• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Blog
  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post
Home » Blog » शिमला मिर्च की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल और पैदावार

शिमला मिर्च की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल और पैदावार

December 26, 2017 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

शिमला मिर्च की खेती

सब्जियों में शिमला मिर्च (Capsicum) की खेती का एक महत्वपूर्ण स्थान है| इसको ग्रीन पेपर, स्वीट पेपर, बेल पेपर इत्यादि विभिन्न नामों से जाना जाता है| आकार तथा तीखापन में यह मिर्च से भिन्न होती है| इसके फल गूदेदार, मांसल, मोटा, घण्टी नुमा, कहीं से उभरा तो कहीं से नीचे दबा हुआ होता है| शिमला मिर्च की लगभग सभी किस्मों में तीखापन अत्यंत कम या नहीं के बराबर पाया जाता है| इसमें मुख्य रूप से विटामिन ए और सी की मात्रा अधिक होती है|

इसलिये इसको सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है| यदि किसान इसकी खेती उन्नत व वैज्ञानिक तरीके से करे तो अधिक उत्पादन व आय प्राप्त कर सकता है| इस लेख के माध्यम से शिमला मिर्च की खेती कैसे करें की विस्तृत जानकारी का उल्लेख किया गया है| शिमला मिर्च की जैविक उन्नत खेती की विस्तृत जानकारी यहाँ पढ़ें- शिमला मिर्च की जैविक खेती: किस्में, देखभाल और पैदावार

शिमला मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

यह नर्म आर्द्र जलवायु की फसल है| हमारे देश में जिन क्षेत्रों में शीत ऋतु में तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से अक्सर नीचे नही जाता एवं ठंड का प्रभाव बहुत कम दिनों के लिये रहने के कारण इसकी वर्ष भर फसलें ली जा सकती है| इसकी अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिये 21 से 25 डिग्री सेल्सियस तापक्रम उपयुक्त रहता है|

पाला इसके लिये हानिकारक होता है| ठंडे मौसम में इसके फूल कम लगते है, फल छोटे, कड़े एवं टेढ़े मेढ़े आकार के हो जाते हैं तथा अधिक तापक्रम (33 डिग्री सेल्सियस से अधिक) होने से भी इसके फूल एवं फल झड़ने लगते हैं|

यह भी पढ़ें- आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च का उत्पादन

शिमला मिर्च की खेती के लिए भूमि का चयन

इसकी खेती के लिये अच्छे जल निकास वाली चिकनी दोमट मिटटी जिसका पी एच मान 6 से 6.5 हो सर्वोत्तम माना जाता है| वहीं बलुई दोमट मिटटी में भी अधिक खाद डालकर और सही समय व उचित सिंचाई प्रबंधन द्वारा खेती कि जा सकती है| भूमि की सतह से नीचे क्यारियों की अपेक्षा इसकी खेती के लिये जमीन की सतह से ऊपर उठी एवं समतल क्यारियां ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है|

शिमला मिर्च की खेती के लिए उन्नत किस्मे

शिमला मिर्च की अनेक उन्नत और संकर किस्में है| लेकिन इसके उत्पादक भाइयों को अपने क्षेत्र की प्रचलित तथा अधिक उत्पादन देने वाली के साथ रोग प्रति रोधी किस्मों का चयन करना चाहिए| प्रमुख किस्मों में अर्का गौरव, अर्का मोहिनी, किंग ऑफ नार्थ, कैलिफोर्निया वांडर, अर्का बसंत, ऐश्वर्या, अलंकार, अनुपम, हरी रानी, पूसा दिप्ती, भारत, ग्रीन गोल्ड, हीरा, इंद्रा आदि है| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- शिमला मिर्च की उन्नत व संकर किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार

शिमला मिर्च की खेती के लिए खाद और उर्वरक

खेत की तैयारी के समय 25 से 30 टन गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट खाद डालना चाहिये| आधार खाद के रूप में रोपाई के समय 60 किलोग्राम नत्रजन, 60 से 80 किलोग्राम सल्फर और 40 से 60 किलोग्राम पोटाश डालना चाहिये तथा 60 किलोग्राम नत्रजन को दो भागों में बांटकर खड़ी फसल में रोपाई के 30 एवं 55 दिन बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में बुरकना चाहिये|

यह भी पढ़ें- पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की खेती कैसे करें

शिमला मिर्च की खेती के लिए नर्सरी तैयार करना

पौध वाली सब्जियों में नर्सरी (पौधशाला) का बड़ा महत्व है| 3 X 1 मीटर आकार की भूमि की सतह से 10 से 15 सेंटीमीटर ऊपर उठी क्यारियां बनानी चाहिये| इस तरह से 5 से 6 क्यारियां 1 हेक्टेयर क्षेत्र के लिये पर्याप्त रहती है| प्रत्येक क्यारी में 2 से 3 टोकरी गोबर की अच्छी सड़ी खाद डालना चाहिये| मिटटी को उपचारित करने के लिये 1 ग्राम बाविस्टिन को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये|

