• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Blog
  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post
Home » Blog » मेक इन इंडिया: मूल्यांकन, पहल, लाभ, उद्देश्य और सकारत्मक पक्ष

मेक इन इंडिया: मूल्यांकन, पहल, लाभ, उद्देश्य और सकारत्मक पक्ष

November 14, 2021 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

मेक इन इंडिया: मूल्यांकन, पहल, लाभ, उद्देश्य और सकारत्मक पक्ष

मेक इन इंडिया वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने देश में विनिर्माण को प्रोत्साहित करने और विनिर्माण में निवेश के माध्यम से अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने के उद्देश्य से ‘मेक इन इंडिया’ पहल की शुरुआत की थी| इसकी शुरुआत हुए आज पाँच वर्ष से भी अधिक समय बीत चुका है और इस दौरान देश का विनिर्माण क्षेत्र एवं अर्थव्यवस्था दोनों काफी परिवर्तित हुए हैं|

ये परिवर्तन ‘मेक इन इंडिया’ पहल की सफलता और असफलता की कहानी बयाँ करते हैं| ऐसे में यह आवश्यक है कि इन परिवर्तनों का अध्ययन कर इस पहल में निहित कमियों को पहचाना जाए और उन्हें सुधरने का प्रयास किया जाए| इस लेख में मेक इन इंडिया का उल्लेख किया गया है|

यह भी पढ़ें- स्वच्छ भारत अभियान: उद्देश्य, लाभ, निबंध और चुनौतियां

मेक इन इंडिया की पहल?

1. ‘मेक इन इंडिया’ पहल की शुरुआत 25 सितंबर, 2014 को देशव्यापी स्तर पर विनिर्माण क्षेत्र के विकास के उद्देश्य से की गई थी|

2. दरअसल औद्योगिक क्रांति ने इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की और संपूर्ण विश्व को यह दिखाया कि यदि किसी देश का विनिर्माण क्षेत्र मज़बूत हो तो वह किस प्रकार उच्च आय वाला देश बन सकता है| विदित हो कि चीन इस तथ्य का ज्वलंत उदाहरण है|

3. इस पहल के माध्यम से भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया था|

4. इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये सरकार ने मुख्यतः 3 उद्देश्य निर्धारित किये थे|

5. अर्थव्यवस्था में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिये इसकी विकास दर को 12-14 प्रतिशत प्रतिवर्ष तक बढ़ाना|

6. वर्ष 2022 तक अर्थव्यवस्था में विनिर्माण क्षेत्र से संबंधित 100 मिलियन रोज़गारों का सृजन करना|

7. यह सुनिश्चित करना कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान वर्ष 2025 (जो कि संशोधन से पूर्व वर्ष 2022 था) तक बढ़कर 25 प्रतिशत हो जाए|

8. ‘मेक इन इंडिया’ पहल में अर्थव्यवस्था के 25 प्रमुख क्षेत्रों जैसे- ऑटोमोबाइल, खनन, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि पर ध्यान केंद्रित किया गया है|

9. ज्ञात हो कि इस पहल के तहत केंद्र और राज्य सरकारें भारत के विनिर्माण क्षेत्र को मज़बूत करने के लिये दुनिया भर से निवेश आकर्षित करने का प्रयास कर रही हैं|

10. निवेशकों पर पड़ने वाले बोझ को कम करने के लिये सरकार काफी प्रयास कर रही है| इन्हीं प्रयासों के तहत व्यावसायिक संस्थाओं के सभी समस्याओं को हल करने के लिये एक समर्पित वेब पोर्टल की व्यवस्था भी की गई है|

यह भी पढ़ें- डिजिटल इंडिया: दृष्टि क्षेत्र, स्तंभ, भविष्य और उपलब्धियां

मेक इन इंडिया का सकारत्मक पक्ष

1. ‘मेक इन इंडिया’ पहल का एक मुख्य उद्देश्य भारत में रोज़गार के अवसरों को बढ़ाना है। इसके तहत देश के युवाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है| लक्षित क्षेत्रों, अर्थात् दूरसंचार, फार्मास्यूटिकल्स, पर्यटन आदि में निवेश, युवा उद्यमियों को अनिश्चितताओं की चिंता किये बिना अपने अभिनव विचारों के साथ आगे आने के लिये प्रोत्साहित करेगा|

