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Home » सेम की फसल के प्रमुख कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें

सेम की फसल के प्रमुख कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें

April 17, 2020 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

सेम की फसल के प्रमुख कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें

सेम की फसल दलहनी और फलियों वाली सब्जियों में अपना प्रमुख स्थान रखती है| सेम की फसल से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए इस फसल की अन्य कृषि क्रियाओं के साथ-साथ कीट एवं रोगों की रोकथाम भी आवश्यक है| इस फसल को हानी पहुँचाने वाले अनेक कीट और रोग है, लेकिन फ्रेंच बीन की फसल में आर्थिक स्तर से अधिक नुकसान पहुँचाने वाले कुछ प्रमुख कीट एवं रोगों की पहचान और रोकथाम की जानकारी का उल्लेख इस लेख में किया गया है| सेम की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सेम की उन्नत खेती कैसे करें

यह भी पढ़ें- सेम की उन्नतशील किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार

सेम की फसल के कीट और उनका नियंत्रण

सेम की फसल के प्रमुख कीट और उनकी रोकथाम के उपाय इस प्रकार है, जैसे-

काला माँहू- काले रंग के शिशु एवं वयस्क दोनों क्षतिकारक होते हैं| जो नये पत्तियों, शाखाओं तथा फलियों से रस चुसते हैं| जिससे फसल की बढ़वार रूक जाती है|

रोकथाम-

1. सेम की फसल में पौधे के तने अथवा अन्य भाग जहाँ माँहू का कालोनी दिखाई दें उसको तोड़कर नष्ट कर दें|

2. अजादीरैक्टिन 300 पीपीएम 5 से 10 मिलीलीटर प्रति लीटर या अजादीरैक्टिन 5 प्रतिशत 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से 10 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करें|

लीफ माईनर- यह (पत्ती में सुरंग बनाने वाला कीड़ा) कीट पौध अवस्था में ज्यादा हानिकारक होता है| मैगट पत्तियों में टेड़े-मेढ़े सुरंग बनाकर पत्तियों के हरे भागों को खाकर खत्म कर देता है| सुरंगों के अन्दर ही मैगट प्यूपा में परिवर्तित होता है| प्यूपा भूरे या पीले रंग के होते हैं इनके प्रकोप से पत्तियाँ मुरझाकर सूख जाती हैं और पौधा उपयुक्त रूप से फूल और फल नहीं दे पाता है| ज्यादा प्रकोप होने पर पूरी की पूरी फसल सूखकर खत्म हो जाती है|

रोकथाम-

1. सेम की फसल के लिए प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करना चाहिए|

2. नत्रजन का समुचित प्रयोग करना चाहिए अन्यथा ज्यादा प्रयोग से कीट का आक्रमण बढ़ जाता है|

3. पौध के निचले भाग पर कीड़ों से प्रभावित पुरानी पत्तियों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए|

4. इसके नियंत्रण के लिए 4 प्रतिशत नीम गिरी चूर्ण का छिड़काव (40 ग्राम नीम गिरी) प्रति लीटर पानी में लाभकारी पाया गया है|

यह भी पढ़ें- ग्वार फली की खेती कैसे करें

फली छेदक- सेम की फसल की शुरू की अवस्था में इसकी सूंडी फूल पर समूह के रूप में होते हैं जो आगे चलकर अलग-अलग फूलों पर फैल जाते हैं और बाद की अवस्था में फलियों को उनके अन्दर छेद करके खाते हैं| जिससे फलियाँ बिक्री हेतु अनुपयुक्त हो जाती हैं तथा पैदावार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है|

रोकथाम-

1. क्षतिग्रस्त, फूल और फलियों को पौधों से निकालकर नष्ट करें|

2. एन.एस.के.ई. 4 प्रतिशत या बैसिलस थूजेंसिस किस्म कुर्सटाकी (बी.टी.) 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी को पुष्पावस्था के दौरान छिड़काव करें|

3. कीटनाशक जैसे- क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी को 10 दिनों के अन्तराल पर दो या तीन बार छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) की खेती कैसे करें

सेम की फसल के रोग और उनका नियंत्रण

सेम की फसल के प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के उपाय इस प्रकार है, जैसे-

कालर रॉट- इस रोग का प्रारम्भिक लक्षण पौधों पर पड़ता है जमीन की सतह से प्रारम्भ होता है और सम्पूर्ण छाल सड़न से ढक जाती है| जिससे संक्रमित भाग पर सफेद फफूंद वृद्धि हो जाती है जो छोटे-छोटे टुकड़ों में बनकर धीरे-धीरे स्क्लेरोटिनिया में बदल जाती है| इस रोग के जीवाणु मिट्टी में जीवित रहते है और उपयुक्त वातावरण मिलने पर पुनः सक्रिय हो जाती है|