लगभग सामान्य किस्मों का 750 से 900 ग्राम एवं संकर किस्मों का 200 से 300 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में लगाने के लिये पर्याप्त रहता है| बीजों को बोने के पूर्व थाइम, केप्टान या बाविस्टिन के 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करके कतारों में प्रत्येक 7 से 10 सेंटीमीटर की दूरी में लकडी या कुदाली की सहायता से 1 सेंटीमीटर गहरी नाली बनाकर 2 से 3 सेंटीमीटर की दूरी में बुवाई करना चाहिये|

बीजों को बोने के बाद गोबर या कम्पोस्ट की महीन खाद व मिट्टी के मिश्रण से ढंककर हजारे की सहायता से हल्की सिंचाई करना चाहिये| यदि संभव हो तो क्यारियों को पुआल या सूखी घांस से बीजों के 50 प्रतिशत अंकुरण तक ढंक देना चाहिये| जिससे अंकुरण भी अच्छा होगा और खरपतवार पर भी रोक लगेगी| इसके बाद पुलाव या घास को हटा लें|

शिमला मिर्च की बीज बुवाई और पौध रोपण

हमारे देश में शिमला मिर्च को वर्ष में मौसम के आधार पर तीन बार उगाया जाता है| जो इस प्रकार है, जैसे-

पहला- जून से जुलाई में नर्सरी में बीज बोना और जुलाई से अगस्त में पौध का रोपण मुख्य खेत में किया जाना|

दूसरा- अगस्त से सितंबर में नर्सरी में बीज बोना और सितंबर से अक्टूबर में मुख्य खेत में पौध का रोपण करना|

तीसरा- नवंबर से दिसंबर में नर्सरी में बीज बोना और दिसंबर से जनवरी में मुख्य खेत में रोपण करना|

शिमला मिर्च के बीज के अच्छे अंकुरण के लिए आवश्यक है, कि समय से बुवाई कि जाए क्योंकि देर से बुवाई करने पर जब तापक्रम कम होने लगता है| तो अंकुरण 1 से 2 प्रतिशत घट जाता है तथा अंकुरण  में काफी समय लगता है| पौधशाला  मे 30 से 35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है, पौधे कि बढ़वार के लिए 20 से 25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है| जबकि फल लगने के लिए महीने का औसत तापमान 10 से 15 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अच्छा पाया गया है|

यह भी पढ़ें- पॉलीहाउस में सब्जियों के कीट व रोग प्रबंधन हेतु भूमि उपचार

शिमला मिर्च की खेती के लिए रोपण और दूरी

सामान्यतः 10 से 15 सेंटीमीटर लंबा, 4 से 5 पत्तियों वाला पौध जो कि लगभग 45 से 50 दिनों में तैयार हो जाता है, रोपण के लिये प्रयोग करें| पौध रोपण के एक दिन पूर्व क्यारियों में सिंचाई कर देना चाहिये ताकि पौध आसानी से निकाली जा सके| पौध को शाम के समय मुख्य खेत में 60 X 45 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिये| रोपाई के पूर्व पौध की जड़ को बाविस्टिन 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में आधा घंटा डुबाकर रखना चाहिये| रोपाई के बाद खेत की हल्की सिंचाई करें|

शिमला मिर्च की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन

शिमला मिर्च की फसल को कम और ज्यादा पानी दोनो से नुकसान होता है| यदि खेत में ज्यादा पानी का भराव हो गया हो तो तुरंत जल निकास की व्यवस्था करनी चाहिये| मिटटी में नमी कम होने पर सिंचाई करना चाहिये| नमी की पहचान करने के लिये खेत की मिट्टी को हाथ में लेकर लड्डू बनाकर देखना चाहिये| यदि मिट्टी का लड्डू आसानी से बने तो भूमि में नमी है, यदि ना बने तो सिंचाई कर देना चाहिये| आमतौर पर गर्मियों में 1 सप्ताह तथा शीत ऋतु में 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिये|

शिमला मिर्च फसल में निराई-गुड़ाई

रोपण के बाद शुरू के 30 से 45 दिन तक शिमला मिर्च के खेत को खरपतवार मुक्त रखना अच्छे फसल उत्पादन की को दृष्टि से आवश्यक है| कम से कम दो निराई-गुड़ाई लाभप्रद रहती है| पहली निराई-गुड़ाई रोपण के 25 एवं दूसरी 45 दिन के बाद करनी चाहिये| पौध रोपण के 30 दिन बाद पौधो में मिट्टी चढ़ाना चाहिये, ताकि पौधे मजबूत हो जाये और गिरे नही| यदि खरपतवार नियंत्रण के लिये रसायनों का प्रयोग करना हो तो खेत में नमी की अवस्था में पेन्डीमेथेलिन 4 लीटर या एलाक्लोर 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें|

यह भी पढ़ें- सब्जियों में सूत्रकृमि की समस्या: लक्षण और नियंत्रण

शिमला मिर्च फसल के फूल और फल रोकथाम

शिमला मिर्च में फूल लगना प्रारंभ होते ही प्लानोफिक्स नामक दवा को 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर पहला छिड़काव करना चाहिये तथा इसके 25 दिन बाद दूसरा छिड़काव करे| इससे फूल का झड़ना कम हो जाता है, फल अच्छे आते है और उत्पादन में वृद्धि होती है|

शिमला मिर्च की खेती में पौध देखभाल

शिमला मिर्च में लगने वाले प्रमुख कीट एवं रोग का वर्णन व रोकथाम इस प्रकार है जैसे-

प्रमुख कीट-

माहो, थ्रिप्स, सफेद मक्खी व मकडी- शिमला मिर्च में इन कीटों का प्रकोप ज्यादा होता है| जो अलग-अलग अवस्थाओं में अलग-अलग तरीके से शिमला मिर्च की फसल को नुकसान पहुचाते है|

रोकथाम- इन कीटो की रोकथाम के लिये डायमेथोएट या मिथाइल डेमेटान या मेलाथियान का 1 से 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर 2 से 3 बार छिड़काव करे| फलों के तुड़ाई पश्चात ही रसायनों का छिड़काव करना चाहिये|

प्रमुख रोग-

शिमला मिर्च मे प्रमुख रूप से आद्रगलन, भभूतिया रोग, उकटा, पर्ण कुंचन एवं श्यामवर्ण व फल सड़न का प्रकोप होता है, जो इस प्रकार है, जैसे-

आर्द्रगलन रोग- इस रोग का प्रकोप नर्सरी अवस्था में होता है| इससे जमीन की सतह वाले तने का भाग काला पडकर गल जाता है और छोटे पोधे गिरकर मरने लगते हैं|

रोकथाम- बुवाई से पूर्व बीजों को थाइम, केप्टान या बाविस्टिन 2.5 से 3 ग्राम प्रति किलोंग्राम बीज की दर से उपचारित कर बोयें| नर्सरी, आसपास की भूमि से 10 से 15 इंच उठी हुई भूमि में बनावें| मिटटी उपचार के लिये शिमला मिर्च की नर्सरी में बुवाई से पूर्व थाइम या कैप्टान या बाविस्टिन का 0.2 प्रतिशत सांद्रता का घोल उपयोग में लाते है, जिसे ड्रेचिंग कहते है| रोग के लक्षण प्रकट होने पर बोडों मिश्रण 5:5:50 या कॉपर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करें|

भभूतिया रोग- यह रोग ज्यादातर गर्मियों में आता है| इस रोग से शिमला मिर्च की पत्तियों पर सफेद चूर्ण युक्त धब्बे बनने लगते हैं| रोग की तीव्रता होने पर पत्तियों पीली पड़कर सूखने लगती है तथा पौधा बौना हो जाता है|

रोकथाम- रोग से रोकथाम के लिये सल्फेक्स या कैलेक्सिन का 0.2 प्रतिशत सांद्रता का घोल 15 दिन के अंतराल पर 2 से 3 बार छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- पॉलीहाउस में टमाटर और शिमला मिर्च के कीटों का प्रबंधन

जीवाणु उकठा- इस रोग से प्रभावित शिमला मिर्च की पूरे खेत की फसल हरी की हरी मुरझाकर सूख जाती है| यह रोग में पौधे में किसी भी समय प्रकोप कर सकता है|

रोकथाम- गीष्मकालीन गहरी जुताई करके खेतों को कुछ समय के लिये खाली छोड़ देना चाहिये| फसल चक्र को अपनाना चाहिए| रोग सहनशील जातियां जैसे- अर्को गौरव का चुनाव करना चाहिये| प्रभावित खड़ी फसल में रोग का प्रकोप कम करने के लिये गुडाई बंद कर देनी चाहिए, क्योंकि गुडाई करने से जडों में घाव बनतें है व रोग का प्रकोप बढता है| रोपाई पूर्व खेतों में ब्लीचिंग पाउडर 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलायें|

