नवंबर माह की तरह दिसम्बर में भी रबी फसलों से बेहतर पैदावार के लिए उनकी नियमित देखभाल करना बेहद जरूरी होता है| इसके लिए जरूरी है कि फसलों को उनकी आवश्यकतानुसार सिंचाई, निराई-गुड़ाई व रोगों से सुरक्षित किया जाना जरूरी है| इसके लिए किसानों को हम हर माह किए जाने वाले कृषि कार्यों की जानकारी देते हैं ताकि किसान भाइयों को अपनी फसलों से बेहतर उत्पादन मिलने में मदद मिल सके। इसी क्रम में इस लेख में हम दिसम्बर माह में किए जाने वाले कृषि कार्यों पर चर्चा करेंगे|
दिसम्बर माह में किये जाने वाले प्रमुख फसलोत्पादन कार्य
शस्य क्रियाएँ
1. गेहूं की देरी से बुवाई किसी भी अवस्था में दिसम्बर के प्रथम सप्ताह तक कर देनी चाहियें| इसके लिये बीज दर 125 किग्रा प्रति हेक्टर के हिसाब से काम में ले| देरी से बुवाई हेतु सामान्य क्षेत्रों में राज 3765 व राज 3777 किस्में काम में लें तथा क्षारीय व लवणीय क्षेत्रों में केआरएल 210 व केआरएल 213 किस्में काम में लें| हल्की रेतीली मिट्टी वाले क्षेत्रों पहली सिंचाई बुवाई से 15-17 दिन पर तथा दूसरी सिंचाई बुवाई के 25-30 दिन बाद करें| भारी अथवा दोमट मिट्टी में पहली सिंचाई 20-25 दिन पर तथा दूसरी सिंचाई पौधे से फुटान होते समय बुवाई के 45-50 दिन के बीच करें| गेहूं की फसल में प्रथम सिंचाई के 10 से 12 दिन के अन्दर एक बार निराई-गुडाई कर खरपतवार अवश्य निकाल दें| गेहूं की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गेहूं की खेती
2. देरी से बुवाई करने की परिस्थितियों में जौ की बुवाई मध्य दिसम्बर तक अवश्य कर दें| 125 किग्रा. प्रति हेक्टर बीज दर काम में लें| बुवाई के 25-30 दिन बाद पहली व 50-60 दिन बाद दूसरी सिंचाई करें| प्रथम सिंचाई के 10-12 दिन बाद एक निराई-गुडाई करें| जौ की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- जौ की खेती
2. राया में दूसरी सिंचाई 45 दिन व तीसरी सिंचाई 70-80 दिन की अवस्था पर करें| अगर पहली सिंचाई के साथ नत्रजन नहीं दिया गया हो तो 30 किलोग्राम प्रति हेक्टर इस समय दें सकते हैं|
3. चने की फसल में दो सिंचाई करने पर पहली सिंचाई 40 से 50 दिन पर तथा जहाँ पर एक ही सिंचाई देनी हो वहाँ 60 दिन पर सिंचाई करें| चने की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- चने की खेती
4. जीरे में बुवाई के 30-35 दिन बाद सिंचाई दें| इस सिंचाई के साथ 15 किलों ग्राम नत्रजन प्रति हेक्टर को यूरिया उर्वरक के रूप में दें| जिन खेतों में खरपतवार नाशी का प्रयोग नहीं किया गया हो उसमें बुवाई के 18-20 व 35-40 दिन बाद खरपतवार नियन्त्रण करें| नींदानाशी द्वारा खरपतवार की रोकथाम के लिये आक्सीडायार्जिल अथवा आक्सीफ्लुरफेन 50 ग्राम प्रति हेक्टर को 600 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 18-20 दिन बाद छिड़काव करें| नींदानाशी छिड़काव के बाद एक निराई-गुडाई बुवाई के 35-40 दिन बाद अवश्य करें| जीरे की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- जीरे की खेती
3. ईसबगोल में बुवाई के 30-35 दिन बाद फिर सिंचाई दें| इस सिंचाई के साथ 15 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टर को यूरिया उर्वरक के रूप में दें| बुवाई के 35-40 दिन बाद एक निराई-गुडाइ अवश्य करें| ईसबगोल की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- ईसबगोल की खेती
4. मैथी में आवश्यकतानुसार 25-30 दिन के अन्तराल से सिंचाई करें| बुवाई के 20-25 दिन बाद पहली निराई-गुडाई और आवश्यकता हो तो 50 दिन बाद दूसरी निराई-गुडाई करें| मैथी की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मेथी की खेती
5. सौंफ में समय-समय पर 15-20 दिन के अन्तर पर सिंचाई करें| तीस किलोग्राम नत्रजन बुवाई के 45 दिन बाद एवं 30 किलोग्राम नत्रजन फूल आने के समय फसल की सिंचाई के साथ देवें| निराई-गुड़ाई कर पौधों की कतारों पर हल्की मिट्टी चढ़ा दें| सौंफ की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सौंफ की खेती
6. रिजका की कटाई के बाद सिंचाई के साथ 15 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से नत्रजन उर्वरक छिटक कर दें| सिंचाईयाँ फसल की आवश्यकतानुसार करते रहें| ध्यान रहे कि कटाई के बाद सिंचाई अवश्य देवें ताकि फसल की पुर्नवृद्धि अच्छी हो सके| रिजका की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- रिजका की खेती
7. दिसम्बर के अन्त में पाला पडने की सम्भावना रहती है| शीत लहर एवं पाला पड़ने की सम्भावना का अनुमान लगाकर रात में सतही सिंचाई करने से भूमि के तापमान के साथ फसल के तापक्रम में भी वृद्धि होती हैं जो कि पाले के प्रभाव को रोकने में सहायक होती हैं| अतः पाला पडने की सम्भावना हो तब खेत में सतही सिंचाई कर देनी चाहियें| इसके अलावा फसलों पर गन्धक के तेजाब के 0.1 प्रतिशत घोल (1000 लीटर पानी में एक लीटर गन्धक का तेजाब) का छिडकाव करना चाहियें| यदि शीत लहर व पाले की सम्भावना इस अवधि के बाद भी बनी रहे तो इसके छिडकाव को 15 दिन के अन्तर से दोहरा दें| पाले से फसलों को कैसे बचाएं की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- पाले एवं सर्दी से फसलों का बचाव कैसे करें
रोग नियंत्रण क्रियाएँ
1. गेहूँ में जहा देरी से बुवाई की जानी हैं वहां बीजोड रोग से बचाव हेतु 2 ग्राम थाइरम या ढाई ग्राम मेन्कोजेब प्रति किलों बीज की दर से बीज को उपचारित कर बुवाई के काम में लेवें| जिन खेतो में अनावृत कण्डवा एवं पत्ती कण्डवा रोग का प्रकोप हो वहा नियंत्रण हेतु कार्बोक्सिन 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें|
2. दिसम्बर माह में राया में सफेद रोली रोग के लक्षण दिखाई देते ही मैन्कोजेब या मेटाले सिल 8 प्रतिशत + मैन्कोजेब 64 प्रतिशत के मिश्रण का 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें| आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद दोहरावें|
3. जीरा की फसल में फूल आने के दिनों में अगर आकाश में बादल हो तथा बरसात हो जाती हैं तो जीरे की फसल में झुलसा रोग का प्रकोप हो सकता है| इस रोग में पौधों की पत्तिया और तनों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड जाते हैं तथा पौधों के सिरे झुके हुए नजर आते हैं| जीरे की फसल में झुलसा रोग की रोकथाम के लिये फूल आना शुरू होते ही मैन्कोजेब या थायोफनेट मिथाईल – एम या जाइरम 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें| आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद छिड़काव करें|
