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Home » ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती: किस्में, रोपाई, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती: किस्में, रोपाई, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

February 25, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

ट्रेंच विधि से गन्ने की खेती

ट्रेंच जैसी आधुनिक विधि हमारी कृषि के लिए आवश्यक है| क्योंकि देश की बढ़ती जनसंख्या और कृषि योग्य भूमि के क्षेत्रफल में हो रही कमी की समस्या ने वैज्ञानिकों को गन्ना तथा चीनी उत्पादन बढ़ाने हेतु सोचने को विवश कर दिया है| चीनी उद्योग तथा कृषकों के हितों को ध्यान में रखते हुये गन्ना शोध परिषद् ने गन्ना खेती के विभिन्न पहलुओं पर शोध कर उन्नत कृषि तकनीक ट्रेंच विधि विकसित की हैं|

जो सम्पूर्ण उत्तर भारत में गन्ने की उत्पादकता तथा चीनी परता बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगी| सामान्य विधि से बोये गये गन्ने की फसल की अपेक्षा ट्रेंच विधि से बोये गये गन्ने की फसल का उत्पादन और शर्करा प्रतिशत अधिक होता है| गन्ना की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गन्ना की खेती- किस्में, प्रबंधन व पैदावार

यह भी पढ़ें- गन्ने के साथ अंतरवर्ती खेती से बढ़ाएं आमदनी

ट्रेंच विधि से गन्ना बुवाई के लिए उन्नत किस्में

उन्नतशील और संस्तुत किस्मों का चयन कर इनकी बुवाई शीघ्र, मध्य व देर से पकने वाली किस्मों का 40:60 के अनुपात में करना चाहिये, जिससे किसान भाई बाजार या चीनी मिलों के भाव को ध्यान में रखकर अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते है| कुछ प्रमुख किस्में इस प्रकार है, जैसे-

शीघ्र पकने वाली- कोशा- 8436, 88230, 95255, 96268 व 08272, कोसे- 98231, 01235, 03234, 01421, को- 0118, 0238, 05009, 98014, कोलख- 9709, 94184, यू पी- 05125 और को पी के- 05191 आदि|

मध्य-देर से पकने वाली- कोशा- 767, 97261, 97264, 96275, 99269, 98259,08279, 08276 व 12232, कोसे- 01434, 08452, 96436 व 11453, को पंत- 84212, 97222, को- 0124, 05011, कोह- 119, 128 आदि|

जलप्लावित क्षेत्रों हेतु- यू पी- 9530 और कोसे- 96436 जैसी किस्मों का चयन किया जा सकता है| गन्ना की किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गन्ने की क्षेत्रवार उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार

ट्रेंच विधि से गन्ना बुवाई के लिए खेत की तैयारी

गन्ना बुवाई से पूर्व मिटटी में पर्याप्त नमी बनाये रखने के लिये पलेवा (सिंचाई) करना आवश्यक है| ओट आने पर पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से 10 से 12 इंच गहरी करनी चाहिये तथा मिट्टी के अनुसार 2 से 3 जुताइयाँ कल्टीवेटर या हैरो से करके पाटा लगाना चाहिये|

अन्तिम जुताई से पहले 10 किलोग्राम एजोटोबैक्टर, 10 किलोग्राम पी एस बी और 10 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा, 2 क्विंटल सड़ा हुआ गोबर खाद का मिश्रण बनाकर पूरे खेत में दोपहर बाद बुरकाव (टॉप ड्रेसिंग) करना चाहिये या जमाव के बाद नालियों में प्रयोग करने से खेत की उर्वरा शक्ति में वृद्धि और फफूंद जनित रोगों पर नियंत्रण किया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- गन्ने की फसल में समन्वित कीट और रोग प्रबंधन

ट्रेंच विधि से गन्ना बुवाई का समय

वातावरण का 16 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट के मध्य तापमान होने पर जमाव अच्छा होता है| गन्ना बुवाई के लिये उचित समय शरदकाल में 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर और बसन्तकाल में 15 फरवरी से मार्च तक उपयुक्त होता है|

ट्रेंच विधि गन्ना बुवाई के लिए बीज और उपचार

बीज गन्ने की आयु 8 से 10 माह, गन्ना गिरा न हो, कीट, रोग से मुक्त और स्वस्थ हो, अधिक पतला न हो| बीज गन्ने को तेज धार वाले गड़ासे से 2 आँख के टुकड़ों में काटना चाहिये| काटते समय ध्यान रखना चाहिये, कि आँखें क्षतिग्रस्त न हों| कटे हुये टुकड़ों को 0.1 प्रतिशत बावस्टीन के घोल 112 ग्राम बावस्टीन + 112 लीटर पानी में कम से कम 5 मिनट तक डुबो कर बोने से जमाव में वृद्धि के साथ कण्डुवा रोग के आक्रमण को कम किया जा सकता है|

ट्रेंच विधि से गन्ना बुवाई के लिए बीज दर

गन्ने की मोटाई और पोरियों की लम्बाई के अनुसार 80 से 85 क्विंटल बीज गन्ना प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है| इस विधि में प्रति मीटर एक फीट चौड़ी ट्रेंच में 8 से 10 दो आँख के टुकड़े 10 सेंटीमीटर की दूरी पर क्षैतिज समायोजित करने चाहिये|

ट्रेंच विधि गन्ना के लिए ट्रेंच खोलना

ट्रैक्टर चालित ट्रेन्च ओपनर से एक ट्रेंच के मध्य से दूसरे ट्रेंच के मध्य 120 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिये| विपरीत परिस्थितियों में 100 सेंटीमीटर पर भी रखा जा सकता है| प्रत्येक ट्रेंच की चौड़ाई 30 सेंटीमीटर और गहराई 25 से 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिये|

यह भी पढ़ें- टिश्यू कल्चर एवं पॉलीबैग द्वारा गन्ना उत्पादन

ट्रेंच विधि गन्ना में पोषक तत्वों प्रबन्ध

ट्रेंच खोलने के बाद इसमें उर्वरक मिटटी परीक्षण के आधार पर देनी चाहिये| सामान्य अवस्था में 200 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस, 60 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट शरदकालीन और 180: 80: 60 बसन्तकालीन बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिये| नत्रजन का 1/3 भाग कार्बनिक खाद गोबर या कम्पोस्ट 2/3 भाग रासायनिक उर्वरक के साथ देना चाहिये|

उर्वरक में नत्रजन का 1/3 भाग और फास्फोरस, पोटाश और जिंक सल्फेट एवं कार्बनिक खाद की पूरी मात्रा बुवाई के समय खोले गये ट्रैन्चों में डालकर कस्सी से मिट्टी में मिला देना चाहिये, जिससे उर्वरकों का सीधा सम्बन्ध गन्ना बीज से न हो अन्यथा अंकुरण प्रभावित होगा| शेष नत्रजन 3 से 4 किश्तों में मार्च, अप्रैल, मई, जून में उपयुक्त नमी होने पर नालियों में गन्ने की पौधों की जड़ों के पास देना चाहिये|

ट्रेंच विधि गन्ना की बुवाई और ढकाई

ट्रेंच में उर्वरक तथा कार्बनिक खाद डालने के उपरान्त दो ऑख वाले उपचारित गन्ने के टुकडों को क्षैतिज, कम अंकुरण वाली किस्मों के 10 सेंटीमीटर के अन्तराल पर और अधिक अंकुरण वाली किस्मों के 7 से 8 पौधे, 12 से 15 सेंटीमीटर की दूरी पर खूडों में इस प्रकार रखने चाहिये, कि टुकड़ों की ऑखें अगल-बगल में हों जिससे अंकुरण या जमाव अच्छा हो सके|

निराई गुड़ाई की सुविधा को ध्यान में रखते हुये टुकड़ों की बुवाई ट्रेंच में दोहरी पंक्ति विधि से भी कर सकते हैं, जिसमें पेड़ों की बुवाई ट्रेंच में दोनों किनारों पर सीधे-सीधे 30 सेंटीमीटर की दूरी पर दो लाइनों में 5 से 5 बीज टुकड़े 2 ऑख के प्रति मीटर की दर से समायोजित कर बुवाई करनी चाहिये|

टुकड़ों की बुवाई से पहले दीमक व अंकुर बेधक के नियंत्रण के लिए क्लोरपायरीफॉस 20 ई सी 05 लीटर प्रति हेक्टेयर 1850 लीटर पानी में घोल बनाकर हजारे से बीज टुकड़ों के ऊपर ढकाई से पहले सावधानी पूर्वक डालें| तत्पश्चात् पर्याप्त सिंचाई के साधनों की उपलब्धता की दशा में लगभग 2 से 3 सेंटीमीटर भुरभुरी हल्की मिट्टी टुकड़ों के ऊपर डालनी चाहिये|

यह ध्यान रखना चाहिये, कि कोई भी बीज टुकड़ा खुला दिखाई न दे तथा न ही अधिक मिट्टी पड़ जाए| सिंचाई के साधनों की सीमित परिस्थिति में लगभग 5 से 6 सेंटीमीटर भुरभुरी मिट्टी से बीज टुकड़ों को ढकना चाहिये| इस विधि से गन्ने की बुवाई करने पर जमाव एक समान, शीघ्र तथा 80 से 90 प्रतिशत होता है, जिससे पैदावार के साथ-साथ चीनी परता में भी वृद्धि होती है|

यह भी पढ़ें- गन्ने में रोग और कीट नियंत्रण कैसे करें

ट्रेंच विधि गन्ना में सिंचाई प्रबंधन

गन्ने की अच्छी पैदावार के लिये 175 सेंटीमीटर पानी की आवश्यकता होती है, जिसमें से 100 सेंटीमीटर पानी वर्षा से प्राप्त होता है और 75 सेंटीमीटर सिंचाई के माध्यम से दिया जाता है| इस नवीन ट्रेंच विधि से बुवाई करने पर सिंचाई केवल 25 प्रतिशत क्षेत्रफल में ही की जाती है, जिससे प्रति सिंचाई 50 से 60 प्रतिशत पानी, ईंधन और समय की बचत होती है|

उपलब्ध सिंचाई के साधन से ग्रीष्मकाल में 15 से 20 दिन के अन्तराल पर सिंचाई की जा सकती है, जो गन्ने में प्रति इकाई क्षेत्रफल उत्पादकता बढ़ाने में सहायक होता है| वर्षाकाल जुलाई से सितम्बर में 20 दिनों तक वर्षा न होने की स्थिति में सिंचाई करना आवश्यक है| जिससे गन्ने की बढ़वार प्रभावित न हो सके|

ट्रेंच विधि गन्ना में खरपतवार नियंत्रण

इस विधि में जल्दी-जल्दी सिंचाई 15 दिन के अन्तराल पर करने पर नालियों में खरपतवार अधिक उग आते हैं| खरपतवार नियंत्रण की दृष्टि से नालियों में कस्सी से गुड़ाई करना कठिन होता है, क्योंकि बीज टुकड़े ऊपर होते हैं और यदि श्रमिक समय से उपलब्ध नहीं हो पाते हैं|

इसके लिए खरपतवार नियंत्रण हेतु खरपतवार नाशक रसायन मैट्रीब्यूजीन 70 प्रतिशत, 1.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में बुवाई पहले 2 से 3 दिन के अन्दर छिड़काव करना चाहिये, इसके बाद 30 दिन के अन्तराल पर मैट्रीब्यूजीन 750 ग्राम और 2, 4- डी सोडियम साल्ट 1.25 किलोग्राम का प्रति हेक्टेयर 2 से 3 छिड़काव 30 दिन के अन्तराल से उपयुक्त नमी की दशा में करने चाहिये|

यांत्रिक विधि द्वारा तीन गुड़ाई खुरपी या कसोला से 30, 60 और 90 दिनों के अन्तराल पर करने से पैदावार व चीनी परता में दोनों में वृद्धि होती हैं| अंकुरण के बाद जब गन्ने के पौधे विकसित हों उस समय ट्रेंच में थोड़ी-थोड़ी ऊपर पड़ी हुई मिट्टी को गिराते हैं| मिट्टी गिराने का कार्य फसल बढ़वार के साथ शुरू कर मई के अन्तिम सप्ताह तक पूर्ण कर लेते हैं|

यह भी पढ़ें- गन्ना के रोग एवं उनका प्रबंधन

ट्रेंच विधि गन्ना में मिटटी चढ़ाना

गन्ने के थानों पर मिट्टी चढ़ाने से जड़ों का सघन विकास होता है| खरपतवार नियंत्रण के साथ-साथ फसल गिरती नहीं है और बनी हुई नालियाँ सिंचाई तथा जल निकास का कार्य करती हैं| श्रमिक महंगे और समय से उपलब्ध न होने की दशा में किसान गन्ने में मिट्टी नहीं चढ़ा पाते हैं| अच्छी फसल होने की दशा में गन्ना गिर जाता है, जिससे गन्ना पैदावार व चीनी परता दोनों ही प्रभावित होते हैं|

ट्रेंच विधि गन्ना फसल की बंधाई

ट्रेंच विधि में गन्ने की बुवाई 25 से 30 सेंटीमीटर गहरी होने के कारण गन्ना गिरने की सम्भावना कम होती है, परन्तु सामान्य प्रचलित विधि की तुलना में ट्रेंच विधि में गन्ने की लम्बाई, मोटाई अधिक होने की दशा में वर्षाकाल में तेज हवाओं के चलने पर गन्ना को गिरने से बचाने हेतु जुलाई के अन्तिम सप्ताह में पहली बंधाई और गन्ने की बढ़वार के अनुसार अगस्त से सितम्बर में तथा दूसरी कैंची बँधाई करना आवश्यक है|

ट्रेंच विधि गन्ना की फसल कटाई

ट्रेंच विधि में बोये गये गन्ने की कटाई तेज धारदार या आधुनिक औजारों से जमीन की सतह से काटनी चाहिये, जिससे गन्ने की पैदावार के साथ-साथ पेड़ी गन्ने का फुटाव और उत्पादन अधिक प्राप्त किया जा सके|

ट्रेंच विधि गन्ना की फसल से पैदावार और चीनी 

संशोधित ट्रेंच विधि से बुवाई करने पर अंकुरण अधिक और एक समान होता है तथा कल्ले कम मरते हैं| सामान्य परम्परागत प्रचलित विधि की अपेक्षा ट्रेंच तकनीक में गन्ने की उपज 25 से 30 प्रतिशत और चीनी परता 0.35 से 0.61 यूनिट तक अधिक पाया गया है|

ध्यान दें- ट्रेंच तकनीक की उपरोक्त प्रक्रिया के बाद बाकि बची क्रियाएँ कृषक बन्धुओं को गन्ना की खेती की तरह ही करनी है और गन्ना की ट्रेंच विधि की खेती के साथ अंतरवर्ती खेती उपयोगी पाई गई है, जो अतरिक्त आमनदनी का अच्छा स्रोत बन सकती है|

यह भी पढ़ें- गन्ना के प्रमुख कीट एवं उनका प्रबंधन

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