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Home » अलसी की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें

अलसी की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें

June 7, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

अलसी की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें

अलसी की फसल को विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरूआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली चने की इल्ली द्वारा भारी क्षति पहुचाई जाती है| जिससे अलसी की फसल के उत्पादन में भरी कमी आती है| अलसी की फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए किसानों को चाहिए की वे समय पर इन हानिकारक कीट एवं रोगों की रोकथाम करें| इस लेख में अलसी फसल के कीट एवं रोग और उनकी रोकथाम कैसे करें की जानकारी का उल्लेख किया गया है| अलसी की उन्नत तकनीक से खेती कैसे करें की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अलसी की खेती की जानकारी जलवायु, किस्में, रोकथाम व पैदावार

यह भी पढ़ें- अलसी की उन्नत किस्में: विशेषताएं और पैदावार

अलसी की फसल के रोग की रोकथाम

गेरूआ (रस्ट)- यह रोग मेलेम्पसोरा लाइनाई नामक फफूंद से होता है| रोग का प्रकोप प्रारंभ होने पर चमकदार नारंगी रंग के धब्बे अलसी की फसल में पत्तियों के दोनों ओर बनते हैं, धीरे धीरे यह पौधे के सभी भागों में फैल जाते हैं|

नियंत्रण- रोग नियंत्रण हेतु रोगरोधी किस्में जे एल एस- 9, जे एल एस- 27, जे एल एस- 66, जे एल एस- 67 और जे एल एस- 73 को उगायें| रसायनिक दवा के रुप में टेबूकोनाजोल 2 प्रतिशत 1 लीटर प्रति हेक्टेर की दर से या (केप्टान+ हेक्साकोनाजाल) का 500 से 600 ग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए|

उकठा (विल्ट)- यह अलसी की फसल का प्रमुख हानिकारक मृदा जनित रोग है| इस रोग का प्रकोप अंकुरण से लेकर परिपक्वता तक कभी भी हो सकता है| रोग ग्रस्त पौधों की पत्तियों के किनारे अन्दर की ओर मुड़कर मुरझा जाते हैं| इस रोग का प्रसार प्रक्षेत्र में पड़े फसल अवशेषों द्वारा होता है| इसके रोगजनक मृदा में उपस्थित फसल अवशेषों तथा मृदा में उपस्थित रहते हैं तथा अनुकूल वातावरण में पौधो पर संक्रमण करते हैं|

नियंत्रण- रोगरोधी और उन्नत प्रजातियों को उगायें|

चूर्णिल आसिता (भभूतिया रोग)- इस रोग के संक्रमण की दशा में अलसी की फसल में पत्तियों पर सफेद चूर्ण सा जम जाता है| रोग की तीव्रता अधिक होने पर दाने सिकुड़ कर छोटे रह जाते हैं| देर से बुवाई करने पर एवं शीतकालीन वर्षा होने तथा अधिक समय तक आर्द्रता बनी रहने की दशा में इस रोग का प्रकोप बढ़ जाता है|

नियंत्रण- उन्नत प्रजाति उगायें तथा कवकनाशी के रुप मे थायोफिनाईल मिथाईल 70 प्रतिशत डब्ल्यू पी 300 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए|

आल्टरनेरिया- अंगमारी इस रोग से अलसी के पौधे का समस्त वायुवीय भाग प्रभावित होता है| परंतु सर्वाधिक संक्रमण अलसी की फसल में पुष्प एवं पत्तियों पर दिखाई देता है| फूलों की पंखुडियों के निचले हिस्सों में गहरे भूरे रंग के लम्बवत धब्बे दिखाई देते हैं| अनुकूल वातावरण में धब्बे बढ़कर फूल के अन्दर तक पहुंच जाते हैं, जिसके कारण फूल निकलने से पहले ही सूख जाते हैं| इस प्रकार रोगी फूलों में दाने नहीं बनते हैं|

नियंत्रण- उन्नत किस्मों की बोनी करें और (केप्टान+ हेक्साकोनाजाल) का 500 से 600 ग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी मंक घोलकर छिड़काव करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- अलसी की जैविक खेती कैसे करें, जानिए आधुनिक एवं उपयोगी जानकारी

समन्वित रोग नियंत्रण

1. जुताई से पहले फसल अवशेषों को इकट्ठाकर जला देना चाहिये|

2. मिट्टी में रोग जनकों के निवेश को कम करने के लिये 2 से 3 वर्ष का फसल चक अपनाना चाहिये|

3. अलसी की फसल हेतु अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से लेकर नवम्बर के मध्य तक बुवाई कर देना चाहिये|

4. बीजों को बुवाई से पहले कार्बेन्डाजिम या थायोंफिनिट-मिथाइल की 3 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिये|

5. फसलों पर रोग के लक्षण दिखाई देते ही आइप्रोडियोन की 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) अथवा मैन्कोजेब की 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) या कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत + मेकोंजेब 63 प्रतिशत 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की मात्रा का पर्णिय छिड़काव करना चाहिये|

6. चूर्णिल आसिता रोग के प्रबंधन के सल्फेक्स या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल का पर्णिय छिडकाव लाभप्रद होता है|

7. अलसी की फसल हेतु रोग के प्रति सहनशील या प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन कर उगाना चाहिये|

