कृषि में साल के हर महीने का अपना-अपना महत्व और महत्व होता है| अक्टूबर भी इससे अलग नहीं है| चूंकि अक्टूबर शरद ऋतु के मौसम की शुरुआत है, इसलिए इन दिनों में किसानों के पास बहुत सारे काम होते हैं| वर्ष के किसी भी अन्य महीने की तरह, विश्व की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गठन का कार्य जारी रहना चाहिए| फार्मिंग ऑपरेशन में खेत से जुड़ी गतिविधियां शामिल होती हैं, फसल उगाना और कटाई करना, पशुपालन और मछली पकड़ना| गतिविधियों में फसलों या फलों का प्रसंस्करण या वितरण शामिल नहीं होता है|
अक्टूबर के महीने में, मानसून का मौसम लगभग खत्म हो जाता है| इसलिए, भूमि पर्याप्त नमी से भरी हुई होती है| किसान उस नमी का लाभ उठाते हैं और सिंचाई के साथ या उसके बिना भी विभिन्न प्रकार की फसलें उगाते हैं| अक्टूबर की ठंडी रातें और गर्म दिन बीज के अंकुरण के लिए अच्छे होते हैं| वसंत की फसलें और शुरुआत के लिए, स्वादिष्ट सब्जियों, रसदार फल और सुगंधित सब्जियों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अधिक पौधे लगाने का समय अक्टूबर है, जो गर्मियों के मूड को बरकरार रखेगा| अक्टूबर महीने में किए गए कुछ कृषि कार्य नीचे उद्धृत किए गए हैं|
खरीफ फसलों में की जाने वाले फसलोत्पादन कार्य
1. बाजरा, तिल, ज्वार, ग्वार, मूंग, मोठ की कटाई समय पर करें जिससे दाने झड़ कर नष्ट न हो| चारे के काम में आने वाली फसलों की कटाई समय पर करें|
2. अक्टूबर माह में मूंगफली, कपास, अरण्डी व मिर्च की फसलों में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें|
3. अक्टूबर माह में कपास की फसल की दूसरी चुनाई समय पर करें| पूरे खिले हुए डोडो की चुनाई करें|
4. अक्टूबर माह में अरंडी की फसल में 90 दिन वाली अवस्था पर 20 किलों नत्रजन व सौंफ में 45 दिन वाली अवस्था पर 30 किलो नत्रजन के साथ सिंचाई करें|
रबी की फसलों में किये जाने वाले फसलोत्पादन कार्य
1. तारामीरा की बुवाई 15 अक्टूबर तक कर दें| 15 किलों बीज प्रति हैक्टर की दर से बीजों को कतारों में बोयें एवं कतार से कतार की दूरी 45 सेमी रखें| तारामीरा की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- हरे चारे के लिए ज्वार की खेती कैसे करें
2. असिंचित चने की बुवाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक करें| सिंचित क्षेत्रों में चने की बुवाई 20 अक्टूबर तक करें| बारानी चने के साथ राया की मिश्रित खेती करने पर अधिक लाभ मिलता हैं तथा चने पर पाले का असर भी कम होता हैं| चने की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- चने की खेती: किस्में, बुवाई, देखभाल और पैदावार
3. बारानी राया की बुवाई 15 अक्टूबर तथा सिंचित राया की बुवाई अक्टूबर माह के अन्त तक कर दें| देर से बुवाई करने पर उपज में कमी होती हैं साथ ही चेंपा व सफेद रोली का प्रकोप भी अधिक होता हैं|
4. सौंफ की सीधी बुवाई का उपयुक्त समय मध्य सितम्बर से मध्य अक्टूबर तक का हैं| सौंफ की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सौंफ की खेती: किस्में, बुवाई, देखभाल और पैदावार
रोग नियंत्रण क्रियाएँ
1. अक्टूबर माह में कपास में जीवाणु अंगमारी (ब्लेक आर्म) रोग के लक्षण दिखाई देते ही 5-10 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या 50-100 ग्राम प्लान्टोमाइसीन या पोसामाइसीन + 300 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड -50 डब्लूपी प्रति 100 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करें| कीट नियंत्रण हेतु चौथे छिड़काव के साथ उक्त रसायन मिलाकर भी छिड़काव कर सकते हैं| कपास की खेती में कीट और रोग रोकथाम की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास की खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार
2. सौंफ की बुवाई से पहले बीज को 2 ग्राम कार्बेण्डाजिम 50 डब्ल्यू.पी प्रति किलों बीज की दर से उपचारित कर बोयें|
3. चने में जड़ गलन व उखटा रोगों की रोकथाम के लिये कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति किलों बीज की दर से उपचारित करें अथवा ट्राइकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम प्रति किलों बीज की दर से उपचारित करें|
4. राया व तारामीरा में बुवाई से पहले बीज को 2.5 ग्राम मैन्कोजेब 75 डब्लू पी प्रति किलों बीज की दर से उपचारित कर बोयें| सफेदरोली के प्रकोप से बचाने के लिये राया के बीज को मेटालेक्जिल 35 एस डी 6 ग्राम प्रति किलों बीज की दर से उपचारित कर बोयें|
कीट नियंत्रण क्रियाएँ
राया व तारामीरा की दगीली (पेटेंड बग) से सुरक्षा: पेन्टेड बग से बचाने हेतु राया व तारामीरा के बीजों को इमिडाक्लोप्रीड 70 डब्लयु एस रसायन की 7.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार कर बोयें| यदि बीजोंपचार नही किया गया है वहा पर फसल का अंकुरण होते ही क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 20 किलो प्रति हैक्टर या मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस एल 1.0 लीटर प्रति हैक्टर या ऐसीफेट 75 एसपी 500 ग्राम प्रति हैक्टर की दर से सांयकाल में छिड़काव करें| इसके अतिरिक्त आरामक्खी का भी आक्रमण होता है तो, पेन्टेड बग के लिये बतायें गये उपचार करने से इनकी भी रोकथाम सम्भव हैं|
चना की फसल में दीमक व कटवा लट की रोकथाम: दीमक की रोकथाम हेतु बुवाई के समय कीटनाशी से बीजोपचार करें| इसके लिये 400 मिली क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी प्रति क्विंटल की दर से भली भाँति मिलाकर पतली परत में सुखायें व बुवाई करें| कटुवा लट का आक्रमण शुरू होते ही रोकथाम हेतु फसल पर क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण का 25 किलो प्रति हैक्टर दर से शाम के समय भुरकाव करें|
जौ में कीट नियंत्रण: फसल की युवावस्था में दीमक, शूट – फलाई, गुझिया फली बीटल व सतही टिड्डे के प्रकोप की आंशका रहती हैं| इनकी समय-समय पर निगरानी रखते रहें और आवश्यकता होने पर उपचार करें| दीमक की रोकथाम हेतु बीजोपचार करें| इसके लिये 400 मिली क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी प्रति 100 किलों बीज की दर से काम में लें| रसायन की मात्रा सही लें व समान रूप से छिड़क कर बीज उपचार करें| अन्य कीटों जैसे फली – बीटल, टिड्डे आदि की रोकथाम की यदि आवश्यकता हो तो क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण का 25 किलों प्रति हैक्टर दर से सुबह या शाम को भुरकें| जौ की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- जौ की खेती: किस्में, बुवाई, देखभाल और पैदावार
कपास: अक्टूबर माह में यदि बालवर्म का प्रकोप आता हैं तो क्लोरपायरीफॉस 25 ईसी या क्यूनालफॉस 25 ईसी 1.0 लीटर प्रति हैक्टर दर से छिड़कें|
अक्टूबर माह के कृषि कार्यों पर एक त्वरित नजर
1. चने की उन्नत किस्में (देशी) जीएनजी 1958, जीएनजी 2144, जीएनजी 2171, सीएसजे 515, प्रताप चना 1, जीएनजी 469 तथा (काबूली) काक 2 की बुवाई करें| चने की उन्नत किस्मों की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- चने की उन्नत किस्में: जाने विशेषताएं और पैदावार
2. चने की फसल में जड़ गलन व उखटा रोग के नियंत्रण हेतु कार्बण्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 0.75 ग्राम + थाइरम 1.0 ग्राम तथा कॉलर रोट हेतु (कार्बोक्सिन 37.5 + थायरम 37. 5) का 1.0 ग्राम या ट्राइकोडर्मा विरीडी 4 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें|
3. चने की फसल में 20 किग्रा नत्रजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस, 45 किग्रा पोटाश तथा 5 किग्रा लौह (20 किग्रा फेरस सल्फेट ) एवं 250 किग्रा जिप्सम प्रति हैक्टर की दर से देवें| जिंक की कमी वाले क्षेत्रों हेतु 25 किग्रा जिंक सल्फेट प्रति हैक्टर की दर से देवें|
4. चना फसल में खरपतवार नियंत्रण हेतु अंकुरण से पूर्व पेन्डीमिथेलीन 30 ईसी 1.0 किलो सक्रिय तत्व / हैक्टर (व्यवसायिक दर 3.3 लीटर / है) या पेन्ड्रीमिथेलीन 38.7 सीएस 1.0 किलो सक्रिय तत्व / हैक्टर (व्यवसायिक दर 2.6 लीटर / है) को 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|
5. सरसों की उन्नत किस्में: एनआरसीएचबी 101, डीआरएमआरआईजे 31 (गिरिराज), एनआरसीडीआर 2, बायो 902, वसुन्धरा, अरावली, लक्ष्मी, माया, जगन्नाथ, आरजीएन 73, स्वर्ण ज्योति एवं आर्शीवाद की बुवाई करें| सरसों की उन्नत किस्मों की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सरसों की उन्नत किस्में: विशेषताएं और पैदावार
6. सरसों में चितकबरा ( पेन्टेड बग) के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 48 एफएस 6 मिली या थायोमिथॉक्जाम 30 एफएस 5 मिली प्रति किग्रा बीज की दर से बीजोपचार कर बुवाई करें|
7. सिंचित सरसों हेतु 80 किग्रा नत्रजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस व 40 किग्रा सल्फर (375 किग्रा जिप्सम ) प्रति हैक्टर का उपयोग अवश्य करें|
8. सरसों में आरा मक्खी व पेन्टेड बग के नियंत्रण हेतु क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत या मैलाथियान 5 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव बुवाई के 7-10 दिन की अवस्था पर करें|
9. मसूर की उन्नत किस्में: डीपीएल 62, आईपीएल 81, जेएल 3, आईपीएल 316, कोटा मसूर 1, कोटा मसूर 2 व कोटा मसूर 3 की बुवाई करें तथा सिफारिशानुसार उर्वरक ( 20:40:20:20:5 नत्रजन फॉस्फोरस पोटाशः गंधक: जिंक) प्रति हैक्ट एवं 1 ग्राम अमोनियम मोलीब्डेट + राइजोबियम + पीएसबी + पीजीपीआर कल्चर 6 ग्राम प्रति किग्रा बीज को उपचारित कर बुवाई करें| मसूर की उन्नत किस्मों की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मसूर की उन्नत किस्में: विशेषताएं और पैदावार
10. मटर (बटला) की उन्नत किस्में: डीडीआर 23, आईपीएफडी 99-13, आईपी एफडी 1-10, डीएमआर 7 की बुवाई करें तथा सिफारिशानुसार उरर्वक (20:40:20:20:5 नत्रजन फॉस्फोरस: पोटाश: गंधक: जिंक) प्रति हैक्ट एवं 1 ग्राम अमोनियम मोलिब्डेट + राइजोबियम + पीएसबी + पीजीपीआर कल्चर 6 ग्राम प्रति किग्रा बीज को उपचारित कर बुवाई करें| मटर की उन्नत किस्मों की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मटर की उन्नत किस्में: विशेषताएं और पैदावार
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