अगस्त का महिना खरीफ की फसलों के लिए सबसे महत्वपूर्ण महीनों में से एक है| खरीफ फसलों में कई मुख्य सब्जियों की खेती होती है| अगस्त महीने में अधिक या अचानक अधिक वर्षा होने की संभावना होती है, नुकसान से बचने के लिए फसलों में सिंचाई के लिए बनाई नालियां को जल-निकास की व्यवस्था कर लेनी चाहिए है| खेत में पानी जमा होने से फसलों का भारी नुकसान हो सकता है| अगस्त माह में नत्रजन खाद देते समय वर्षा का विशेष ध्यान रखें| अधिक बरसात होने की स्थिति में यूरिया न क्योंकि बहुत सी नत्रजन पानी के साथ बह जायेगी|
किसान भाइयो फसल कोई भी हो, उसे नियमित देखभाल की जरूरत होती है| कुछ महत्वपूर्ण कृषि कार्यों को सही समय पर करने से हम बेहतर पैदावार प्राप्त कर सकते| अगर आप भी किसान हैं तो आपके लिए इस महीने होने वाले कृषि कार्यों के बारे में जानना जरूरी है| आइये इस पोस्ट के माध्यम से हम अगस्त महीने में किये जाने वाले कृषि कार्यों की जानकारी प्राप्त करेंगे|
मक्का फसल के लिए
वर्षां का पानी मक्का के खेत में खडा नहीं रहना चाहिए| इसका निकास लगातार होते रहना चाहिए| अगस्त महीने में खरपतवार खेत से बराबर निकालते रहें| देर से बुआई वाली फसल में पौधे घुटनों की ऊंचाई पर आ गये होंगे वहां नत्रजन की दूसरी किस्त 50 किग्रा यूरिया लगाएँ| जहां अगस्त में मक्का की फसल में झंडे आने लग गये है, वहां नत्रजन की तीसरी किस्त 50 किग्रा यूरिया पौधों के आसपास डालें|
मक्का में लगने वाले कीटों का उपचार पिछले माह के लेख में बताया जा चुका है| बीमारियों में बीज गलन, पीथियम तना गलन, जीवाणु तना गलन, पत्ता अंगमारी तथा डाऊनी मिल्डयु है| इन रोगों के सामूहिक नियंत्रण के लिए जून माह के लेख में बताया जा चुका है| रोगी पौधों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें| मक्का फसल की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मक्का की खेती: जलवायु, किस्में, देखभाल और पैदावार
गन्ना फसल के लिए
अगस्त महीने में गन्ने को बांधे तांकि फसल गिरने से बचे तथा पौध संरक्षण पर पूरा ध्यान दें क्योंकि अगस्त महीने में काफी कीट व बीमारियां लगने का भय रहता है| अगोला बेधक, पायरिल्ला, गुरदासपुर बोरर तथा जडबेधक कीटों का पिछले महीनों के कृषि कार्यों में बताये तरीकों से नियंत्रण करें| रत्ता रोग फफूंद के कारण लगता है| पत्ते पीले पड जाते हैं, गन्ना पिचक जाता हैं तथा उस पर काले दाग पड जाते हैं और गन्ना बीच से लाल हो जाता है| जिससे सफेद आडी पट्टियां दिखाई देती हैं और गन्ने से शराब की सी बू आती है|
नियंत्रण के लिए रोगी पौधों को निकाल कर जला दें| रोग वाली फसल जल्दी काट लें| रोग वाले खेत से बड़ी फसल न लें और 1 साल तक गन्ना न बोयें| रोगरोधी किस्म सीओएस- 767 लगायें| सोका रोग भी फफूंद के कारण होता है और इसमें पत्ते सूख जाते हैं, गन्ने हल्के व खोखले हो जाते हैं| नियंत्रण के लिए बिजाई स्वस्थ्य पोरियों से करें तथा रोगी खेत में कम से कम तीन साल तक अलग फसल चक्र अपनाऍ| गन्ना फसल की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गन्ना की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार
धान फसल के लिए
धान के खेतों में पानी लगातार बना रहना चाहिए, लेकिन सप्ताह में एक बार पानी को बदल दें| अगस्त महीने में पानी की कमी की स्थति में कम से कम खेत को गीला जरूर रखें| शेष बची यूरिया की मात्रा का 3/4 हिस्सा देने से पहले खेत से पानी और खरपतवार निकाल दें तथा अगले दिन फिर 2 इंच तक खेतों में पानी खडा कर दें| धान में फास्फोरस भी दो बार दिया जा सकता है दूसरी किस्त रोपाई के 7 दिन तक दे दें| यदि जिंक नहीं दिया हो तो 2 से 3 सप्ताह बाद धान की फसल पीली पड सकती है तथा पत्तों पर भूरे धब्बे आ जाते हैं|
