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Home » Blog » सूरजमुखी की खेती: किस्में, बुवाई, पोषक तत्व, देखभाल, पैदावार

सूरजमुखी की खेती: किस्में, बुवाई, पोषक तत्व, देखभाल, पैदावार

July 17, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

सूरजमुखी की खेती

सूरजमुखी की खेती (Farming of sunflower) खरीफ, रबी एवं जायद तीनो ही मौसमों में की जा सकती है| परन्तु खरीफ में सूरजमुखी पर अनेक रोग कीटों का प्रकोप होता है, फूल छोटे होते है, तथा उनमें दाना भी कम पड़ता है| जायद में सूरजमुखी की खेती से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है|

कहा जाता इसके फूल, सूरज की दिशा होने में मुड़ जाने के कारण इसे सूरजमुखी कहा जाता है| यह देश की महत्तवपूर्ण तिलहनी फसल है| इसका तेल हल्के रंग, अच्छे स्वाद और इसमें उच्च मात्रा में लिनोलिक एसिड होता है, जो कि दिल के मरीज़ों के लिए अच्छा होता है| सूरजमुखी के बीज में खाने योग्य तेल की मात्रा 48 से 53 प्रतिशत होती है|

यहां किसान भाइयों के लिए, सूरजमुखी की खेती की जानकारी जलवायु, किस्में, रोकथाम व पैदावार आदि, पर जानकारी प्रदान की जाएगी, जिसका पीछा कर के किसान इस फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते है|

यह भी पढ़ें- बरसीम की खेती: किस्में, बुआई, देखभाल और पैदावार

सूरजमुखी की खेती के लिए जलवायु और भूमि

उपयुक्त जलवायु- सूरजमुखी की खेती खरीफ रबी जायद तीनो मौसम में की जा सकती है| फसल पकते समय शुष्क जलवायु की अति आवश्यकता पड़ती है|

उपयुक्त भूमि- सूरजमुखी की खेती (Farming of sunflower) सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है| परन्तु अधिक जल रोकने वाली भारी भूमि उपयुक्त है| निश्चित सिचाई वाली सभी प्रकार की भूमि में अम्लीय व क्षारीय भूमि को छोडकर इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है| हालाँकि दोमट भूमि सर्वोतम मानी जाती है|

खेत की तैयारी- खेत में पर्याप्त नमी न होने की दशा में पलेवा लंगाकर जुताई करनी चाहियें| एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा देशी हल से 2 से 3 बार जोतकर मिट्टी भुरभुरी बना लेनी चाहिए| रोटावेटर से खेत की तैयारी जल्दी हो जाती है|

सूरजमुखी की खेती के लिए किस्में

सूरजमुखी की उन्नत और संकर किस्में इस प्रकार है, जैसे-

उन्नत किस्में-

बी.एस.एच 1- इस किस्म में तेल की मात्रा 41 प्रतिशत होती है, किट्ट प्रतिरोधक, पौधे की ऊंचाई 130 से 150 सेंटीमीटर रहती है| उपज 10 से 15 क्विंटल है और अवधि 90 से 95 दिन है|

एम.एस.एफ.एस 8- इस किस्म में तेल की मात्रा 42 से 44 प्रतिशत होती है| पौधे की ऊंचाई 170 से 200 सेंटीमीटर होती है| उपज 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, और अवधि 90 से 100 दिन है|

मार्डन- पौधे की ऊंचाई लगभग 90 से 100 सेंटीमीटर तक होती है| बहु फसली क्षेत्रों के लिये उपयुक्त|तेल की मात्रा 38 से 40 प्रतिशत होती है| उपज 6 से 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, और अवधि 80 से 90 दिन है|

एम.एस.एच- तेल की मात्रा 42 से 44 प्रतिशत होती है| पौधे की ऊंचाई 170 से 200 सेंटीमीटर होती है| उपज 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| अवधि 90 से 100 दिन है|

एम.एस.एफ.एच 4- तेल की मात्रा 42 से 44 प्रतिशत होती है| पौधे की ऊंचाई 120 से 150 सेंटीमीटर होती है| रबी एवं जायद के लिए उपयुक्त हैं| उपज 20 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और अवधि 90 से 95 दिन है|

एस.एच.एफ.एच 1- तेल की मात्रा 40 से 42 प्रतिशत होती है| पौधे की ऊंचाई 120 से 150 सेंटीमीटर होती है| उपज 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| अवधि 90 से 95 दिन है|

ज्वालामुखी- तेल की मात्रा 42 से 44 प्रतिशत होती है| पौधे की ऊंचाई 160 से 170 सेंटीमीटर होती है| उपज 30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| अवधि 85 से 90 दिन है|

सूर्या- पौधे की ऊंचाई लगभग 130 से 135 सेंटीमीटर तक होती है| पिछैती बुवाई के लिये उपयुक्त| तेल की मात्रा 38 से 40 प्रतिशत होती है| उपज 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और अवधि 90 से 100 दिन है|

ई.सी. 68415- पौधे की ऊंचाई लगभग 180 से 200 सेंटीमीटर तक होती है| पिछैती बुवाई के लिये उपयुक्त| तेल की मात्रा 42 से 46 प्रतिशत होती है| उपज 8 से 10 क्विंटल है और अवधि 110 से 115 दिन है|

यह भी पढ़ें- गेहूं की खेती: किस्में, बुवाई, देखभाल और पैदावार

संकर किस्में-

के.वी. एस.एच 1- पौधे की ऊंचाई लगभग 150 से 180 सेंटीमीटर तक होती है| पिछैती बुवाई के लिये उपयुक्त| तेल की मात्रा 43 से 45 प्रतिशत होती है| उपज 30 से 32 क्विंटल है और अवधि 90 से 95 दिन है|

एस.एच 3322- पौधे की ऊंचाई लगभग 137 से 175 सेंटीमीटर तक होती है| पिछैती बुवाई के लिये उपयुक्त| तेल की मात्रा 40 से 42 प्रतिशत होती है| उपज 28 से 30 क्विंटल है और अवधि 90 से 95 दिन है|

एम एस एफ एच 17- पौधे की ऊंचाई लगभग 140 से 150 सेंटीमीटर तक होती है| पिछैती बुवाई के लिये उपयुक्त| तेल की मात्रा 35 से 40 प्रतिशत होती है| उपज 27 से 29 क्विंटल है और अवधि 90 से 95 दिन है|

वी एस एफ 1- पौधे की ऊंचाई लगभग 140 से 150 सेंटीमीटर तक होती है| पिछैती बुवाई के लिये उपयुक्त| तेल की मात्रा 35 से 40 प्रतिशत होती है| उपज 27 से 29 क्विंटल है और अवधि 90 से 95 दिन है|

यह भी पढ़ें- तरबूज की खेती: किस्में, बुआई, देखभाल और पैदावार

सूरजमुखी की खेती के लिए बीज मात्रा और बुवाई 

बुवाई का समय- जायद में सूरजमुखी की बुवाई का उपयुक्त समय फरवरी का दूसरा पखवारा है| जिससे फसल मई के अन्त या जून के प्रथम सप्ताह तक पक जायें| बुवाई में देर करने से वर्ष शुरू हो जाने के बाद पैदावार में नुकसान पहुंचता है|

बीज की मात्रा- बीज की मात्रा अलग अलग पड़ती है, जैसे की सामान्य प्रजातियो में 12 से 15 किलो ग्राम प्रति हैक्टर बीज लगता है, और संकर प्रजातियो में 5 से 6 किलो ग्राम प्रति हैक्टर बीज लगता है| यदि बीज की जमाव गुणवता 70 या 75 प्रतिशत से कम हो तो बीज की मात्रा बढ़ाकर बुवाई करना चाहिए|

बीजोपचार- बीज को बुवाई से पहले 3 ग्राम थीरम या बाविस्टीन प्रति किलो ग्राम बीज को शोधित करना चाहिए| बीज को बुवाई से पहले रात में 12 घंटा भिगोकर सुबह 3 से 4 घंटा छाया में सुखाकर दोपहर के बाद बुवाई करनी चाहिए|

