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Home » Blog » उड़द की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

उड़द की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

December 16, 2017 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

उड़द की खेती

उड़द की खेती भारत की एक प्रमुख दलहनी फसल है| उड़द की खेती खरीफ और जायद के रूप में की जा सकती है| यह आहार के रूप में अत्यंत पौष्टिक होती है जिसमे प्रोटीन 24 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 60 प्रतिशत और कैल्सियम व फास्फोरस का अच्छा स्रोत है| उड़द की खेती से भूमि को भी संरक्ष्ण और उर्वरक व अन्य पोषक तत्वों की पूर्ति भी होती है|

उड़द की फसल को किसान भाई मिटटी के लिए हरी खाद के रूप में भी प्रयोग कर सकते है| उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश के सिंचित क्षेत्र में अल्पावधि 60 से 65 दिन वाली दलहनी फसल उड़द की खेती करके किसानों की वार्षिक आय में आशातीत वृद्धि संभव है, साथ ही साथ मिटटी संरक्षण या उर्वरता को भी बढ़ावा दिया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- दलहनी फसलों की बीजोपचार विधि: अधिक उत्पादन हेतु

उड़द की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

उड़द उच्च तापक्रम सहन करने वाली उष्ण जलवायु की फसल है| इसी कारण जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा होती है वहाँ अनेक भागों में उगाया जाता है| इसकी अच्छी वृद्धि और विकास के लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान आवश्यक है परन्तु यह 42 डिग्री सेल्सियस तापमान तक सहन कर लेती है| अधिक जलभराव वाले स्थानों में इसे नहीं उगाना चाहिए|

उड़द की खेती के लिए उपयुक्त भूमि

उड़द की खेती बलुई मिटटी से लेकर गहरी काली मिट्टी जिसका पी एच मान 6.5 से 7.8 तक में सफलतापूर्वक की जा सकती है| उड़द का अच्छा उत्पादन लेने के लिए खेत का समतल होना और खेत से जल निकास की उचित व्यवस्था का होना अति आवश्यक है|

उड़द की खेती और फसल चक्र

उड़द कम अवधि व कम बढ़वार वाली फसल होने के कारण इसे ऊंची बढ़वार वाली फसलों के साथ उगाया जा सकता है| इसी कारण इसका अन्तः फसल प्रणाली में अच्छा स्थान माना जाता है| कुछ फसलें जिनके साथ उड़द को उगाया जा सकता है, जैसे-

अरहर + उड़द

बाजरा + उड़द

सूरजमुखी + उड़द

मक्का + उड़द

गन्ना + उड़द

बसंतकालीन गन्ने के साथ अन्तरवर्तीय खेती करना लाभदायक रहता है| 90 सेंटीमीटर की दूरी पर बोई गयी गन्ने की दो पंक्तियों के बीच की दूरी में उड़द की दो पंक्ति ली जा सकती है| ऐसा करने पर उड़द के लिए अतिरिक्त उर्वरक की आवश्यकता नहीं पड़ती है| सूरजमुखी एवं उर्द की अन्तरवर्तीय खेती के लिए सूरजमुखी की दो पंक्तियों के बीच उर्द की दो से तीन पंक्तियां लेना उत्तम रहता है|

यह भी पढ़ें- मूंग की खेती: जलवायु, किस्में, देखभाल और पैदावार

ग्रीष्मकालीन उड़द को अनेक सस्यक्रम प्रणालियों में उगाया जा सकता है| ऐसे क्षेत्र जहां सिंचाई की सुविधा सीमित हो, एकल फसल के रूप में उगाना उत्तम होता है| कुछे एक वर्षीय फसल चक्र जिनके साथ उड़द को सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, जैसे-

धान – गेहू – उड़द

आलू – गेहूं – उड़द

अरहर – गेहूं – उड़द

मक्का – आलू – गेहूं – उड़द

मक्का – उड़द – गेहूं|

उड़द की खेती के लिए किस्में

पीला चितकबरा रोग रोधी किस्में- वी बी एन- 6, वी बी जी- 4-8, को- 6, माश- 114, माश- 479, आई पी यू- 02-43, पंत उर्द- 31, ए डी टी- 4, ए डी टी- 5, वांबन- 1 और एल बी जी- 20 आदि|

खरीफ हेतु- के यू- 99-21, मधुरा मिनीमु- 217, के यू- 309 और ए के यू- 15 आदि|

रबी हेतु- ए के यू- 4, के यू- 301, टी यू- 94-2, आजाद ऊर्द- 1, के यू- 309, के यू- 92-1), शेखर- 2, के यू- 300, मास- 414, एल बी जी- 402 आदि|

शीघ्र पकने वाली- पंत उर्द- 40, प्रसाद, वी बी एन- 5 आदि| उड़द की किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- उड़द की उन्नत किस्में: जाने विशेषताएं और पैदावार

