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Home » Blog » लोबिया की खेती: किस्में, बुवाई, पोषक तत्व, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

लोबिया की खेती: किस्में, बुवाई, पोषक तत्व, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

August 3, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

लोबिया की खेती

लोबिया की खेती (Cultivation of cowpea) दाल, सब्जी, हरी खाद और चारे के लिए पुरे भारत में की जाती है| यह अफ्रीकी मूल की फसल है| लोबिया की खेती सूखे को सहने और जल्दी पकने वाली फसल है| यह मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद करती है| लोबिया प्रोटीन, कैल्शियम और लोहे का मुख्य स्त्रोत है| भारत में मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, केरल, राजस्थान और उत्तर प्रदेश इसके मुख्य उत्पादक राज्य है|

लोबिया के बहुआयामी उपयोग है| जैसे खाद्य, चारा, हरी खाद और सब्जी के रूप में होता है| लोबिया का दाना मानव आहार का पेाष्टिक घटक है तथा पशुधन चारे का सस्ता स्रोत भी है| इसके दाने में 22 से 24 प्रोटीन, 55 से 66 कार्बोहाईड्रेट, 0. 08 से 0.11 कैल्शियम और 0.005 आयरन होता है| इसमे आवश्यक एमिनो एसिड जैसे लाइसिन, लियूसिन, फेनिलएलनिन भी पाया जाता है|

यह भी पढ़ें- दलहनी फसलों की बीजोपचार विधि: अधिक उत्पादन हेतु

लोबिया की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

लोबिया गरम मौसम और अर्ध शुष्क क्षेत्रों की फसल है, जहां का तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है| बीज जमाव के लिए न्यूनतम तापमान 20 डिग्री सेल्सियस है और 32 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर इसकी जड़ों का विकास रूक जाता है| लोबिया के अधिकतम उत्पादन के लिए दिन का तापमान 27 डिग्री सेल्सियस तथा रात का तापमान 22 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त होता है| यह ठंड के प्रति संवेदनशील है एवं 15 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान से पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|

लोबिया की खेती के लिए उपयुक्त भूमि

लोबिया की फसल लगभग सभी प्रकार की भूमि में अच्छे प्रबंधन के साथ उगाई जा सकती है| यद्यपि लोबिया की फसल मटियार या रेतीली दोमट भूमि में अच्छी होती है, फिर भी लाल, काली तथा लैटराइटी भूमि में भी उगाया जाता है| इसके लिए मिटटी का पी एच मान उदासीन होना चाहिए| अत्यधिक लवणीय या क्षारीय मृदा अनुपयुक्त होती है| अच्छे जल निकास और प्रचुर रूप से कार्बनिक पदार्थ वाली मिटटी इसके लिए विशेष रूप से उपयुक्त होती है|

लोबिया की खेती और फसल चक्र

लोबिया की फसल को सामान्य रूप से मिश्रित फसलोत्पादन के अन्तर्गत अरहर, मक्का, ज्वार और बाजरा के साथ उगाया जाता है| हालाँकि मिश्रित फसल के रूप में लोबिया की फसल से उत्पादन कम होता है तथापि अन्य फसल के रूप में इससे लाभ पर्याप्त हो जाता है| गर्मी तथा बसंत काल में इसे सामान्य रूप से अकेली फसल के रूप में उगाया जाता है, लेकिन चारे के लिए इसे मक्का के साथ उगाते हैं, जिससे चारे की गुणवत्ता बढ़ जाती है| लोबिया के प्रचलित फसल चक्र इस प्रकार है, जैसे-

लोबिया – गेहूं – लोबिया (गर्मी)

लोबिया – जौं – लोबिया (गर्मी)

मक्का – गेहूं – लोबिया (गर्मी)

मटर – गन्ना – लोबिया

लोबिया – आलू

लोबिया – गेहूं

लोबिया – जई

लोबिया – गन्ना, इत्यादि|

यह भी पढ़ें- मूंग एवं उड़द की जैविक खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार

लोबिया की खेती के लिए किस्में

दाने के लिये- सी- 152, पूसा फाल्गुनी, अम्बा (वी- 16), स्वर्णा (वी- 38), जी सी- 3, पूसा सम्पदा (वी- 585) और श्रेष्ठा (वी- 37) आदि प्रमुख है|

चारे के लिये- जी एफ सी- 1, जी एफ सी- 2 और जी एफ सी- 3 आदि मुख्य है|

खरीफ और जायद हेतु- बन्डल लोबिया- 1, यू पी सी- 287, यू पी सी- 5286 रशियन ग्रेन्ट, के- 395, आई जी एफ  आर आई (कोहीनूर), सी- 8, यू पी सी- 5287, यू पी सी- 4200, यू पी सी- 628, यू पी सी- 628, यू पी सी- 621, यू पी सी- 622 और यू पी सी- 625 आदि|

लोबिया की राज्यवार संस्तुत किस्में-

मध्य प्रदेश- गुजरात लोबिया- 3, वी- 240, गुजरात लोबिया- 4, यू पी सी- 622 आदि|

राजस्थान- आर सी- 101, आर सी पी- 27 (एफ टी सी- 27) आदि|

पंजाब- सी एल- 367, यू पी सी- 622, वी आर सी पी- 4 (काशी चन्दन) आदि|

छत्तीसगढ़- खालेश्वरी प्रमुख है|

उत्तर प्रदेश- यू पी सी- 622, स्वर्णहरिता (आई सी- 285143) काशी चन्दन, यू पी सी- 628, पन्त लोबिया-1 आदि|

झारखण्ड- यू पी सी- 628, हरियाणा हिसार लोबिया- 46, (एच सी- 98-46) आदि|

कर्नाटक- के बी सी- 2, आई टी- 38956-1, पी के बी- 4, पी के बी- 6 आदि|

तमिलनाडू- वम्बन- 1, सी ओ- 6, यू पी सी- 628 आदि|

यह भी पढ़ें- अरहर की खेती: जलवायु, किस्में, देखभाल और पैदावार

लोबिया की खेती के लिए खेत की तैयारी

भूमि की गहरी जुताई से लोबिया की जड़ों का अनुकूल विकास होता है| एक बार खेत जोतकर डिस्क हैरो चलाकर भूमि तैयार की जा सकती है| जब फसल गर्मी या बसंत में उगाई जाती हो तो कम से कम जुताई की जानी चाहिए| खेत की अंतिम तैयारी करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि भूमि समतल हो जाए और उसमें जल निकास अच्छा हो|

लोबिया की खेती के लिए बुवाई का समय

खरीफ- मानसून आने पर (जून शुरूआत से जुलाई के अंत तक)

रबी- अक्टूबर से नवम्बर माह (दक्षिण भारत)|

ग्रीष्मकालीन- मार्च द्वितीय सप्ताह से मार्च अन्तिम सप्ताह में (दाने के लिये) व फरवरी माह में चारे के लिये पहाडी क्षेत्रों में इसको अप्रैल से मई में लगाते है और हरी खाद के लिये जून मध्य से जुलाई का प्रथम सप्ताह में लगाते है|

यह भी पढ़ें- हरे चारे के लिए ज्वार की खेती कैसे करें

लोबिया की खेती के लिए बीज की मात्रा

आमतौर पर दाने के लिये इसकी 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, चारे एवं हरी खाद के लिये 30 से 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज दर की आवश्यकता होती है| ग्रीष्मकाल में दाने के लिये बोई गई फसल के लिये 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर व चारे और हरी खाद के लिये 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज दर की आवश्यकता होती है|

लोबिया की खेती के लिए बुआई विधि

कतार से कतार की दूरी- 30 सेंटीमीटर (झाडीनुमा किस्मों हेतु) से 45 सेंटीमीटर (फेलने वाली किस्मों हेतु), पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर (झाडीनुमा किस्मों हेतु) से 15 सेंटीमीटर (फेलने वाली किस्मों हेतु) आवश्यकतानुसार और मौसम के आधार पर लोबिया की बुवाई कतार में, छिटकवां तथा डिबलिग विधि से कर सकते है| कतार में बुवाई छिटकवां विधि से अच्छी रहती है| हालाँकि चारे और हरी खाद की फसल की बुवाई हेतु छिटकवां विधि अच्छी मानी गई है| बीज की बुवाई 3 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए|

लोबिया की खेती के लिए बीज उपचार

बीजों की बुवाई से पहले थायरम 2 ग्राम + कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचार करना चाहिए| इसके उपरान्त राईजोबियम कल्चर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करके बुवाई करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- गिनी घास की खेती कैसे करें

लोबिया की खेती के लिए खाद और उर्वरक

खेत की अन्तिम जुताई के समय 5 से 10 टनप्रति हेक्टेयर गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिला देना चाहिए| इसके लिये 15 से 20 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 50 से 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देने से अच्छी पैदावार प्राप्त होती है| सूक्ष्म पोषक तत्व व फास्फोरस और पोटाश उर्वरकों को मिटटी पोषक तत्व परीक्षण के अनुसार देना चाहिए|

लोबिया की खेती के लिए जल प्रबंधन

खरीफ की फसल में सिंचाई की अपेक्षा जल निकास आवश्यक होता है| लम्बे समय से सूखा पड़ने पर सिंचाई करनी चाहिए| लोबिया में पुष्पन और फलीयों के भरने के समय यदि मिटटी में नमी की कमी होती है, तो उपज प्रभावित होती है| इसलिए सूखे के समय पुष्पन और फलीयों के भरने के समय मिटटी में नमी की मात्रा कम न होने दे| गर्मी की फसल के लिये सिंचाई अति आवश्यक होती है| आमतौर पर 5 से 6 सिंचाई की आवश्यकता 10 से 15 दिनों के अन्तराल पर करना चाहिए|

लोबिया की खेती में खरपतवार नियंत्रण

अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिये फसल की प्रारम्भिक अवस्था 25 से 30 दिन तक खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए| समेकित खरपतवार नियंत्रण के लिये पैन्डीमेथालिन 0.75 से 1.00 किलोग्राम सक्रिय तत्व को 400 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के बाद और अंकुरण से पूर्व छिडकाव करें| इसके बाद एक निदाई 35 दिन बाद करना लाभदायक रहता है|

यह भी पढ़ें- बाजरा पेनिसिटम ग्लूकम की खेती

लोबिया की खेती में रोग नियंत्रण

जीवाणु झुलसा- नवजात पौधे भूरे-लाल होकर मर जाते है| पत्तियों पर अनियमित भूरे रंग के धब्बे बनते है, जो बाद में तने पर फैल जाते है और तना टूट भी जाता है| इससे फलियाँ भी प्रभवित होती है, जिससे दाना सिकुड़ जाता है|

नियंत्रण-

1. रोग रोधी किस्मों को बोना चाहिए|

2. स्वस्थ और रोग रहित बीज का उपयोग करना चाहिए|

3. फसल पर कॉपर आक्सी क्लोराइड दवा की 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें|

लोबिया मोजेक- संक्रमित पौधो की पत्तियाँ पीली व आकार विकृत हो जाता है|

नियंत्रण-

1. स्वस्थ और रोग रहित बीज का उपयोग करना चाहिए|

2. रोग के वाहक एफिड के नियंत्रण के लिये मिथाइल डेमेटॉन 1 मिलीलीटर या इमिडाक्लोरोप्रिड 0.2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें और दूसरा छिडकाव 10 दिन बाद करें|

चूर्णिल आसिता- इस बीमारी के लक्षण पौधे के पूरे वायवीय भागों पर सफेद रंग के कवक बीजाणुओं का चूर्ण दिखाई देता है|

नियंत्रण-

1. कटाई के बाद फसल अवशेष को इकट्ठा कर जला दें|

2. पादप रोग सहनशील या रोग रोधी किस्मों का चुनाव करें, रोग नियंत्रण के लिये घुलनशील सल्फर 3 ग्राम प्रति लीटर या कार्बेन्डाजिम ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिडकाव करें तथा एक सप्ताह के अन्तराल पर फिर से छिडकाव करें|

