• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post
Home » गन्ना के रोग का प्रबंधन कैसे करें? | गन्ने में रोग नियंत्रण के उपाय?

गन्ना के रोग का प्रबंधन कैसे करें? | गन्ने में रोग नियंत्रण के उपाय?

February 21, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

गन्ना के रोग

गन्ना के रोग की पहचान एवं उनका प्रबंधन अधिक पैदावार के लिए आवश्यक है| क्योंकि गन्ना भारत की एक प्रमुख नकदी और वाणिज्यिक फसल है, जिसे विस्तृत जलवायु में उगाया जाता है| इस फसल से प्रति एकड़ अधिक से अधिक पैदावार ली जाए परन्तु हमारे देश में गन्ने की प्रति एकड़ पैदावार विश्व के अन्य गन्ना उत्पादक देशों से कम है| जिसके कई कारण है, परन्तु फसल में रोगों की उपस्थिति एक प्रमुख कारण है जिससे किसानों को इच्छित पैदावार नहीं मिल पातीहै| इसलिए अच्छी पैदावार सुनिश्चित करने के लिये रोगमुक्त स्वस्थ फसल का होना अत्यंत आवश्यक है|

हमारे देश के विभिन्न राज्यों की गन्ना फसल में लगभग 50 से भी अधिक रोगों का प्रकोप होता है परन्तु उत्तर भारत के गन्ना उत्पादक राज्यों जैसे- हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार और राजस्थान में लाल सड़न, उखेड़ा, कंडुवा, घसैला, पेड़ी का बौना रोग, पोक्हा बोईंग और पीली पत्ती इत्यादि प्रमुख रोग है| इस लेख में गन्ना के रोग एवं उनका प्रबंधन कैसे करें का विस्तृत उल्लेख है| गन्ना की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गन्ना की खेती- किस्में, प्रबंधन व पैदावार

गन्ना के रोग का प्रबंधन

लाल सड़न (रेड रॉट)

लक्षण-

1. गन्ने के रोग में से एक लाल सड़न रोग कोलेटोट्रायकम फाल्केटम नामक फफूंद द्वारा होता है|

2. प्रभावित पौधों की तीसरी तथा चौथी पत्तियाँ पीली पड़कर सूखने लगती हैं| गन्नों की गांठों तथा छिलके पर फफूंद के बीजाणु विकसित हो जाते हैं|

3. लाल सड़न से ग्रसित गन्नों को फाड़ने पर इसके आन्तरिक उत्तकों पर लाल रंग के बीच में सफेद रंग के धब्बे प्रतीत होते हैं| गन्नों का पूरा गूद्दा लाल भूरे फफूद के धागों से भर जाता है| सूधने पर अल्कोहल जैसी गन्ध आती है|

गन्ना में रोग का प्रबंधन-

लाल सड़न रोग जिसे गन्ने का कैंसर भी कहा जाता है, इसके नियंत्रण की कोई प्रभावशाली विधि उपलब्ध नहीं है| लाल सड़न रोग का नियंत्रण समेकित रोग प्रबंधन विधियों द्वारा किया जा सकता है, जो इस प्रकार हैं, जैसे-

1. लाल सड़न रोग से गन्ने की अवरोधी किस्मों जैसे- को- 89003, को- 98014, को- 0118, को- 0238, को- 0239 और को- 0124 आदि की खेती करें|

2. इस बीमारी का प्रसार ग्रस्त बीजों के माध्यम से होता है, इसलिए बीमारी मुक्त खेत से बीज का चयन करें| यदि किसी बीज टुकड़े की आँखों और दोनों शिराओं में लाली हो तो एसे बीज की बिजाई ना करें|

3. बीज के लिए उपयुक्त गन्ने को नम गर्म शोधन मशीन से 54 डिग्री सेंटीग्रेट पर 1 घण्टा तक उपचारित करें या बीज गन्ना को कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर के घोल में बीज शोधन कर फिर बिजाई करें|

4. इस गन्ना के रोग से ग्रस्त फसल की पेड़ी ना रखें|

5. गन्ना के बाद धान और हरी खाद का फसल चक्र अपनाएं|

6. वर्षा के मौसम में बीमारी का प्रसार तेजी से होता है, इसलिए रोग ग्रस्त फसल के खेतों की मेड़ बन्दी करें|

7. रोग ग्रस्त गन्ने के झंडों को खेत से निकालकर 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम का घोल डालें|

यह भी पढ़ें- अधिक गन्ना पैदावार प्राप्त करने हेतु स्वस्थ बीज उत्पादन का महत्व

उकठा रोग 

लक्षण

1. गन्ना के रोग में से एक उकठा रोग फफूंदी द्वारा विकसित होता है|

2. इस रोग के बीजाणु गन्ने में होने वाले किसी प्रकार की क्षति जैसे जड़ छिद्रक, दीमक, सूत्रकृमि आदि जैविक और अजैविक कारणों जैसे सूखे की स्थिति, जल भराव आदि माध्यमों से इस रोग का संक्रमण बढ़ता है|

3. इस रोग के लक्षण मानसून एवं मानसून के बाद परिलक्षित होते हैं|

4. ग्रस्त गन्नों के आंतरिक उत्तकों में लालिमायुक्त भूरे स्थान बन जाते हैं|

5. पौधे के गोब की पत्तियाँ पीली पड़कर ढ़ीली हो जाती हैं एवं सूख जाती हैं|

6. रोगग्रस्त गन्ने की बढ़वार रूक जाती है और गन्नों की पोरियां सिकुड़ जाती हैं|

7. गन्ने हल्के हो जाते हैं एवं फाड़कर निरीक्षण करने पर आन्तरिक भाग खोखले हो जाते हैं, जो नौकाकार के प्रतीत होते हैं|

8. ग्रस्त गन्नों में अंकुरण की क्षमता समाप्त हो जाती है, पैदावार और चीनी के परते में काफी कमी आ जाती है|

गन्ने के रोग का प्रबंधन-

1. गन्ना के इस रोग से ग्रस्त गन्नों का बीज रूप में प्रयोग न करें|

2. बीज गन्ने का शोधन कार्बेन्डाजिम 0.2 प्रतिशत + बोरिक एसिड 0.2 प्रतिशत या बोरिक एसिड 0.2 प्रतिशत + ट्रायकोग्रामा विरिडी के घोल में 10 मिनट तक उपचार करके बुआई करने से इस बीमारी की रोकथाम की जाती है|

3. गन्ने की बिजाई के समय कुडों में बिछाए गये बीज टुकड़ों पर क्लोरपायरीफॉस 20 ई सी की 2 लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत कीटनाशी की 500 मिलीलीटर मात्रा प्रति एकड का 350 से 400 लीटर पानी में घोल बनाकर हजारे की सहायता से गिराकर मिट्टी से ढ़क दें|

4. जून माह के आखिरी सप्ताह में फ्यूराडॉन 3 प्रतिशत दानेदार कीटनाशी की 13 किलोग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से और नीम की खली 1.5 से 2.0 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से डालकर मिट्टी चढ़ा देने से इस रोग का प्रकोप कम होता है|

5. अगस्त माह के पहले सप्ताह में क्विनलफॉस 25 ई सी की 2 लीटर प्रति एकड़ के घोल का पौधों की जड़ के पास हजारे की सहायता से छिड़काव करें| जड़ छिद्रक कीट की रोकथाम कर बीमारी के प्रसार को कम किया जा सकता है|

6. सूखे की दशा में जड़ छिद्रक का प्रकोप बढ़ जाता है, इसलिए मई से जून के महीने में लगातार सिंचाई करनी चाहिए|

7. गन्ना के साथ प्याज, लहसून और धनिया की अन्तः फसल लेने से इस रोग का प्रकोप कम होता है|

8. धान-गन्ना का फसल चक्र भी इस रोग के बीजाणु को पनपने नहीं देता है|

यह भी पढ़ें- गन्ना फसल में खरपतवार प्रबंधन कैसे करें

कंडुवा (स्मट)

लक्षण-

1. गन्ना के रोग में से यह उत्तरी भारत में कंडुवा गन्ने की पेड़ी फसल का एक गौण रोग है|

2. इस गन्ने के रोग से ग्रस्त पौधों की गोब से चाबुक समान संरचना निकलती है, जिसमें काले रंग के बीजाणु चाँदी रंग की झिल्ली में भरे होते हैं|

3. इस गन्ना के रोग ग्रसित पौधों से कल्लों का फुटाव हो जाता है, लेकिन वह बौने रह जाते हैं|

गन्ना के रोग का प्रबंधन-

1. इस गन्ना के रोग की अवरोधी किस्मों की खेती करें और रोगग्रस्त फसल का बीज नहीं लें|

2. गन्नों में बने चाबुक के दिखाई देते ही काटकर नष्ट कर दें, अन्यथा इसमें उपस्थित बीजाणु उड़कर अन्य पौधों को भी संक्रमित कर देने में सफल हो जाएगें|

3. बीज गन्ना को 50 डिग्री सेंटीग्रेट नम गर्म शोधन मशीन में 1 घण्टे तक रखने के उपरान्त बेलेटॉन 0.1 प्रतिशत से बीज शोधन कर बिजाई करें|

यह भी पढ़ें- ट्रैक्टर चलित गन्ना पौध रोपण यंत्र, जानिए उपयोगी तकनीक

पोक्हा बोईंग

लक्षण-

1. यह गन्ना के रोग की एक गौण बीमारी है, जो वायुजनित फफूंद से प्रसारित होती है|

2. इस रोग के लक्षण जून से जुलाई माह में होते है, रोग ग्रस्त पौधों के गोब की उपरी पत्तियाँ आपस में उलझी हुई होती हैं, जो बाद की अवस्था में किनारे से कटती जाती है तथा गन्ने की गोब पतली लम्बी हो जाती है और छोटी-छोटी एक दो पत्तियाँ ही लगी होती हैं|

3. अन्त में गन्ने की गोब की बढ़वार वाला अग्र भाग मर जाता है, तथा सड़ने जैसी गंध आती है|

4. अग्रभाग के सड़ जाने के उपरान्त अगल-बगल की आँखों में फुटाव हो जाता है|

गन्ना के रोग का प्रबंधन-

1. गन्ना के रोग पोक्हा बोईंग की रोकथाम उसकी अवरोधी किस्मों से की जा सकती है|

2. इस बीमारी के लक्षण परिलक्षित होने पर कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2 ग्राम प्रति लीटर पानी या मैंकोंजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ फसल पर छिड़काव कर इस बीमारी के विस्तार को कम किया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- गन्ना बीज टुकड़ों का उपचार करने वाला यंत्र, जानिए रोग प्रबंधन की तकनीक

घसैला (ग्रासी सूट)

लक्षण-

1. घसैला रोग का फायटोप्लाजमा गन्ने जनित है, जो सक्रमित बीज से फैलता है|

2. इस रोग में ग्रसित पौधों में तनों की जगह बारीक घास जैसी पतली शाखाएं निकलती हैं, जिनका रंग प्रायः हरा न होकर सफेद या पीला होता है| पूरा पौधा झाडीनुमा हो जाता है|

3. इस रोग से गन्ने बौने, पतले और छोटी पोरियाँ होने के कारण पिराई योग्य नहीं होते, पेड़ी फसल में यह रोग ज्यादा पाया जाता है|

गन्ना के रोग का निदान-

1. बीजाई से पूर्व बीज को आर्द्र गर्म वायु शोधन (एम एच ए टी) मशीन में 54 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर दो घण्टे तक उपचारित करने से बीज रोगमुक्त हो जाता है|

2. बीमारी को फैलने से रोकने के लिए गन्ना के रोग या रोगी पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें|

3. इस गन्ना के रोग की फसल को पेड़ी हेतु न रखें|

यह भी पढ़ें- गन्ना नर्सरी की उन्नत विधियां, जानिए अधिक उत्पादन हेतु

पेड़ी का बौना रोग (रेटून स्टेन्टिंग या आर एस डी)

लक्षण-

1. यह पेड़ी फसल का एक बैक्टीरिया जनित रोग है, जो बीज द्वारा फैलता है|

2. इस गन्ना के रोग के लक्षण प्रायः पूर्णतया स्पष्ट नहीं हो पाते हैं, रोग प्रभावित पौधे पतले और पोरियां छोटी हो जाती हैं एवं खेत में गन्नों की संख्या कम हो जाती है|

3. इस गन्ना के रोग के गन्नों को चीरने पर गॉठों का रंग हल्का गुलाबी दिखाई देता है|

4. इस गन्ने के रोग से अंकुरण क्षमता और पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, आमतौर पर यह रोग बीज काटने वाले औजारों से फैलता है|

गन्ना के रोग का प्रबंधन-

1. बिजाई में रोग रहित बीज का प्रयोग करें|

2. गन्ना बीज का (एम एच ए टी) मशीन में 54 डिग्री सेंटीग्रेड़ तापमान पर दो घंटे तक उपचारित करने से इस रोग का नियंत्रण किया जा सकता है|

3. कटाई में प्रयोग औजारों को गर्म कर या लाइसोल के 5 प्रतिशत घोल में डुबोकर विसंक्रमित करें|

यह भी पढ़ें- गन्ना के बीज का उत्पादन कैसे करें, जानिए उपयोगी तकनीक

पीली पत्ती रोग 

लक्षण-

1. पीली पत्ती रोग गन्ने का एक विषाणु जनित रोग है, जो सङ्क्रमित बीज तथा मॉहू कीट द्वारा फैलता है| गत कुछ वर्षों से यह रोग उत्तर भारत की विभिन्न किस्मों में शीघ्रता से फैल रहा है|

2. इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण बीजाई के 5 से 6 महीने बाद खेत के कुछ-कुछ हिस्सों में पत्तियों पर दिखाई देते है|

3. पौधों में रोग ग्रस्त पत्तियों की मध्यशिरा पीली पड़कर समान्तर सूखती चली जाती है, यह खेत में सूखे की स्थिति होने पर यह रोग अधिक फैलता है|

गन्ना के रोग का निदान-

1. बीजाई में रोग रहित बीज का प्रयोग करें|

2. टीश्यु कल्चर से उत्पन्न विषाणु रहित नर्सरी लगाने से रोग के प्रकोप को नियंत्रित किया जा सकता है|

3. इस गन्ना के रोग के खेत में उचित समय पर सिंचाई करें|

मोजैक

लक्षण-

1. यह बीमारी विषाणु तथा फायटोप्लाजमा के द्वारा होती है और संक्रमित बीजों द्वारा इसका प्रसार होता है|

2. इस गन्ना के रोग से ग्रस्त पौधों की पत्तियों पर हल्के रंग के चकते प्रतीत होते हैं|

गन्ना के रोग का प्रबंधन-

1. गन्ना के खेत में पाये जाने वाले रोग ग्रसित पौधों को नष्ट कर दें|

2. इस गन्ना के रोग ग्रस्त फसल से पेडी ना लें|

3. तीन-टायर बीज नर्सरी कार्यक्रम अपनायें|

4. बीज को अच्छे से उपचारित कर के बिजाई करें|

यह भी पढ़ें- गन्ना बुवाई की उपयोगी विधियां, जानें अधिक उत्पादन हेतु

यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

“दैनिक जाग्रति” से जुड़े

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

करियर से संबंधित पोस्ट

आईआईआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कट ऑफ, प्लेसमेंट

एनआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कटऑफ, प्लेसमेंट

एनआईडी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, फीस, कट ऑफ, प्लेसमेंट

निफ्ट: योग्यता, प्रवेश प्रक्रिया, कोर्स, अवधि, फीस और करियर

निफ्ट प्रवेश: पात्रता, आवेदन, सिलेबस, कट-ऑफ और परिणाम

खेती-बाड़ी से संबंधित पोस्ट

June Mahine के कृषि कार्य: जानिए देखभाल और बेहतर पैदावार

मई माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

अप्रैल माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

मार्च माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

फरवरी माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

स्वास्थ्य से संबंधित पोस्ट

हकलाना: लक्षण, कारण, प्रकार, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

एलर्जी अस्थमा: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

स्टैसिस डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान, इलाज

न्यूमुलर डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, डाइट, निदान और इलाज

पेरिओरल डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, निदान और इलाज

सरकारी योजनाओं से संबंधित पोस्ट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार: प्रशिक्षण, लक्षित समूह, कार्यक्रम, विशेषताएं

राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम: लाभार्थी, योजना घटक, युवा वाहिनी

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार: उद्देश्य, प्रशिक्षण, विशेषताएं, परियोजनाएं

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना | प्रधानमंत्री सौभाग्य स्कीम

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, पेंशन, देय और ऋण

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap