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Home » अप्रैल महीने में उगाई जाने वाली सब्जियां और कृषि कार्य

अप्रैल महीने में उगाई जाने वाली सब्जियां और कृषि कार्य

April 3, 2024 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

अप्रैल महीने में उगाई जाने वाली सब्जियां और कृषि कार्य

हम सभी सब्जियों के महत्व से अवगत हैं। यदि आप अप्रैल महीने में सर्वोत्तम सब्जियाँ लगाना चाहते हैं, तो एक बात निश्चित है, की आपके पास चुनने के लिए बहुत कुछ होगा। अप्रैल कई सब्जियाँ उगाने के लिए एक आदर्श महीना है, जिससे पूरी गर्मियों में सब्जियाँ पैदा होती हैं। चाहे सब्जियाँ हों या जड़ी-बूटियाँ, आप इन्हें अपने घर या खेत में आसानी से लगा सकते हैं। इस लेख में अप्रैल महीने में शुरू होने वाली कुछ सबसे विश्वसनीय, प्रचुर और फायदेमंद फसलों को शामिल किया गया है।

कुछ सब्जियों को बड़े होने में समय लगता है, जबकि अन्य बुआई के 7 से 10 सप्ताह बाद तैयार हो जाती हैं। अपनी सब्जियाँ उगते देखना आँखों के लिए एक वास्तविक आनंद है। आइए जानें कि अप्रैल महीने के दौरान उगाने के लिए सबसे अच्छे सब्जी पौधे कौन से हैं और अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए।

अप्रैल महीने में उगाई जाने वाली सब्जी फसलें और कृषि कार्य

1.तैयार हो चुकी प्याज व लहसुन की खुदाई अप्रैल महीने के अंत में करें और खोदने के बाद फसल को तीन दिनों तक खेत में ही पड़ा रहने दें। तीन दिनों बाद प्याज व लहसुन को छाया में सुखाएं और फिर सही तरीके से भंडारण करें। खुदाई के 10-12 दिनों पहले सिंचाई बन्द कर दें। और अधिक पढ़ें- प्याज की खेती

2. कद्दूवर्गीय सब्जी की नर्सरी फरवरी में तैयार कर मार्च-अप्रैल महीने में पौध की रोपाई कर देनी चाहिए। कद्दूवर्गीय सब्जियों में 5-6 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करते रहें। फसल कमजोर होने की स्थिति में आवश्यकतानुसार यूरिया की टॉप ड्रेसिंग कर दें। ध्यान रहे कि यूरिया उर्वरक पत्तियों पर नहीं पड़ना चाहिए अन्यथा पत्तियां जल जाएंगी।

कद्दूवर्गीय सब्जियों में लाल भृंग कीट की रोकथाम के लिए सुबह ओस पड़ने के समय राख का बुरकाव करने से कीट पौधों पर नहीं बैठते हैं। इस कीट का प्रकोप होने पर कार्बारिल 5 प्रतिशत या मैलाथियान चूर्ण 5 प्रतिशत के 25 किग्रा चूर्ण को राख में मिलाकर सुबह पौधों पर छिड़काव करें या फिर सेविन नामक रसायन के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।

3. अप्रैल महीने में कद्दूवर्गीय फसलें जैसे – लौकी, तोरई, कद्दू, तरबूज, खरबूजा, खीरा, ककड़ी आदि की बुआई करते हैं। इन फसलों की बुआई के लिए अच्छी प्रकार से पलेवा कर खेत की तैयारी करनी चाहिए और बुआई के लिए आवश्यक सस्य क्रियाओं को अपनाना चाहिए। बुआई से पूर्व बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किग्रा बीज, साथ ही ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। और अधिक पढ़ें- कद्दू वर्गीय सब्जियों की खेती

4. लौकी व करेले की जनवरी-फरवरी के दौरान नर्सरी में तैयार की गयी पौध की रोपाई करें। लौकी की पौधों की रोपाई 200X100 सेंमी की दूरी पर करें, जबकि करेले की पौधों की रोपाई 150X60 सेंमी की दूरी पर करें। और अधिक पढ़ें- करेला की खेती

5. लौकी की किस्म पूसा संतुष्टि 55-60 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इससे लगभग 25-30 टन प्रति हैक्टर पैदावार मिल जाती है। पूसा संकर – 3 किस्म की औसतन 42 टन प्रति हैक्टर तक पैदावार होती है और इसकी प्रथम कटाई 55-60 दिनों में होती है। और अधिक पढ़ें- लौकी की खेती

6. सूरन, अदरक और हल्दी की बुआई अप्रेल महीने में प्रारंभ कर दें। सूरन की बुआई के लिए 75 क्विंटल बीज प्रति हैक्टर, अदरक की बुआई के लिए 18 क्विंटल बीज प्रति हैक्टर और 30-40 सेंमी फासले पर क्यारी बनाकर 20 सेंमी फासलों पर प्रयोग करें एवं हल्दी के लिए 15-20 क्विंटल बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है। बुआई से पूर्व हल्दी व अदरक के बीज को 0.3 प्रतिशत कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के घोल से उपचारित कर लें तथा सूरन के बीज को 2 प्रतिशत तुतियां प्रति नीला थोथा या 0.2 प्रतिशत बाविस्टीन से उपचारित करें।

सूरन, अदरक और हल्दी की बुआई करने के बाद खेत को सूखी पुआल प्रति सूखी पत्तियों की पलवार से ढक दें। इससे खेत में खरपतवार का जमाव नहीं होता, नमी संरक्षित रहने से फसल का जमाव में भी वृद्धि होगी। इसके साथ ही इनके सड़ने से खेत में जीवांश या कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में भी बढ़ोतरी होती हैं। और अधिक पढ़ें- अदरक की खेती

7. टमाटर की फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई और गुड़ाई करते रहें। इसकी फसल में बहुत से रोग और कीट लगते हैं जैसे कि अर्धगलन, डंपिंग ऑफ। इन रोगों से पौधे गलने लगते हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए बुआई से पहले बीज को उपचारित कर लेना चाहिए। दूसरा इंडोफिल एम-45 की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। मोजैक और विषाणु रोग में पत्तियां सिकुड़ जाती हैं और पौधे की वृद्धि रुक जाती है।

नियंत्रण के लिए सिकुड़ी पत्तियों को उखाड़ कर जला देना चाहिए। फसल पर 2 ग्राम मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव करते रहना चाहिए, जिससे कि यह रोग और न फैले तथा पैदावार अच्छी मिल सके। पत्ती, तना एवं फलबेधक कीट की रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ईसी की 1-1.25 लीटर दवा 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए। ध्यान रहे कि फलों की तुड़ाई छिड़काव के 4-5 दिनों बाद करनी चाहिए। और अधिक पढ़ें-

8. नियंत्रित स्थिति में ग्रीनहाउस में खीरे की वर्षभर पौध तैयार की जा सकती है। गर्मी के मौसम में इस विधि से 15-18 दिनों में पौध रोपाई योग्य हो जाती है। अंकुरण के तुरन्त बाद उनको पॉलीहाउस में फैला दिया जाना चाहिये। इस प्रकार पौध में जड़ों का विकास बहुत अच्छा होता है तथा जड़ें माध्यम के चारों और लिपट जाती हैं। इससे उन्हें ट्रेंच से निकालने पर जड़ों को कोई नुकसान भी नहीं होता है। बेल वाली सब्जियां जड़ों में कोई नुकसान सहन नहीं कर सकती हैं। अत: उनकी पौध तैयार करने का यह एक मात्र उपयुक्त उपाय व साधन है।

9. खीरे के पौधों को एक प्लास्टिक की रस्सी के सहारे लपेटकर ऊपर की ओर चढ़ाया जाता है। इस प्रक्रिया से प्लास्टिक की रस्सियों को एक सिरे की पौधों के आधार से तथा दूसरे सिरे को ग्रीनहाउस में क्यारियों के ऊपर 9-10 फीट ऊंचाई पर बंधे लोहे के तारों पर बांध देते हैं। अंत में जब पौधा उस तार के बराबर, जिस तार पर रस्सी का दूसरा सिरा बंधा होता है, तो पौधों को नीचे की ओर चलने दिया जाता है।

इसके साथ-साथ विभिन्न दिशाओं से निकली शाखाओं की निरन्तर काट-छांट करनी चाहिये। मोनोशियस किस्मों में मादा फूल मुख्य शाखा से निकली द्वितीय शाखाओं पर ही आते हैं। अतः उनकी कटाई नहीं की जाती है अन्यथा उपज में भारी कमी होती हैं। कटाई-छंटाई करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि हमने किस किस्म को उगाया है।

10. पौधों की उर्वरक और जल की मात्रा मौसम एवं जलवायु पर निर्भर करती है। आमतौर पर पानी 2.0 से 2.5 घन मीटर प्रति 1000 वर्ग मीटर के हिसाब से गर्मी में 2 से 3 दिनों के अंतराल पर दिया जाता है। गर्मी मंज फसल में जल की मात्रा फल आने की अवस्था में 3.0 से 4.0 घन मीटर तक बढ़ा दी जाती है। उर्वरक पानी के साथ मिलाकर ड्रिप सिंचाई प्रणाली द्वारा दिये जाते हैं। नाइट्रोजन 80-100 पीपीएम, फॉस्फोरस 60-70 पीपीएम तथा पोटाश 100-120 पीपीएम तक दिये जाते हैं। इनकी मात्रा को फसल की अवस्था, भूमि के प्रकार व मौसम के अनुसार घटाया व बढ़ाया जा सकता।

11. ग्रीष्मकालीन फसल की अवधि 2.5 से 3.0 माह तक होती है। इस प्रकार के खीरे को 8 से 10 सेंमी लंबाई व कम मोटाई में तोड़कर ग्रेडिंग करके बाजार में अधिक भाव पर बेचा जा सकता है। इस प्रकार की किस्मों को बहुत कम लागत वाले ग्रीनहाउस में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। और अधिक पढ़ें- खीरा की खेती

12. आलू अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल महीने के पहले पखवाड़े में लगा सकते हैं। इसके लिए झुलसा रोगरोधक कुफरी ज्योति प्रजाति का रोगरहित बीज लें। अच्छे जल निकास वाली भूमि में बुआई के लिए ढलान के विपरीत 10 इंच दूरी पर नालियां बनाएं तथा 10 टन गोबर की खाद, 1 बोरा यूरिया, 5 बोरे सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 1 बोरा पोटेशियम सल्फेट डालकर मृदा से ढक दें।

आलू के बीज के मध्यम आकार के 10-12 क्विंटल 2-3 आंख वाले टुकड़ों को 0.25 प्रतिशत एमिसान – 6 के घोल में 6 घंटे तक डुबोकर 8-10 इंच दूरी पर लगाकर मृदा से ढक दें। दीमक, कटुआ व सफेद सूंडी के नियंत्रण के लिए बुआई के समय 1 लीटर क्लोरोपायरीफॉस 35 ई.सी. को 10 कि.ग्रा. रेत में मिलाकर छिड़काव कर दें। और अधिक पढ़ें- आलू की खेती

13. फूलगोभी की बीज वाली फसल कटाई के लिए तैयार हो, तो कटाई का काम करें। कटाई के बाद फसल सुखाकर बीज निकालें। बीजों को अच्छी तरह पैक करके उन का भंडारण करें। और अधिक पढ़ें- फूलगोभी की उन्नत खेती

14. हरी मिर्च में रोपाई के 25-30 दिनों बाद प्रति हैक्टर 35-40 किग्रा नाइट्रोजन की पहली टॉप ड्रेसिंग व रोपाई के 45 दिनों बाद इतनी ही यूरिया की दूसरी टॉप ड्रेसिंग करें। फसल की निराई-गुड़ाई करें तथा उचित समय पर सिंचाई कर दें। और अधिक पढ़ें- मिर्च की खेती

15. गाजर और मूली की बीज वाली फसल कटाई के लिए तैयार हो गई हो तो उसकी कटाई करें। फसल को पूरी तरह सुखा कर ही बीज निकालें। निकले बीजों को ठीक से सुखाने के बाद पैकिंग कर के भंडारण करें। और अधिक पढ़ें- गाजर की खेती

16. अप्रैल महीने की शुरूआत में तोरई की नर्सरी लगा सकते हैं। इस बीच फरवरी व मार्च महीनों में लगाई गई नर्सरी की तैयार पौध की रोपाई 100X50 सेंमी फासला रखते हुए करें और हल्की सिंचाई करें। और अधिक पढ़ें- तोरई की खेती

17. अरबी की अगेती किस्में लगाने का इरादा हो, तो अप्रैल महीने में उनकी बुआई करें। और अधिक पढ़ें- अरबी की खेती

18. चौलाई की फसल अप्रैल महीने में लग सकती है। पूसा कीर्ति व पूसा किरण किस्में 500-600 किग्रा पैदावार देती हैं। 700 ग्राम बीज को लाइनों में 6 इंच और पौधों में एक इंच दूरी पर आधी इंच से गहरा न लगाएं। बुआई पर 10 टन कम्पोस्ट, आधा बोरा यूरिया और 2.7 बोरा सिंगल सुपर फॉस्फेट डालें।

19. लोबिया गर्म जलवायु और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की फसल है, जिसका तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है। बीज बनने के लिए जड़ की वृद्धि 20 डिग्री सेल्सियस और 32 डिग्री सेल्सियस के न्यूनतम तापमान पर रुक जाती है। लोबिया के अधिकतम उत्पादन के लिए दिन का तापमान 27 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान 22 डिग्री सेल्सियस रहता है।

लोबिया की खेती लगभग सभी प्रकार की मृदा पर की जा सकती है। लोबिया को दोमट या बलुई दोमट मृदा में सबसे अच्छा उगाया जाता है। इसके लिए मृदा का पीएच मान नॉर्मल होना चाहिए। अच्छी जल निकासी वाली मृदा और भरपूर मात्रा में कार्बनिक पदार्थ इसके लिए सबसे उपयुक्त होते हैं।

20. लोबिया की उन्नत प्रजातियों में पूसा धारणी, पूसा फाल्गुनी, पंत लोबिया – 1, पंत लोबिया – 2, पंत लोबिया – 3, पंत लोबिया – 4, पंत लोबिया – 5, स्वर्ण हरिता, स्वर्ण सुफला, काशी कंचन, काशी निधि, जीसी 6, जीडीवीसी – 2 आदि प्रमुख हैं, जो अप्रैल महीने में लगायी जा सकती हैं।

21. उर्वरकों का प्रयोग मृदा पोषक तत्व परीक्षण के अनुसार करना चाहिए। जब खेत की अंतिम जुताई हो जाए तो 5-10 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टर डालना चाहिए। 15-20 किग्रा नाइट्रोजन 60 किग्रा फॉस्फोरस और 50-60 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टर प्रयोग करने से अच्छी उपज प्राप्त होती है। और अधिक पढ़ें- लोबिया की खेती

22. धनिया की खेती हरी पत्तियों के प्रयोग के लिए लगभग पूरे वर्ष की जाती है। धनिया की खेती के लिए दोमट मृदा सर्वोत्तम होती है। यह अच्छे जीवांशयुक्त भारी मृदा में भी उगाई जा सकती है, लेकिन जल निकास होना अति आवश्यक है।

23. धनिया की उन्नत किस्में जैसे- पूसा सेलेक्शन 360, आरसी 1, यूडी 20, यूडी 21, पंत हरितिमा, साधना, स्वाती, डीएच 5, सीजी 1 आदि प्रमुख हैं। बीज की मात्रा बुआई और सिंचाई की दशा पर निर्भर करती है। सिंचित दशा में बीज 12-15 किग्रा प्रति हैक्टर तथा असिंचित दशा में 25-30 किग्रा प्रति हैक्टर पड़ता है। बीज को 3 ग्राम थीरम या 2 ग्राम बाविस्टीन से प्रति किग्रा की दर से बुआई करने से पहले शोधित कर लेना चाहिए। बीज को बोने से पहले 12 घंटे पानी में भिगोकर बुआई करनी चाहिए।

24. उर्वरकों का प्रयोग मृदा पोषक तत्व परीक्षण के अनुसार करना चाहिए। जब खेत की अंतिम जुताई हो जाए, तो 10-12 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टर प्रयोग करनी चाहिए। इसके साथ ही नाइट्रोजन 60 किग्रा, फॉस्फोरस 40 किग्रा तथा पोटाश 40 कि.ग्रा. तत्व के रूप में प्रति हैक्टर प्रयोग करना चाहिए। और अधिक पढ़ें- धनिया की खेती

करेला की फसल 

1. करेले की उन्नत किस्मों में पूसा संकर 1, पूसा संकर 2 और पूसा विशेष प्रमुख हैं। इनकी बुआई 5-6 किग्रा बीज प्रति हैक्टर की दर से करते हैं।

2. कद्दूवर्गीय सब्जी में समेकित पोषक तत्व प्रबंधन करना चाहिए। इसके लिए 200-250 क्विंटल प्रति हैक्टर सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट की दर से खेत की आखिरी जुताई के समय अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए। इसके लिए 120 किग्रा नाइट्रोजन, 100 किग्रा फॉस्फोरस और 80 किग्रा पोटाश तत्व के रूप में देनी चाहिए।

3. नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा आखिरी जुताई के समय मिला देनी चाहिए। नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा खड़ी फसल में दो बार में प्रयोग करते हैं, जिससे लगातार फसल की अच्छी पैदावार मिल सके। और अधिक पढ़ें- करेला की खेती

भिंडी की फसल 

1. भिंडी की उन्नत प्रजातियों में आजाद भिंडी 1, आजाद भिंडी 2, आजाद भिंडी 3, आजाद भिंडी 4, परभणी क्रांति, वर्षा उपहार, पूसा ऐ 4, पूसा ऐ 5, अर्का अनामिका और अर्का अभय प्रमुख हैं। भिंडी की फसल में 35-40 किग्रा नाइट्रोजन की टॉप ड्रेसिंग बुआई के 30 दिनों बाद व शेष एक तिहाई मात्रा की दूसरी टॉप ड्रेसिंग बुआई के 45-50 दिनों बाद करें।

2. फूल एवं फल आने की स्थिति में भिंडी में तनाबेधक और फलबेधक कीट लगते हैं। इसके लिए कार्बोसल्फान 25 ईसी 1.5 लीटर 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से हर 10 से 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करते रहना चाहिए। इसके पूर्व भिंडी की तुड़ाई कर लेनी चाहिए, जिससे रसायनों का बुरा प्रभाव खाने वालों पर न पड़ सके।

3. इसके साथ ही भिंडी में येलोवेन मोजेक पीला रोग का नियंत्रण आवश्यक है, जिससे कि फल, पत्तियां और पेड़ पीला पड़ जाता है। इसके नियंत्रण के लिए रोगरहित किस्मों का प्रयोग करना चाहिए या मैलाथियान 50 ईसी 1.0 लीटर को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से हर 10 से 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करते रहना चाहिए, जिससे यह रोग उत्पन्न ही नहीं होता है। और अधिक पढ़ें- भिंडी की खेती

पॉलीहाउस में नर्सरी की तैयारी

1. नर्सरी तैयार करने के लिए लो टनल पॉलीहाउस में अच्छी गुणवत्ता की पौध तैयार कर सकते हैं। वर्षाकालीन बैंगन की फसल के लिए नर्सरी में बीज की बुआई अप्रैल महीने में भी कर सकते हैं।

2. वर्षाकालीन बैंगन की नर्सरी यदि तैयार हो, तो उसकी रोपाई 75-90X60 सेंमी की दूरी पर करते हैं, जहां तक सम्भव हो, रोपाई शाम के समय करें तथा रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई कर दें।

3. ग्रीष्मकालीन बैंगन में रोपाई के 30 दिनों बाद प्रति हैक्टर 50 किग्रा नाइट्रोजन की पहली टॉप ड्रेसिंग व इतनी ही मात्रा की दूसरी टॉप ड्रेसिंग रोपाई के 45-50 दिनों बाद कर दें।

4. बैंगन में तना और फलीबेधक कीटों से बचाव के लिए कार्बोसल्फान 25 ईसी 1.5 लीटर प्रति हैक्टर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल कर प्रत्येक 10-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करते रहना चाहिए। नीमगिरी 4 प्रतिशत का छिड़काव 10 दिनों के अंतराल पर करने से अच्छा परिणाम मिलता है। और अधिक पढ़ें- बैंगन की खेती

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