यह भी पढ़ें- बाजरा नेपियर संकर घास की खेती: हरे चारे के लिए

लोबिया की खेती में कीट प्रबंधन

लोबिया फली छेदक- इस कीट की इल्ली पत्तियों को रोल बनाकर उपरी प्ररोह के साथ जाला बनाती है| इल्ली फली में छेद करके दाने को खाती है तथा यदि फूल व फलियाँ नहीं होती तो पत्तियों को खाती है|

नियंत्रण-

1. कीट के अण्डो और इल्लियों को इकट्ठा कर नष्ट कर दें|

2. पपद्ध इल्ली के नियंत्रण के लिये 2 प्रतिशत मिथाइल पेराथियान पाउडर की 25 से 30 किलोग्राम मात्रा का प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बुरकाव करें या क्युनालफॉस 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिडकाव करें|

रोमिल सुंडी- यह लोबिया की प्रमुख कीट है| यह फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है| यह नवजात पौधे को काट देता है और हरी पत्तियों को खा जाता है|

नियंत्रण-

1. कीट के अण्डो व इल्लियों को इकट्ठा कर नष्ट कर दें|

2. इल्लियों की प्रारम्भिक अवस्था में नियंत्रण के लिये क्लोरोपायरीफॉस या क्विनॉलफॉस दवा की 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें|

एफिड और जेसिड- ये कीट पौधे के रस को चूसकर उसे पीला व कमजोर कर देते है|

नियंत्रण- इसकी रोकथाम के लिये मिथाइल डेमेटॉन 25 ई सी, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर या डाईमेथोएट 30 ई सी, 1.7 मिलीलीटर प्रति लीटर के पानी से घोल बनाकर छिडकाव करें|

तना मक्खी- इस कीट का मैगट जमीन के पास तने में छेद करके घुसता है, वहाँ तना फूल जाता है| मैगट तने में निचे प्यूपा में बदल जाता है, जिससे तने में दरार आ जाती है|

नियंत्रण-

1. खेत को दलहन फसलों के अवशेषों से साफ रखें|

2. पपद्ध बुवाई के समय फोरेट 10जी, 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से कुड में दें, जिससे इसका प्रकोप कम हो|

यह भी पढ़ें- रिजका की खेती: किस्में, वुवाई, देखभाल और पैदावार

लोबिया फसल की कटाई, गहाई और भण्डारण

1. हरी फलियों के उपयोग के लिये उगाई फसल की तुडाई बुवाई के 45 से 90 दिन बाद किस्म के आधार पर कर सकते है|

2. चारे वाली फसल की कटाई सामान्यतः बुवाई के 40 से 45 दिन बाद की जाती है|

3. दाने की फसल के लिये कटाई, बुवाई के 90 से 125 दिन बाद जब फलियाँ पूर्णतः पक जाए, करना चाहिए| कटाई के बाद फसल को सुखा कर श्रेसिंग करना चाहिए|

भण्डारण- भण्डारण के पहले दानों को धुप में सुखाने के बाद ही भण्डारण करें|

लोबिया की खेती से पैदावार

1. उपरोक्त विधि से उगाई फसल से लगभग 12 से 17 क्विंटल दाना व 50 से 60 क्विंटल भूसा प्राप्त होता है|

2. चारे वाली फसल से 250 से 400 क्विंटल तक हरा चारा प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त किया जा सकता है|

अधिक पैदावार लेने हेतु आवश्यक बिंदू-

1. ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई तीन वर्ष में एक बार अवश्य करे|

2. बुवाई पूर्व बीज उपचार अवश्य करे|

3. पोषक तत्वो की मात्रा मिटटी परीक्षण के आधार पर ही दें|

4. पौध संरक्षण के लिये एकीकृत पौध संरक्षण के उपायों को अपनाना चाहिए|

5. फसल में खरपतवार नियंत्रण अवश्य करे|

यह भी पढ़ें- बीटी कपास की खेती कैसे करें: किस्में, देखभाल और पैदावार

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