यह भी पढ़ें- मसूर की फसल में कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें

अलसी की फसल के कीट की रोकथाम

फली मक्खी (बड फ्लाई)- यह प्रौढ़ आकार में छोटी तथा नारंगी रंग की होती है| जिनके पंख पारदर्शी होते हैं| इसकी इल्ली ही फसलों को हांनि पहुँचाती है| इल्ली अण्डाशय को खाती है, जिससे कैप्सूल एवं बीज नहीं बनते हैं| मादा कीट 1 से 10 तक अण्डे पंखुड़ियों के निचले हिस्से में देती है| जिससे इल्ली निकल कर फली के अंदर जनन अंगो विशेषकर अण्डाशयों को खा जाती है| जिससे फली पुष्प के रूप में विकसित नहीं होती है तथा कैप्सूल एवं बीज का निर्माण नहीं होता है| यह अलसी की फसल को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाने वाला कीट है, जिसके कारण उपज में 60 से 85 प्रतिशत तक क्षति होती है|

नियंत्रण- रोकथाम के लिये ईमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 100 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें|

अलसी की इल्ली- प्रौढ़ कीट मध्यम आकार के गहरे भूरे रंग या धूसर रंग का होता है, जिसके अगले पंख गहरे धूसर रंग के पीले धब्बे युक्त होते हैं| पिछले पंख सफेद, चमकीले, अर्धपारदर्शक तथा बाहरी सतह धूसर रंग की होती है| इल्ली लम्बी भूरे रंग की होती है| जो अलसी की फसल में तने के उपरी भाग में पत्तियों से चिपककर पत्तियों के बाहरी भाग को खाती है| इस कीट से ग्रसित पौधों की बढ़वार रूक जाती है|

अर्ध कुण्डलक इल्ली- इस कीट के प्रौढ़ शलभ के अगले पंख पर सुनहरे धब्बे होते हैं| इल्ली हरे रंग की होती है, जो प्रारंभ में अलसी की फसल में मुलायम पत्तियों तथा फलियों के विकास होने पर फलियों को खाकर नुकसान पहुंचाती है|

समन्वित रोग नियंत्रण

चने की इल्ली- इस कीट का प्रौढ़ भूरे रंग का होता है जिनके अगले पंखों पर सेम के बीज के आकार के काले धब्बे होते हैं| इल्लियों के रंग में विविधता पाई जाती है, जैसे यह पीले, हरे, नारंगी, गुलाबी, भूरे या काले रंग की होती है| शरीर के पार्श्व हिस्सों पर हल्की एवं गहरी धारियाँ होती है| छोटी इल्ली अलसी की फसल में पौधों के हरे भाग को खुरचकर खाती है, बड़ी इल्ली फूलों एवं फलियों को नुकसान पहुंचाती है|

यह भी पढ़ें- गेहूं में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

समन्वित कीट रोकथाम

1. ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई से मृदा में स्थित फली मक्खी की सुंडी तीव्र धूप के सम्पर्क में आकर नष्ट हो जाती है|

2. कीटों हेतु संस्तुत अलसी की सहनशील प्रजातियों का चुनाव बुवाई हेतु करना चाहिये|

3. अगेती बुवाई अर्थात अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में बुवाई करने पर कीटों का संक्रमण कम होता है|

4. अलसी की फसल के साथ चना (2:4) अथवा सरसों (5:1) की अतंवर्तीय खेती करने से फली बेधक कीट का संक्रमण कम हो जाता है|

5. उर्वरक की संस्तुत मात्रा (60 से 80 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम स्फुर तथा 20 किलोग्राम पोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचित अवस्था में प्रयोग करना चाहिये|

6. बॉस की टी के आकार की 2.5 से 3 फीट ऊँची 50 खूटियों को प्रति हेक्टेयर से लगाने से कीटों को उनके प्राकृतिक शत्रु चिड़ियों द्वारा नष्ट कर दिया जाता है|

7. न्यूक्लियर पाली हेड्रोसिस विषाणु की 250 एल ई का प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव लैपिडोप्टेरा कूल के कीटों का प्रभावशाली प्रबंधन होता है|

8. अलसी की फसल में प्रकाश प्रपंच का उपयोग कर कीड़ों को आकर्षित कर एकत्र कर नष्ट कर दें|

9. अलसी की फसल में नर कीटों को आकर्षित करने तथा एकत्र करने हेतु फेरोमोन ट्रेप का प्रति हेक्टैयर की दर से 10 ट्रैप का प्रयोग लाभप्रद होता है|

10. जब फली मक्खी की संख्या आर्थिक क्षति स्तर (8 से 10 प्रतिशत कली संक्रमित) से उपर पहुँच जाय, तो एसिफेट या प्रोफेनोफॉस अथवा क्विनालफॉस 2 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी के घोल का 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव लाभप्रद होगा|

11. इसके अतिरिक्त अन्य रसायनों जैसे साइपरमेथ्रिन (5 प्रतिशत) + क्लोरोपाइरीफॉस (50 प्रतिशत) की 750 मिलीलीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से या साइपरमेथ्रिन (1 प्रतिशत) + ट्राइजोफॉस (35 प्रतिशत) 40 ई सी की एक लीटर मात्रा का 500 से 600 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव लाभप्रद होता है|

यह भी पढ़ें- मक्का में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

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