4. ईसबगोल में फसल की 50-60 दिन की अवस्था पर तुलासिता रोग के लक्षण दिखाई देते ही मेन्कोजेब 0.2 प्रतिशत का छिडकाव करें| आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद दोहरावें|
5. मैथी में छाछ्या रोग के प्रकोप से पौधों की पत्तियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है तथा पूरे पौधे पर फैल जाता हैं जिससे काफी नुकसान होता हैं| नियंत्रण हेतु फसल पर गंधक का चूर्ण 20-25 किलो ग्राम प्रति हैक्टर का भुरकाव करें या डाईनोकेप एल. सी 0.1 प्रतिशत के घोल का छिड़काव करें| आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद दोहरावें|
6. मैथी में तुलासिता रोग से पत्तियों की उपरी सतह पर पीले धब्बे दिखाई देते हैं व नीचे की सतह पर सफेद फफूंद की वृद्धि दिखाई देती हैं| उग्र अवस्था में रोग ग्रसित पत्तिया झड़ जाती हैं| नियंत्रण हेतु मैन्कोजेब 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें| आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद दोहरावें|
कीट नियंत्रण क्रियाएँ
1. रबी ऋतु में बदलते मौसम के कारण खेतों में फसलों का समय – समय पर निरीक्षण करना बहुत आवश्यक हैं| ज्योंही किसी कीट विशेष जैसे एफिड, फलीछेदक, दीमक, कटुआ लट आदि का आक्रमण शुरू हो तो तुरन्त नियंत्रण के उपाय अपनाये जाने चाहियें अन्यथा फूलती व फलती फसलों पर प्रकोप बढने से उपज पर बुरा असर पडता है|
2. राया में फसल पर पेटेंड बग, लीफ माइनर व आरामक्खी के प्रकोप का पता लगाने हेतु सर्वेक्षण करते रहें| ज्योंही किसी कीट की गतिविधि बढती नजर आये तो आवश्यकतानुसार उपचार करें| यदि किसी नये कीट जैसे पत्ती भक्षी लट का आक्रमण दिखाई दें तो उसकी पहचान व क्षति का अनुमान लगायें| उपचार हेतु क्यूनॉलफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण 20-25 किलों प्रति हैक्टर दर से भूरकें| अगर छिडकाव करना हो तो क्यूनॉलफास 25 ईसी 1 लीटर प्रति हेक्टर दर से छिडकें| ऐफिड के लिये फूल आते समय विशेष निगरानी रखें|
3. चना में दीमक, कटवा लट, पोड बोरर के आक्रमण का पता लगाने हेतु फसल का समय – समय पर निरीक्षण करते रहें। भूमि उपचार नहीं होने पर यदि कटवर्म का प्रभाव बढता नजर आने पर क्यूनॉलफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलों प्रति हैक्टर दर से भुरकें । खड़ी फसल में दीमक हेतु क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. चार लीटर प्रति हैक्टर दर से सिचाई के साथ देवें । पोड बोरर के प्रकट होने पर क्यूनॉलफास 1.5 चूर्ण 20-25 किलोग्राम प्रति हैक्टर दर से भुरकें ।
4. गेहॅू व जौ में खड़ी फसल में दीमक का आक्रमण होने पर क्लोरपायरीफास 4 लीटर प्रति हैक्टर दर से सिंचाई के साथ देवें| शूट – फलाई के आक्रमण का पता लगाकर आवश्यकता हो तो उपचार करें|
5. जीरा में बदलते मौसम में ऐफिड व दूसरे कीडों के प्रकोप का बराबर सर्वेक्षण करते रहें| आवश्यकता होने पर नियंत्रण के उपचार करें|
दिसम्बर माह के कृषि कार्यों पर त्वरित नजर
1. गेहूं की पिछेती किस्में जैसे राज 4238, एचडी 2236, जीडब्ल्यू 173, जीडब्ल्यू. 273, राज 3765, राज 3077, राज 3777, एचडी 2932, एमपी 1243 तथा एचआई 8498 (काठिया) और एचआई 8713 की बुवाई दिसम्बर के प्रथम पखवाड़े तक करें|
2. गेहूं में देरी से बुवाई करने पर बीज की मात्रा 125 किग्रा प्रति हैक्टर का प्रयोग करें|
3. नत्रजन 120 किग्रा तथा 40 किग्रा फास्फॉरस और 30 किग्रा पोटाश प्रति हैक्ट मिट्टी जांच के आधार पर देवें| धान के बाद गेंहू की देरी से बुवाई के लिये 150 किग्रा नत्रजन प्रति हैक्ट, देवें|
4. गेहूं में प्रथम सिंचाई शीर्ष जड़ जमने के समय ( बुवाई के 21-25 दिन बाद) अवश्य करें|
5. गेहूँ में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के 30-35 दिन बाद 2, 4-डी 500 ग्राम या 2, 4 डी अमाईन साल्ट 750 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्टर की दर से 500-700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|
6. चौडी एवं संकरी पत्ती वाले खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के 30-35 दिन बाद क्लोडीनोफॉप प्रोपार्जिल 15 प्रति + मेटासलफ्यूरान मिथाइल 1 प्रतिशत (मिश्रित दवा) 52 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्ट की दर से 500-700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|
7. सरसों में मोयला कीट नियंत्रण हेतु डाइमिथोएट 30 ईसी 875 मिली प्रति हैक्टर का छिड़काव करें| मधुमक्खी बॉक्स को खेत में रखने पर सरसों की पैदावार में वृद्धि होती है|
8. धनिये में लौंगिया रोग के प्रबन्धन हेतु खड़ी फसल में हेक्साकोनाजोल 5 ईसी प्रोपीकोनाजोल 25 ईसी का 2 मिली प्रति लीटर की दर से 45, 60, 75 दिन पर छिडकाव करें|
9. मसूर में वर्षा आधारित सिमित सिंचाई परिस्थितियों में घुलनशील उर्वरक एनपीके 19:19:19 ) का 0.5 प्रतिशत के दो पर्णीय छिड़काव क्रमशः फूल आने और फली बनने पर करें|
10. पशुओं का सर्दी से बचाव का उचित प्रबन्ध करें| रात में पशुओं को अंदर गर्मी वाले स्थान, जैसे की छत के नीचे या घास-फूस की छप्पर तले बांधे|
11. बिजाई के 50-55 दिन के बाद बरसीम और 55-60 दिन बाद जई की चारे के लिए कटाई करें| इसके पश्चात बरसीम की कटाई 25-30 दिन के अन्तराल पर करते रहें|
12. दिसम्बर माह में पशुओं को पीने के लिए ठण्डा पानी नहीं पिलाकर हमेशा ताजा पानी पिलावें| भेड़, बकरियों में चेचक (माता) का टीकाकरण करवाऐं|
खलिहान में कटाई के बाद रखी गई फसलों व नवअंकुरित फसलों की चूहों से रोकथाम हेतु अभियान चलावें| पहले दो दिन विषहीन चुग्गे का प्रयोग करें| उनको चुग्गा खाने की आदत डालें| प्रत्येक आबाद बिल में 10-15 ग्राम या आवश्यकतानुसार विषहीन चुग्गा रखें| पाँचवे दिन विष चुग्गा, एक किलो ग्राम अनाज में 20 ग्राम खाने के तेल (मूंगफली / सरसों / तिल) एवं लगभग 20 ग्राम जिंकफॉसफाईड, 6-8 ग्राम प्रति बिल की दर से रखें तथा दूसरे दिन बिल में मरे चूहों को इकटठा कर मिटी में गाड़ दें| यह कार्य सावधानीपूर्वक विशेषज्ञो की देखरेख में करें|
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