उड़द की खेती के लिए खेत की तैयारी

खेत की अच्छी तैयारी परिणामस्वरूप अच्छा अंकुरण व फसल में एक समानता के लिए बहुत जरूरी है| भारी मिट्टी की तैयारी में अधिक जुताई की आवश्यकता होती है| सामान्यतः 2 से 3 जुताई करके खेत में पाटा चलाकर समतल बना लिया जाता है तो खेत बुवाई के योग्य बन जाता है| ध्यान रहे कि जल निकास नाली की व्यवस्था अवश्य हो|

यह भी पढ़ें- अरहर की खेती: जलवायु, किस्में, देखभाल और पैदावार

उड़द की खेती के लिए बुवाई का समय

मानसून के आगमन पर या जून के अंतिम सप्ताह में पर्याप्त वर्षा होने पर बुवाई करे| इसके लिए कतारों की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 10 सेंटीमीटर रखे एवं बीज 4 से 6 सेंटीमीटर की गहराई पर बोये| ग्रीष्मकालीन में फरवरी के तीसरे सप्ताह से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक बुवाई करे|

उड़द की खेती के लिए बीज की मात्रा

खरीफ में उड़द का बीज 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और ग्रीष्मकालीन बीजदर 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोना चाहिये|

उड़द की खेती के लिए बीजशोधन

मिटटी और बीज जनित रोगों से बचाव के लिए 2 ग्राम थायरम और 1 गाम कार्बेन्डाजिम मिश्रण 2:1 प्रति किलोग्राम बीज या कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर लें| इसके बाद बीज को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लू एस से 7 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें| बीज शोधन कल्चर से उपचारित करने के 2 से 3 दिन पूर्व करना चाहिए|

उड़द की खेती के लिए जैविक बीजोपचार

राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट 250 ग्राम प्रति 10 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होता है| 50 ग्राम गुड़ या शक्कर को 1/2 लीटर जल में घोलकर उबालें व ठण्डा कर लें| ठण्डा हो जाने पर ही इस घोल में एक पैकेट राइजोबियम कल्चर मिला लें| बाल्टी में 10 किलोग्राम बीज डाल कर अच्छी तरह से मिला लें ताकि कल्चर के लेप सभी बीजों पर चिपक जाएं उपचारित बीजों को 8 से 10 घंटे तक छाया में फेला देते हैं|

उपचारित बीज को धूप में नहीं सुखाना चाहिए| बीज उपचार दोपहर में करें ताकि शाम को या दूसरे दिन बुआई की जा सके| कवकनाशी या कीटनाशी आदि का प्रयोग करने पर राइजोबियम कल्चर की दुगनी मात्रा का प्रयोग करना चाहिए और बीजोपचार कवकनाशी-कीटनाशी तथा राइजोबियम कल्चर के क्रम में ही करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- मसूर की खेती: जाने किस्में, देखभाल और पैदावार

उड़द की फसल में उर्वरक की मात्रा

एकल फसल के लिए 15 से 20 किलोग्राम नत्रजन, 40 से 50 किलोग्राम फास्फोरस, 30 से 40 किलोग्राम पोटाश, प्रति हेक्टेयर की दर से अन्तिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए| उर्वरकों की मात्रा मिटटी परीक्षण के आधार पर देना चाहिए| नाइट्रोजन और फासफोरस की पूर्ति के लिए 100 किलोग्राम डी ए पी प्रति हेक्टेयर का प्रयोग कर सकते है| उर्वरकों को अन्तिम जुताई के समय ही बीज से 5 से 7 सेंटीमीटर की गहराई तथा 3 से 4 सेंटीमीटर साइड पर ही प्रयोग करना चाहिए|

उड़द की फसल में सूक्ष्म पोषक तत्व

गंधक (सल्फर)- काली और दोमट मिटटी में 20 किलोग्राम गंधक (154 किलोग्राम जिप्सम/ फॉस्फोजिप्सम या 22 किलोग्राम बेन्टोनाइट सल्फर) प्रति हैक्टर की दर से बुवाई के समय प्रत्येक फसल के लिये देना पर्याप्त होगा| कमी ज्ञात होने पर लाल बलुई मिटटी हेतु 40 किलोग्राम गंधक (300 किलोग्राम जिप्सम/फॉस्फो-जिप्सम या 44 किलोग्राम बेन्टोनाइट सल्फर) प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए| अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन से सल्फर के प्रयोग से 11 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त हुई है|

जिंक- जिंक की मात्रा का निर्धारण मिटटी के प्रकार और उसकी उपल्बधता पर के अनुसार की जानी चाहिए|

लाल बलुई तथा दोमट मिटटी- 2.5 किलोग्राम जिंक (12.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट या 7.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए|

काली मिटटी- 1.5 से 2.0 किलोग्राम जिंक (7.5 से 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट) प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए|

लैटेराइटिक,जलोढ़ तथा मध्यम मिटटी- 2.5 किलोग्राम जिंक (12.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट या 7.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट मोनो हाइडेट) के साथ 200 किलोग्राम गोबर की खाद का प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- राजमा की खेती: जाने किस्में, देखभाल और पैदावार

अधिक कार्बनिक पदार्थ वाली तराई क्षेत्रों की मिटटी- बुवाई के पूर्व 3 किलोग्राम जिंक (15 किलोग्राम जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट या 9 किलोग्राम जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) प्रति हैक्टर की दर से तीन वर्ष के अन्तराल पर देना चाहिए|

कम कार्बनिक पदार्थ वाली पहाड़ी बलई दोमटमिटटी- 2.5 किलोग्राम जिंक (12.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट या 7.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) प्रति हेक्टर की दर से एक वर्ष के अन्तराल में प्रयोग करना चाहिए|

मैंगनीज- मैंगनीज की कमी वाली बलुई दोमट मिटटी में दो मैंगनीज सल्फेट के घोल का बीज उपचार या मैंगनीज सल्फेट के एक घोल का पर्णीय छिड़काव लाभदायक पाया गया है|

मॉलिब्डेनम- मॉलिब्डेनम की कमी वाली मिटटी में 0.5 किलोग्राम सोडियम मॉलिब्डेट प्रति हेक्टर की दर से आधार उर्वरक के रूप में या 0.1 प्रतिशत सौडियम मॉलिब्डेट के घोल का दो बार पणीय छिड़काव करना चाहिए या मॉलिब्डेनम के घोल में बीज शोषित करें|

ध्यान रहे- कि अमोनियम मॉलिब्डेनम का प्रयोग तभी किया जाना चाहिए जब मिटटी में मॉलिब्डेनम तत्व की कमी हो|

उड़द की फसल में सिंचाई प्रबंधन

आमतौर पर खरीफ की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है| यदि वर्षा का अभाव हो तो एक सिंचाई फलियाँ बनते समय अवश्य कर देनी चाहिए| उड़द की फसल को जायद में 3 से 4 सिंचाई की आवश्यकता होती है| प्रथम सिंचाई पलेवा के रूप में और अन्य सिंचाई15 से 20 दिन के अन्तराल में फसल की आवश्यकतानुसार करना चाहिए| पुष्पावस्था तथा दाने बनते समय खेत में उचित नमी होना अति आवश्यक है|

उड़द की फसल में खरपतवार नियंत्रण

बुआई के 25 से 30 दिन बाद तक खरपतवार फसल को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं| यदि खेत में खरपतवार अधिक हैं, तो 20 से 25 दिन बाद एक निराई कर देना चाहिए| जिन खेतों में खरपतवार गम्भीर समस्या हों वहां पर बुआई से एक दो दिन पश्चात पेन्डीमिथालीन की 0.75 से 1.00 किलोग्राम सक्रिय मात्रा को 400 से 600 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करना लाभप्रद रहता है|

यह भी पढ़ें- मटर की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

उड़द की फसल में कीट रोकथाम 

पिस्सू भृग (गैलेरूसिड भृग)- यह कीट सुबह के समय नये पौधों की पत्तियों पर छेद बनाते हुए उन्हें खाता है और दिन में मिटटी की दरारों में छिप जाता है| वर्षा ऋतु में इस कीट का गुबरैला जड की गाँठों में सुराग कर जड़ों में घुस जाता है एवं इनको पूरी तरह खोखला कर देता है| इस कीट के द्वारा जड की गाँठों के नष्ट होने पर उड़द के उत्पादन में 60 प्रतिशत तक हानि देखी गई है| यह मूंग मोजेक विषाणु रोग का भी वाहक है|

रोकथाम- मोनोक्रोटोफॉस 10 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज या डाईसल्फोटॉन 5 जी, 40 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज के हिसाब से बीजो को उपचारित करे| फोरेट 10 जी की 10 किलोग्राम या डाईसल्फोटॉन 5 जी 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए|

पत्ती मोड़क कीट- इल्लियां पत्तियों को ऊपरी सिरे से मध्य भाग की ओर मोड़ती है| यही इल्लियां कई पत्तियों को चिपका कर जाला भी बनाती है| इल्लियां इन्हीं मुड़े भागों के अन्दर रहकर पत्तियों के हरे पदार्थ क्लोरोफिल को खा जाती हैं| जिससे पत्तियां पीली सफेद पड़ने लगती है|

रोकथाम- क्विनालफॉस दवा की 30 मिलीलीटर मात्रा 15 लीटर पानी की दर से छिडकाव करें, आवश्यकता होने पर दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव से 15 दिन बाद करें|

एफिड- निम्फ और व्यस्क कीट बडी संख्या में पौधो की पत्तियों, तनों, कली एवं फूल पर लिपटे रहते है और फूलों का रस चूसकर पौधों को हानि पहुँचाते हैं|

नियंत्रण- फसल को डायमिथिएट 30 ई सी, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ घोल कर छिड़काव करें|

सफेद मक्खी- दोनो ही पत्तियों की निचली सतह पर रहकर रस चूसते रहते हैं| जिससे पौधे कमजोर होकर सूखने लगते हैं| यह कीट अपनी लार से विषाणु पौधों पर पहुंचाता है और यलो मौजेक नामक बीमारी फैलाने का कार्य करते हैं|

नियंत्रण- पीले रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें| फसल में डायमिथिएट 30 ई सी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ घोल कर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- चने की खेती: जाने किस्में, देखभाल और पैदावार

उड़द की फसल में रोग और रोकथाम 

पीला चित्तेरी रोग-

1. पीला चित्तेरी रोग में सफेद मक्खी के रोकथाम हेतु आक्सीडेमाटान मेथाइल 0.1 प्रतिशत या डाइमिथिएट 0.2 प्रतिशत प्रति हेक्टयर 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी और सल्फेक्स 3 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर 3 से 4 छिड़काव 15 दिन के अंतर पर करके रोग का प्रकोप कम किया जा सकता है|

2. रोगरोधी किस्में जैसे- पंत उर्द- 19, पंत उर्द- 30, पी डी एम- 1 (वसंत ऋतु), यू जी- 218, पी एस- 1, आई पी यू- 94-1 (उत्तरा ) नरेन्द्र उर्द- 1, उजाला, प्रताप उर्द- 1, शेखर- 3 (के यू- 309) इत्यादि उगाएं|

झुर्सदार पत्ती रोग, मौजेक मोटल, पर्ण कुंचन-

1. रोकथाम हेतु इमिडाक्लारोप्रिड 70 डब्लू एस 5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार करें|

2. डाईमिथिएट 30 ई सी, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिडकाव रोगवाहक की रोकथाम के लिये करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- जैविक विधि से कीट और रोग तथा खरपतवार प्रबंधन

रूक्ष रोग, मैक्रोफोमिना ब्लाइट तथा चारकोल विगलन-

1. बीजो को बुवाई पूर्व थायरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की डॉ से उपचार करना चाहिए|

2. कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव रोगों के लक्षण दिखते ही करना चाहिए और आवश्यकतानुसार दो छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करने चाहिए|

चूर्णी कवक-

1. फसल पर घुलनशील गंधक 80 डब्ल यू पी, 3 ग्राम प्रति लीटर या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू पी, 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|

2. रोगरोधी किस्में जैसे- सी ओ बी जी-10, एल बी जी- 648, एल बी जी- 17, प्रभा, आई पी यू- 02-43, ए के यू- 15 और यू जी- 301 उगानी चाहिए| उड़द में रोग रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मूंग और उड़द की फसलों में लगने वाले प्रमुख रोग एवं उनका समेकित प्रबंधन

उड़द फसल की कटाई और मड़ाई

जब 70 से 80 प्रतिशत फलियां पक जाएं, हँसिया से कटाई आरम्भ कर देना चाहिए| तत्पश्चात बण्डल बनाकर फसल को खलिहान में ले आते हैं| 3 से 4 दिन सुखाने के पश्चात श्रेसर द्वारा भूसा से दाना अलग कर लेते हैं|

यह भी पढ़ें- जैविक खेती कैसे करें: मुख्य घटक और फायदे

उड़द की खेती से पैदावार

उपरोक्त विधि से प्रबंधन की गई फसल से 12 से 17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक दाने की पैदावार मिल जाती है|

भण्डारण- धूप में अच्छी तरह सुखाने के बाद जब दानों में नमी की मात्रा 8 से 9 प्रतिशत या कम रह जाये, तभी फसल को भण्डारित करना चाहिए|

अधिक उत्पादन लेने हेतु आवश्यक बिंदू-

1. भूमि की ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई तीन वर्ष में एक बार अवश्य करे|

2. पोषक तत्वो की मात्रा मिटटी परीक्षण के आधार पर ही दें|

3. बुवाई पूर्व बीजोपचार अवश्य करे|

4. पीला मोजेक रोग रोधी किस्मों का चुनाव क्षेत्र की अनुकूलता के अनुसार करे|

5. पौध संरक्षण समय पर करना चाहिए|6. खरपतवार नियंत्रण अवश्य करे|

यह भी पढ़ें- जैविक कीटनाशक कैसे बनाएं: जाने आधुनिक तकनीक

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