रोकथाम-

1. बीजों का उपचार बुआई से पूर्व ट्राईकोडर्मा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से करनी चाहिए|

2. बुआई के 20 दिन उपरान्त, ट्राईकोडर्मा के घोल से (10 ग्राम प्रति लीटर पानी) जड़ों को तर करना चाहिए|

3. त्वरित रोग नियंत्रण के लिए, संध्या के समय जड़ के समीप कॉपर आक्सीक्लोराईड 4 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से जड़ों का तर करें|

यह भी पढ़ें- फ्रेंच बीन फसल के कीट एवं रोग और उनकी रोकथाम कैसे करें

रस्ट- सेम की फसल का यह फफूंद जनित रोग है जो पौधों के सभी ऊपरी भाग पर छोटे, हल्के उभरे हुए धब्बे के रूप में दिखाई देते है तने पर साधारणतः लम्बे उभरे हुए धब्बे बनते हैं|

रोकथाम-

सेम की फसल के खेत में औसतन दो धब्बे प्रति पत्तियों के दिखने पर, फफूंदनाशक जैसे- फ्लूसिलाजोल या हेक्साकोनाजोल या बीटरटेनॉल या ट्राईआडीमेफॉन 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का 5 से 7 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिये|

स्केलेरोटीनिया तना सड़न- यह रोग सब्जी फसलों में स्क्लेरोटीनिया स्कलेरोशियोरम द्वारा होता है| इसका प्रकोप शरदकाल में सब्जी फसलों के पुष्पन अवस्था में ज्यादा होता है| इस रोग के लक्षण संक्रमित पौधों के तनों में सफेद कवकीय तन्तु वृद्धि के साथ-साथ काले रंग की स्केलेरोशिया के रूप में दिखाई देते हैं|

रोकथाम-

संक्रमित पौध अवशेषों का हटाने के बाद फसल की पुष्पन अवस्था में कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के बाद मैंकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी का पर्णीय छिड़काव रोग प्रबंधन हेतु प्रभावी होता है|

विषाणु रोग (गोल्डेन मोजैक)- यह विषाणु रोग वाहक कीट सफेद मक्सी (बेमेसिया टैबाकाई) द्वारा स्थानांतरित होता है| इस रोग से संक्रमित पौधों की पत्तियों कुंचित हो जाती है एवं पौधों की वृद्धि रूक जाती है|

रोकथाम-

1. इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लू एस पाउडर (2.5 ग्राम प्रति किलो बीज) थायोमेथाजाम 70 डब्ल्यू एस का 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीज शोधन करना चाहिए|

2. सेम की फसल में नीम के तेल (2 से 3 मिलीलीटर प्रति लीटर) का छिड़काव सायंकाल में करना चाहिए|

3. खेत के चारों तरफ मक्का, ज्वार और बाजरा लगाना चाहिए जिससे सफेद मक्खी का प्रकोप फसल में न हो सके|

4. इमिडाक्लोप्रिड (200 एसएल) का 1 मिलीलीटर प्रति 1 लीटर पानी के घोल से पौधों की जड़ को आधा घण्टा तक उपचारित कर लगाने से अगले 30 से 35 दिन तक इस मक्खी के नुकसान से फसल को बचाया जा सकता है|

5. आवश्यकतानुसार इमिडाक्लोप्रिड (200 एसएल) का 1 मिलीलीटर प्रति तीन लीटर या डाईमेथोएट 30 ईसी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- कुंदरू की खेती कैसे करें

बैक्टीरीयल ब्लाईट्स- यह जीवाणु जनित रोग है, जिसमें संक्रमित उत्तक पीले पड़ जाते हैं एवं मरने के उपरान्त विभिन्न आकार एवं नाप के उभार/धब्बे बनाते हैं| जो बाद में (वर्षा ऋतु) बड़े धब्बे के समान लक्षण पत्तियों पर दिखते हैं| वर्षा ऋतु में, फलियों पर भी छोटे धब्बे बनते हैं|

रोकथाम-

1. बुआई के पूर्व बीजों को स्ट्रेप्टोसाइक्लीन घोल (100 पी.पी.एम. की दर से) 30 मिनट के लिए डुबोने के उपरान्त बुआई करें|

2. सेम की फसल के लिए साफ, रोगमुक्त एवं अवरोधी बीजों का प्रयोग करें|

एंथेक्नोज- सेम की फसल में यह रोग कोलेटोट्राइकम लिण्डेमुथिएनम द्वारा होता हैं इस रोग के लक्षण तनों एवं फलियों में लाल रंग के गोल-गोल धब्बों के रूप में दिखाई देता है|

रोकथाम-

1. बुआई से पहले बीज को कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करना चाहिए|

2. कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी से घोल बनाकर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- चप्पन कद्दू की खेती कैसे करें

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