती के अन्तर्गत कीट प्रबन्धन हेतु निम्नलिखित उपाय अपनायें, जैसे- सभी तितली वर्गीय कीटों के नियंत्रण हेतु जैव कीटनाशी, बॅसिलस थूरिन्जिएन्सिस को एक ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें| पर्णजालक कीटों के लिये इसके परजीवी कीट ट्राइकोग्रामा प्रजाति एवं एपेन्टेलिस प्रजाति तथा तम्बाकू की सूण्डी के लिए टेलीनोमस रेमस, केम्पोलेटिस क्लोरिडि प्रजाति को बढ़ावा देना चाहिये|
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रामदाना फसल की कटाई और मड़ाई
रामदाने में दाना पहले बाली के नीचे तरफ बनता है तथा बाद में बाली के ऊपरी हिस्से में बनता है, जैसे ही बाली के ऊपरी हिस्से में दाना पूर्णतया विकसित हो जाए तो बाली की तुरन्त कटाई कर लेनी चाहिए अन्यथा वर्षा आने पर तथा हवा चलने पर काफी मात्रा में दानें झड़ सकते हैं| अगर बाली में रोएँदार कांटे हैं, तो बाली को सुखाकर ही मड़ाई करें|
वी एल चुआ- 44 प्रजाति की बाली में काँटे नहीं होते अतः कटाई के तुरन्त बाद इस प्रजाति की मड़ाई करने से दाना सुगमतापूर्वक निकलता है| मड़ाई के पश्चात दानों को 3 से 4 दिनों तक अच्छी धूप में सखाकर ही भण्डारण करें अन्यथा दानों में नमी होने के कारण दाना अंकुरित हो कर खराब हो जाता है|
रामदाना की फसल से पैदावार
रामदाना खेती हेतु उपरोक्त वैज्ञानिक तौर-तरीकों को अपनाकर कृषक रामदाना की फसल से 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त कर सकते है|
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Dr ShivLal singh says
बेहतर जानकारी प्राप्त हुई है।