2. ‘मेक इन इंडिया’ पहल में विनिर्माण क्षेत्र के विकास पर काफी ध्यान दिया जा रहा है, जो न केवल व्यापार क्षेत्र को बढ़ावा देगा, बल्कि नए उद्योगों की स्थापना के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को भी बढ़ाएगा|

3. विदित हो कि योजना की शुरुआत के कुछ समय बाद ही वर्ष 2015 में भारत ने अमेरिका और चीन को पीछे छोड़ते हुए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में शीर्ष स्थान प्राप्त कर लिया था|

मेक इन इंडिया का नकारात्मक पक्ष

1. भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है| विश्लेषकों का मानना है कि इस पहल का सबसे नकारात्मक प्रभाव भारत के कृषि क्षेत्र पर पड़ा है| इस पहल में भारत के कृषि क्षेत्र को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया गया है|

2. चूँकि ‘मेक इन इंडिया’ मुख्य रूप से विनिर्माण उद्योगों पर आधारित है, इसलिये यह विभिन्न कारखानों की स्थापना की मांग करता है| आमतौर पर इस तरह की परियोजनाएँ बड़े पैमाने पर प्राकृतिक संसाधनों जैसे पानी, भूमि आदि का उपभोग करती हैं|

3. इस पहल के तहत विदेशी कंपनियों को भारत में उत्पादन करने के लिये प्रेरित किया गया है, जिसके कारण भारत के छोटे उद्यमियों पर असर देखने को मिला है|

यह भी पढ़ें- कौशल विकास योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ और विशेषताएं

मेक इन इंडिया का मूल्यांकन

चूँकि इस पहल का उद्देश्य विनिर्माण क्षेत्र के तीन प्रमुख कारकों- निवेश, उत्पादन और रोज़गार में वृद्धि करना था| अतः इसका मूल्यांकन भी इन्हीं तीनों के आधार पर किया जा सकता है, जैसे-

निवेश: पिछले पाँच वर्षों में अर्थव्यवस्था में निवेश की वृद्धि दर काफी धीमी रही है| यह स्थिति तब और खराब हो जाती है जब हम विनिर्माण क्षेत्र में पूंजी निवेश पर विचार करते हैं| आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, अर्थव्यवस्था में कुल निवेश को प्रदर्शित करने वाला सकल स्थायी पूंजी निर्माण (GFCF) जो कि वर्ष 2013-14 में GDP का 31.3 प्रतिशत था, वर्ष 2017-18 में घटकर 28.6 प्रतिशत हो गया|

महत्त्वपूर्ण यह है कि इस अवधि के दौरान कुल निवेश में सार्वजनिक क्षेत्र की हिस्सेदारी कमोबेश समान ही रही, जबकि निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 24.2 प्रतिशत से घटकर 21.5 प्रतिशत हो गई| दूसरी ओर इस अवधि में बचत संबंधी आँकड़ों से ज्ञात होता है कि घरेलू बचत दर में गिरावट आई है, जबकि निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र की बचत दर में बढ़ोतरी हुई है| इस प्रकार हम एक ऐसी स्थित में हैं, जहाँ निजी क्षेत्र की बचत बढ़ रही है, किंतु निवेश में कमी आ रही है|

उत्पादन: औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में होने वाले परिवर्तन का सबसे बड़ा सूचक है| यदि अप्रैल 2012 से नवंबर 2019 के मध्य औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आँकड़ों पर गौर करें तो ज्ञात होता है कि इस दौरान मात्र 2 ही बार डबल डिजिट ग्रोथ दर्ज की गई, जबकि अधिकांश महीनों में यह या तो 3 प्रतिशत से कम थी या नकारात्मक थी| इस प्रकार यह स्पष्ट है कि विनिर्माण क्षेत्र में अभी भी उत्पादन वृद्धि नहीं हो पाई है|

रोज़गार: हाल ही में सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) ने बेरोज़गारी दर के संबंध में आँकड़े जारी किये हैं, जिसके मुताबिक सितंबर-दिसंबर 2019 के दौरान भारत की बेरोज़गारी दर बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो गई थी| शिक्षित युवाओं के मामले में बेरोज़गारी की दर और भी खराब थी, जो यह दर्शाता है कि वर्ष 2019 युवा स्नातकों के लिये सबसे खराब वर्ष था| ज्ञात हो कि मई-अगस्त 2017 में यह दर 3.8 प्रतिशत थी|

उपरोक्त तीनों कारकों के आधार पर ‘मेक इन इंडिया’ पहल का मूल्यांकन करने पर ज्ञात होता है कि यह पहल इच्छा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई है|

यह भी पढ़ें- प्रधानमंत्री रोजगार योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, विशेषताएं

कार्यक्रम के कारण

1. विश्लेषकों के अनुसार, इस पहल के संतोषजनक प्रदर्शन न कर पाने का मुख्य कारण यह था कि यह विदेशी निवेश पर काफी अधिक निर्भर थी, इसके परिणामस्वरूप एक अंतर्निहित अनिश्चितता पैदा हुई क्योंकि भारत में उत्पादन की योजना किसी और देश में मांग और पूर्ति के आधार पर निर्धारित की जा रही थी|

2. भारत की अधिकांश योजनाएँ अकुशल कार्यान्वयन की समस्या का सामना कर रही हैं और ‘मेक इन इंडिया’ पहल की स्थिति में भी यह एक बड़े कारक के रूप में सामने आया है|

3. एक अन्य कारण यह भी है कि इस पहल के तहत विनिर्माण क्षेत्र के लिये काफी महत्त्वाकांक्षी विकास दर निर्धारित की गई थी| विश्लेषकों का मानना है कि 12-14 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर औद्योगिक क्षेत्र की क्षमता से बाहर है| ऐतिहासिक रूप से भारत के विनिर्माण क्षेत्र ने कभी भी इतनी विकास दर प्राप्त नहीं की है|

4. वैश्विक अर्थव्यवस्था की अनिश्चितताओं और लगातार बढ़ते व्यापार संरक्षणवाद का इस पहल पर प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिला है|

कौन से कारोबार शामिल हैं?

मेक इन इंडिया में ऑटो कंपोनेंट, ऑटोमोबाइल, विमानन, जैव प्रौद्योगिकी और रसायन के साथ निर्माण शामिल है| इसमें रक्षा उत्पादन, विद्युत मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन और निर्माण, खाद्य प्रसंस्करण, आईटी एवं बीपीएम, चमड़ा और मीडिया एवं मनोरंजन सेक्टर भी शामिल है|

इसके साथ ही खदान, तेल एवं गैस, फार्मा, बंदरगाह एवं नौवहन के साथ रेलवे जैसे कारोबार भी शामिल हैं| इसके अलावा मेक इन इंडिया में सड़क एवं राजमार्ग, नवीकरणीय ऊर्जा, अंतरिक्ष, वस्त्र एवं परिधान, थर्मल पावर, पर्यटन और आतिथ्य के साथ कल्याण कार्यक्रम भी शामिल हैं|

यह भी पढ़ें- किसान विकास पत्र: पात्रता, विशेषताएं, ब्याज दरें और रिटर्न

मेक इन इंडिया के उद्देश्य क्या हैं?

1. मध्‍यावधि की तुलना में निर्माण क्षेत्र में 12-14 फीसदी सालाना वृद्धि हासिल करना|

2. देश के सकल घरेलू उत्‍पाद में निर्माण क्षेत्र की हिस्‍सेदारी साल 2022 तक बढ़ाकर 25 फीसदी करना|

3. निर्माण क्षेत्र में साल 2022 तक 10 करोड़ अतिरिक्‍त रोजगार का सृजन|

4. ग्रामीण प्रवासियों और शहरी गरीब लोगों में समग्र विकास के लिए समुचित कौशल का निर्माण करना|

5. घरेलू मूल्‍य संवर्द्धन और निर्माण से संबंधित तकनीकी ज्ञान में वृद्धि|

6. भारत के निर्माण क्षेत्र की वैश्विक प्रतिस्‍पर्धा में वृद्धि|

7. भारत में पर्यावरण संरक्षण के हिसाब से स्थिर विकास सुनिश्चित करना|

क्या फायदा हुआ है?