पर्ण कुंचन व मोजेक- ये विषाणु जनित रोग है| पर्ण कुंचन रोग के कारण शिमला मिर्च के पौधों के पत्ते सिकुडकर मुड़ जाते है और छोटे व भूरे रंग युक्त हो जाते हैं| ग्रसित पत्तियां आकार में छोटी, नीचे की ओर मुडी हुई मोटी व खुरदुरी हो जाती है| मोजेक रोग के कारण पत्तियों पर गहरा व हल्का पीलापन लिए हुए हरे रंग के धब्बे बन जाते है| उक्त रोगों को फैलाने में कीट अहम भूमिका निभाते हैं| प्रभावित पौधे पूर्ण रूप से उत्पादन देने में असमर्थ सिद्ध होते है रोग द्वारा उत्पादन की मात्रा व गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती है|

रोकथाम- बुवाई से पूर्व कार्बोफ्यूरान 3 जी, 8 से 10 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से भूमि में मिलावें| पौध रोपण के 15 से 20 दिन बाद डाइमिथोएट 30 ई सी या इमिडाक्लोप्रिड एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें| यह छिड़काव 15 से 20 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार दोहरावें| फूल आने के बाद उपरोक्त कीटनाशी दवाओं के स्थान पर मैलाथियान 50 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें|

श्यामवर्ण व फल सड़न- शिमला मिर्च में रोग के शुरूवाती लक्षणों में पत्तियों पर छोटे-छोटे काले धब्बे बनते हैं| रोग के तीव्रता होने पर शाखाएं ऊपर से नीचे की तरफ सूखने लगती है| फलों के पकने की अवस्था में छोटे-छोटे काले गोल धब्बे बनने लगते है और बाद में इनका रंग धूसर हो जाता है, जिसके किनारों पर गहरे रंग की रेखा होती है| प्रभावित फल समय से पहले झड़ने लगते है| अधिक आद्रता इस रोग को फैलाने में सहायक होती है|

रोकथाम- फसल चक अपनाना चाहिये| स्वस्थ तथा उपचारित बीजों का ही प्रयोग करे| मेन्कोजेब, डायफोल्टान, या ब्लाइटॉक्स का 0.2 प्रतिशत सांद्रता का घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर 2 बार छिड़काव करे| कीट एवं रोगों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर के रोग और उनका एकीकृत प्रबंधन कैसे करें

शिमला मिर्च फसल के फलों की तुड़ाई

शिमला मिर्च के फलों की तुड़ाई पौध रोपण के 55 से 70 दिन बाद प्रारंभ हो जाती है, जो कि 90 से 120 दिन तक चलती है| नियमित रूप से तुड़ाई का कार्य करना चाहिये|

शिमला मिर्च की खेती से पैदावार

उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से शिमला मिर्च की खेती करने और परिस्थितियों के अनुसार किस्म का चयन करने के बाद उन्नतशील किस्मों में 150 से 250 क्विटल एवं संकर किस्मों में 250 से 400 किंवटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिल जाती है|

यह भी पढ़ें- प्रमुख सब्जियों में कीट नियंत्रण: इस तरह करें

अगर आपको यह लेख पसंद आया है, तो कृपया वीडियो ट्यूटोरियल के लिए हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें| आप हमारे साथ Twitter और Facebook के द्वारा भी जुड़ सकते हैं|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

“दैनिक जाग्रति” से जुड़े

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

करियर से संबंधित पोस्ट

आईआईआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कट ऑफ, प्लेसमेंट

एनआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कटऑफ, प्लेसमेंट

एनआईडी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, फीस, कट ऑफ, प्लेसमेंट

निफ्ट: योग्यता, प्रवेश प्रक्रिया, कोर्स, अवधि, फीस और करियर

निफ्ट प्रवेश: पात्रता, आवेदन, सिलेबस, कट-ऑफ और परिणाम

खेती-बाड़ी से संबंधित पोस्ट

June Mahine के कृषि कार्य: जानिए देखभाल और बेहतर पैदावार

मई माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

अप्रैल माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

मार्च माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

फरवरी माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

स्वास्थ्य से संबंधित पोस्ट

हकलाना: लक्षण, कारण, प्रकार, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

एलर्जी अस्थमा: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

स्टैसिस डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान, इलाज

न्यूमुलर डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, डाइट, निदान और इलाज

पेरिओरल डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, निदान और इलाज

सरकारी योजनाओं से संबंधित पोस्ट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार: प्रशिक्षण, लक्षित समूह, कार्यक्रम, विशेषताएं

राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम: लाभार्थी, योजना घटक, युवा वाहिनी

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार: उद्देश्य, प्रशिक्षण, विशेषताएं, परियोजनाएं

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना | प्रधानमंत्री सौभाग्य स्कीम

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, पेंशन, देय और ऋण

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap