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Home » Blog » मूंगफली की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल और पैदावार

मूंगफली की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल और पैदावार

December 15, 2017 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

मूंगफली की खेती

मूंगफली (Peanuts) की खेती तिलहनी फसलों में एक महत्वपूर्ण फसल है| जो की भारत के विभिन्न हिस्सों में उगाई जाने वाली मुख्य फसल है| मूंगफली मानव के आहार का भी एक प्रमुख हिस्सा है, भारत में मूंगफली के उत्पादन का लगभग 75 से 85 प्रतिशत हिस्सा तेल के रूप में इस्तेमाल होता है| जिसका ज्यादातर उपयोग मानव आहार में किया जाता है जिसके फायदे इस प्रकार है, मूंगफली में 30 प्रतिशत प्रोटीन, 21 से 25 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 45 से 50 प्रतिशत वसा, विटामिन, कैल्शियम और अन्य पोषक तत्व मौजूद है, जो मानव शरीर के लिए आवश्यक होते है|

मूंगफली की फसल गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू और कर्नाटक राज्यों में सबसे अधिक उगाई जाती है| अन्य राज्य जैसे- मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और पंजाब में भी यह काफी महत्त्वपूर्ण फसल मानी जाने लगी है| मूंगफली की अच्छी पैदावार की लिए उन्नत तकनीकियाँ जैसे- उन्नत किस्में, रोग नियंत्रण, निराई-गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण आदि विकसित की हैं जिनका विस्तृत उल्लेख इस लेख में है|

मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

मूंगफली के लिए अर्ध-उष्ण जलवायु अधिक उपयुक्त होती है| सूर्य की अधिक रोशनी और उच्च तापमान इसकी बढ़वार एवं पैदावार के लिए अनुकूल हैं| फसल की अच्छी पैदावार के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा 500 से 1000 मिलीमीटर वर्षा को उत्तम माना गया है| मूंगफली दिवस निरपेक्ष फसल है| जिसके कारण इसकी खेती वर्ष भर की जा सकती है|

मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त भूमि

मूंगफली को हल्की से लेकर भारी भूमियों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है| लेकिन बलुई दोमट भूमि जिसमें जल निकास अच्छा हो तथा प्रचुर मात्रा में कैल्सियम एवं जीवांश मौजूद हों, मूंगफली के लिए सबसे उपयुक्त रहती है| मूंगफली के लिए हल्की अम्लीय भूमि जिसका पी एच मान 6.0 से 6.5 के बीच हो, उपयुक्त होती हैं| जिन भूमियों में ऊसर एवं लवण की समस्या हो या अधिक अम्लीय हो, मूंगफली को बढ़ावा नहीं देना चाहिए|

यह भी पढ़ें- मूंगफली फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन

मूंगफली की खेती के लिए खेत की तैयारी

खेत की जुताई की संख्या, भूमि की किस्म, फसल चक्र, भूमि में नमी की मात्रा और प्रयोग में आने वाले यंत्र आदि पर निर्भर करती है| आमतौर पर पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 3 से 4 जुताइयां कल्टीवेटर या देशी हल से करके मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए| खेत में नमी को बनाए रखने के लिए हर जुताई के बाद पाटा लगाना जरूरी है|

दीमक एवं विभिन्न प्रकार के भूमिगत कीड़ों से फसल के बचाव हेतु क्विनलफोस 1.5 प्रतिशत 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से अंतिम जुताई के साथ मिटटी में मिला देना चाहिए साथ में नीम की खली 400 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का भी प्रयोग करें|

मूंगफली के साथ फसल चक्र और प्रणाली

1. उत्तरी भारत में मूंगफली के बाद मुख्यतः गेहूं तथा दालों की खेती की जाती है, जबकि देश के दक्षिणी राज्यों में ज्वार और सूरजमुखी, फसल चक्र की प्रमुख फसलें हैं|

2. धान-मूंगफली-मूंग, धान-मूंगफली-धान और धान-मूंगफली-बाजरा फसल चक्रों के तहत भी क्षेत्रफल में बढ़ोत्तरी हो रही है, जिससे किसानों को अधिक उत्पादकता तथा आय प्राप्त हो रही है|

3. मध्य भारत में मूंगफली-कपास, मूंगफली-ज्वार तथा मूंगफली-अरहर फसल चक्र प्रचलित हैं|

4. आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के तटीय भागों में धान-मूंगफली फसल चक्र के तहत क्षेत्रफल में बढ़ोत्तरी हो रही है|

5. जायद में मूंगफली तथा सूरजमुखी की 4:2 या 3:1 पंक्तियों के अनुपात में खेती करके 25 से 30 प्रतिशत अधिक पैदावार ले सकते हैं|

6. खरीफ में मूंगफली तथा अरहर का अंतःफसलीकरण 3:1 पंक्तियों के अनुपात में सफल और अधिक उपजाऊ पाया गया है|

7. बारानी क्षेत्रों में मूंगफली+अरहर (6:1), मूंगफली+बाजरा (6:1), मूंगफली+ज्वार (4:1 या 6:2), मूंगफली+कपास (3:1 या 5:1), मूंगफली+अरण्डी (5:1) और मूंगफली+तिल (4:1) की अन्र्तफसलीय खेती को अधिक लाभकारी पाया गया है|

यह भी पढ़ें- मूंगफली में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

मूंगफली की खेती के लिए उन्नत किस्में

मूंगफली की तीन प्रकार की अलग-अलग किस्में होती हैं| हल्की मिट्टी के लिये फैलने वाली और भारी मिट्टी के लिये झुमका किस्म के पौधों वाली किस्में है, जो भूमि के अनुसार बोने के काम में ली जाती है| मूंगफली की पैदावार बढ़ाने में किस्मों का विशिष्ट योगदान होता है| उन्नत किस्मों को अपनाने से स्थानीय किस्मों की तुलना में मूंगफली की उपज में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि पाई गई है| क्षेत्र विशेष के लिए अनुमोदित की गई किस्मों का विवरण इस प्रकार है, जैसे-

मूंगफली की किस्मों के प्रकार-

विस्तारी किस्में (फैलने वाली)- आर एस- 1, एम- 335, चित्रा, आर जी- 382 (दुर्गा), एम- 13 और एम ए- 10 आदि|

अर्धविस्तारी किस्में (मध्यम फैलने वाली)- एच एन जी- 10, आर जी- 138, आर जी- 425, गिरनार- 2 और आर एस बी- 87 आदि|

झुमका किस्में- डी ए जी- 24, जी जी- 2, जे एल- 24, ए के- 12 व 24, टी जी- 37ए और आर जी- 141 आदि|

राज्यवार मूंगफली की संस्तुत किस्में-

गुजरात- जी जी- 3, जी जी- 6, जी जी- 12, वी आर आई- 2, जी जी- 11, जी जी- 20, आई सी जी एस- 44, गिरनार- 1, जे- 11, जी ए यू जी- 1, आई सी सी एस- 37, सोमनाथ, कौशल आदि|

मध्य प्रदेश- ज्योति, गंगापुरी, जवाहर, आई सी जी एस- 11, कौशल आदि|

राजस्थान- मुक्ता, प्रकाश, चित्रा, बी ए यू- 13, आर जी- 141, आर जी- 144 आदि|

महाराष्ट्र- टी ए जी- 24, टी ए जी- 26, आई सी जी एस- 11, गिरनार- 1, करद- 4-11, आई सी जी एस- 37, कोनकन, गौरव, जे एल- 24, कादिरी- 4, प्रगति, जे एल- 220, एल जी एन- 2 आदि|

कर्नाटक- एम- 206, आई सी जी एस- 11, के आर जी- 1, गिरनार- 1, टी एम वी- 2, कौशल आदि|

आंध्र प्रदेश- आई सी जी एस- 11, आई सी जी एस- 44, कादिरी- 3, जे एल- 24, गिरनार- 1, तिरुपति- 3, तिरुपति- 4, कादिरी- 4, के- 134 आदि|

तमिलनाडु- वी आर आई- 1, वी आर आई- 2, वी आर आई- 3, आई सी जी एस- 44, जे एल- 24, टी एम बी- 2, टी एम- 7, टी एम- 12, वी आर आई- 4, वी आर आई- 5, डी एस आर- 1, आई सी जी वी- 86590 आदि|

उत्तरी राज्य- पंजाब मूंगफली न-1, एस जी- 44, एस जी- 84, आई सी जी एस- 37, आई सी जी एस- 1, मुक्ता, प्रकाश, चित्रा, वी ए यू- 13, एच एन जी- 10, एम एच- 4, एम- 335, डी आर जी- 17, सी एस एम जी- 84-1 (अम्बर), एम ए- 16, एम- 522 आदि| मूंगफली की किस्मों की विशेषताएँ और पैदावार की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मूंगफली की उन्नत किस्में, जानिए इनकी विशेषताएं और पैदावार

यह भी पढ़ें- मूंग की खेती: जलवायु, किस्में, देखभाल और पैदावार

मूंगफली की खेती के लिए बीज की मात्रा

1. मूंगफली की झुमका किस्मों के बीज की उचित मात्रा 100 से 125 किलोग्राम  प्रति हेक्टेयर है|

2. मध्यम फैलने वाली किस्मों के बीज की उचित मात्रा 80 से 100 किलोग्राम  प्रति हेक्टेयर है|

3. अधिक फैलने वाली किस्मों के बीज की उचित मात्रा 60 से 80 किलोग्राम  प्रति हेक्टेयर उपयुक्त होती है|

मूंगफली की खेती के लिए बीजोपचार

1. बुवाई से पूर्व बीज को 2 या 3 ग्राम थिरम या कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से मिलाकर उपचार करें|

2. इस उपचार के 5 से 6 घंटे बाद, बीज को एक विशिष्ट प्रकार के उपयुक्त राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें|

3. उपचार हेतु एक टिन के चौड़े बर्तन में 1/2 लीटर पानी लें और उसमें 50 ग्राम गुड़ मिलाकर हल्का सा उबालें, अब पानी को एकदम ठंडा कर लें| फिर इस घोल में 200 से 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर मिलाएं| इस तैयार घोल के मिश्रण को 10 किलोग्राम बीज के ऊपर समान रूप से छिड़क कर हल्के हाथ से मिलाएं, जिससे बीज के ऊपर हल्की परत बन जाए|

4. उपचार के बाद बीज को छाया में सुखायें तथा शीघ्र ही बुवाई के लिए उपयोग करें|

मूंगफली की खेती के लिए बुवाई का समय

रबी या जायद- मूंगफली की बुवाई के समय खेत की उपरी 10 सेंटीमीटर सतह का तापमान 18 डिग्री सेल्सियस से कम नहीं होना चाहिए| उत्तरी क्षेत्र में जहां जायद मूंगफली की खेती की जाती है, फरवरी से मार्च में यह अवस्था आती है| जबकि महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और अन्य राज्यों में नवम्बर से जनवरी तक रबी या जायद मौसम की मूंगफली की बुवाई के लिए उचित तापमान उपलब्ध होता है|

खरीफ- खरीफ मौसम की फसल की बुवाई का उचित समय जून का दूसरा पखवाड़ा है| असिंचित क्षेत्रों में जहां बुवाई वर्षा के बाद की जाती है, जुलाई के पहले पखवाड़े में बुवाई के काम को पूरा कर लें|

यह भी पढ़ें- अरहर की खेती: जलवायु, किस्में, देखभाल और पैदावार

मूंगफली की खेती के लिए बुवाई की विधि

1. किस्मों तथा मौसम के अनुसार खेत में पौधों की संख्या में अंतर रखा जाता है|

2. झुमका किस्मों के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें|

3. फैलने वाली किस्मों में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखें|

4. रबी या जायद मौसम में प्रति इकाई क्षेत्र में खरीफ मौसम की तुलना में पौधों की अधिक संख्या रखें|

5. मूंगफली की बुवाई सीड ड्रिल द्वारा करनी उपयोगी रहती है, क्योंकि कतार से कतार और बीज से बीज की दूरी संस्तुति अनुसार आसानी से कायम की जा सकती है और इच्छित पौधों की संख्या प्राप्त होती है|

6. यदि संभव हो मूंगफली की बुवाई मेंड़ों पर करें|

7. बीज की बुवाई 4 से 6 सेंटीमीटर की गहराई पर करने से अच्छा अंकुरण प्रतिशत मिलता है|

मूंगफली फसल में पोषक तत्व प्रबंधन

किसी भी फसल में मिट्टी परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करना उचित होगा| मिट्टी परीक्षण के अभाव में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग के साथ-साथ 5 से 10 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद का उपयोग करें| नाइट्रोजन की जरूरत का अधिकांश भाग नाइट्रोजन यौगिकीकरण क्रिया से पूरा हो जाता है| अतः आवश्यक है, कि बीज को बोने से पहले उपयुक्त जीवाणु खाद का टीका लगाएं|

जीवाणु खाद का टीका विश्वसनीय स्थानों से ही खरीदें| बुवाई से 8 से 10 घंटे पहले जीवाणु खाद से बीजोपचार करें तथा उपचारित बीजों को छाया में सुखाकर बुवाई के लिए प्रयोग करें| नाइट्रोजन यौगिकीकरण क्रिया के शुरू होने से पहले की मांग की पूर्ति के लिए 20 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन का प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें|

फॉस्फोरस तथा पोटाश की मांग की पूर्ति के लिए 40 से 60 किलोग्राम फॉस्फोरस और 30 से 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें| मुख्यता तत्वों के अतिरिक्त गंधक एवं कैल्शियम का मूंगफली की पैदावार तथा गुणवत्ता पर महत्वपूर्ण प्रभाव देखा गया है| इन दोनों तत्वों की मांग की पूर्ति के लिए 200 से 400 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें|

नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा और जिप्सम की आधी मात्रा बुवाई के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें| जिप्सम की शेष आधी मात्रा को पुष्पावस्था के समय 5 सेंटीमीटर की गहराई पर पौधे के पास दिया जाना चाहिए|

बारानी क्षेत्रों में 15 से 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 से 40 किलोग्राम फॉस्फोरस तथा 20 से 25 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालें| पौधों की बढ़वार यदि कम हो और इसके साथ-साथ जड़ों में कारगर ग्रंथियों की संख्या कम हो, उस अवस्था में अच्छी पैदावार लेने के लिए बुवाई के 30 से 40 दिन बाद 20 से 25 किलोग्राम नाइट्रोजन का प्रयोग करें|

अम्लीय मिट्टी में 1.5 से 2.0 टन चूने का प्रयोग करने से मूंगफली की पैदावार में आशातीत बढ़ोत्तरी की जा सकती है| सूक्ष्म तत्वों में जस्ते तथा बोरॉन का प्रयोग करें| जस्ते की कमी की पूर्ति हेतु 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट का प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें| बोरॉन की कमी की पूर्ति हेतु 2 किलोग्राम बोरेक्स प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें|

यह भी पढ़ें- समेकित पोषक तत्व (आईएनएम) प्रबंधन कैसे करें

मूंगफली की फसल में खरपतवार नियंत्रण

मूंगफली की कम उत्पादकता के प्रमुख कारणों में से खरपतवारों का प्रकोप प्रमुख है| खरपतवारों का सही नियंत्रण न करने पर फसल की उपज में 30 से 50 प्रतिशत तक कमी आ जाती है| मूंगफली फसल के प्रमुख खरपतवार हैं, जैसे- दूब घास, माधना, संवाक, मकरा, कौन मक्की, मोथा या डिल्ला, गुम्मा, हजारदाना इत्यादि| अधिक पैदावार के लिए मूंगफली के खेत को 25 से 45 दिन की अवधि तक खरतपवारों से मुक्त रखना चाहिए| इसके लिए कम से कम दो बार निराई-गुड़ाई, पहली 20 से 25 दिन तथा दूसरी 40 से 45 दिन पर की जानी चाहिए|

श्रमिकों की समस्या होने पर एलाक्लोर 50 प्रतिशत ई सी,1.5 से 2.0 किलोग्राम सक्रिय तत्व या 3 से 4 किलोग्राम उत्पाद प्रति हेक्टेयर या पेन्डीमेथालीन 30 प्रतिशत ई सी, 1 किलोग्राम सक्रिय तत्व या 3 किलोग्राम उत्पाद प्रति हेक्टेयर खरपतवारनाशी का बुवाई के पश्चात दूसरे दिन 700 से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें| फसल की बुवाई के पूर्व फ्लूक्लोरेलिन 1 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करके मिट्टी में मिलाने से भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है| रसायन का छिड़काव करने के बाद 30 से 40 दिन पर एक निराई करने से अधिक पैदावार मिलती है|

मूंगफली की फसल में जल प्रबंधन

खरीफ मौसम की फसल प्रायः वर्षा पर निर्भर करती है| जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहां पानी की कमी होने पर फूल आने, नस्से बैठते समय, फूल बनते समय तथा दाना बनते समय फसल की सिंचाई अवश्य करें| मूंगफली की रबी या जायद मौसम की फसल में 10 से 15 दिन के अन्तराल पर फसल की सिंचाई करें| फसल की बुवाई भी पलेवा करने के बाद करें|

जहां पानी की कमी के कारण फसलों की पैदावार में भारी कमी आती है| वहीं अधिक पानी अधिक देर तक खेत में जमा रहने से भी फसलों को भारी नुकसान पहुंचता है| पानी की अधिकता के कारण जड़े मर जाती हैं तथा फसल में पोषक तत्वों की भी कमी हो जाती है| इसलिए जहां पर अधिक पानी एकत्रित होने की संभावना हो, वहां निकासी का उचित प्रबंध करें|

यह भी पढ़ें- गन्ना की खेती- किस्में, प्रबंधन व पैदावार

मूंगफली की फसल में रोग नियंत्रण

उगते हुए बीज का सड़न रोग- कुछ रोग उत्पन्न करने वाले कवक (एस्पर्जिलस नाइजर, एस्पर्जिलस फ्लेवस आदि) जब बीज उगने लगता है, उस समय इस पर आक्रमण करते हैं| इससे बीज पत्रों, बीज पत्राधरों और तनों पर गोल हल्के भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं| बाद में ये धब्बे मुलायम हो जाते हैं और पौधे सड़ने लगते हैं तथा फिर सड़कर गिर जाते हैं| फलस्वरूप खेत में पौधों की संख्या बहुत कम हो जाती है एवं जगह-जगह खेत खाली हो जाता है|

नियंत्रण-

1. बचाव के लिए सामान्य रूप से मूंगफली के प्रमाणित बीजों को बोना चाहिए|

2. अपने बीजों को बोने से पहले 2.5 ग्राम थाइरम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर लेना चाहिए|

रोजेट रोग- रोजेट (गुच्छरोग) मूंगफली का एक विषाणु (वाइरस) जनित रोग है| इसके प्रभाव से पौधे अति बौने रह जाते हैं, साथ ही साथ पत्तियों में ऊतकों का रंग पीला पड़ना प्रारम्भ हो जाता है| यह रोग सामान्य रूप से विषाणु फैलाने वाली माहूँ से फैलता है|

नियंत्रण-

1. इस रोग को फैलने से रोकने के लिए ग्रसित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए|

2.  इमिडाक्लोरपिड 1 मिलीलीटर को 3 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए|

टिक्का रोग- यह इस फसल का बड़ा भयंकर रोग है| आरम्भ में पौधे के नीचे वाली पत्तियों के ऊपरी सतह पर गहरे भूरे रंग के छोटे-छोटे गोलाकार धब्बे दिखाई पड़ते हैं| ये धब्बे बाद में ऊपर की पत्तियों और तनों पर भी फैल जाते हैं| संक्रमण की उग्र अवस्था में पत्तियाँ सूखकर झड़ जाती हैं और केवल तने ही शेष रह जाते हैं| इससे फसल की पैदावार काफी हद तक घट जाती है| यह बीमारी सर्कोस्पोरा परसोनेटा या सर्कोस्पोरा अरैडिकोला नामक कवक द्वारा उत्पन्न होती है|

नियंत्रण-

1. पिछली फसल के अवशेषों को नष्ट करें|

2. डाइथेन एम- 45 को 2 किलोग्राम एक हजार लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से दस दिनों के अन्तर पर दो से तीन छिड़काव करने चाहिए|

यह भी पढ़ें- बीटी कपास की खेती कैसे करें: किस्में, देखभाल और पैदावार

मूंगफली की फसल में कीट नियंत्रण

रोमिल इल्ली- रोमिन इल्ली पत्तियों को खाकर पौधों को अंगविहीन कर देता है| पूर्ण विकसित इल्लियों पर घने भूरे बाल होते हैं| यदि इसका आक्रमण शुरू होते ही इसका नियंत्रण न किया जाय तो इनसे फसल की बहुत बड़ी क्षति हो सकती है|

नियंत्रण-

1. इसके अण्डों या छोटे-छोटे इल्लियों से लद रहे पौधों या पत्तियों को काटकर या तो जमीन में दबा दिया जाये या फिर उन्हें घास-फूस के साथ जला दिया जाये|

2. क्विनलफास 1 लीटर कीटनाशी दवा को 700 से 800 लीटर पानी में घोल बना प्रति हैक्टर छिड़काव करना चाहिए|

मूंगफली की माहु- सामान्य रूप से छोटे-छोटे भूरे रंग के कीड़े होते हैं और बहुत बड़ी संख्या में एकत्र होकर पौधों के रस को चूसते हैं, साथ ही साथ वाइस जनित रोग के फैलाने में सहायक है|

नियंत्रण- रोग को फैलने से रोकने के लिए इमिडाक्लोरपिड 1 मिलीलीटर को 1 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए|

लीफ माइनर- लीफ माइनर का प्रकोप होने पर पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे दिखाई पड़ने लगते हैं| इसके गिडार पत्तियों में अन्दर ही अन्दर हरे भाग को खाते रहते हैं, जिससे पत्तियों पर सफेद धारियॉ सी बन जाती हैं| इसका प्यूपा भूरे लाल रंग का होता है, इससे फसल की काफी हानि हो सकती हैं| मादा कीट छोटे और चमकीले रंग के होते हैं, मुलायम तनों पर अण्डा देती है|

नियंत्रण- इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोपिड 1 मिलीलीटर को 1 लीटर पानी की दर से घोलकर छिड़काव करना चाहिए|

सफेद लट- मूंगफली को बहुत ही क्षति पहुँचाने वाला कीट है| यह बहुभोजी कीट है, इस कीट की ग्रव अवस्था ही फसल को काफी नुकसान पहुँचाती है| लट मुख्य रूप से जड़ों और पत्तियों को खाते हैं| जिसके फलस्वरूप पौधे सूख जाते हैं| मादा कीट मई से जून के महीने में जमीन के अन्दर अण्डे देती है| इनमें से 8 से 10 दिनों के बाद लट निकल आते हैं और इस अवस्था में जुलाई से सितम्बर-अक्टूबर तक बने रहते हैं| शीतकाल में लट जमीन में नीचे चली जाती हैं तथा प्यूपा फिर गर्मी व बरसात के साथ ऊपर आने लगते हैं|

नियंत्रण-

1. क्लोरोपायरिफास से बीजोपचार प्रारंभिक अवस्था में पौधों को सफेद लट से बचाता है|

2. अधिक प्रकोप होने पर खेत में क्लोरोपायरिफास का प्रयोग करें|

3. इसकी रोकथाम फोरेट की 25 किलोग्राम मात्रा को प्रति हैक्टर खेत में बुवाई से पहले भुरका कर की जा सकती है|

यह भी पढ़ें- धान की खेती: जलवायु, किस्में, देखभाल और पैदावार

मूंगफली फसल की कटाई

मूंगफली में जब पुरानी पत्तियां पीली पड़कर झड़ने लगें, फली का छिलका कठोर हो जाए, फली के अन्दर बीज के ऊपर की परत गहरे गुलाबी या लाल रंग की हो जाए तथा बीज भी कठोर हो जाए तो मूंगफली की कटाई कर लेनी चाहिए| पकी फसल पर वर्षा होने से फलियों में ही बीज के उगने का अंदेशा रहता है, इसलिए कटाई समयानुसार सावधानी से करनी चाहिए|

कटाई के बाद पौधों को सुखाएं और बाद में फलियां अलग करें| फलियों को अलग करने के बाद फिर से सुखाएं ताकि उनमें नमी की मात्रा 8 प्रतिशत रह जाए| फसल की कटाई में देरी होने से फसल का पैदावार और गुणवत्ता दोनों पर प्रभाव पड़ता है| पकने के बाद जब फली अधिक देर के लिए जमीन में पड़ी रहें तो उसमें कीटों और रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है, जिससे पैदावार में काफी कमी आ जाती है|

खुदाई से पहले अगर जमीन सूखी है, तो खेत की सिंचाई कर लें| सिंचाई करने से जमीन नरम पड़ जाती है, जिससे खुदाई करने में आसानी रहती है| खुदाई के बाद फलियों को अच्छी तरह साफ कर लें| अगर हो सके तो फलियों को आकार के हिसाब से वर्गीकरण कर लें, जिससे मण्डी में उत्पाद के अच्छे दाम मिल सकें|

मूंगफली की खेती से पैदावार

उपरोक्त तकनीक अपनाकर मूंगफली की खरीफ की फसल से 18 से 25 क्विंटल और रबी या जायद की फसल से 20 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है|

यह भी पढ़ें- अरंडी की खेती: जाने किस्में, देखभाल और पैदावार

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