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अनार में कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें; जानिए अच्छे उत्पादन हेतु

July 12, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

अनार को बागों या भंडारण के समय अनेक कीट व रोग तथा विकार हानी पहुंचाते है| अनार के कीटों में अनार की तितली या फल छेदक, मिली बग, छाल भक्षक कीट, रस चूसक कीट और दीमक प्रमुख है| वहीं रोगों में जीवाणु पत्ती झुलसा या बेक्टेरियल ब्लाइट रोग, पत्ती मोड़क और तेलीय धब्बा रोग प्रमुख है और विकारों में फलों का फटना और सन बर्निग या सन स्काल्ड आदि प्रमुख है| जो अनार में आर्थिक स्तर से अधिक नुकसान पहुंचाते है| जब इनका प्रकोप होता है, तो उत्पादन पर अत्यधिक विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा फल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है|

इसलिए यदि कृषक बन्धु अपने अनार के बागों से इच्छित उपज लेना चाहते है, तो इन सब कीट व रोग और विकारों की समय पर रोकथाम करनी चाहिए| इस लेख में बागान बन्धुओं के लिए अनार में कीट व रोग और विकारों की रोकथाम कैसे करें, की जानकारी का उल्लेख किया गया है| अनार की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अनार की खेती कैसे करें

कीट एवं रोकथाम

अनार की तितली या फल छेदक- मादा तितली अनार के पुष्प और बनते फलों पर या फल के पास वाली पत्तियों पर या तने पर एक-एक कर अण्डे देती है| अण्डे से 7 से 10 दिनों में लट निकल कर बनते हुए फलों में प्रवेश कर जाती है, जोकि फलों के अन्दर बीजों को खाती रहती है, जिससे फल सड कर नीचे गिर जाते है|

रोकथाम-

1. ग्रसित फलों को इकट्ठा कर नष्ट कर दें या जला दें तथा एक लाईट ट्रेप प्रति एकड़ लगाकर इस कीट की मॉनिटरिंग करें|

2. फलों के पकने से पूर्व बटर पेपर से या मसलीन क्लॉथ से ढक दें|

3. इण्डोक्साकार्ब 14.5 एस सी 0.5 मिलीलीटर, कार्बारिल 50 डब्ल्यू जी 4 ग्राम या डाइक्लोरोवास 76 ई सी 1 मिलीलीटर या मेलाथियान 2 मिलीलीटर या स्पाइनोसेड 45 एस सी 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फूल तथा फल बनते समय छिड़काव करे और यह 15 से 20 दिन के अन्तराल पर पुनः दौहरावें|

यह भी पढ़ें- अनार की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार

मिली बग- इस कीट की पंखहीन मादा, शिशु (निम्फ) तथा वयस्क (प्रौढ) असंख्य संख्या में पैदा होकर पौधे पर चढ़ जाते है| शिशु तथा वयस्क अनार की कोमल टहनियों और फूलों पर एकत्रित होकर रस चूसते है| जिसके परिणाम स्वरूप शाखाएं तथा फूल सूखकर झड़ जाते है|

रोकथाम-

1. पौधे के आसपास की जगह साफ रखे और सितम्बर माह तक थाले की मिट्टी को प्रतिमाह पलटते रहे, जिससे कीट के अण्डे बाहर आकर नष्ट हो जाये|

2. 100 से 200 ग्राम क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण को प्रति पौधे के हिसाब से थाले में 15 से 20 सेंटीमीटर की गहराई में मिलावें|

3. शिशु कीटों को पेड़ पर चढ़ने से रोकने के लिए नवम्बर माह में एल्काथिन (400 गेज) की 30 से 40 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी जमीन से 60 सेंटीमीटर की ऊचाई पर तने के चारों ओर लगावें तथा इससे नीचे 15 से 20 सेंटीमीटर भाग तक ग्रीस का लेप कर दें| इसके बाद क्लोरोपायरीफोस 1.5 प्रतिशत चूर्ण को 250 ग्राम प्रति पौधे की दर से पेड़ के तने की जड़ में डालना चाहिए|

4. यदि फिर भी मिली बग चढ़ गये हो तो मोनोक्रोटोफास 36 एस एल, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर तथा डी डी वी पी 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से दोनों को मिक्स कर छिडके या डायमेथोएट 30 ई सी 1.5 मिलीलीटर या प्रोफेनोफास 1.5 मिलीलीटर या फैन्थियान को 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिडके|

यह भी पढ़ें- अनार का प्रवर्धन कैसे करें, जानिए आधुनिक तकनीक

छाल भक्षक कीट- इस कीट की सूण्डी (लट, इल्लियां) अप्रैल से दिसम्बर तक अधिक क्षति पहुँचाती है| अनार के पुराने व घने बागों में इस कीट से ज्यादा क्षति पहुँचती है| इस कीट की लटें (इल्लियाँ) अनार की छाल, शाखाओं या तनों में छेद करके अन्दर छिपी रहती है| रात्रि में ये इन छिद्रों से निकलकर पौधों की छाल को खाकर क्षति पहुँचाती है|

रोकथाम-

1. कटी-फटी छाल या ढीली छाल को हटा दें, ताकि वयस्क बीटल अण्डे न दे पावे या सुखी और ग्रसित शाखाओं को काटकर जला दे|

2. कीट का प्रकोप दिखाई देने पर छिद्रों में कैरोसिन या पेट्रोल या क्लोरोफार्म 3 से 5 मिलीलीटर प्रति सुरंग या छिद्र में पिचकारी या इन्जेक्शन की सहायता से डाले या रुई का फोहा बनाकर अन्दर डाल दे व छिद्र को गिली मिट्टी लगाकर बन्द कर दें या कार्बोफ्यूरान 3 जी, 5 ग्राम प्रति छिद्र में डालकर बन्द कर दें या सेल्फास (एल्युमिनियम फासफाइड) की 1 गोली (3 ग्राम) प्रति छिद्र डालकर बन्द कर दे| शाखाओं पर मिथाइल पेराथियान 50 ई सी, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिडकाव करें|

3. अधिक आक्रमण होने पर कॉपर आक्सीक्लोराइड (सी ओ सी) घोल का लेप तने के चारों ओर लगा दें, कार्बोरिल 50 डब्ल्यू पी, 20 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से तने की 3 फीट की ऊंचाई तक छिडकाव करें|

यह भी पढ़ें- आंवला में कीटों की रोकथाम कैसे करें

रस चूसक कीट- मोयला, थ्रिफ्स, जेसिडस (हरा तेला) व सफेद मक्खी जो कि अनार के पौधो के विभिन्न भागो से रस चूसने का कार्य करते है और अनेक रोगों का प्रसारण भी करते है|

रोकथाम-

1. इनके नियन्त्रण हेतु डायमेथोएट 30 ई सी, 1 मिलीलीटर या इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मिलीलीटर या थायोमेथाक्साम 25 डब्ल्यू जी, 0.5 ग्राम, एसीटामिप्रिड 1 मिलीलीटर या लेम्डासायहेलोथ्रिन 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें|

2. माइट की समस्या हो तो प्रोपरजाइट 1 मिलीलीटर या एबेमेक्टिन 0.5 मिलीलीटर या फेनाजाक्कन 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें|

दीमक- शुष्क क्षेत्रों में अनार के पौधों की जड़ों और तनों में दीमक का अधिक प्रकोप होता है| जिससे पौधे सूख जाते हैं|

रोकथाम-

1. नियंत्रण के लिये पौध रोपण के समय ही प्रत्येक गड्ढे को भरते समय मिश्रण में 50 ग्राम मिथाइल पैराथियान चूर्ण (5 प्रतिशत) मिलाना चाहिए|

2. पौधों की प्रत्येक सिंचाई करते समय ‘क्लोरापायरिफास’ कीटनाशक दवा की 5 से 10 बूंद पानी के साथ थालों में देते रहना चाहिए|

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रोग एवं रोकथाम

जीवाणु पत्ती झुलसा या बेक्टेरियल ब्लाइट रोग- यह अनार का एक जीवाणु जनित रोग है| इस रोग का प्रकोप पौधे के सभी भागों पर देखा जा सकता है| परन्तु फल पर इसका प्रभाव सबसे विनाशकारी होता है| वर्षा ऋतु में यह सर्वाधिक और शरद ऋतु में कम नुकसान करता है| पत्तों पर सबसे पहले निचली सतह पर नियमित व अनियमित आकार के पानीनुमा धब्बे दिखते है, जिन्हें प्रकाश के सामने देखने पर पारदर्शी पीले नजर आते है| फलों पर यह रोग आप देखेंगे कि त्वचा की सतह पर पानीनुमा धब्बों से शुरू होता है, जो बाद में भूरे काले रंग के बन जाते है| धीरे-धीरे यह धब्बे आपस में विलय या मिल जाते है और फल के अधिकांश हिस्से को घेर लेते है|

रोकथाम-

1. प्रतिरोधी किस्में इस रोग से बचाव का उपयुक्त तरीका है| भगवा इस रोग की ज्यादा सहनशील किस्म है| अमलीदाना, दामिनी किस्म इस रोग के प्रतिरोधी है|

2. अनार की नर्सरी में रोग मुक्त पौधे तैयार करे और बगीचों में समय-समय पर इस रोग के प्रकोप की जानकारी व ध्यान रखे और यदि नये पौधों पर यह रोग दिखे तो उखाड़कर जला दें|

3. एक बार बगीचे में यह रोग दिख जाये तो वर्षा वाली फसल बिल्कुल ना ले, इसके बजाय सर्दी वाली फसल ले और यदि टहनियों व शाखाओं पर यह रोग गम्भीर है, तो फल तुड़ाई उपरान्त भारी छटाई करके सभी रोगग्रस्त शाखाएँ निकाल दें| जो पौधा ज्यादा ग्रसित है, उसे तो पूरा उखाड़ कर जला दें या जमीन स्तर से 2 से 3 इन्च ऊपर से काट दे तथा रोग मुक्त अंकुरित टहनियों को एक पौधे के रूप में बढ़ा ले| काटे गये भाग पर बोर्डो मिश्रण लगावे|

4. प्रत्येक पौधों की छटाई उपरान्त कर्तन औजारों को कीटाणु रहित करे, इस के लिए 2.5 प्रतिशत सोडियम हाइपोक्लोराइड के घोल का इस्तेमाल करें|

5. हर तीन महीने के अन्तराल में बगीचे में जमीन पर ब्लीचिंग पाउडर 25 किलोग्राम प्रति 1000 लीटर पानी से ड्रेन्चिंग करे, ध्यान रखे ब्लीचिंग पाउडर में 33 प्रतिशत क्लोरिन होना चाहिए|

यह भी पढ़ें- लीची की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

पत्ती मोड़क (बरुथी)- इस रोग के कारण पत्तियां सिकुड़ कर गिर जाती है| जिससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर विपरित प्रभाव पड़ता है तथा पौधों की बढ़वार व फलन बुरी तरह प्रभावित होता है| यह रोग अनार में सितम्बर माह में अधिक फैलता है|

रोकथाम- नियंत्रण के लिये ओमाइट या इथियोल 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए और 15 दिन के अन्तराल पर दूसरा छिड़काव करें|

तेलीय धब्बा रोग- यह अनार का सबसे भयंकर रोग है| इसका प्रभाव पत्तियों, टहनियों व फलों पर होता है| शुरु में फलों पर भूरे रंग के तेलीय धब्बे बनते हैं| बाद में फल फटने लगते हैं तथा सड़ जाते हैं| रोग के प्रभाव से पूरा बगीचा नष्ट हो जाता है|

रोकथाम- नियंत्रण के लिये केप्टान 0.5 प्रतिशत या बैक्टीरीयानाशक 500 पी पी एम को छिड़काव करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- पपीते के कीट एवं रोग की रोकथाम कैसे करें

अनार के दैहिक विकार

फल-फटना- अनार की फसल में फल-फटना एक प्रमुख दैहिक विकार है| जिसके कारण फलों की गुणवत्ता में कमी आ जाती है और ऐसे फलों का बाजार में मूल्य काफी कम मिल पाता है| छोटे या अल्प विकसित फलों में यह मुख्यतया बोरोन तत्व की कमी के कारण होता है| परन्तु पूर्ण विकसित फलों में यह समस्या बोरोन तत्व की कमी के अलावा अनियमित सिंचाई के कारण भी हो सकती है| मृग बहार के फलों में यह समस्या अन्य बहार की तुलना में अधिक देखी गयी है|

रोकथाम-

1. जून के महीने में 4 ग्राम प्रति लीटर पानी बोरेक्स या 2 ग्राम प्रति लीटर पानी बोरिक अम्ल और 250 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी जिबरेलिक अम्ल का छिड़काव करे|

2. अनार के बाग में नियमित रूप से सिंचाई करते रहे|

3. प्रतिरोधी किस्में जैसे बेदाना बोसेक, जालौर सीडलेस, खोग इत्यादि उगाये| अनार के फलों का फटना और रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें-  अनार के फलों का फटना, जानिए कारण और रोकथाम के उपाय

सन बर्निग या सन स्काल्ड- यह भी अनार में एक प्रकार का दैहिक विकार है, इसमें सूर्य की सीधी किरणो से फल का ऊपरी भाग भूरा या तांबे जैसा हो जाता है| जिससे फल की गुणवत्ता में कमी आ जाती है|

रोकथाम-

1. पौधो का छत्रक इस तरह से विकसीत करे, कि फलों पर सुर्य की तेज रोशनी सीधी ना गिरे|

2. केओलिन (5 प्रतिशत) जो कि प्रकाश रोधी रसायन है, का फल विकसित होने की अवस्था पर 2 से 3 छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- केला फसल के प्रमुख कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें

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