मोदी सरकार ने भारत में कारोबार करने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए कई कदम उठाये हैं| कई नियमों एवं प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया है| इसके साथ ही कई वस्तुओं को लाइसेंस की जरुरतों से हटाया गया है| सरकार का लक्ष्य देश में संस्थाओं के साथ-साथ अपेक्षित सुविधाओं के विकास द्वारा व्यापार के लिए मजबूत बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना है|

सरकार व्यापारिक संस्थाओं के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराने के लिए औद्योगिक गलियारों और स्मार्ट सिटी का विकास करना चाहती है| राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन के माध्यम से कुशल मानव शक्ति प्रदान करने के प्रयास किये जा रहे हैं| पेटेंट एवं ट्रेडमार्क पंजीकरण प्रक्रिया के बेहतर प्रबंधन के माध्यम से अभिनव प्रयोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है|

यह भी पढ़ें- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना: पात्रता, आवेदन और उद्देश्य

विदेशी निवेश पर प्रभाव पड़ा है?

कुछ प्रमुख क्षेत्रों को अब प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोल दिया गया है| रक्षा क्षेत्र में एफडीआई नीति को उदार बनाया गया है और एफडीआई की सीमा को 49% तक बढ़ाया गया है| अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के लिए रक्षा क्षेत्र में 100% एफडीआई को अनुमति दी गई है| रेल बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निर्माण, संचालन और रखरखाव में स्वचालित मार्ग के तहत 100% एफडीआई की अनुमति दी गई है| बीमा और चिकित्सा उपकरणों के लिए उदारीकरण मानदंडों को भी मंजूरी दी गई है|

आगे की राह

1. ‘ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस इंडेक्स’ में भारत की रैंकिंग में काफी सुधार आया है, किंतु इसके बावजूद देश में निवेश नहीं बढ़ रहा है| यह स्पष्ट दर्शाता है कि भारत को विनिर्माण गतिविधियों को बढ़ाने के लिये नीतियों की विंडो ड्रेसिंग से कुछ अधिक की ज़रूरत है|

2. विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार को यह समझना चाहिये कि संसद में मात्र कुछ बिल पारित करने और निवेशकों की बैठक आयोजित करने से औद्योगीकरण को शुरू नहीं किया जा सकता है|

3. भारत सरकार को उद्योगों विशेष रूप से विनिर्माण उद्योगों के विकास के लिये अनुकूल वातावरण बनाने हेतु और अधिक प्रयास करने होंगे|

यह भी पढ़ें- ग्रामीण उजाला योजना: प्रयास, लाभ, कार्यान्वयन और महत्त्व

अगर आपको यह लेख पसंद आया है, तो कृपया वीडियो ट्यूटोरियल के लिए हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें| आप हमारे साथ Twitter और Facebook के द्वारा भी जुड़ सकते हैं|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

“दैनिक जाग्रति” से जुड़े

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

करियर से संबंधित पोस्ट

आईआईआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कट ऑफ, प्लेसमेंट

एनआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कटऑफ, प्लेसमेंट

एनआईडी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, फीस, कट ऑफ, प्लेसमेंट

निफ्ट: योग्यता, प्रवेश प्रक्रिया, कोर्स, अवधि, फीस और करियर

निफ्ट प्रवेश: पात्रता, आवेदन, सिलेबस, कट-ऑफ और परिणाम

खेती-बाड़ी से संबंधित पोस्ट

June Mahine के कृषि कार्य: जानिए देखभाल और बेहतर पैदावार

मई माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

अप्रैल माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

मार्च माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

फरवरी माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

स्वास्थ्य से संबंधित पोस्ट

हकलाना: लक्षण, कारण, प्रकार, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

एलर्जी अस्थमा: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

स्टैसिस डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान, इलाज

न्यूमुलर डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, डाइट, निदान और इलाज

पेरिओरल डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, निदान और इलाज

सरकारी योजनाओं से संबंधित पोस्ट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार: प्रशिक्षण, लक्षित समूह, कार्यक्रम, विशेषताएं

राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम: लाभार्थी, योजना घटक, युवा वाहिनी

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार: उद्देश्य, प्रशिक्षण, विशेषताएं, परियोजनाएं

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना | प्रधानमंत्री सौभाग्य स्कीम

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, पेंशन, देय और ऋण

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap