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Home » ब्लॉग » आचार्य विनोबा भावे पर निबंध | Essay on Vinoba Bhave

आचार्य विनोबा भावे पर निबंध | Essay on Vinoba Bhave

by Bhupender Choudhary Leave a Comment

आचार्य विनोबा भावे पर निबंध

आचार्य विनोबा भावे का जन्म 11 सितंबर, 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा में हुआ था| उनका वास्तविक नाम विनायक राव भावे था| उनके पिता का नाम नरहरि शम्भू राव था| उनकी माता का नाम रुक्मिणी देवी था| विनोबा भावे की प्रारंभिक शिक्षा बड़ौदा में हुई| बाद में उन्होंने वाराणसी में पढ़ाई की| उनकी रुचि मुख्यतः दार्शनिक साहित्य में थी| वह साबरमती आश्रम से जुड़े और महात्मा गांधी के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक बन गए| विनोबा भावे एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे| वह ‘नागपुर नमक सत्याग्रह’, ‘दांडी मार्च’ और केरल में ‘मंदिर प्रवेश आंदोलन’ में सक्रिय रूप से शामिल थे|

उन्हें गांधीजी ने व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए पहला सत्याग्रही चुना था| विनोबा भावे का 15 नवंबर 1982 को 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया| वह एक आध्यात्मिक दूरदर्शी थे, जिनकी आध्यात्मिकता वंचितों के लिए गहन चिंता के साथ व्यावहारिक रुख रखती थी| उन्हें ‘भूदान आंदोलन’ के लिए जाना जाता है| उन्होंने ‘सर्वोदय आन्दोलन’ का भी नेतृत्व किया| अहिंसक आंदोलन के इतिहास में उनका योगदान महत्वपूर्ण है| विनोबा भावे एक प्रकाण्ड विद्वान थे|

वह अठारह भाषाएँ जानते थे| उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति की कई पुस्तकें लिखीं| 1958 में विनोबा सामुदायिक नेतृत्व के लिए अंतर्राष्ट्रीय रेमन मैग्सेसे पुरस्कार के पहले प्राप्तकर्ता थे| उन्हें मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया| उपरोक्त को 200 शब्दों का निबंध और निचे लेख में दिए गए ये निबंध आपको आचार्य विनोबा भावे पर प्रभावी निबंध, पैराग्राफ और भाषण लिखने में मदद करेंगे|

यह भी पढ़ें-  विनोबा भावे का जीवन परिचय

आचार्य विनोबा भावे पर 10 लाइन

आचार्य विनोबा भावे पर त्वरित संदर्भ के लिए यहां 10 पंक्तियों में निबंध प्रस्तुत किया गया है| अक्सर प्रारंभिक कक्षाओं में आचार्य विनोबा भावे पर 10 पंक्तियाँ लिखने के लिए कहा जाता है| दिया गया निबंध आचार्य विनोबा भावे के उल्लेखनीय व्यक्तित्व पर एक प्रभावशाली निबंध लिखने में सहायता करेगा, जैसे-

1. आचार्य विनोबा भावे एक स्वतंत्रता सेनानी और आध्यात्मिक गुरु थे| उनका जन्म 11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के गागोडे में हुआ था|

2. उनका मूल नाम विनायक नरहरि भावे था| उनकी माता रुक्मिणी देवी बहुत धार्मिक व्यक्ति थीं|

3. विनोबा को बहुत कम उम्र में ही गणित में गहरी रुचि थी| 1916 में, इंटरमीडिएट की परीक्षा देने के लिए मुंबई जाते समय विनोबा भावे ने अपने स्कूल और कॉलेज के प्रमाणपत्रों को आग में डाल दिया|

4. ऐसा माना जाता था कि विनोबा ने यह निर्णय एक समाचार पत्र में महात्मा गांधी द्वारा लिखित एक लेख को पढ़ने के बाद लिया था|

5. 1951 में, विनोबा भावे ने तेलंगाना के हिंसाग्रस्त क्षेत्र से पैदल अपनी शांति यात्रा शुरू की| 18 अप्रैल, 1951 को पोचमपल्ली गांव के हरिजनों ने उनसे जीवनयापन के लिए लगभग 80 एकड़ जमीन उपलब्ध कराने का अनुरोध किया|

6. आचार्य विनोबा भावे ने गांव के जमींदारों को आगे आकर हरिजनों को बचाने के लिए कहा| सभी को आश्चर्य हुआ, जब एक जमींदार खड़ा हुआ और उसने आवश्यक मात्रा में जमीन की पेशकश की|

7. इस घटना ने बलिदान और अहिंसा के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा| यह भूदान (भूमि का उपहार) आंदोलन की शुरुआत थी| इसके बाद, विनोबा भावे ने पूरे देश में यात्रा की और जमींदारों से कहा कि वे उन्हें अपने बेटों में से एक मानें और इसलिए उन्हें अपनी जमीन का एक हिस्सा दें|

8. फिर उसने भूमि के उन हिस्सों को भूमिहीन गरीबों को वितरित कर दिया| उनके आस-पास के किसी भी व्यक्ति ने उन्हें कभी क्रोधित और हिंसक होते नहीं देखा|

9. उन्होंने हमेशा महात्मा गांधी द्वारा दिखाए गए सत्य और अहिंसा के मार्ग का पालन किया|

10. नवंबर 1982 में आचार्य विनोबा भावे गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और उन्होंने अपना जीवन समाप्त करने का फैसला किया| उन्होंने अपने अंतिम दिनों में कोई भी भोजन और दवा लेने से भी इनकार कर दिया| 15 नवंबर 1982 को महान समाज सुधारक ने अंतिम सांस ली|

यह भी पढ़ें- विनोबा भावे के अनमोल विचार

आचार्य विनोबा भावे पर 500+ शब्दों में निबन्ध

विनायक नरहरि भावे का जन्म 11 सितंबर, 1895 को गागोडे, बॉम्बे प्रेसीडेंसी (वर्तमान महाराष्ट्र) में हुआ था| उनके पिता और माता का नाम क्रमशः नरहरि शंभू राव और रुक्मिणी देवी था|

आचार्य विनोबा भावे का परिचय

आचार्य विनोबा भावे एक अहिंसक और स्वतंत्रता के कार्यकर्त्ता, समाज सुधारक और आध्यात्मिक शिक्षक थे| महात्मा गांधी के एक उत्साही अनुयायी होने के नाते विनोबा ने अहिंसा और समानता के अपने सिद्धांतों का पालन किया| उन्होंने अपना जीवन गरीबों और दलितों की सेवा हेतु समर्पित कर दिया तथा उनके अधिकारों के लिये खड़े हुए|

आचार्य विनोबा पुरस्कार और मान्यता

आचार्य विनोबा भावे वर्ष 1958 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय व्यक्ति थे| उन्हें 1983 में मरणोपरांत भारत रत्न (भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार) से भी सम्मानित किया गया था|

आचार्य विनोबा का गांधी के साथ जुड़ाव

आचार्य विनोबा भावे ने 7 जून. 1916 को गांधी से मुलाकात की और आश्रम में निवास किया| गांधी की शिक्षाओं ने भावे को भारतीय ग्रामीण जीवन को बेहतर बनाने के लिये समर्पित जीवन की ओर अग्रसर किया| आश्रम के एक अन्य सदस्य मामा फड़के ने उन्हें विनोबा (एक पारंपरिक मराठी विशेषण जो महान सम्मान का प्रतीक है) नाम दिया था|

8 अप्रैल, 1921 को आचार्य विनोबा भावेवे, गांधी के निर्देशों के तहत वर्धा में एक गांधी-आश्रम का प्रभार लेने के लिये वर्धा गए| वर्धा में अपने प्रवास के दौरान वर्ष 1923 में उन्होंने मराठी में एक मासिक ‘महाराष्ट्र धर्म’ का प्रकाशन किया, जिसमें उपनिषदों पर उनके निबंध छापे गए थे|

यह भी पढ़ें- इला भट्ट पर निबंध

आचार्य विनोबा स्वतंत्रता में भूमिका

उन्होंने असहयोग आंदोलन के कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और विशेष रूप से आयातित विदेशी वस्तुओं के स्थान पर स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग का आह्वान किया| उन्होंने खादी का कताई करने वाला चरखे का उपयोग किया और दूसरों से ऐसा करने का आग्रह किया, जिसके परिणामस्वरूप कपड़े का बड़े पैमाने पर उत्पादन हुआ| वर्ष 1932 में, विनोबा को छह महीने के लिए धूलिया जेल भेज दिया गया था क्योंकि उन पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ साजिश का आरोप लगाया गया था| कारावास के दौरान उन्होंने साथी कैदियों को ‘भगवद गीता’ के विभिन्न विषयों को मराठी में समझाया|

धूलिया जेल में उनके द्वारा गीता पर दिये गए सभी व्याख्यानों को एकत्र किया गया और बाद में पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया| वर्ष 1940 में उन्हें भारत में गांधीजी द्वारा ब्रिटिश राज के खिलाफ पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही (सामूहिक कार्रवाई के बजाय सत्य के लिये खड़े होने वाले व्यक्ति) के रूप में चुना गया था| 1920 और 1930 के दशक के दौरान भावे को कई बार बंदी बनाया गया तथा ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध के लिये 40 के दशक में पांँच साल की जेल की सज़ा दी गई थी| उन्हें आचार्य (शिक्षक) की सम्मानित उपाधि दी गई थी|

आचार्य विनोबा सामाजिक कार्यों में भूमिका

उन्होंने समाज में व्याप्त असमानता जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने की दिशा में अथक प्रयास किया| गांधीजी द्वारा स्थापित उदाहरणों से प्रभावित होकर उन्होंने उन लोगों का मुद्दा उठाया जिन्हें गांधीजी द्वारा हरिजन कहा जाता था| उन्होंने गांधीजी के सर्वोदय शब्द को अपनाया जिसका अर्थ- “सभी के लिये प्रगति” (Progress for All) है| इनके नेतृत्व में 1950 के दशक के दौरान सर्वोदय आंदोलन ने विभिन्न कार्यक्रमों को लागू किया गया जिनमें प्रमुख भूदान आंदोलन है|

यह भी पढ़ें- बाबा आमटे पर निबंध

आचार्य विनोबा भावे भूदान आंदोलन

वर्ष 1951 में तेलंगाना के पोचमपल्ली (Pochampalli) गाँव के हरिजनों ने उनसे जीविकोपार्जन के लिये लगभग 80 एकड़ भूमि प्रदान कराने का अनुरोध किया| विनोबा ने गाँव के जमींदारों को आगे आने और हरिजनों को संरक्षित करने के लिये कहा| उसके बाद एक ज़मींदार ने आगे बढ़कर आवश्यक भूमि प्रदान करने की पेशकश की| यह भूदान (भूमि का उपहार) आंदोलन की शुरुआत थी|

यह आंदोलन 13 वर्षों तक जारी रहा और इस दौरान विनोबा भावे ने देश के विभिन्न हिस्सों (कुल 58,741 किलोमीटर की दूरी) का भ्रमण किया| वह लगभग 4.4 मिलियन एकड़ भूमि एकत्र करने में सफल रहे, जिसमें से लगभग 1.3 मिलियन को गरीब भूमिहीन किसानों के बीच वितरित किया गया| इस आंदोलन ने दुनिया भर से प्रशंसको को आकर्षित किया तथा स्वैच्छिक सामाजिक न्याय को जागृत करने हेतु इस तरह के एकमात्र प्रयोग के कारण इसकी सराहना की गई|

आचार्य विनोबा भावे धार्मिक कार्य

उन्होंने जीवन के एक सरल तरीके को बढ़ावा देने के लिये कई आश्रम स्थापित किये, जो विलासिता रहित थे, क्योंकि यह लोगों का ध्यान ईश्वर की भक्ति से हटा देता है| महात्मा गांधी की शिक्षाओं की तर्ज पर आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से उन्होंने वर्ष 1959 में महिलाओं के लिये ‘ब्रह्म विद्या मंदिर’ की स्थापना की| उन्होंने गोहत्या पर कड़ा रुख अपनाया और इसके प्रतिबंधित होने तक उपवास करने की घोषणा की|

आचार्य विनोबा भावे साहित्यक रचना

आचार्य विनोबा भावे की महत्त्वपूर्ण पुस्तकों में स्वराज्य शास्त्र, गीता प्रवचन और तीसरी शक्ति आदि शामिल हैं|

आचार्य विनोबा भावे की मृत्यु

वर्ष 1982 में वर्द्धा, महाराष्ट्र में आचार्य विनोबा भावे का निधन हो गया|

यह भी पढ़ें- सैम मानेकशॉ पर निबंध

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