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Home » अमरूद में कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें; जानिए उपयोगी तकनीक

अमरूद में कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें; जानिए उपयोगी तकनीक

June 28, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

अमरूद में कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें

भारतवर्ष में अमरूद एक लोकप्रिय फल है| अमरूद के आर्थिक व व्यापारिक महत्व की वजह से किसानों का रुझान इसकी तरफ काफी बढ़ रहा है, लेकिन दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन के कारण तरह-तरह की नई समस्याओं जिनमें कीट एवं रोग, जड़ गॉठ सूत्रकृमि, पोषक तत्वों की कमी आदि की जानकारी के अभाव में किसानों को अत्यधिक नुकसान हो रहा है| इन सभी तथ्यों को समावेशित करते हुये इस लेख में अमरूद में कीट एवं रोग तथा अन्य समस्याओं के संबंध में किसानों को जानकारी तथा समाधान को उल्लेखित किया गया है| अमरूद की उन्नत बागवानी की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अमरूद की खेती कैसे करें

कीट एवं रोकथाम

फलमक्खी- फल की छोटी अवस्था में ही मक्खी उस पर बैठकर अपने अंडे छोड़ देती है तथा जो बाद में बड़ी होकर सूड़ी का रुप धारण कर लेती है और अमरुद के फलों को खराब कर देती है, जिससे फल सड़कर गिर जाते है|

रोकथाम-

1. मिथाईल यूजिनल ट्रेप (100 मिलीलीटर मिश्रण में 0.1 प्रतिशत मिथाइल यूजिनोल व 0.1 प्रतिशत मेलाथियान) पेडों पर 5 से 6 फीट ऊँचाई पर लगायें| एक हेक्टर क्षेत्र में 10 ट्रेप पर्याप्त होते हैं| ट्रेप के मिश्रण को प्रति सप्ताह बदल दें| फल मक्खी को ट्रेप से विशेष प्रकार की आकर्षित करने वाली गंध आती है| इसको कली से फल बनने के समय पर ही बगीचों में उचित दूरी पर लगा देना चाहिए|

2. शीरा या शक्कर 100 ग्राम को एक लीटर पानी के घोल में 10 मिलीलीटर मैलाथियॉन 50 ई सी मिलाकर प्रलोभक तैयार कर 50 से 100 मिलीलीटर प्रति मिट्टी के प्याले में डालकर जगह जगह पेडों पर टांग देवें|

3. मैलाथियॉन 50 ई सी का एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- अमरूद का प्रवर्धन कैसे करें

छाल भक्षक कीट- इस कीट के प्रकोप का अंदाजा पौधों पर इसकी पहचान चायनुमा अपशिष्ट, लकड़ी के टुकड़े तथा अनियमित सुरंग की उपस्थिति से होता है| इसकी लटें अमरुद की छाल, शाखाओं व तना विशेषकर जहां दो शाखाओं का जुड़ाव होता है| वहां पर छेद करके अंदर छिपी रहती है तथा रेशमी धागों से लकड़ी के बुरादे व अपने मल से बने रक्षक आवरण के नीचे खाती हुई टेढ़ी-मेढ़ी सुरंग बना देती है| इससे प्रभावित पौधा कमजोर व शाखायें सूख जाती है|

रोकथाम-

इसके नियंत्रण के लिए अधिक प्रभाव होने पर 0.1 प्रतिशत डाईक्लोरोवास से भीगा रूई का फोहा या क्लोरोपाइरीफॉस 0.05 प्रतिशत या क्यूनालफॉस का 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल को छिद्र में इन्जेक्शन से डालकर गीली मिट्टी की लोई से छिद्र को बन्द करें, ताकि कीट अन्दर ही नष्ट हो जाएं|