बुवाई की विधि- बुवाई लाइनों में हल के पीछे 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर करनी चाहिए| लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटी मीटर तथा पौध से पौध की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर रखनी उपयुक्त है|

सूरजमुखी की खेती के लिए उर्वरक और सिंचाई

खाद या उर्वरक- उर्वरको का प्रयोग मृदा परिक्षण के आधार पर ही करना चाहिए फिर भी सूरजमुखी की खेती (Farming of sunflower) के लिए आखिरी जुताई में खेत तैयार करते समय 250 से 300 कुंतल सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद लाभदायक है| नत्रजन 80 किलोग्राम, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवम पोटाश 40 किलो ग्राम तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है| नत्रजन की आधी मात्रा एवम फास्फोरस व् पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कुडों में डालनी चाहिए इसका विशेष ध्यान देना चाहिए शेष नत्रजन की मात्रा बुवाई के 25 या 30 दिन बाद देनी चाहिए|

सिंचाई- सूरजमुखी की खेती के लिए हल्की भूमि में जायद मे सूरजमुखी की अच्छी फसल के लिए 4 से 5 सिचांईयो की आवश्यकता पडती है| तथा भारी भूमि में 3 से 4 सिंचाइयां की आवश्यकता होती है| पहली सिंचाई बोने के 20 से 25 दिन बाद आवश्यक है| फूल निकलते समय तथा दाना भरते समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिए| इस अवस्था में सिंचाई बहुत सावधानी पूर्वक करनी चाहिए ताकि पौधे न गिरने पायें| सामान्यतः 10 से 15 दिनों के अन्तर पर सिंचाई की आवश्यकता होती है|

यह भी पढ़ें- तोरई की खेती: किस्में, बुआई, देखभाल और पैदावार

सूरजमुखी की खेती में खरपतवार रोकथाम

खरपतवार रोकथाम- सूरजमुखी की खेती में 2 से 3 निराई गुड़ाई आवश्यक है, जो जल्दी जल्दी करनी चाहिए और साथ में पौधों की संख्या और दुरी भी सुनिश्चित करें और पौधों को मिट्टी चढाएं| रासायनिक खरपतवार नियंत्रण हेतु पेन्डिमैथेलिन 30 इसी की 3.3 लीटर मात्रा प्रति हेक्टर के हिसाब से 800 से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के बाद 1 से 2 दिन के अन्दर छिड़काव करना चाहिए|

रोग रोकथाम- सूरजमुखी की खेती में काले धब्बे का रोग, फूल गलन, जड़ तथा तना गलन और झुलसा रोग मुख्य रूप से लगते है| इनकी रोकथाम के लिए एम- 45 या कापर ऑक्सिक्लोराइड 1.5 से 2 लिटर को 800 से 900 लिटर पानी में घोल बनाकर 15-15 दिन के अन्तराल पर दो छिडकाव करे, और बीज को अच्छे से उपचारित कर के बुवाई करें|

किट रोकथाम- सूरजमुखी की खेती में कई प्रकार के कीट लगते है, जैसे की दीमक हरे फुदके डसकी बग आदि है| इनके नियंत्रण के लिए कई प्रकार के रसायनो का भी प्रयोग किया जा सकता है| मिथाइल ओडिमेंटान 1 लीटर 25 ईसी या फेन्बलारेट 750 मिली लीटर प्रति हैक्टर 900 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए|

सूरजमुखी की खेती में कटाई और पैदावार

कटाई- जब सूरजमुखी के बीज कड़े हो जाए तो फूलो के कटाई करके एकत्र कर लेना चाहिए, तथा इनको छाया में सुख लेना चाहिए| इनको ढेर बनाकर नहीं रखना चाहिए, इसके बाद डंडे से पिटाई करके बीज निकल लेना चाहिए साथ ही सूरजमुखी थ्रेशर का प्रयोग करना उपयुक्त होता है|

उपज- सामान्य किस्मों की पैदावार 15 से 20 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है तथा संकर प्रजातियों की पैदावार 23 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टर प्राप्त होती है|

यह भी पढ़ें- रिजका की खेती: किस्में, वुवाई, देखभाल और पैदावार

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