यदि लेव बनाते समय जिंक सल्फेट न डाला हो तो इसके लिए तीन छिडकाव (7 किग्रा जिंक सल्फेट + 27 किग्रा यूरिया को 100 लीटर पानी में घोल) करें| पहला छिडकाव एक महीने बाद तथा फिर 15 से 17 दिन के अन्तर पर करें| धान में लगने वाले कीडों की रोकथाम के बारे में पिछले महिनों के कृषि कार्य के लेखों में बताया जा चुका है| रोगों में तना गलन रोग पौधों के तनों को गला देता हैं , पोधे जमीन पर गिर पडते हैं तथा तना चीरने पर सफेद रूई जैसी फफूंद तथा काले रंग के पिण्ड पाये जाते हैं|
नियंत्रण के लिए रोपाई से पहले खेत तथा मेडों पर पडे पिण्डों तथा ठूठों को जला दें| खेत में हर हफ्ते पानी बदल दें तथा रोगग्रस्त खेत का पानी स्वस्थ्य खेत में न जाने दें| फसल कटाई के बाद ठूठों को जला दें| बदरा या ब्लास्टर रोग में पत्तियों पर धब्बे बनते हैं, तने पर गाठे चारों ओर से काली हो जाती हैं और पौधा गांठ से टूट जाता है| नियंत्रण के लिए, लक्षण नजर आने पर प्रति एकड 200 ग्राम काबॅन्डाजिम या 200 मिली हिलनासन या 120 ग्राम बीम को 200 लीटर पानी के घोत्न बनाकर छिडकें| धान फसल की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- धान की खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार
कपास फसल के लिए
कपास में फूल आने के समय नत्रजन खाद की बाकी आधी मात्रा दे दें जोकि अमेरिकन कपास में 2/3 बोरी, संकर कपास में 1/2 बोरी का हिस्सा होती है| अगस्त महीने में खरपतवार भी निकालते रहें| नत्रजन खाद देने से पहले खेत में काफी नमी होनी चाहिए परंतु पानी खडा नहीं होना चाहिए| वर्षा के बाद अतिरिक्त जल का निकास तुरंत होना चाहिए| यदि फूल आने पर खेत में नमी नहीं होगी तो फूल और फल झड़ जाएगे तथा पैदावार कम हो जायेगी|
एक तिहाई टिण्डे खुलने पर आखिरी सिंचाई कर दें| इसके बाद कोई सिंचाई न करें तथा खेत में वर्षा का पानी खडा न होने दें| देसी कपास में अगस्त महीने के पहले पखवाडे में कपास से निकल रहे फूटों को काट दें, इससे पैदावार बढ़ जाती है| फूल आने पर नेप्थलीन ऐसीटिक एसिड 70 सीसी का छिडकाव अगस्त महीने के अंत या सितम्बर के शुरू में करें| छिडकाव में खारा पानी का प्रयोग नहीं करें| इस छिडकाव से फूल और टिण्डे सडते नहीं तथा पैदावार ज्यादा मिलती है|
अगस्त महीने में कपास की फसल पर हरा तेला , रोयेदार सुण्डी / कातरा , चित्तीदार सुण्डी, कुबडा कोडा तथा अन्य पत्ती खाने वाले कीडे का प्रकोप बढ़ जाता है| इन कीडों की और कपास के रोगों की रोकथाम के लिए निचे दिए लिंक पर पढ़ें| रोग नियंत्रण के लिए बीजोपचार ही सबसे उत्तम बिधि है| कपास के खेत के निकट भिण्डी न उगायें तथा आसपास पीली बूटी, कंघी बूटी व अन्य खरपतवारों को नष्ट कर दें| नीबू जाति के बागों के पास अमेरिकन कपास न बोयें| कपास फसल की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास की खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार
बाजरा फसल के लिए
फसल में 1/4 हिस्सा बोरा यूरिया पौध छटाई पर दें तथा शेष 1/4 बोरा सिट्टे बनते समय पर दें| बाजरें में फुटाव तथा फूल आने की स्थिति के समय खेत में नमी बनाएं रखें| भारी वर्षा होने पर फालतू पानी तुरंत निकाल दें| सफेद लट कीडे के प्रौढ़ भूण्डों की रोकथाम के लिए वृक्षों पर से गिराकर इकट्ठा करके मिट्टी के तेल से जला दें|
बालों वाली सुण्डियों को 270 मिली मोनोक्रोटोफास 36 एस एल या 700 मिली एण्डोसल्फान 37 ईसी को 270 लीटर पानी में मिलाकर छिडके| भूण्डों की रोकथाम हेतु लिए 400 मिली मैलाथियान 70 ईसी को 270 लीटर पानी में मिलाकर छिडकें| रोगग्रस्त पौधों को उखाडकर नष्ट कर दें| बाजरा फसल की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- बाजरे की खेती: जलवायु, किस्में, देखभाल और पैदावार
दलहनी फसलों के लिए
अगस्त महीने में मूंग, उडद, लोबिया, अरहर, सोयाबीन, इस प्रकार की दलहनी फसलों में फूल आने पर मिट्टी में हल्की नमी बनाये रखें| इससे फूल झडेगें नही तथा अधिक फलियां लगेगी और दाने भी मोटे तथा स्वस्थ्य होंगे परंतु खेतों में वर्षा का पानी खडा नहीं होना चाहिए एवं जलनिकास अच्छा होना चाहिए|
इन दलहनी फसलों में फलीछेदक कीड़े का प्रकोप भी अगस्त महीने में आता है, इसके लिए जब 70 प्रतिशत फलियां आ जाएं तो 600 मिली एण्डोसल्फान 35 ईसी या 300 मिली मोनोक्रटोफास 36 एस एल को 300 लीटर पानी में घोलकर छिडके| जरूरत पडने पर 15 से 17 दिन बाद फिर छिडकाव कर सकते हैं| मूंग, उडद, लोबिया, अरहर, सोयाबीन फसल की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें-
मूंग की खेती: जलवायु, किस्में, देखभाल और पैदावार
उड़द की खेती: किस्में, जलवायु, देखभाल और पैदावार
लोबिया की खेती: किस्में, बुआई, देखभाल, पैदावार
सोयाबीन की खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार
मूंगफली फसल के लिए
यदि मूंगफली में फूल आने की अवस्था है तो सिंचाई अवश्य करें और दूसरी सिंचाई फल लगने पर जरूरी है इससे मूंगफली की सूइयां जमीन में आसानी से घुस जाती है| मूंगफली फसल बोने के 40 दिन बाद इनडोल ऐसिटिक एसिड 0.7 ग्राम को एल्कोहल (7 मिली) में घोलें और 100 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिडकें, फिर 1 सप्ताह बाद 6 मिली इथरल (40 प्रतिशत) 100 लीटर पानी में घोलकर छिडकने से मूगफली की पैदावार 17 से 27 प्रतिशत तक बढ़ जाती है| मूंगफली और तिल में कीडों तथा रोगों की रोकथाम के लिए दिए गये लिंक पर पढ़ें| मूंगफली फसल की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मूंगफली की खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार
अगस्त महीने के जरूरी कृषि कार्य
1. मूंगफली की फसल में पेग (सूइयां ) बनने से पूर्व निराई-गुड़ाई करें एवं झुमका किस्मों मैं पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ावें|
2. धान की फसल में नत्रजन की शेष आधी मात्रा खेत से पानी निकालने के बाद दें| बासमती धान की सीधी बुवाई में एक तिहाई (40 किग्रा/हैक्ट) कल्ले निकलने की अवस्था पर देवें|
3. कपास की फसल में नत्रजन की शेष आधी मात्रा देशी किस्म में ( 25 किग्रा/हैक्ट) व संकर किस्म में (50 किग्रा/ हैक्ट) फूलों की कलियां बनते समय देवें|
4. मक्का में तना छेदक कीट के नियंत्रण हेतु कार्बोफ्यूरॉन 3 प्रतिशत कण 5 से 7.5 किग्रा प्रति हैक्ट की दर से पौधों के पोटों में डालें|
5. उड़द एवं मूंग फसल में जलीय घुलनशील उर्वरक नत्रजनः फॉस्फोरस: पोटाश (18:18:18 ) की 0.5 प्रतिशत की दर से फूल आने पर पर्णीय छिड़काव करें|
6. सोयाबीन में गर्डल बीटल नियंत्रण हेतु डायमिथोएट 30 ईसी 1 लीटर या थायाक्लोप्रिड 21.7 एससी 750 मिलीलीटर दवा को 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|
7. सोयाबीन फसल में पत्ती भक्षक लटों के प्रभावी प्रबन्धन हेतु बीटी 127 एससी 3.0 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें|
8. समेकित कीटनाशी जीव प्रबन्धन के लिए किसान मित्र कीट जैसे ट्राइकोग्रामा, क्राइसोपरला, कोक्सीनेला का उपयोग करें|
9. फली छेदक लट् (हेलीकोवर्पा ) एवं तम्बाकू लट् के प्रबन्धन के लिए एनपीवी तथा व्याधियों के नियंत्रण के लिए जैव फफूँदनाशी ट्राइकोडर्मा का प्रयोग करें| फेरामेन ट्रेप भी लगायें|
10. खरीफ की खड़ी फसलों में जस्ते की कमी होने पर जिंक सल्फेट 5 किग्रा + बुझा हुआ चूना 2.5 किग्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्ट की दर से छिड़काव करें|
11. अरहर फसल में फली छेदक एवं मरूका कीट के प्रारम्भिक प्रकोप पर क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5 ईसी का 100 ग्राम प्रति हैक्टर एनएए का 40 पीपीएम घोल का छिड़काव फूल शुरू होने पर तथा इसके 15 दिन उपरान्त इण्डोक्साकार्ब 15.8 ईसी का 375 मिली प्रति हैक्टर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें|
अगर आपको यह लेख पसंद आया है, तो कृपया वीडियो ट्यूटोरियल के लिए हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें| आप हमारे साथ Twitter और Facebook के द्वारा भी जुड़ सकते हैं|
Leave a Reply