फल बेधक कीट- यह मुख्यतः अरण्डी फसल का कीट है, परन्तु बहुभक्षी होने के कारण अमरूद फसल में भी भारी नुकसान पहुंचाता है| इसकी तितली अमरूद फल पर अण्डे देती है| जिसमें से लार्वा निकलकर अमरूद के फल में छेद करके फल को खराब कर देते हैं| इस कीट के लार्वा अमरूद के फल में घुसकर फल को खाते हैं, जिससे फल खराब हो जाते हैं| इससे प्रभावित फल टेड़े-मेड़े व फल के अंदर लाल मुंह वाली गुलाबी-सफेद रंग की इल्ली निकलती है|

रोकथाम-

1. इसके नियंत्रण के लिए प्रभावित फलों को एकत्र कर नष्ट करें|

2. इसके प्रकोप से बचाव के लिए कार्बारिल (0.2 प्रतिशत) या इथोफेनप्रोक्स (0.05 प्रतिशत) का फल बनने की प्रारम्भिक अवस्था में छिड़काव करें|

3. छिड़काव के 15 दिन बाद तक फल की तुड़ाई न करें|

यह भी पढ़ें- आम के कीट एवं उनकी रोकथाम कैसे करें

अनार की तितली- यह मुख्यतः अनार का कीट है, परन्तु यह अमरूद में भी भारी नुकसान करता है| इसकी तितली अमरूद फल पर अण्डे देती है, जिसमें से लार्वा निकलकर अमरूद के फल में छेद करके फल को खराब कर देते हैं|

रोकथाम-

1. इस कीट के नियंत्रण के लिए कार्बरिल (0.2 प्रतिशत) या इथोफेनप्रोक्स (0.05 प्रतिशत) का फल बनने की प्रारम्भिक अवस्था में छिड़काव करें|

2. अमरूद में छिड़काव के 15 दिन बाद तक फल की तुड़ाई न करें|

अमरुद का मिलीबग- यह एक बहुभक्षी मिलीबग है, जो अमरूद बागान में भारी नुकसान पहुंचा सकता है| मिलीबग का अधिक प्रकोप गर्मी के मौसम में होता है| मिलीबग भारी संख्या में पनपकर छोटे पौधों और मुलायम टहनियों एवं पंखुड़ियों से चिपक कर रस चूसकर अधिक नुकसान पहुंचाता है तथा पत्तियां सूखकर झड़ जाती हैं| इससे पौधे कमजोर होने के साथ इसका फलोत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| इसका प्रकोप जनवरी से मार्च तक पाया जाता है|

रोकथाम-

1. नियंत्रण हेतु पेड़ के आस-पास की जगह को साफ रखे और सितम्बर तक थाले की मिट्टी को पलटते रहें इससे अण्डे बाहर आ जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं|

2. प्रारम्भिक फलन अवस्था में या अफलन अवस्था में बुप्रोफेजिन 30 ई सी 2.5 मिलीलीटर या डाइमिथोएट 30 ई सी 1. 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|

3. क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 50 से 100 ग्राम प्रति पेड़ के हिसाब से थाले में 10 से 25 सेंटीमीटर तक की गहराई में मिलावें|

4. शिशु कीट को पेड़ों पर चढ़ने से रोकने के लिये नवम्बर माह में एल्काथिन (400 गेज) की 30 से 40 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी तने की चारों तरफ लगावें तथा इससे नीचे 15 से 20 सेंटीमीटर भाग तक ग्रीस का लेप कर दें|

यह भी पढ़ें- आम के रोग एवं उनकी रोकथाम कैसे करें

जड़ गॉठ सूत्रकृमि- पिछले कुछ वर्षों से अमरुदों के बागों में जड गाठ सुत्रकृमी व सूखारोग का प्रकोप ज्यादातर बगीचों में देखा गया जिसको कारण अमरूद के पौधे सूख जाते हैं| रोग के प्रारम्भिक लक्षण मे पौधों की पत्तियां हल्के पीले रंग की दिखाई देती हैं| पत्तियां झडने लगती हैं| पौधों की बढवार रूक जाती है व पौधों सूख जाते हैं और पौधे को खोदकर देखने पर पौधे की जड़ों में गांठे दिखाई देती हैं| रोग का प्रकोप ज्यादातर नये बगीचों में देखा गया है|

रोकथाम-

1. इसकी रोकथाम के लिए रोगमुक्त अमरूद के पौधों का चुनाव करे|

2. पौधे लगाने के लिए 3 X 3 फीट आकार के गड्डे मई मे खोदकर छोड़ दें व इन गड्डों को जून के अंतिम सप्ताह में प्रति गड्डों में 20 से 25 किलोग्राम गोबर की खाद, 30 ग्राम कार्बोफ्यूरॉन 3 जी, 20 ग्राम कार्बेन्डाजिम, 1 से 2 किलोग्राम नीम की खली, 50 ग्राम मिथाईल पेराथियान चुर्ण मिट्टी में मिलाकर भर दें|

3. यदि फिर भी रोग ग्रसित पौधे की पत्तियाँ हल्की पीली दिखाई देवे तो 50 ग्राम कार्बोफ्यूरॉन 3 जी व 250 ग्राम नीम की खली को पौधों के तने के चारों तरफ फैलाकर गुड़ाई करें व 20 ग्राम कार्बेन्डाजिम 10 लीटर पानी में घोल बनाकर जड़ क्षेत्र को भिगोयें|

4. उसके 5 से 7 दिन बाद 10 से 25 किलोग्राम (पौधे की उम्र के आधार पर) गोबर की खाद डालकर गुडाई करके सिंचाई देवें|

यह भी पढ़ें- बागवानी पौधशाला (नर्सरी) की स्थापना करना, देखभाल और प्रबंधन

रस चूषक व पत्ती खाने वाले कीट- आजकल अमरूद के पौधों पर रस चूसने वाले कीट जैसे सफेद मक्खी, हरा तेला, माइट आदि का प्रकोप उपर से नई फुटान पर दिखाई देने लगा है| जिसके फलस्वरूप पत्तियाँ मुड़ जाती है और पत्तियों को खाने वाली लट जो कि पत्तियों को किनारों से आरी की तरह खायी हुई दिखाई देती है| अधिक प्रकोप की स्थिति में उपर की नई कोमल पत्तियों को बिल्कुल खा जाती है एवं साथ मे पत्तियों के बीच में से भी छेद दिखायी देते हैं|

रोकथाम-

1. इसकी रोकथाम के लिए डाइमिथोएट 2 मिलीलीटर या इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें|

2. पत्ती खाने वाली लट का प्रकोप होने पर क्यूनालफॉस या ट्राइजोफॉस 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं|

यह भी पढ़ें- बादाम की खेती कैसे करें

रोग एवं रोकथाम

म्लानि या सूखा या उखटा रोग- यह अमरूद फल वृक्षों का सबसे विनाशकारी रोग है, रोग के लक्षण दो प्रकार से दिखाई पड़ते हैं| पहला आंशिक मुरझान जिसमें पौधे की एक या मुख्य शाखाएं रोग ग्रसित होती है तथा अन्य शाखाएं स्वस्थ दिखाई पड़ती है| पौंधों की पत्तियां पीली पड़ कर झड़ने लगती है| रोग ग्रस्त शाखाओं पर कच्चे फल छोटे व भूरे सख्त हो जाते हैं|

दूसरी अवस्था में रोग का प्रकोप पूरे पेड़ पर होता है| रोग जुलाई से अक्टूबर माह में उग्र रूप धारण कर लेता है| पौधे की ऊपरी शाखाओं से पत्तियां पीली पड़कर मुड़ने लगती है और अन्त में पत्तियां रंगहीन हो जाती है| पौधा नई फूटान नही कर पाता एवं अन्त में मर जाता है| प्रभावित पौधे की जड़ सड़कर छाल से अलग हो जाती है|

रोकथाम-

1. इस रोग के नियंत्रण हेतु रोग ग्रस्त शाखाओं को काटकर नष्ट कर दे साथ ही ज्यादा सघन बागों में उचित कटाई-छटाई करें|

2. पूर्णतया रोग ग्रसित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देवें|

3. पेड़ के तने के चारों ओर मिट्टी चढावे व दोपहर में सिंचाई ना करें, थांवले बड़े फैलाकर बनायें|

4. आंशिक रूप से ग्रसित पेड़ो में थालों से सिंचाई की जगह पाईप लाईन या ड्रिप सिंचाई पद्धति को अपनाते हुए, जल निकास की उचित व्यवस्था भी बगीचों में करें|

5. रोग ग्रसित पौधों को बचाने के लिए थालों में कार्बन्डाजिम फफूंदीनाशक दवा को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर डाले साथ ही कार्बन्डाजिम या टोपसिन एम फफूंदनाशक एक ग्राम प्रति लीटर पानी में धोलकर छिड़काव पौधों पर भी करें|

6. नीम की खली (4 किलोग्राम प्रति पौधा) और जिप्सम (2 किलोग्राम प्रति पौधा) से भूमि उपचार करना भी इस रोग में लाभप्रद पाया गया है|

7. जिंक की कमी दूर करने के लिए 50 से 100 ग्राम जिंक प्रति पौधा के हिसाब से डालें|

8. नया पौधा या बाग लगाने से पूर्व गड्डे की गहराई 1 x 1 x 1 मीटर रखे तथा गढ्ढे की मिट्टी को फोर्मलिन या कार्बन्डाजिम फफूंदीनाशक के घोल से उपचारित करें|

9. वर्षा ऋतु शुरू होने से पहले थालों मे तने के आसपास ट्राईकोडर्मा जैविक फंफूदीनाशक 100 ग्राम प्रति पौधो के हिसाब से डालकर गुड़ाई करें|

10. एस्परजिलस नाईजर ए एन 17 से उपचारित देशी खाद 5 किलोग्राम प्रति गढ्ढा पौधा लगाते समय तथा 10 किलोग्राम प्रति गढ्ढा पुराने पौधो में गुड़ाई कर डालें|

11. बागों को साफ-सुथरा रखे, रोग ग्रसित टहनियों, खरपतवार आदि को उखाड़कर बाग से बाहर लाकर नष्ट कर देवें|

12. प्रतिरोधी मूलवृन्त सीडियम कूजेविलस का उपयोग करके भी रोग से बचा जा सकता है|

यह भी पढ़ें- सेब की खेती कैसे करें

डाईबैक या एन्छेक्नोज या श्यामवर्ण- इस रोग का प्रकोप वर्षा ऋतु में अधिक रहता है| ग्रसित फलों पर काली चित्तियां पड़ जाती है तथा उनकी वृद्धि रूक जाती है| ऐसे फल पेड़ों पर लगे रहते हैं और सड़ जाते हैं| इस रोग से कच्चे फल सख्त तथा कार्कनूमा हो जाते हैं| इस रोग से पेड़ों के शीर्ष से कोमल शाखाएँ नीचे की तरफ सूखने लगती है| ऐसी शाखाओं की पत्तियाँ झड़ने लगती है और इनका रंग भूरा हो जाता है|

रोकथाम-

1. इसकी रोकथाम के लिए मेन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर या थायोफिनाईट मिथाईल एक ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर फल आने तक 10 से 15 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव दोहरावें|

2. र्बोडो मिश्रण (3:3:50) या कॉपर ऑक्सीक्लोराईड (0.3 प्रतिशत) का छिड़काव भी करें|

फल सड़न- अमरूद में इस रोग से फल सड़ने लगते हैं, सड़े हुए भाग पर रूई के समान फंफूदी की वृद्धि दिखाई देती है|

रोकथाम- अमरूद में इस रोग की रोकथाम के लिए 2 ग्राम मेन्कोजेब एक लीटर पानी में धोलकर 3 से 4 छिड़काव करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- पौधों का प्रवर्धन कैसे करें

धुसर अंगमारी, फल चिति, पामा या स्कैब रोग- फलों पर चितिदार छोटे भूरें धब्बों का उभरना इस रोग का मुख्य लक्षण है| जो कि सामान्यतया हरे फलों पर दिखाई देते हैं| परन्तु यदा-कदा पत्तियों पर भी हो सकते हैं| इस रोग से प्रभावित फलों की उपरी सतह खराब हो जाती है|

रोकथाम- अमरूद में इस रोग के नियंत्रण हेतु बोर्डो मिश्रण 1 प्रतिशत का 3-4 बार छिड़काव करें|

शैवाल पर्ण व फल चिती रोग- पत्तियों पर वैल्वेटी धब्बों का बनना व फलों पर जालनुमा कत्थई-काले रंग के दानों का बनना इस बीमारी के मुख्य लक्षण है| पत्तियों पर छोटे-छोटे आकार के धब्बे दिखाई देते हैं, जो बढ़कर 2 से 3 मिलीमीटर आकार के हो जाते हैं| यह रोग पत्ती के शीर्ष, किनारों या मध्य शिरा पर अधिक प्रभावी होता है| अपरिपक्व फलों पर कत्थई-काले रंग के दाग बन जाते हैं| रोग अप्रेल माह से शुरू होकर मई से अगस्त में अधिक होता है|

रोकथाम- अमरूद में इसके नियंत्रण हेतु कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3 प्रतिशत) 15 दिन के अन्तराल पर 3 से 4 छिड़काव अवश्य करें|

यह भी पढ़ें- पौधों में जनन क्या है, जानिए इसके प्रकार, फायदे और समस्याएं

सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा’ रोग- पत्तियों पर भूरे-पीले रंग के अनियमित आकार के धब्बों का बनना व प्रभावित पुरानी पत्तियों का पूरा पीला होकर झड़ जाना| पत्तियों की निचली सतह पर पनिले भूरे अनियमित आकार के धब्बे और ऊपरी सतह पर पीले रंग के दाग दिखाई पड़ते हैं| पुरानी पत्तियां बहुत अधिक प्रभावित होकर अन्त में झड़ जाती हैं|

रोकथाम- अमरूद में इसके नियंत्रण हेतु प्रभावित पौधों पर मेन्कोजेब (0.2 प्रतिशत) का एक माह के अन्तराल पर छिड़काव करें|

फल विगलन रोग- अमरूद में फलों का गलन, सफेद फफूंद की वृद्धि एव पत्तियों का मध्यशिरे के दोनों ओर से भूरा होकर झुलसना इस रोग के मुख्य लक्षण है| यह रोग वर्षा के मौसम में फल के केलिक्स (पुटक) भाग पर होता है| प्रभावित भाग पर सफेद रूई जैसी बढ़वार फल पकने के साथ-साथ 3 से 4 दिन में पूरी फल की सतह पर फैल जाती है।|जब वातावरण में आर्द्रता ज्यादा हो तब यह रोग अधिक फैलता है| प्रभावित फल गिरने लगते हैं|

रोकथाम- अमरूद में इस रोग के नियंत्रण हेतु डाईथेन जेड- 78 (0.2 प्रतिशत) या रिडोमिल या फोस्टाइल ए एल- 80 डब्ल्यू पी (0.2 प्रतिशत) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3 प्रतिशत)का छिड़काव करें और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3 प्रतिशत) या रिडोमिल या फोस्टाइल ए एल- 80 डब्ल्यू पी (0.2 प्रतिशत)से भूमि उपचार करें|

यह भी पढ़ें- गुलदाउदी की खेती कैसे करें

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