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Home » Blog » तोरिया / लाही की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

तोरिया / लाही की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

July 9, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

तोरिया / लाही की खेती

तोरिया / लाही रबी की तिलहनी फसलों में सबसे कम समय में पकने वाली और सबसे पहले बोयी जाने वाली फसल है| यह फसल आमतौर पर उत्तर भारत के सभी क्षेत्रों में उगाई जाती है| तोरिया की खेती, खरीफ फसल की कटाई तथा रबी की फसल की बुवाई के बीच के समय में ली जाती है| तोरिया शुद्ध और अंतरवर्ती फसल के रूप में भी उगाया जाता है|

तोरिया में 42 से 45 प्रतिशत तक तेल होता है और इसकी खली पशुओं के आहार के रूप में काम में लाई जाती है| उन्नत विधियां अपनाने पर तोरिया / लाही के उत्पादन एवं में वृद्धि की जा सकती है| इस लेख में तोरिया / लाही की उन्नत तकनीक से खेती कैसे करें का विस्तृत उल्लेख किया गया है|

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तोरिया / लाही की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

तोरिया / लाही की फसल के लिए 25 डिग्री सेंटीग्रेट से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता होती है| अधिक या कम तापमान होने पर फसल में विकृति आने लगती है|

तोरिया / लाही की खेती के लिए खेत का चयन

तोरिया की खेती (Toriya farming) से अच्छी उपज के लिये रेतीली दोमट एवं हल्की दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त है| भूमि क्षारीय एवं लवणीय नहीं होनी चाहिये| तोरिया की खेती अधिकांशतः बारानी की जाती है| बरानी खेती के लिये खेत को खरीफ में पड़त छोड़ना चाहिये| खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध होना चाहिए|

तोरिया / लाही की खेती के लिए खेत की तैयारी

पहली जुताई वर्षा ऋतु में मिट्टी पलटने वाले हल से करें| इसके बाद 3 से 4 जुताई करें| प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगावें जिससे भूमि में नमी की कमी न हो और मिटटी भुरभुरी हो जाये| सिंचित खेती के लिये भूमि की तैयारी बुवाई के 3 से 4 सप्ताह पूर्व प्रारम्भ करें|

दीमक और जमीन के अन्य कीड़ो की रोकथाम हेतु बुवाई से पूर्व अंतिम जुताई के समय क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोंग्राम प्रति हैक्टेयर खेत में बिखेर कर जुताई करना चाहिये| नमी को ध्यान में रखकर जुताई के बाद पाटा लगाये|

यह भी पढ़ें- गेहूं की खेती: किस्में, बुवाई, देखभाल और पैदावार

तोरिया / लाही की खेती के लिए किस्में

टी 9- यह तोरिया या लाही की किस्म 85 से 100 दिन की पकाव अवधि वाली, बारानी व सिंचित दोनों स्थितियों में उगाये जाने के लिये उपयुक्त है| इसमें तेल की मात्रा 44.3 प्रतिशत होती है| बीज का रंग भूरा होता है| औसत उपज 12 से 15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है|

संगम- 105 दिन में पकने वाली इस किस्म में 44.2 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है| सिंचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त इसकी उपज औसतन 15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है|

टी एल 15- जल्दी पकने वाली यह किस्म 85 से 90 दिन में पक जाती है| इसके पश्चात् गेहूं की फसल आसानी से ली जा सकती है| औसत उपज 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है|

भवानी- पकने की अवधि 75 से 80 दिन, उपज 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, सम्पूर्ण मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है|

पीटी 303- पकने की अवधि 90 से 95 दिन, उपज 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, सम्पूर्ण मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है|

पीटी 30- पकने की अवधि 90 से 95 दिन, उपज 14 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, सम्पूर्ण तराई क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है|

तपेश्वरी- पकने की अवधि 90 से 91 दिन, उपज 14 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, सम्पूर्ण मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है|

तोरिया की खेती के लिए बीज और बीजोपचार

एक हैक्टेयर में बुवाई करने हेतु 4 से 5 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है| बुवाई से पहले बीज को दो से ढाई ग्राम मैन्कोजेब या 3 ग्राम केप्टान या ब्रेसीकॉल प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें| इससे कवक जनित रोग लगने का डर नहीं रहता है|

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तोरिया / लाही की खेती की बुवाई का समय

खरीफ की फसल कटने के तुरन्त बाद खेत तैयार करके तोरिया की बुवाई करनी चाहिये| बुवाई का उपयुक्त समय 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक है| तोरिया के पश्चात गेहूं की जल्दी बोयी जाने वाली किस्म बोयी जानी हो तो तोरिया को अगस्त के अंतिम सप्ताह में बो देना चाहिये| यह फसल खरीफ एवं रबी की फसलों के बीच के समय में उगाई जाती है| अतः रबी में गेहूं की सफलतापूर्वक फसल लेने के लिये तोरिया की बुवाई समय पर करनी चाहिये|

तोरिया / लाही की खेती में बुवाई का अन्तराल

पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेन्टीमीटर रखते हुये कतारों में 5 सेन्टीमीटर गहरा बीज बोये| कतार से कतार के बीच की दूरी 30 सेन्टीमीटर रखे| असिंचित क्षेत्र में बीज की गहराई नमी के अनुसार रखें|

तोरिया / लाही की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक

सिंचित फसल के लिए प्रति हैक्टेयर 8 से 10 टन अच्छी गली सड़ी गोबर या कम्पोस्ट खाद, बुवाई के कम से कम तीन से चार सप्ताह पूर्व, खेत में डाल कर खेत तैयार करें| असिंचित फसल के लिये 4 से 5 टन सड़ी हुई खाद प्रति हैक्टेयर वर्षा से पहले ढेरियों में डाल दें और एक दो वर्षा के बाद खेत में फेला दे और जुताई कर दे|

उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार करें| इसके अभाव में तोरिया की सिंचित फसल लेने के लिये प्रति हैक्टेयर 40 किलोंग्राम नत्रजन एवं 20 किलोंग्राम फास्फोरस काम में लेना चाहिये| नत्रजन की आधी मात्रा एवं फॉस्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय देवें| शेष नत्रजन की आधी मात्रा प्रथम सिंचाई के साथ फसल में देवें| असिंचित क्षेत्र में 20 किलोग्राम नत्रजन व 10 किलोग्राम फॉस्फोरस बुवाई के समय दीजिये|

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तोरिया / लाही की खेती में सिचांई और निराई-गुड़ाई

तोरिया की जड़े अधिक गहरी नहीं जाती है| अतः सिंचित क्षेत्रो में दो बार सिंचाई देने पर आशातीत पैदावार प्राप्त होती है| पहली सिंचाई 30 से 35 दिन बाद फूल आने से पहले करें, तत्पश्चात् आवश्यकतानुसार दूसरी सिंचाई 70 से 80 दिन बाद करें|

पौधे की संख्या अधिक हो तो बुवाई के 20 से 25 दिन बाद निराई के साथ छंटाई कर खरपतावार निकाल दें तथा पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेन्टीमीटर कर देवें| सिंचाई के बाद गुड़ाई करने से खरपतवार नष्ट हो जायेगें और फसल की बढवार अच्छी होगी|

प्याजी की रोकथाम के लिये फ्लूक्लोरेलिन एक लीटर सक्रिय तत्व प्रति हैक्टेयर भूमि में मिलाये| जहां पलेवा करके बुवाई की जानी हो वहां फ्लूक्लोरेलिन बुवाई से पूर्व भूमि में मिला देना चाहिये, जबकि सूखी बुवाई की स्थिति में पहले फसल की बुवाई करें इसके पश्चात फ्लूक्लोरेलिन का छिड़काव कर सिंचाई कर दे|

तोरिया / लाही की खेती में फसल संरक्षण

पेन्टेड बग व आरा मक्खी- अंकुरण के 7 से 10 दिन में ये कीट अधिक हानि पहुंचाते हैं| इनकी रोकथाम के लिय सुबह या शाम के समय मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत या मैलाथियान 5 प्रतिशत या कारबैरिल 5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम का प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें|

हीरक तितली (डायमण्ड बैक मॉथ)- रोकथाम हेतु क्यूनालफॉस 25 ई सी एक लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़कें|

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मोयला- मोयला की रोकथाम हेतु मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत या मैलाथियॉन 5 प्रतिशत या कार्बोरिल 5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर भुरके या पानी की सुविधा वाले स्थानों में मैलाथियान 50 ई सी 1.25 लीटर या डायमिथोएट 30 ई सी 875 मिलीलीटर या क्लोरोपायरीफॉस 20 ई सी 600 मिलीलीटर या कार्बरिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2.50 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें|

सफेद रोली, झुलसा व तुलासिता- रोग दिखाई देते ही मैंन्कोजेब दो किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से पानी में मिलाकर छिड़कें एवं आवश्यकतानुसार 20 दिन के अन्तर पर छिड़काव दोहरायें|

छाछ्या- रोग दिखाई देते ही 20 किलोग्राम गंधक चूर्ण प्रति हैक्टेयर भुरके या ढाई किलोंग्राम 80 प्रतिशत घुलनशील गंधक या 750 मिलीलीटर कैराथियॉन 30 एल सी 750 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें|

तोरिया / लाही की फसल कटाई

समय पर उगाई गई तोरिया की फसल दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह से जनवरी के प्रथम सप्ताह तक पक जाती है| आमतौर पर जब पत्ते झड़ने लगे और फलियाँ पीली पड़ने लगे तो फसल काट लें अन्यथा कटाई में देरी होने पर दाने खेत में झड़ जाने की आशंका रहती है|

तोरिया / लाही की खेती से पैदावार

उपरोक्त उन्नत तकनीक और उन्नत प्रमाणित किस्मों द्वारा की गई खेती से 12 से 19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है और बीज को अच्छी तरह सुखाकर ही भण्डारण करना चाहिए|

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