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काली हल्दी की उन्नत खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

August 8, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

काली हल्दी (Black turmeric) का वानस्पतिक नाम कुरकुमा कैसिया है| यह जिजीबरेसी कुल से है| यह एक लम्बा जड़दार सदाबहार पौधा है| जिसकी 1.0 से 1.5 सेंटीमीटर ऊचाई होती है| इसकी जड़ (गांठ या प्रकन्द) रंग में नीली-काली होती है| इसके प्रकन्द में अनेक प्रकार के गुण पाए जाते है, जैसे- इस पादप में एंटी-बैक्टिरियल और एंटी-फंगल गुण पाए जाते हैं| यह मस्तिश्क व हृदय के लिए एक टॉनिक का काम करता है|

इसकी गांठें ल्यूकोडरमा, बवासीर, ब्रांकाइटिस (श्वास रोग), अस्थमा, ट्यूमर, एलर्जी आदि के ईलाज के लिए उपयोगी होती हैं| यदि कृषक इसकी खेती आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकी से करें, तो इसकी खेती से अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है| इस लेख में काली हल्दी की खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है|

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काली हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

उष्ण तथा समषीतोष्ण जलवायु इन पौधे के लिए उत्तम है| हालांकि, यह आंशिक छाया प्रिय प्रजाति का पौधा है| लेकिन, यह खुली धूप और खेती की परिस्थितियों के अनुसार अच्छा उगता है| यह पौधा 41 से 45 डिग्री सेंटीग्रेड तापमा सहन कर लेना है|

काली हल्दी की खेती के लिए भूमि का चयन

यह रेतीली-चिकनी और अम्लीय किस्म की मिट्टी में अच्छी उगती है| अर्थात बलुई रेत मिश्रित मध्यम पानी धारण क्षमता वाली भूमि में यह फसल अच्छी होती है| चिकनी काली मुरूम मिश्रित मिटटी के कंद बढ़ते नहीं हैं|

काली हल्दी की खेती के लिए भूमि की तैयारी

कंद वर्गीय फसल होने के कारण पहली जुताई गहरा हल चलाकर करनी चाहिए| इसके बाद वर्षा के पूर्व जून के प्रथम सप्ताह में 2 से 3 बार जुताई करके मिट्टी भुरभुरी बना लें तथा जल निकासी की अच्छी व्यवस्था कर लें| खेत में 10 से 15 टन प्रति हेक्येटर की दर से गोबर की खाद मिला दें|

काली हल्दी की खेती के लिए प्रजनन सामग्री

इसकी गांठें ही इसकी प्रजनक सामग्री हैं| दिसम्बर माह में या खेती से ठीक पहले पकी हुई गाठों को एकत्र किया जाता है और लम्बाई में इस तरह काटा जाता है कि प्रत्येक भाग में एक अंकुरण कली हो उनको रोपण के लिए प्रयोग में लाया जाता है|

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काली हल्दी की खेती के लिए नर्सरी तकनीक

पौध तैयार करना- गांठ को सीधे ही खेत में बो दिया जाता है|

पौध की मात्रा- खेती के लिए एक हेक्टेयर में लगभग 2.2 टन गांठे आवश्यक होती हैं और इन टुकड़ों को बाविस्टीन के 2 प्रतिशत घोल में 15 से 20 मिनट तक डुबोकर रखना चाहिए|

काली हल्दी फसल के लिए प्रत्यारोपण

मानसून से पूर्व की अवधि के दौरान जड़ (गांठ) को जमीन में दबा कर उगाया जाता है| इसके 30 X 30 सेंटीमीटर के अन्तर में पौधे लगाना उपयुक्त है| प्रति हेक्टेयर 1100 पौध (गांठों के टुकड़े) आवश्यक होती हैं| गांठे लगभग 15 से 20 दिनों के अन्दर अंकुरित हो जाती हैं|

काली हल्दी की खेती में खाद का प्रयोग

भूमि जुताई के समय 10 से 15 कार्बनिक खाद खेत में मिलते है उसके ढेले तोड़े जाते हैं और उसे समतल किया जाता है और नाइट्रोजन, फॉसफोरस व पोटाशियम का प्रयोग मिटटी परीक्षण के आधार पर उचित रहता है|

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काली हल्दी की खेती के लिए संवर्धन विधियां

पादप-रोपण के 45 दिनों और 60 दिनों के बाद पौधों के आसपास कुछ मिट्टी चढ़ाई जाती है| पौधे लगाने के बाद उनकी शुरुआती वृद्धि के दौरान बढ़ती खरपतवार को कम करने के लिए उसे बीच-बीच में हाथ से हटाया जाना आवश्यक है| इसे 60, 90 और 120 दिन के बाद हटाने की सिफारिस की जाती है|

काली हल्दी की फसल में सिंचाई प्रबंधन

यह फसल आमतौर पर खरीफ सीजन में वर्षायुक्त हालात में उगाई जाती है| यदि वर्षा न हो तो सिंचाई आवश्यकतानुसार की जानी चाहिए|

काली हल्दी फसल में कीट और रोग नियंत्रण

काली हल्दी पर अभी तक कीटों का प्रकोप नही देखा गया है| लेकिन कभी-कभी फसल के पत्तों पर निशान (टेफरिना स्प.) और धब्बे (कार्टिसिअम स्प.) दिखाई देते हैं| इस बीमारी की रोकथाम के लिए पत्तों पर बॉरडाक्स मिश्रण का छिड़काव मासिक अन्तरालों पर किया जाना चाहिए|

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काली हल्दी की फसल की कटाई

काली हल्दी की फसल पकने में लगभग 9 माह का समय लगता है| फसल की कटाई (जड़ें निकालना) का कार्य जनवरी के मध्य में किया जाता है| जड़ें निकालते समय गांठों को ठीक से निकाला जाना चाहिए| क्योंकि यदि वे क्षतिग्रस्त हो जाएं तो कंदों को नुकसान पहुंचता है|

काली हल्दी फसल की कटाई बाद प्रबंधन

काली हल्दी की गांठे निकालने के बाद उन्हें छीलकर (छिलका उतार कर) छाया में खुली हवा में सुखाया जाना चाहिए| इन सूखी जड़ों (गांठों) को उपयुक्त नमी रहित कन्टेनरों में रखा जाना चाहिए|

काली हल्दी की फसल से पैदावार

उपरोक्त तकनीक से काली हल्दी की खेती करने पर एक एकड़ में ताजी जड़ों (गांठों) की पैदावार लगभग 50 टन हो जाती है| जबकि सूखी जड़ें (गांठे) लगभग 10 टन तक होती हैं|

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