• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post
Home » गन्ना बुवाई की उपयोगी विधियाँ? | गन्ने की बुवाई कैसे करें?

गन्ना बुवाई की उपयोगी विधियाँ? | गन्ने की बुवाई कैसे करें?

February 18, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

गन्ना बुवाई की उपयोगी विधियाँ?

हमारे देश को गन्ने की मातृभूमि माना जाता है| इसके अधिक उत्पादन हेतु किसान बन्धुओं को गन्ना बुवाई विधियों पर अपने क्षेत्र और परिस्थितियों के अनुसार ध्यान देना आवश्यक है| इसके लिए गन्ना बुवाई की उस तकनीक का चयन करना चाहिए, जिससे किसानों को कम उत्पादन लागत आये और अतिरिक्त लाभ भी प्राप्त हो| इस लेख में गन्ना बुवाई की उपयोगी तकनीकों, जिससे की अधिक उत्पादन प्राप्त हो सके की जानकारी का उल्लेख है| गन्ना की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गन्ना की खेती- किस्में, प्रबंधन व पैदावार

गन्ना बुवाई की विधियां

गन्ना की मेढ और नाली विधि से बुआई-

ट्रैक्टर चलित रेजर द्वारा अच्छी जोत की भूमि में नाली और मेढ बनाए जाते है| नाली की गहराई 25 सेंटीमीटर रहनी चाहिए, इसके लिए ट्रैक्टर चलित औजर का इस्तेमाल करें| नाली की लंबाई भूमि के ढलाव पर निर्भर करती है| नाली का तल भूरभूरा जो 10 सेंटीमीटर तक बनाए रखने से गन्ना टुकडों की बुआई तथा ढकाई में आसानी होती है|

मेढ और नाली में गन्ना बुआई सधन सिंचित प्रदेशों में आम तौर पर अपनायी जाती है| इस विधि में मिटटी में हवा की मात्रा पर्याप्त रहती है तथा सिंचाई करने में नालीयों की मदद मिलती है| गन्ना पर मिट्टी चढाने पर मेढों को नाली में परिवर्तित किया जाता है, क्योंकि मेंढों से मिट्टी निकालकर गन्ने की पंक्तियों पर चढ़ाई जाती है ताकी गन्ना गिर न जाए|

यह भी पढ़ें- गन्ने की क्षेत्रवार उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार

गन्ना की टेंच विधि से बुआई-

टेंच विधि से बुआई मृत्तिकामय मिटटी जहाँ मिटटी के ढेलों का बनना अकसर दिखाई देता है, ऐसी मिटटी में की जाती है| ट्रैक्टर चलित ट्रेंच ओपनर द्वारा 25 से 30 सेंटीमीटर गहरे नाले बना दिए जाते है| टैंच विधि में जल संवर्धन होता है, तथा अवमृदा जल गन्ना अंकुरण और फसल वृद्धि को प्रेरित करता है| इस विधि का फायदा यह भी है, कि गन्ना गिरता नही है, कुछ क्षेत्रों में जहाँ शुरू में सुखे की और अंत में जलप्लावन जैसी समस्या होती है, वहाँ पर 30 से 40 मिलीमीटर गहरे और 60 सेंटीमीटर चौडे टैंच बनाकर गन्ना बुआई करने से फायदा हुआ है|

गन्ना बुवाई की इस विधि में गन्ने की फसल जैसे-जैसे बढ़ने लगती है, वैसे-वैसे टैंचों में उर्वरक व्यवस्थापन में मिट्टी चढ़ जाती है| इस विधि से शुरूआती दिनों में गन्ने का अंकुरण टैंचों के तलस्थित अवमृदा नमी से अच्छा होकर गन्ने के जमाव में सुधार दिखाई देता है| फसल वृद्धि के बाद अतिरिक्त मिटटी नमी का रिसाव करने में टैंचों का काफी फायदा होता है|

गन्ना बुवाई की गड्ढा विधि-

गन्ना बुवाई की गड्ढा विधि में 90 सेंटीमीटर व्यास का और 45 सेंटीमीटर गहरा गड्ढा बनाया जाता है| दो गड्ढों के बीच 60 सेंटीमीटर का फासला रखकर एक गड्ढे के मध्य से लेकर दुसरे गड्ढे के मध्य तक की दुरी 150 सेंटीमीटर रखी जाती है| इस तरह कुल 4000 गड्ढे प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होते है| उपरी सतह की मिटटी, गोबर खाद या कम्पोस्ट खाद को मिलाकर गडढो को 15 मिलीमीटर गहराई तक भरा जाता है|

एक गड्ढे में 20 गन्ना टुकड़ों को त्रिज्यीय ढंग से लगाकर 5 मिलीमीटर मिट्टी की परत से ढक दिया जाता है| इस विधि में गड्ढे बनाने में ज्यादा मजदुरों की जरूरत होती है, इस कारणवंश यह विधि ज्यादा प्रचलित नही है| हालाँकि इसके लिए कुछ कृषि संस्थाओं द्वारा ट्रैक्टर चलित गड्ढे बनाने वाली मशीन विकसित की है|

ट्रैक्टर चलित गड्ढे बनाने वाली मशीन द्वारा गड्डा बनाने में खर्च कम होने से इस विधि का अंगीकरण बढ़ रहा है| गड्ढा विधि में किस्मों की वृद्धि जोरदार होती है| इस कारणवंश गन्ना की मोटाई, लंबाई तथा एकल गन्ना भार ज्यादा होता है| उपोष्ण जलवायु के प्रदेशों में इस विधि से उगाए गन्ने की फसल से मिल योग्य गन्ने की संख्या और पैदावार ज्यादा होती है|

गन्ना बुवाई की गड्ढा विधि की अन्य कई विशेषताएँ है, जो पेड़ी (रैटून) गन्ना फसल की पैदावार में बढवार के साथ-साथ लवणीय मिटटी तथा लवणीय जल सिंचित गन्ना परिस्थतियों में लाभदायक सिद्ध हुई है, किन्तु इस विधि से उगाए गए गन्ने की कटाई मशीन के द्वारा संभव नही है|

यह भी पढ़ें- गन्ना की उत्तर पश्चिम क्षेत्र की उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार

गन्ना बुवाई की फर्ब विधि-

भारत में 3 लाख हैक्टेयर भूमि पर गेहूं-गन्ना-पेडी-गेहूं का फसल चक्र लिया जाता है| गेहूं फसल की कटाई के बाद देर से बुआई की गन्ने की पैदावार में कमी एक आम समस्या है| गेहूं-गन्ना फसल प्रणाली चक्र में गन्ने की उत्पादकता बढ़ाने के लिए भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्था द्वारा फर्ब प्रणाली में ओवर लैपिंग फसल पद्धती में गेहूं और गन्ना लेने की तकनीक विकसित की गई है|

गन्ना बुवाई की फर्ब विधि में रेजड बेड पर जो 48 से 50 सेंटीमीटर चौडी होती है, उस पर गेहूं की फसल पंक्ति से पंक्ति की दूरी 17 सेंटीमीटर रखकर नवम्बर में बुआई की जाती है| गेहूं का बीज दर प्रति हेक्टेयर रखकर ट्रैक्टर चलित रेजड बेड मेकर कम फर्टिलाइजर सीड ड्रिल से बुआई की जाती है| गेहूं की बुआई के बाद जल्दी से नाली में सिंचाई कर दी जाती है|

सिंचाई करते समय नालियों की तिन से चौथाई ऊँचाई से ज्यादा पानी भरने की आवश्यकता नही होती है, जिससे गेहूं का अच्छा अंकुरण हो पायेगा| इसके बाद की सिंचाई नालियों द्वारा ही की जाती है| रेजड बेडों की अच्छी जोत करने से मिट्टी की भौतिक दशा अच्छी रहती है, जो गेहूं का जमाव, कल्ले व बढवार के लिए फायदेमंद होते है|

गेहूं की खडी फसल को फरवरी माह में गन्ने की नालियों में बोया जाता है| इस विधि द्वारा सामान्य बुआई जो अप्रैल से मई में की जाती है, उसकी तुलना में 50 से 60 दिन पहले गन्ना बुआई करते है| उपोष्णकटिबंधिय भारत में बसन्त कालीन गन्ना बुवाई का फरवरी माह उपयुक्त समय होता है|

यह भी पढ़ें- गन्ने में भरपूर पैदावार हेतु न होने दें लौह तत्व की कमी

गन्ना बुवाई का संयोग गेहूं की बुटलिफ अवस्था के साथ मेल करता है| गेहूं में सिंचाई सांयकाल को की जाती है और दूसरे दिन जब मिट्टी फुल जाती है तथा इस किचड़ युक्त मिटटी में गन्ना टुकड़ों को डालकर पैरों से चलते हुए दबाते है| इस विधि को बलुई दोमट मिटटी में सफलतापूर्वक मुल्यांकित किया गया है| नालियों में मिट्टी को ढकाकर करने के सिंचाई के पहले व्हील को चला देते है| जिससे गन्ने के टुकडे मिट्टी में अच्छी तरह दब जाते है|

गेहूँ फसल कटाई के बाद गन्ना फसल पर मिट्टी चढाई जाती है, तब तक नालियों द्वारा सिंचाई करते है| इस तकनीक का परिचालन योग्य व लागत उपयोगी बनाने के लिए भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, द्वारा ट्रैक्टर चलीत रेजड बेड मेकर-कम-फर्टिलाइजर सिड ड्रिल को विकसित किया गया है|

फर्ब तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह है, की गन्ना बुआई का अनुकूलतम समय जो फरवरी माह होता है, तब गेहूं-गन्ना फसल चक्र में आमतौर में गन्ना बुआई दो महीने देरी से अप्रैल का अन्तिम सप्ताह या मई के पहले सप्ताह में होती है| इस विधि में गेहूं की पैदावार बिना किसी हानी के तथा गन्ने की 35 प्रतिशत ज्यादा उत्पादकता ले सकते है|

गन्ना बुवाई की फर्ब विधि से जल उपयोग क्षमता बढ़ती है, क्योंकी सिंचाई केवल नालियों में दी जाती है, जिससे प्रत्येक सिंचाई में क्यारियों में सिंचाई की अपेक्षा जल की मात्रा लगभग 20 प्रतिशत कम लगती है| यह विधि छोटे और सिमांत किसानों जिनके पास सीमित संसाधन होते है| उनके लिए बहुत फायदेमंद है, जो उत्पादन लागत कम करके मुनाफे की सीमा को बढ़ा सकते है|

यह भी पढ़ें- बीटी कॉटन (कपास) की उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं एवं पैदावार

यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

“दैनिक जाग्रति” से जुड़े

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

करियर से संबंधित पोस्ट

आईआईआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कट ऑफ, प्लेसमेंट

एनआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कटऑफ, प्लेसमेंट

एनआईडी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, फीस, कट ऑफ, प्लेसमेंट

निफ्ट: योग्यता, प्रवेश प्रक्रिया, कोर्स, अवधि, फीस और करियर

निफ्ट प्रवेश: पात्रता, आवेदन, सिलेबस, कट-ऑफ और परिणाम

खेती-बाड़ी से संबंधित पोस्ट

June Mahine के कृषि कार्य: जानिए देखभाल और बेहतर पैदावार

मई माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

अप्रैल माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

मार्च माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

फरवरी माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

स्वास्थ्य से संबंधित पोस्ट

हकलाना: लक्षण, कारण, प्रकार, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

एलर्जी अस्थमा: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

स्टैसिस डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान, इलाज

न्यूमुलर डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, डाइट, निदान और इलाज

पेरिओरल डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, निदान और इलाज

सरकारी योजनाओं से संबंधित पोस्ट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार: प्रशिक्षण, लक्षित समूह, कार्यक्रम, विशेषताएं

राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम: लाभार्थी, योजना घटक, युवा वाहिनी

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार: उद्देश्य, प्रशिक्षण, विशेषताएं, परियोजनाएं

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना | प्रधानमंत्री सौभाग्य स्कीम

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, पेंशन, देय और ऋण

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap